Skip to main content

चक्के पे चक्का, चक्के पे गाडी....बच्चों के संग एक मस्ती भरी यात्रा पे चलिए

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 266

'ब्रह्मचारी' गीतकार शैलेन्द्र की अंतिम फ़िल्म थी। इस फ़िल्म के गीत "मैं गाऊँ तुम सो जाओ" के लिये उन्हे मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बच्चों पर केन्द्रित फ़िल्मों की फ़हरिस्त में १९६८ की इस फ़िल्म का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इस फ़िल्म में कई कालजयी गीत हैं, और कुछ तो लोकप्रियता की कसौटी पर ऐसे खरे उतरे हैं कि आज भी अक्सर कहीं ना कहीं से "आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे" या "दिल के झरोखे में तुझको बिठा के" सुनाई दे जाता है। अनाथ बच्चों पर आधारित इस फ़िल्म में दो बच्चों वाले गीत थे, एक जिसका उल्लेख हमने शुरु में ही किया ("मैं गाऊँ तुम सो जाओ"), और दूसरा गीत था बड़ा ही मस्ती भरा "चक्के पे चक्का, चक्के पे गाड़ी, गाड़ी में निकली अपनी सवारी", जिसे रफ़ी साहब और बच्चों ने बड़े ही बच्चों वाले अंदाज़ में गाया था। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर है इसी गीत की बारी। इस गीत के बोल साफ़ साफ़ इसी बात की तरफ़ इशारा करते हैं कि यह गीत किसी ख़ास मक़सद या सिचुएशन के लिए नहीं रखा जाना था। बस बच्चों की टोली निकली है मोटर गाड़ी की सैर पर। इस साधारण सिचुएशन के लिए एक गाना चाहिए था। शैलेन्द्र ने भी बहुत ही आम भाषा में गीत लिख दिया, लेकिन उल्लेखनीय बात यह है कि इस 'टाइम-पास' गीत ने भी वही कमाल कर दिखाया जो शैलेन्द्र के दूसरे सीरीयस गीत करते रहे हैं। यही है निशानी एक जीनीयस गीतकार की। आज भी इस गीत को सुनते हुए वही मज़ा आता है जो शम्मी कपूर और उन तमाम बच्चों को आया होगा शूटिंग् के दौरान! सर्वश्रेष्ठ गीतकार के अलावा 'ब्रह्मचारी' ने तमाम फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीते, जैसे कि शम्मी कपूर (सर्वश्रेष्ठ अभिनेता), जी. पी. सिप्पी (सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म), शंकर जयकिशन (सर्वश्रेष्ठ संगीतकार), मोहम्मद रफ़ी (सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक - "दिल के झरोखे में"), और सचिन भौमिक (सर्वश्रेष्ठ कहानी)। बस‍ इस फ़िल्म के निर्देशक बप्पी सोनी पुरस्कार से वंचित रह गए क्योंकि उस साल सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिला था रामानंद सागर को फ़िल्म 'आँखें' के लिए।

शम्मी कपूर के अलावा 'ब्रह्मचारी' के मुख्य कलाकार थे राजश्री, मुमताज़, प्राण, मोहन चोटी, असीत सेन, तथा बाल कलाकारों में प्रमुख नाम थे बेबी फ़रीदा, मास्टर शाहीद, मास्टर सचिन, महमूद जुनियर, बबी सकीना, मास्टर योनिन, बेबी मीना, बेबी फ़ाओज़िया, मास्टर अनिल, मास्टर विजय, मास्टर वसीम, मास्टर सर्जु और बबी गुड्डी। दोस्तों, क्योंकि आज का गीत शंकर जयकिशन का है और अभिनेता हैं शम्मी कपूर, और अभी हाल ही में शम्मी कपूर से एक मुलाक़ात विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम में प्रसारित हुआ था जिसमें शम्मी साहब ने तमाम संगीतकारों से जुड़ी अपनी यादें बताई थी। तो क्यों ना आज शम्मी कपूर की बातें हो जाए जो उन्होने कहे थे शंकर जयकिशन के लिए उस मुलाक़ात में! "जयकिशन और मैं साथ में बड़े हुए। हम लोग हम-उम्र थे। शंकर जी भी थे थियटर में। मेरी पहली पिक्चर जिसमें शंकर जयकिशन ने संगीत दिया, वह थी 'उजाला'। बहुत अच्छी दोस्ती थी, और जैसा म्युज़िक मैने उनसे चाहा, हर बार वैसा मिलता रहा। आप यकीन कीजिएगा, मैं समझता हूँ कि शंकर जयकिशन ना ही केवल काबिल और होनहार, 'they are magicians'। आप उनसे कहिए कि मुझे इस तरह का गाना चाहिए, इस तरह का सिचुएशन है, और अब चाहिए, 'they will immediately make something and give it to you'। मैने ऐसा देखा है होते हुए। मेरे लिए भी हुआ है। मुझे बहुत जल्दी थी, और आउटडोर जा रहा था, कशमीर जा रहा था, या पैरिस जा रहा था, और मैं बाहर चला गया था, और मेरी ग़ैर हाज़िरी में गानें रिकार्ड हुए। सिलेक्शन्स हो चुका था 'ट्युन्स्' का, लेकिन रिकार्डिंग् के वक़्त मैं वहाँ नहीं था। आम तौर पर मेरी आदत थी कि 'I am present in the recordings', कि किस तरह से रफ़ी साहब ने कहाँ कहाँ किस तरह की हरकत लेनी है, जिसपे मैं जो सोचा हुआ है वो करूँगा, ये शंकर जयकिशन के साथ देखा कि जैसा आपने चाहा हो गया वैसे काम!" शम्मी जी ने उस मुलाक़ात में और भी कई बातें कहे शंकर जयकिशन के बारे में जिन्हे हम आगे चलकर आप के साथ बाँटेंगे, फ़िल्हाल वक़्त हो चला है गीत सुनने का, तो चलिए हम सब एक साथ निकल पड़ते हैं इस मस्ती भरे सैर पर!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. इस गीत में बच्चे किसी रूठे को मना रहे हैं.
२. फिल्म में मुख्य अभिनेत्री हैं आशा पारेख.
३. एक गायिका है कमल बारोट.

पिछली पहेली का परिणाम -

दिलीप जी डबल फिगर यानी १० अंकों पर आ चुके हैं अब आप, कोशिश कीजिये आप भी विजेता का ताज़ अवश्य पहन सकते हैं, हाँ आपकी जिज्ञासा का जवाब तो अवध जी ने दे ही दिया है. जी शरद जी आपने एकदम सहीफरमाया

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

अब तो बहुत सरल पहेलियाँ आ रहीं हैं फिर भी लोग हिस्सा नहीं ले रहे है । क्या आप लोग भी रूठ गए है ।
Anonymous said…
ya kren log hisa lene lgen
neelam said…
dadi amma ,dadi amma maan jaao
हिस्सा तो लेलूं लेकिन फ़ेल होने का डर है इस उपक्रम में बेसुरा जो हूं।
पुनश्च: सुनकर आनन्द जरूर लेता रहा हूं क्मेन्ट अब कर रहा हूं क्योंकि ब्लॉग पर यही मेहनताना या पुरस्कार है ना-पह्ले क्मेन्ट न करने का अफ़सोस है

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की