Skip to main content

बच्चे मन के सच्चे....साहिर साहब के बोलों में झलकता निष्पाप बचपन का प्रतिबिम्ब

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 263

न दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर आप सुन रहे हैं बच्चों वाले गीतों की एक ख़ास लघु शृंखला 'बचपन के दिन भुला ना देना'। आज एक गीत लता मंगेशकर की आवाज़ में हो जाए? इसमें इन्होने प्लेबैक दिया है बाल कलाकार बेबी सोनिया का। बेबी सोनिया का नाम शायद आपने कभी नहीं सुना होगा लेकिन अगर हम यह कहें कि यही बेबी सोनिया आगे चलकर नीतू सिंह के नाम से जानी गई तो फिर कोई और तारुफ़ की मोहताज नही रह जाएँगी बेबी सोनिया। जी हाँ, १९६८ की फ़िल्म 'दो कलियाँ' में बेबी सोनिया के नाम से नीतू सिंह नज़र आईँ थीं एक नहीं बल्कि दो किरदारों में - गंगा और जमुना। यानी कि दो जुड़वा बहनों के लिए उनका डबल रोल था। इस फ़िल्म में युं तो बिस्वजीत और माला सिंहा नायक-नायिका के रोल में थे, लेकिन कहानी में नीतू सिंह की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही। अजी साहब, फ़िल्म का शीर्षक ही तो बता रही है कि दोनों जुड़वा बहनों को दो कलियाँ कहा गया है। नीतू पर फ़िल्म में कम से कम दो गानें फ़िल्माए गए जिन्हे लता जी ने ही गाए। युं तो फ़िल्म का सब से लोकप्रिय गीत एक लता-रफ़ी डुएट है "तुम्हारी नज़र क्यों ख़फ़ा हो गई", लेकिन बेबी सोनिया पर फ़िल्माया दोनो गीत उस ज़माने में काफ़ी मशहूर हुए थे। इनमें से एक गीत है "मुर्गा मुर्गी प्यार से देखे, नन्हा चूज़ा खेल करे", और दूसरा गीत था वह जो आज हम आपको सुनवाने के लिए लाए हैं और वह गीत है "बच्चे मन के सच्चे सारी जग की आँख के तारे, ये वो नन्हे फूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे"। इस गीत को लिखा था साहिर लुधियानवी ने और तर्ज़ बनाई रवि ने। साहिर साहब को याद करते हुए ख़ास इस गीत के बारे में रवि जी ने विविध भारती को बताया था - "साहिर साहब का यह स्वभाव था कि गाने का सिचुयशन लेकर ग़ायब हो जाते थे। रिकार्डिंग् के चंद रोज़ पहले गाना लेकर वापस आते और गाना भी ऐसा कि एक शब्द इधर से उधर करने की कोई गुंजाइश नहीं रहती थी। फ़िल्म 'दो कलियाँ' में "बच्चे मन के सच्चे", इस गाने में उन्होने ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है कि इससे बेहतर और कुछ हो ही नहीं सकता!"

'दो कलियाँ' का निर्माण किया था एम. कुमारम, एम. सर्वनन और एम. मुरुगन ने और फ़िल्म को निर्देशित किया आर. कृष्णन और एस. पन्जु ने। एन. सितारमण की कहानी पर संवाद लिखे मुखराम शर्मा ने। क्योंकि फ़िल्म की कहानी दो छोटी बच्चियों का अपने माँ बाप के बीच पनपी दूरी को मिटाने का था, तो क्यों ना फ़िल्म की कहानी थोड़ी विस्तार में आपको बताई जाए। अमीर और अहंकारी किरण (माला सिंहा) की मुलाक़ात कॊलेज में होती है एक सीधे सादे साधारण घर के लड़के शेखर (बिस्वजीत) से। कई मतभेदों और ग़लतफ़हमियों के बाद जाकर दोनों में आख़िरकार प्यार हो ही जाता है। जब वे शादी करने का फ़ैसला करते हैं तो किरण की सख़्त मम्मी यह शर्त रख देती है कि शादी के बाद शेखर घर जमाई बन कर रहेगा। अपने प्यार के ख़ातिर शेखर मान तो जाता है लेकिन शादी के बाद ही उसे पता चल जाता है कि उस घर में उसकी हैसियत एक दामाद की नहीं बल्कि एक नौकर की है। वो किरण को लेकर कहीं और जाकर घर बसाने की सोचता है लेकिन किरण उसे धीरज धरने को कहती है। किरण और शेखर के घर दो जुड़वा बेटियों (गंगा और जमुना) का जन्म होता है लेकिन शेखर को घर के हालात में कोई सुधार नहीं दिखाई देता। आख़िर वो तंग आकर गंगा को लेकर घर छोड़ के चला जाता है। गंगा और जमुना अलग अलग बड़ी होने लगती है। क़िस्मत से दोनों बहनों की मुलाक़ात हो जाती है, एक की माँ और एक के पिता ना होने से दोनों समझ जाते हैं कि वे बहने हैं। दोनों एक खेल रचते हैं। गंगा जमुना की जगह चली जाती है अपनी माँ के पास और जमुना अपने पिता के पास। फिर दोनों अपनी कोशिशों से अपने माता पिता को फिर से एक कर देते हैं और फ़िल्म का सुखांत होता है। गंगा और जमुना के डबल रोल में नीतू सिंह का काम बेहद सराहा गया था। इस फ़िल्म के बाद लोग समझ गये थे कि बड़ी होकर यह लड़की नामचीन अदाकारा बनेगी और वैसा ही हुआ। तो आइए अब सुनते हैं यह गीत और याद कीजिए अपने स्कूल के दिनों को जब प्रेयर के वक़्त आप कतार में खड़े होकर कोई भक्ति गीत गाया करते थे!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. बच्चों को समर्पित इस बेहद प्यारी फिल्म में मास्टर राजू और मास्टर तितो के साथ थे उत्तम कुमार और विध्या सिन्हा.
२. बेहद कमाल के शब्द, और संगीतकार ने इस गीत को जो ट्रीटमेंट दिया है वो बेमिसाल है.
३. दो गायिकाओं ने इसे गाया है जिनमे से एक है पद्मिनी कोल्हापुरी.

पिछली पहेली का परिणाम -

शरद जी मात्र एक जवाब दूर हैं दूसरी बार विजेता का ताज पहनने से बहुत बहुत बधाई. नीलम जी धन्येवाद....अपने बच्चों की (बाल उधान के) हजारी लगाईये अब यहाँ अगले दस दिनों तक....निर्मला जी आभार.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

अ आ इ ई मास्टर जी की आ गई चिट्ठी
फ़िल्म : किताब
वाह मेरी तो मौज लग गयी रोज़ नातिन के लिये नये गीत धन्यवाद्
इस उपक्रम के सचिन तेंदुलकर तो शरद तैलंग है और रहेंगे

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की