ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 182
'१० गीत जो थे मुकेश को प्रिय', इस शृंखला की दूसरी कड़ी में मुकेश और शैलेन्द्र की जोड़ी तो बरकरार है, लेकिन आज के गीत के संगीतकार हैं एस. एन. त्रिपाठी, जिनका नाम ऐतिहासिक और पौराणिक फ़िल्मों में सफल संगीत देने के लिए श्रद्धा से लिया जाता है फ़िल्म जगत में। त्रिपाठी जी के अनुसार, "मुकेश जी ने मेरे गीत बहुत ही कम गाए हैं, मुश्किल से १५ या २०, बस! मगर यह बात देखने लायक है कि उन्होने मेरे लिए जो भी गीत गाये हैं, वो सब 'हिट' हुए हैं, जैसे "नैन का चैन चुराकर ले गई" (चंद्रमुखी), "आ लौट के आजा मेरे मीत" (रानी रूपमती), "झूमती चली हवा याद आ गया कोई" (संगीत सम्राट तानसेन), इत्यादि इत्यादि।" दोस्तों, इन्ही में से फ़िल्म 'संगीत सम्राट तानसेन' का गीत आज हम आप को सुनवा रहे हैं, जो मुकेश जी को भी अत्यंत प्रिय था। १९६२ के इस फ़िल्म का निर्माण व निर्देशन स्वयं एस. एन. त्रिपाठी ने ही किया था। बैनर का नाम था 'सुर सिंगार चित्र'। भारत भूषण और अनीता गुहा अभिनीत यह फ़िल्म अपने गीत संगीत की वजह से आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है। शास्त्रीय रागों का व्यापक इस्तेमाल फ़िल्म के हर एक गीत में त्रिपाठी जी ने किया है। प्रस्तुत गीत आधारित है राग सोहानी पर। एस. एन. त्रिपाठी के संगीत की खासियत यह थी कि पीरियड और पौराणिक फ़िल्मों में वो इस तरह से संगीत देते थे कि वह ज़माना जीवंत हो उठता था उनके संगीत के माध्यम से। हमारी संस्कृति, हमारे इतिहास को अपने फ़िल्मों में सही तरीके से दर्शाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है और अपने इस काम के साथ उन्होने पूरा पूरा न्याय भी किया है। जहाँ तक प्रस्तुत गीत में मुकेश की आवाज़ का ताल्लुख़ है, क्या ख़ूब उभारा है उन्होने विरह की वेदना को!
और अब आइए दोबारा मुड़ते हैं मुकेश के सुपुत्र नितिन मुकेश के उस जयमाला कार्यक्रम पर जिसमें उन्होने अपने पिता से जुड़ी कई बातें बताई थी. "मेरे बहुत से दोस्त मुझसे प्रश्न करते हैं कि क्या मुकेश जी मेरे गुरु थे? क्या उन्होने मुझे गाना सीखाया? तो मैं यह कहना चाहता हूँ कि यूं तो वो मेरे आदर्श रहे हैं, लेकिन उन्होने कभी मुझे गाना सिखाया नहीं। मैने उन्हे सुन सुन के गाना सीखा है। वो तो चाहते ही नहीं थे कि मैं गायक बनूँ। उन्होने एक बार मुझसे कहा था कि 'Singing is a beautiful hobby but a painful profession'. यह उनकी मेरे लिए एक चेतावनी थी। उन्हे डर था कि क्या मैं संघर्ष कर पाऊंगा? उन्होने मुझे पढ़ने के लिए लंदन भेजा, पर मैं वहाँ से भी लौट कर वापस आ गया क्योंकि मेरा मन तो गीत संगीत में ही था। मैं ९ वर्ष की आयु से ही उनके साथ हर शो पर जाता था और उनके साथ गाने की भी ज़िद करता। और जब कभी मुझे औडिएन्स की तरफ़ से वाह वाह मिलती, वो तो मुझे कुछ नहीं कहते, पर रात को मेरी माँ को टेलीफ़ोन पर मेरी ख़ूब तारीफ़ करते। आज मेरी माँ कहती है कि वो हमेशा चाहते थे कि मैं एक सिंगर बन जाऊं।" दोस्तों, अपने पिता के नक्श-ए-क़दम पर चलते हुए नितिन मुकेश तो एक अच्छे गायक बन गये, अब मुकेश जी के पोते नील नितिन मुकेश भी जवाँ दिलों पर राज कर रहे हैं। और अब यह भी सुनने में आया है कि नील अपनी अगली फ़िल्म में गीत भी गाने वाले हैं। तो चलिए, याद करते हैं मुकेश जी का गाया यह रूहानी गीत "झूमती चली हवा याद आ गया कोई, बुझती बुझती आग को फिर जला गया कोई"।
हमारे एक श्रोता बी एस पाबला जी ने गीत के बोल हमें भेजे हैं...आप भी आनंद लें -
झूमती चली हवा, याद आ गया कोई
बुझती बुझती आग को, फिर जला गया कोई
झूमती चली हवा ...
खो गई हैं मंज़िलें, मिट गये हैं रास्ते
गर्दिशें ही गर्दिशें, अब हैं मेरे वास्ते
अब हैं मेरे वास्ते
और ऐसे में मुझे, फिर बुला गया कोई
झूमती चली हवा ...
चुप हैं चाँद चाँदनी, चुप ये आसमान है
मीठी मीठी नींद में, सो रहा जहान है
सो रहा जहान है
आज आधी रात को, क्यों जगा गया कोई
झूमती चली हवा ...
एक हूक सी उठी, मैं सिहर के रह गया
दिल को अपना थाम के आह भर के रह गया
चाँदनी की ओट से मुस्कुरा गया कोई
झूमती चली हवा...
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. मुकेश की पसंद का अगला गीत है ये.
२. गीतकार हैं शमीम जयपुरी साहब.
३. मुखड़े की पहली पंक्ति में आपके इस प्रिय ब्लॉग का नाम है :)
पिछली पहेली का परिणाम -
पूर्वी जी बधाई १२ अंक हुए आपके. पाबला जी आशा है आज आप बाज़ी मारेंगें. आपने पूरे गीत के बोल जो दिए हैं वो हमने सभी श्रोताओं के लिए पेश कर दिया है. यदि आप ये काम नियमित रूप से कर पायें तो बहुत बढ़िया रहेगा. मनु जी के मार्फ़त पता लगा की स्वप्न जी का जन्मदिन था कल, भई देर से ही सही हमारी तरफ (समस्त आवाज़ परिवार) से भी संगीतमय शुभकामनाएँ. पराग जी आपकी अदा दिल छू गयी. विनोद जी आपका भी आभार.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
'१० गीत जो थे मुकेश को प्रिय', इस शृंखला की दूसरी कड़ी में मुकेश और शैलेन्द्र की जोड़ी तो बरकरार है, लेकिन आज के गीत के संगीतकार हैं एस. एन. त्रिपाठी, जिनका नाम ऐतिहासिक और पौराणिक फ़िल्मों में सफल संगीत देने के लिए श्रद्धा से लिया जाता है फ़िल्म जगत में। त्रिपाठी जी के अनुसार, "मुकेश जी ने मेरे गीत बहुत ही कम गाए हैं, मुश्किल से १५ या २०, बस! मगर यह बात देखने लायक है कि उन्होने मेरे लिए जो भी गीत गाये हैं, वो सब 'हिट' हुए हैं, जैसे "नैन का चैन चुराकर ले गई" (चंद्रमुखी), "आ लौट के आजा मेरे मीत" (रानी रूपमती), "झूमती चली हवा याद आ गया कोई" (संगीत सम्राट तानसेन), इत्यादि इत्यादि।" दोस्तों, इन्ही में से फ़िल्म 'संगीत सम्राट तानसेन' का गीत आज हम आप को सुनवा रहे हैं, जो मुकेश जी को भी अत्यंत प्रिय था। १९६२ के इस फ़िल्म का निर्माण व निर्देशन स्वयं एस. एन. त्रिपाठी ने ही किया था। बैनर का नाम था 'सुर सिंगार चित्र'। भारत भूषण और अनीता गुहा अभिनीत यह फ़िल्म अपने गीत संगीत की वजह से आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है। शास्त्रीय रागों का व्यापक इस्तेमाल फ़िल्म के हर एक गीत में त्रिपाठी जी ने किया है। प्रस्तुत गीत आधारित है राग सोहानी पर। एस. एन. त्रिपाठी के संगीत की खासियत यह थी कि पीरियड और पौराणिक फ़िल्मों में वो इस तरह से संगीत देते थे कि वह ज़माना जीवंत हो उठता था उनके संगीत के माध्यम से। हमारी संस्कृति, हमारे इतिहास को अपने फ़िल्मों में सही तरीके से दर्शाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है और अपने इस काम के साथ उन्होने पूरा पूरा न्याय भी किया है। जहाँ तक प्रस्तुत गीत में मुकेश की आवाज़ का ताल्लुख़ है, क्या ख़ूब उभारा है उन्होने विरह की वेदना को!
और अब आइए दोबारा मुड़ते हैं मुकेश के सुपुत्र नितिन मुकेश के उस जयमाला कार्यक्रम पर जिसमें उन्होने अपने पिता से जुड़ी कई बातें बताई थी. "मेरे बहुत से दोस्त मुझसे प्रश्न करते हैं कि क्या मुकेश जी मेरे गुरु थे? क्या उन्होने मुझे गाना सीखाया? तो मैं यह कहना चाहता हूँ कि यूं तो वो मेरे आदर्श रहे हैं, लेकिन उन्होने कभी मुझे गाना सिखाया नहीं। मैने उन्हे सुन सुन के गाना सीखा है। वो तो चाहते ही नहीं थे कि मैं गायक बनूँ। उन्होने एक बार मुझसे कहा था कि 'Singing is a beautiful hobby but a painful profession'. यह उनकी मेरे लिए एक चेतावनी थी। उन्हे डर था कि क्या मैं संघर्ष कर पाऊंगा? उन्होने मुझे पढ़ने के लिए लंदन भेजा, पर मैं वहाँ से भी लौट कर वापस आ गया क्योंकि मेरा मन तो गीत संगीत में ही था। मैं ९ वर्ष की आयु से ही उनके साथ हर शो पर जाता था और उनके साथ गाने की भी ज़िद करता। और जब कभी मुझे औडिएन्स की तरफ़ से वाह वाह मिलती, वो तो मुझे कुछ नहीं कहते, पर रात को मेरी माँ को टेलीफ़ोन पर मेरी ख़ूब तारीफ़ करते। आज मेरी माँ कहती है कि वो हमेशा चाहते थे कि मैं एक सिंगर बन जाऊं।" दोस्तों, अपने पिता के नक्श-ए-क़दम पर चलते हुए नितिन मुकेश तो एक अच्छे गायक बन गये, अब मुकेश जी के पोते नील नितिन मुकेश भी जवाँ दिलों पर राज कर रहे हैं। और अब यह भी सुनने में आया है कि नील अपनी अगली फ़िल्म में गीत भी गाने वाले हैं। तो चलिए, याद करते हैं मुकेश जी का गाया यह रूहानी गीत "झूमती चली हवा याद आ गया कोई, बुझती बुझती आग को फिर जला गया कोई"।
हमारे एक श्रोता बी एस पाबला जी ने गीत के बोल हमें भेजे हैं...आप भी आनंद लें -
झूमती चली हवा, याद आ गया कोई
बुझती बुझती आग को, फिर जला गया कोई
झूमती चली हवा ...
खो गई हैं मंज़िलें, मिट गये हैं रास्ते
गर्दिशें ही गर्दिशें, अब हैं मेरे वास्ते
अब हैं मेरे वास्ते
और ऐसे में मुझे, फिर बुला गया कोई
झूमती चली हवा ...
चुप हैं चाँद चाँदनी, चुप ये आसमान है
मीठी मीठी नींद में, सो रहा जहान है
सो रहा जहान है
आज आधी रात को, क्यों जगा गया कोई
झूमती चली हवा ...
एक हूक सी उठी, मैं सिहर के रह गया
दिल को अपना थाम के आह भर के रह गया
चाँदनी की ओट से मुस्कुरा गया कोई
झूमती चली हवा...
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. मुकेश की पसंद का अगला गीत है ये.
२. गीतकार हैं शमीम जयपुरी साहब.
३. मुखड़े की पहली पंक्ति में आपके इस प्रिय ब्लॉग का नाम है :)
पिछली पहेली का परिणाम -
पूर्वी जी बधाई १२ अंक हुए आपके. पाबला जी आशा है आज आप बाज़ी मारेंगें. आपने पूरे गीत के बोल जो दिए हैं वो हमने सभी श्रोताओं के लिए पेश कर दिया है. यदि आप ये काम नियमित रूप से कर पायें तो बहुत बढ़िया रहेगा. मनु जी के मार्फ़त पता लगा की स्वप्न जी का जन्मदिन था कल, भई देर से ही सही हमारी तरफ (समस्त आवाज़ परिवार) से भी संगीतमय शुभकामनाएँ. पराग जी आपकी अदा दिल छू गयी. विनोद जी आपका भी आभार.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
film -dil bhi tera ham bhi tere
janmdin kee bahut bahut mubarak baad :)
lagtaa hai aapne sahi jawaab diya hai.
sangeet kaar: kalyanji Virji Shah
aur Anandji Virji Shah
aur aapki shubhkamna ke liye hriday se dhanyawaad...
Sharad ji,
aapka gana maine bajaya to aap bhaag hi gaye...
jis din se wo gana baja aap nazar hi nahi aaye ..
Kya baat ho gayi hai ?
दरअसल होता यह है कि एक नज़र मार कर बाकी काम करने लग जाता हूँ कि अभी कोई आया ही नहीं है, जब लौट कर आता हूँ तो बात हाथ से निकल चुकी होती है :-)
आज खटका तब हुआ जब 'अदा' जी की टिप्पणी देखी कि
Purvi ji,
lagtaa hai aapne sahi jawaab diya hai.
नज़र दौड़ाई तो समझ आया कि Other Recommended Posts की दांई ओर शुरूआती टिप्पणियाँ छुपी सी रहती हैं, उन पर मेरी निगाह ही नहीं पड़ती :-)
हा हा, कोई बात नहीं
अब आज का ज़वाब:
गाना: मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो
फिल्म: दिल भी तेरा हम भी तेरे
संगीतकार: कल्याणजी - आनंदजी
गीतकार: शमीम जयपुरी
गायक: मुकेश
गीत के बोल:
मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो
जिसकी आवाज़ रुला दे मुझे वो साज़ न दो
आवाज़ न दो...
मैंने अब तुम से न मिलने की कसम खाई है
क्या खबर तुमको मेरी जान पे बन आई है
मैं बहक जाऊँ कसम खाके तुम ऐसा न करो
आवाज़ न दो...
दिल मेरा डूब गया आस मेरी टूट गई
मेरे हाथों ही से पतवार मेरी छूट गई
अब मैं तूफ़ान में हूँ साहिल से इशारा न करो
आवाज़ न दो...
रौशनी हो न सकी लाख जलाया हमने
तुझको भूला ही नहीं लाख भुलाया हमने
मैं परेशां हूँ मुझे और परेशां न करो
आवाज़ न दो...
किस कदर रोज़ किया मुझसे किनारा तुमने
कोई भटकेगा अकेला ये न सोचा तुमने
छुप गए हो तो कभी याद ही आया न करो
आवाज़ न दो...
सुजॉय जी, जब भी मेरा ज़वाब आएगा, गीत के बोल देने का पूरा प्रयास रहेगा
aur kaahe naa ho..?
paablaa ji ne itani mehnat jo ki hai....!!!!!
ada ji,
kyaa aaj bhi aapkaa B'DAY hai....?
कुछ दिन के लिए जयपुर जाना पड़ा फिर कल एक संस्था ने मेरा सम्मान कर दिया और मुझे ’सृजन रतन” सम्मान प्रदान कर दिया उस समारोह में चला गया इसलिए गायब रहा । प्रतियोगिता में भाग न ले पाने के कारण भी आराम से जब मौका मिलता है तो आ जाता हूँ ।
अरे हाँ .. जन्म दिन की हार्दिक बधाई स्वीकार करें
रोशनी हो न सकी दिल भी जलाया मैनें
तुझको भूला ही नहीं लाख भुलाया मैंनें
मैं परेशां हूँ मुझे और परेशां न करो ।
इस कदर जल्द किया मुझसे किनारा तुमने
कोई भटकेगा अकेला ये न सोचा तुमने
छुप गए हो तो मुझे याद भी आया न करो ।
शुरू में दिए गए दोनों अन्तरे लता जी द्वारा गाए गए है जो सही हैं ।
mujhe bahut hi jyada khushi hui..
aap hain hi is qabil...
Mithaai bhej dijiyega zaroor se..
ha ha ha ha
हा.......!
पूर्वी जी ने फिर बाजी मारी .