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जीना यहाँ मरना यहाँ, इसके सिवा जाना कहाँ....वो आवाज़ जिसने दी हर दिल को धड़कने की वजह- मुकेश

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 184

"कल खेल में हम हों न हों गर्दिश में तारे रहेंगे सदा, भूलोगे तुम भूलेंगे वो, पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा"। वाक़ई मुकेश जी के गानें हमारे साथ सदा रहे हैं, और आनेवाले समय में भी ये हमारे साथ साथ चलेंगे, हमारे सुख और दुख के साथी बनकर, क्योंकि इसी गीत के मुखड़े में उन्होने ही कहा है कि "जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ, जी चाहे जब हमको आवाज़ दो, हम हैं वहीं हम थे जहाँ"। मुकेश जी को गये ३५ साल हो गए हैं ज़रूर लेकिन उनके गानें जिस तरह से हर रोज़ कहीं न कहीं से सुनाई दे जाते हैं, इससे एक बात साफ़ है कि मुकेश जी कहीं नहीं गए हैं, वो तो हमारे साथ हैं हमेशा हमेशा से। दोस्तों, आज है २७ अगस्त, यानी कि मुकेश जी का स्मृति दिवस। इस अवसर पर हम 'हिंद युग्म' की तरफ़ से उन्हे दे रहे हैं भावभीनी श्रद्धांजली। '१० गीत जो मुकेश को थे प्रिय' लघु शृंखला के अंतर्गत इन दिनों आप मुकेश जी के पसंदीदा १० गीत सुन रहे हैं। आज जैसा कि आप को पता चल ही गया है कि हम सुनवा रहे हैं फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' से "जीना यहाँ मरना यहाँ"। दोस्तों, आप को याद होगा कि 'राज कपूर विशेष' के दौरान कुल ७ गीतों में से ४ गानें मुकेश की आवाज़ में थे। राज कपूर और मुकेश, ये दो नाम एक दूसरे के साथ इस क़दर जुड़े हुए हैं कि इन्हे एक दूजे से अलग नहीं किया जा सकता। जिस तरह से 'राज कपूर विशेष' में मुकेश के गीतों की भरमार थी, वैसे ही मुकेश के पसंदीदा गीतों में राज साहब की फ़िल्मों के गीतों की भरमार है। यूं तो मुकेश ने बहुत सारे नायकों और संगीतकारों के लिए गाए है, लेकिन उनके पसंदीदा गीतों में राज कपूर और शंकर जयकिशन ही छाये हुए हैं। 'मेरा नाम जोकर' संबंधित कई बातें हम आप को 'राज कपूर विशेष' में बता चुके हैं। आज चलिए कुछ और बातें करते हैं।

अपने पिता को श्रद्धांजली स्वरूप जो 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम नितिन मुकेश ने विविध भारती पर प्रस्तुत किया था, उसमें उन्होने राज कपूर के साथ मुकेश जी के रिश्ते को किस तरह से पेश किया था, ज़रा पढिए यहाँ पर। नितिन मुकेश "इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल" की धुन गुनगुनाते हैं और कहते हैं, "फ़ौजी भा‍इयों, आप समझ गए होंगे कि अब मैं किसका ज़िक्र करने जा रहा हूँ। वो जिनका और मुकेश जी का शरीर और आत्मा का संबंध था। राज कपूर ने अंत तक अपनी दोस्ती निभायी। मुझे याद है १९७५ का वो दिन जब मुकेश जी मौरिशस गए हुए थे एक प्रोग्राम के लिए। वहाँ के एक टीवी साक्षात्कार में जब उनकी और राज कपूर जी की दोस्ती के बारे में पूछा गया तो मुकेश जी मुस्कुराए और कहा कि 'It was love at first sight'।" तो दोस्तों, आइए अब आज का गीत सुना जाए, लगे हाथों आप को यह भी बता दें कि इस गीत को शैलेन्द्र पूरा लिखने से पहले ही इस दुनिया से चले गए थे और उनके देहान्त के बाद इस गीत को पूरा किया था उन्ही के बेटे शैली शैलेन्द्र ने। गीत का तीसरा अंतरा उनका लिखा हुआ है और इसी गीत के साथ शैली शैलेन्द्र की एंट्री हुई थी फ़िल्म जगत में बतौर गीतकार। और फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' के संगीत के लिए शंकर जयकिशन को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार मिला था उस साल। गानें के और्केस्ट्रेशन में शंकर जयकिशन का सुपरिचित हस्ताक्षर है, accordion साज़ गाने की रीद्‍म का आधार है। ज़िंदगी का फ़लसफ़ा बयाँ करता यह गीत जब कभी हम सुनते हैं, मुकेश और राज कपूर की यादें झट से दिल-ओ-दिमाग़ पर छा जाते हैं। आज मुकेश जी की पुण्य तिथि पर इस गीत को सुनते हुए दिल और आँखें, दोनों भर आ रही हैं।

"ये मेरा गीत जीवन संगीत कल भी कोई दोहराएगा,
जग को हँसाने बहरुपिया रूप बदल फिर आएगा,
स्वर्ग यहीं नर्क यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ,
जी चाहे जब हमको आवाज़ दो, हम हैं वहीं हम थे जहाँ।
"



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. संगीतकार राम गांगुली के लिए गया था मुकेश ने ये गीत.
२. गीतकार है सरस्वती कुमार दीपक.
३. गीतकार ने इस गीत में अपने नाम का पर्याय देकर बात कही है.

पिछली पहेली का परिणाम -
अक्सर ऐसा होता है कि हमारे श्रोता मुश्किल से मुश्किल गीत को पहचान लेते हैं पर इतने मशहूर इतने आसान गीत को कल नहीं पहचान पाए. पूर्वी जी का जवाब गलत था ये हिंट तो मैंने कल ही दे दिया था (पाबला जी माफ़ कीजियेगा जल्दी में फिल्म का नाम धरम करम की जगह कल आज और कल लिखा गया), पर धरम करम या फिर दीवाना जैसी फिल्म के गीत (दिशा जी के जवाब अनुसार) ओल्ड इस गोल्ड का हिस्सा नहीं बना है अब तक. आप यदि कोई पुरानी पोस्ट ढूंढ़ना चाहें तो आवाज़ के मुख्य पृष्ठ पर खोज का विकल्प है....खैर...आज तो हम बस यही कहेंगे कि आप सब इस महान गीत को सुनकर उस महान गायक को श्रद्धाजंली दें जिसने अपनी आवाज़ से हमें जीवन के ढेरों अनमोल पल दिए हैं.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Anonymous said…
zinda hun is tarah AAG

ROHIT RAJPUT
manu said…
hnm....
har tarah se mushkil paheli....
rohit ji kaa jawaab sahi lag rahaa hai...
hame ye kabhi nahi aataa..
बी एस पाबला said…
रोहित राजपूत वाले गीत के गीतकार बेहज़द लखनवी हैं
बी एस पाबला said…
संगीतकार: राम गांगुली, गीतकार: सरस्वती कुमार दीपक के संदर्भ में दूसरा और तीसरा सूत्र जम रहा है क्योंकि फिल्म आग से इस गीत के बोल में पर्यायवाची तत्व महसूस होता है :
कहीं का दीपक, कहीं की बाती
आज बने हैं जीवनसाथी

देख हँसा है चाँद, मुसाफ़िर
देख चाँद की ओर ...

देख घटा घनघोर
मुसाफ़िर, (देख घटा घनघोर)
चाँद के मुख पर घुँघट डाले, (खेल रही जो खेल )
छिपा लिया आँचल में मुखड़ा, (देख घटा का खेल)
खेल खेल में देख मुसाफ़िर, बंधी प्रीत की डोर
देख चाँद की ओर ...

देख लहर की ओर
मुसाफ़िर, (देख लहर की ओर)
तड़प उठी जो देख चाँद को, (छिपा न पायी प्रीत)
मिलन हुआ चंदा लहरों का, (गूंज उठा संगीत)
झूम उठे हैं देख मुसाफ़िर, चंदा और चकोर
देख चाँद की ओर ...


लेकिन एक लोचा है कि इसे गाया है शैलेष और शमशाद ने :-(
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संगीतकार: राम गांगुली, गीतकार: सरस्वती कुमार दीपक के संदर्भ में इसी फिल्म का एक और गीत है जिसे मुकेश (के साथ शैलेष) ने कोरस गाया है, जिसमें पहला और दूसरा सूत्र फिट बैठता है, तीसरे सूत्र के लिए आप लोग ही निर्णय कर सकते हैं

मुकेश: रब मेरे अरज सुन मेरी शरण अब तेरी
जिस दिन से गया दिल मेरा दुखों ने घेरा
कोरस: रब मेरे अरज सुन ...

मुकेश: क्यों रूठ रहे करतार मेरी सरकार ( बताते जाओ ) \-२
क्या हमसे हो गई भूल ( हमें बतलाओ ) \-२
पड़ूँ न पैया न हो नाराज़ मेरे सरताज ये दिल अब तेरा
जिस दिन से गया ...
कोरस: रब मेरे अरज सुन ...

शैलेष; पड़ी दिल की दुनिया सूनी इधर भी देखो ( इधर भी आओ ) \-२
सब खड़े हुए बेहाल ज़रा मुसकाओ न अब तरसाओ
लगा ऐसे नज़र का तीर कलेजा चीर गया जो मेरा
जिस दिन से गया ...
मुकेश: मेरी सुनते जाओ बात ( तुम्हारे जोड़ रहा हूँ मैं हाथ ) \-२
क्यों मुझसे जाते दूर मेरे ओ नूर ( निभा दो साथ ) \-२
ज़रा बैठो हँसो\-मुस्काओ हमें बहलाओ बसा दो डेरा
जिस दिन से गया ...
कोरस: हाय रब मेरे अरज सुन ...
purvi said…
आज की पहेली का जवाब देना तो हमारे लिए भी मुश्किल है.....

सजीव जी,
कल की पहेली का जवाब हम दे चुके थे....... शायद आपने देखा नहीं है.....???
purvi said…
पाबला जी,
कहीं का दीपक....... गीत हमें भी ठीक लगा, पर यही मुश्किल है की इसमें मुकेश का नाम नहीं था !!!
बी एस पाबला said…
भई हमें भी पूर्वी की आपत्ति ठीक लगी क्योंकि हमने तो कल बधाई भी दे दी थी।

लेकिन पूर्वी का प्रोफाईल कहाँ है ??
purvi said…
पाबला जी,
साथ देने का बहुत बहुत धन्यवाद.

प्रोफाइल तो हमने बनाया नहीं है....... बस कुछ ही दिन हुए हैं , यहाँ पर जुड़े हुए.
Manju Gupta said…
परेशानी जल्दी दूर करो .
हां......!
purvi said…
मंजू जी,
अदा जी और शरद जी की तरह आप को भी बेकरारी का रोग लग गया :) :) :)
इस इंतज़ार का भी अपना ही मज़ा है , अभी इसका मज़ा लूटिये, कल तक तो यूँ भी उत्तर पता चल ही जाएगा :) :) :)
purvi ji nishchint rl aapka javaa late aaya tha main dekh nahi aapke ank surakshit hai, badhaai, pabla ji deepak ke paryaay diya bhi hota hai :)
बी एस पाबला said…
हुर्रे!
पूर्वी को आज पक्की बधाई, कल की
purvi said…
thank you sajeev ji

and thanx mr. paabla :)
पूर्वी जी
मैं तो कुछ दिनों से बेकरारी के रोग से निजात पा गया हूँ अब मुझमें उस रोग के लक्षण कहाँ दिखाई दे रहे हैं ?
Shamikh Faraz said…
hnm...
nahi pata.

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