Skip to main content

छोडो कल की बातें कल की बात पुरानी....जय विज्ञान है युवा हिन्दुस्तान का नया नारा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 173

स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष पर तिरंगे के तीन रगों से रंगे तीन गानें आप इन दिनों सुन रहे हैं बैक टू बैक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल पर। कल गेरुआ रंग यानी कि वीर रस पर आधारित गीत आप ने सुना, आज का रंग है सफ़ेद, यानी कि शांति, अमन, भाईचारे और प्रगति की बातें। दोस्तों, जब देश भक्ति गीतों की बात आती है तो हम ने अक्सर यह देखा है कि गीतकार ज़्यादातर हमारे इतिहास में से चुन चुन कर देश भक्ति के उदाहरण खोज लाते हैं और हमारे देश की गौरव गाथा का बखान करते हैं। बहुत कम ही गीत ऐसे हैं जिनमें देश के नवनिर्माण, प्रगति और देश के भविष्य के विकास की ओर झाँका गया हो। जैसा कि हमने कहा कि हमारा आज का रंग है सफ़ेद, यानी कि शांति का। और देश में शांत वातावरण तब ही पैदा हो सकते हैं जब हर एक देशवासी को दो वक़्त की रोटी नसीब हो, पहनने के लिए कपड़े नसीब हो, घर नसीब हो। इन सब का सीधा ताल्लुख़ देश के विकास और प्रगति पर निर्भर करता है। ऐसे ही विचारों को गीत के शक्ल में पिरोया है गीतकार प्रेम धवन ने फ़िल्म 'हम हिंदुस्तानी' के उस मशहूर गीत में जिसे आज हम आप के लिए लेकर आये हैं। मुकेश और साथियों की आवाज़ों में और उषा खन्ना के संगीत निर्देशन में वह गीत है "छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी, नए दौर में लिखेंगे मिलकर नयी कहानी, हम हिंदुस्तानी"। इस गीत में धवन जी ने साफ़ शब्दों में कहा है कि पुरानी बातों पर ज़्यादा ध्यान न देकर मेहनत को ही अपना इमान बनायें।

एस. मुखर्जी निर्मित व राम मुखर्जी निर्देशित १९६० की इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे सुनिल दत्त, जय मुखर्जी और आशा पारेख। फ़िल्म में उषा खन्ना का संगीत कामयाब रहा। अब आ जाइए गीतकार प्रेम धवन पर। धवन साहब देश भक्ति गीतों के बहुत अच्छे गीतकार रहे हैं। आप को शायद मनोज कुमार की फ़िल्म 'शहीद' याद हो जो शहीद भगत सिंह पर बनी थी। इस फ़िल्म में प्रेम धवन ने गानें लिखे और संगीत भी दिया था। देश भक्ति फ़िल्मों में 'शहीद' एक बहुत ही महत्वपूर्ण नाम है। इस फ़िल्म से संबंधित कुछ बातें प्रेम धवन जी ने विविध भारती के 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम में कहे थे, जिन्हे पढ़ कर आप की आँखें नम हो जायेंगी। "मेरे फ़ौजी भा‍इयों, शहीद भगत सिंह के जीवन पर आधारित एक फ़िल्म मनोज कुमार ने बनायी थी, मैने उसमें गीत लिखे और संगीत भी दिया था। यह मेरी ख़ुशनसीबी है कि भगत सिंह की माँ से मिलने का इत्तेफ़ाक़ हुआ। हम लोग उस गाँव में गए जहाँ भगत सिंह की माँ रहती थीं। उनसे हम लोग मिले और भगत सिंह के जीवन से जुड़ी कई बातें उन्होने हमें बतायीं। उनकी एक बात जो मेरे दिल को छू गयी, वह यह था कि फाँसी से एक दिन पहले वो अपने बेटे से मिलने जब जेल गयीं तो उनकी आँखों में आँसू आ गए। तब भगत सिंह ने उनसे कहा कि 'माँ, मत रो, अगर तुम रोयोगी तो कोई माँ अपने बेटे को क़ुर्बानी की राह पर नहीं भेज पाएगी'। इसी बात से प्रेरीत हो कर मैने इस फ़िल्म 'शहीद' में यह गीत लिखा "तू न रोना के तू है भगत सिंह की माँ, मर के भी तेरा लाल मरेगा नहीं, घोड़ी चढ़ के तो लाते हैं दुल्हन सभी, हँस कर हर कोई फाँसी चढ़ेगा नहीं"।" दोस्तों, इन बातों को लिखते हुए मेरे रोंगटे खड़े हो गये हैं, आँखें भी बोझल हो रही हैं, अब और ज़्यादा लिखा नहीं जा रहा। सुनिए आज का गीत फ़िल्म 'हम हिंदुस्तानी' का। कुछ 'रिकार्ड्स' पर यह गीत ६:३० मिनट का है तो कुछ 'रिकार्ड्स' पर ३:३० मिनट का। हम आप के लिए पूरे साढ़े ६ मिनट वाला वर्ज़न ढ़ूंढ लाए हैं। इस गीत के बोलों की जितनी तारीफ़ की जाए कम ही होगी। मुझे निम्नलिखित अंतरा सब से ज़्यादा अच्छा लगता है, आप भी ज़रूर बताइयेगा कि आप को इस गीत का कौन सा अंतरा सब से ज़्यादा भाता है।

"दाग़ ग़ुलामी का धोया है जान लुटाके,
दीप जलाये हैं ये कितने दीप बुझाके,
ली है आज़ादी तो फिर इस आज़ादी को,
रखना होगा हर दुश्मन से आज बचाके,
नया ख़ून है नयी उमंगें अब है नयी जवानी,
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी"।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

1. कल के गीत का थीम है -"जय किसान".
2. इस अमर गीत के गीतकार ने इसी वर्ष हमसे विदा कहा है.
3. एक अंतरे में तिरेंगे के रंगों को देशभक्तों के नामों से जोड़ा गया है.

पिछली पहेली का परिणाम -
दीपाली जी सही जवाब. अब आप भी पराग जी के बराबर १२ अंकों पर आ गयी हैं...बधाई

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

इतने प्रसिद्ध गानों को बताने में भी क्या इतना समय लगता है ?
'अदा' said…
are baap re abhi tak koi jawaab nahi aaya haaiiiiiii
Ye kya ho raha hai ?????
Sharad ji,
agar ye nahi bata paayenge to kaise kaam chalega...
maine yaha to ye geet nahi suna apeakar par ya radio par ya aur kahin lekin aap sabne to zaroor zaroor zaroor suna hoga...
are koi to bolooooo....
Disha said…
mere desh ki dharti
Disha said…
mere desh ki dharti sona ugale ugale heere moti mere desh ki dharti
ye baag hai gautam naanak ka khilate hai chaman ke phool yahan
gaandhi subhash taigaur aise hai chaman ke phool yahan
rang hara hari singh nalve se
rang laal hai laal bahaadur se
rang bana basanti bhagat singh
rang aman ka veer javaahar se
mere desh ki dharti
manu said…
very simple........

rang hara hari singh nalve se....

late ho gaye ji...
:(
दिशा जी
चलिए देर आए...
Shamikh Faraz said…
मुझे जवाब नहीं मालूम.
neelam said…
aaj ka geet behad pasand hai .really love this song .actor to the sunildutt ji ,aur actress ????????yaad nahi.

paheli ka jawaab sahi hai, mere desh ki dharti .
'अदा' said…
Neelam ji,
'ham hindustaani' film ke kalakaar the:

Sunil Dutt, Joy Mukherjee, Asha Parekh, Prem Chopra, Helen, Leela Chitnis and Sanjeev Kumar
'Sanjeev Kumar' ki yah pahli film thi.
देशभक्ति से ओतप्रोत बढ़िया गीत है..

उपकार फिल्म की है..मेरे देश की धरती

गीतकार..गुलशन बवारा जी है.
Manju Gupta said…
दाग गीत नहीं सुनाई दिया .इसलिए रेटिंग नहीं दी .जवाब है मेरे देश की धरती ...

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट