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कौन कहे इस ओर तू फिर आये न आये, मौसम बीता जाए... कैसे एक गीत समा गयी जीवन की तमाम सच्चाइयाँ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 179

दोस्तों, इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर आप सुन रहे हैं शरद तैलंग जी के अनुरोध पर एक के बाद एक कुल पाँच गानें। तीन गानें हम सुन चुके हैं, आज है चौथे गीत की बारी। यह एक ऐसा गीत है जो जुड़ा हुआ है हमारी मिट्टी से। इस गीत को सुनते हुए मन कहीं सुदूर गाँव में पहुँच जाता है जहाँ पर सावन की पहली फुहार के आते ही किसान और उनके परिवार के सदस्य जी जान से लग जाते हैं बीज बुवाई के काम में। "धरती कहे पुकार के, बीज बिछा ले प्यार के, मौसम बीता जाए"। फ़िल्म 'दो बीघा ज़मीन' का यह गीत मन्ना डे, लता मंगेशकर और साथियों की आवाज़ों में है जिसे लिखा है शैलेन्द्र ने और संगीतकार हैं सलिल चौधरी ने। इसी फ़िल्म का एक और समूह गीत "हरियाला सावन ढोल बजाता आया" हमने अपनी कड़ी नं. ९१ में सुनवाया था, और उसके साथ साथ इस फ़िल्म से जुड़ी तमाम जानकारियाँ भी हमने आप को दी थी, जिनका आज हम दोहराव नहीं करेंगे। सलिल दा की कुछ धुनें बहुत ही मीठी, नाज़ुक सी हुआ करती थी, कुछ धुनों में पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत की झलक मिलती थी, और उनके कुछ गानें ऐसे थे जिनमें झलकते थे क्रांतिकारी सुर, राष्ट्रवादी विचार धारा और सामाजिक उत्थान के कलरव। 'दो बीघा ज़मीन' के ये दोनों गानें इसी तीसरी श्रेणी में आते हैं।

"धरती कहे पुकार के" गीत में लता जी के अंश बहुत थोड़े से हैं, मुख्यतः मन्ना दा की ही आवाज़ गूँजती है। सलिल दा और मन्ना दा के आपसी रिश्ते के बारे में सलिल दा की सुपुत्री अंतरा चौधरी बताती हैं - "When Manna-da and my father got together, there was laughter in the air. They would just hit it off narrating hilarious stories, no wonder then my father thought that only Manna-da could sing with such enthusiasm all those socio-political songs he composed. His association with Manna Dey began from his very first Hindi film and continued into the late 70s." अब जब सलिल दा की बेटी का ज़िक्र हम ने किया तो आप को शायद ख़याल आया होगा सलिल दा के संगीत निर्देशन में मन्ना डे और अंतरा चौधरी के गाये फ़िल्म 'मिनू' के उस सुंदर गीत का "तेरी गलियों में हम आये", क्यों, है ना? दोस्तों, 'दो बीघा ज़मीन' के प्रस्तुत गीत में आगे चलकर एक पंक्ति आती है "अपनी कहानी छोड़ जा, ख़ुद तू निशानी छोड़ जा, कौन कहे इस ओर तू फिर आये न आये"। जब अमेरिका में पुराने फ़िल्म संगीत के शौकीन एक संस्था ने सन् २००५ की अपनी वार्षिक सम्मेलन को सलिल दा के नाम समर्पित करने का निर्णय लिया तो इसी पंक्ति से प्रेरीत होकर सम्मेलन का नाम रखा गया "अपनी कहानी छोड़ जा"। इतना ही नहीं, इसी गीत के मुखड़े के शुरूआती बोलों को लेकर सन् १९६९ में एक फ़िल्म भी बनी 'धरती कहे पुकार के', जिसका शीर्षक गीत भी कुछ हद तक इसी गीत से मिलता जुलता लिखा गया कि "धरती कहे पुकार के, ओ मुझको चाहने वाले किसलिए बैठा हार के, मेरा सब कुछ उसी का है जो छू ले मुझको प्यार से"। तो दोस्तों, अब बारी है गीत सुनने की, शरद तैलंग जी के इस पसंदीदा गीत को आइए हम सब मिल कर एन्जोय करते हैं।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. महेंद्र कपूर हैं इस गीत के गायक.
२. एक वैवाहिक स्र्त्री के पर पुरुष से सम्बन्ध को लेकर बनी एक संवेदनशील फिल्म का है ये गीत.
३. एक अंतरा शुरू होता है "न" शब्द से.

पिछली पहेली का परिणाम -
रोहित जी बधाई. १४ अंक लेकर अब आप दिशा जी और पराग जी के बराबर आ गए हैं. टक्कर गजब की है भई. शरद जी आपकी पसंद के तो हम सब पहले ही कायल हैं.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

'अदा' said…
are bhaiye i bhi nahi batawenge aap log to ka batawenge bhai...
Mahendra kapoor
antra 'n' se shuru bahut asaan hai bhaiya......
'अदा' said…
ham umeed rakh rahe hain kuch dilnawaazi ki aap zaroor aawenge....hamre blog par...
Parag said…
chalo ek baar firse ajnabi ban jaaye hum dono
Parag said…
चलो एक बार फिरसे अजनबी बन जाए हम दोनों

फिल्म गुमराह का यह गीत महेंद्र कपूर साहब ने गाया था, जिसके बोल लिखे थे साहिर साहब ने.

पराग
Shamikh Faraz said…
poora geet

चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों ।


न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की,

न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत अन्दाज़ नज़रों से ।

न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाए मेरी बातों से,

न ज़ाहिर हो तुम्हारी कशमकश का राज़ नज़रों से ॥


तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशक़दमी से,

मुझे भी लोग कहते हैं ये जलवे पराए हैं ।

मेरे हमराह भी रुसवाइयाँ हैं मेरे माज़ी की,

तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं ॥


तारुफ़ रोग हो जाए तो उसको भूलना बेहतर,

ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा ।

वो अफ़साना जिसे अन्जाम तक लाना न हो मुमकिन,

उसे एक ख़ूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा ॥
manu said…
veri simple....
:)

aur shaamikh ne to pooraa pooraa majaa karaa diyaaa....

sach..

wo afsaanaa jise anjaam tak laanaa n ho mumkin
use ik khoobsoorat mod dekar chhodnaa achchhaa
Manju Gupta said…
हा.हा... सही बताया पराग जी ने .

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