ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 159
'दस चेहरे एक आवाज़ - मोहम्मद रफ़ी' की नौवीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। यूं तो अभिनेता देव आनंद के लिए ज़्यादातर गानें किशोर कुमार ने गाये हैं, लेकिन समय समय पर कुछ संगीतकारों ने ऐसे गीत बनाये हैं जिनके साथ केवल रफ़ी साहब ही उचित न्याय कर सकते थे। इस तरह से देव आनंद साहब पर भी कुछ ऐसे बेहतरीन गानें फ़िल्माये गये हैं जिनमें आवाज़ रफ़ी साहब की है। अगर संगीतकारों की बात करें तो सचिन देव बर्मन एक ऐसे संगीतकार थे जिन्होने देव साहब के लिए रफ़ी साहब की आवाज़ का बहुत ही सफल इस्तेमाल किया। फ़िल्म 'गैम्बलर' के ज़्यादातर गानें किशोर दा के होते हुए भी बर्मन दादा ने एक ऐसा गीत बनाया जो उन्होने रफ़ी साहब से गवाया। याद है न आप को वह गीत? जी हाँ, "मेरा मन तेरा प्यासा"। अजी साहब, प्यासे तो हम हैं रफ़ी साहब के गीतों के, जिन्हे सुनते हुए वक्त कैसे निकल जाता है पता ही नहीं चलता और ना ही उनके गीतों को सुनने की प्यास कभी कम होती है। ख़ैर, देव आनंद पर फ़िल्माये, सचिन देव बर्मन की धुनों पर रफ़ी साहब के गीतों की बात करें तो जो मशहूर फ़िल्में हमारे जेहन में आती हैं, वो हैं 'बम्बई का बाबू', 'काला पानी', 'काला बाज़ार', 'जुवल थीफ़', 'नौ दो ग्यारह', 'तेरे घर के सामने', वगेरह। आज देव आनंद पर फ़िल्माया हुआ रफ़ी साहब के जिस गीत को हम ने चुना है वह है 'तेरे घर के सामने' फ़िल्म से "तू कहाँ ये बता इस नशीली रात में, माने ना मेरा दिल दीवाना"।
देव आनंद निर्मित एवं विजय आनंद निर्देशित फ़िल्म 'तेरे घर के सामने' बनी थी सन् १९६३ में। नूतन इस फ़िल्म की नायिका थीं। राहुल देव बर्मन ने अपने पिता को ऐसिस्ट किया था इस फ़िल्म के गीत संगीत में। इस फ़िल्म के सभी गानें बेहद सफल रहे और यह फ़िल्म बर्मन दादा के संगीत सफ़र का एक महत्वपूर्ण पड़ाव बन गया। "एक घर बनाउँगा तेरे घर के सामने", "देखो रूठा न करो बात नज़रों की सुनो", "दिल का भँवर करे पुकार प्यार का राग सुनो", तथा प्रस्तुत गीत आज भी पूरे चाव से सुने जाते हैं। मजरूह सुल्तानपुरी ने ये सारे गानें लिखे थे। "तू कहाँ ये बता" एक बड़ा ही रुमानीयत और नशे से भरा गाना है जिसे रफ़ी साहब ने जिस नशीले अंदाज़ मे गाया है कि इसका मज़ा कई गुना ज़्यादा बढ़ गया है। इस गीत की एक और खासियत है इस गीत में इस्तेमाल हुए तबले का। दोस्तों, यह तो मैं पता नहीं कर पाया कि इस गीत में तबला किसने बजाया था, लेकिन जिन्होने भी बजाया है, क्या ख़ूब बजाया है, वाह! अगर आप ने कभी ग़ौर किया होगा तो पार्श्व में बज रहे तबले की थापें आप के मन को प्रसन्नता से भर देती हैं। नशीली रात में देव आनंद पर फ़िल्माये हुए इस गीत में मजरूह साहब ने क्या ख़ूब लिखा है कि "आयी जब ठंडी हवा, मैने पूछा जो पता, वो भी कतरा के गयी, और बेचैन किया, प्यार से तू मुझे दे सदा"। गीत के बोल सीधे सरल शब्दों में होते हुए भी दिल को छू जाते हैं। तो दोस्तों, सदाबहार नायक देव आनंद और सदाबहार गायक मोहम्मद रफ़ी साहब के नाम हो रही है आज की यह नशीली शाम, सुनिए।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. रफी साहब का एक और प्रेम गीत.
2. कलाकार हैं -काका बाबू यानी "राजेश खन्ना".
3. पूरे गीत में नायिका की दो खूबियों का जिक्र है, एक "ऑंखें" और दूसरी...
कौन सा है आपकी पसदं का गीत -
अगले रविवार सुबह की कॉफी के लिए लिख भेजिए (कम से कम ५० शब्दों में ) अपनी पसंद को कोई देशभक्ति गीत और उस ख़ास गीत से जुडी अपनी कोई याद का ब्यौरा. हम आपकी पसंद के गीत आपके संस्मरण के साथ प्रस्तुत करने की कोशिश करेंगें.
पिछली पहेली का परिणाम -
दिशा जी ६ अंकों के साथ आप पराग के स्कोर के करीब बढ़ रही हैं. दिलीप जी खूब भावुक होईये आपकी हर टिपण्णी आलेख जितनी ही रोचक होता है श्रोताओं के लिए. अर्श जी शायद पहली बार आये कल आपका भी स्वागत. शरद जी और स्वप्न जी निराश न होयें २०० एपिसोड के बाद जब पहेली को थोडा सा रूप बदला जायेगा तब आप फिर से जारी रख पायेंगें अपना संग्राम.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
'दस चेहरे एक आवाज़ - मोहम्मद रफ़ी' की नौवीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। यूं तो अभिनेता देव आनंद के लिए ज़्यादातर गानें किशोर कुमार ने गाये हैं, लेकिन समय समय पर कुछ संगीतकारों ने ऐसे गीत बनाये हैं जिनके साथ केवल रफ़ी साहब ही उचित न्याय कर सकते थे। इस तरह से देव आनंद साहब पर भी कुछ ऐसे बेहतरीन गानें फ़िल्माये गये हैं जिनमें आवाज़ रफ़ी साहब की है। अगर संगीतकारों की बात करें तो सचिन देव बर्मन एक ऐसे संगीतकार थे जिन्होने देव साहब के लिए रफ़ी साहब की आवाज़ का बहुत ही सफल इस्तेमाल किया। फ़िल्म 'गैम्बलर' के ज़्यादातर गानें किशोर दा के होते हुए भी बर्मन दादा ने एक ऐसा गीत बनाया जो उन्होने रफ़ी साहब से गवाया। याद है न आप को वह गीत? जी हाँ, "मेरा मन तेरा प्यासा"। अजी साहब, प्यासे तो हम हैं रफ़ी साहब के गीतों के, जिन्हे सुनते हुए वक्त कैसे निकल जाता है पता ही नहीं चलता और ना ही उनके गीतों को सुनने की प्यास कभी कम होती है। ख़ैर, देव आनंद पर फ़िल्माये, सचिन देव बर्मन की धुनों पर रफ़ी साहब के गीतों की बात करें तो जो मशहूर फ़िल्में हमारे जेहन में आती हैं, वो हैं 'बम्बई का बाबू', 'काला पानी', 'काला बाज़ार', 'जुवल थीफ़', 'नौ दो ग्यारह', 'तेरे घर के सामने', वगेरह। आज देव आनंद पर फ़िल्माया हुआ रफ़ी साहब के जिस गीत को हम ने चुना है वह है 'तेरे घर के सामने' फ़िल्म से "तू कहाँ ये बता इस नशीली रात में, माने ना मेरा दिल दीवाना"।
देव आनंद निर्मित एवं विजय आनंद निर्देशित फ़िल्म 'तेरे घर के सामने' बनी थी सन् १९६३ में। नूतन इस फ़िल्म की नायिका थीं। राहुल देव बर्मन ने अपने पिता को ऐसिस्ट किया था इस फ़िल्म के गीत संगीत में। इस फ़िल्म के सभी गानें बेहद सफल रहे और यह फ़िल्म बर्मन दादा के संगीत सफ़र का एक महत्वपूर्ण पड़ाव बन गया। "एक घर बनाउँगा तेरे घर के सामने", "देखो रूठा न करो बात नज़रों की सुनो", "दिल का भँवर करे पुकार प्यार का राग सुनो", तथा प्रस्तुत गीत आज भी पूरे चाव से सुने जाते हैं। मजरूह सुल्तानपुरी ने ये सारे गानें लिखे थे। "तू कहाँ ये बता" एक बड़ा ही रुमानीयत और नशे से भरा गाना है जिसे रफ़ी साहब ने जिस नशीले अंदाज़ मे गाया है कि इसका मज़ा कई गुना ज़्यादा बढ़ गया है। इस गीत की एक और खासियत है इस गीत में इस्तेमाल हुए तबले का। दोस्तों, यह तो मैं पता नहीं कर पाया कि इस गीत में तबला किसने बजाया था, लेकिन जिन्होने भी बजाया है, क्या ख़ूब बजाया है, वाह! अगर आप ने कभी ग़ौर किया होगा तो पार्श्व में बज रहे तबले की थापें आप के मन को प्रसन्नता से भर देती हैं। नशीली रात में देव आनंद पर फ़िल्माये हुए इस गीत में मजरूह साहब ने क्या ख़ूब लिखा है कि "आयी जब ठंडी हवा, मैने पूछा जो पता, वो भी कतरा के गयी, और बेचैन किया, प्यार से तू मुझे दे सदा"। गीत के बोल सीधे सरल शब्दों में होते हुए भी दिल को छू जाते हैं। तो दोस्तों, सदाबहार नायक देव आनंद और सदाबहार गायक मोहम्मद रफ़ी साहब के नाम हो रही है आज की यह नशीली शाम, सुनिए।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. रफी साहब का एक और प्रेम गीत.
2. कलाकार हैं -काका बाबू यानी "राजेश खन्ना".
3. पूरे गीत में नायिका की दो खूबियों का जिक्र है, एक "ऑंखें" और दूसरी...
कौन सा है आपकी पसदं का गीत -
अगले रविवार सुबह की कॉफी के लिए लिख भेजिए (कम से कम ५० शब्दों में ) अपनी पसंद को कोई देशभक्ति गीत और उस ख़ास गीत से जुडी अपनी कोई याद का ब्यौरा. हम आपकी पसंद के गीत आपके संस्मरण के साथ प्रस्तुत करने की कोशिश करेंगें.
पिछली पहेली का परिणाम -
दिशा जी ६ अंकों के साथ आप पराग के स्कोर के करीब बढ़ रही हैं. दिलीप जी खूब भावुक होईये आपकी हर टिपण्णी आलेख जितनी ही रोचक होता है श्रोताओं के लिए. अर्श जी शायद पहली बार आये कल आपका भी स्वागत. शरद जी और स्वप्न जी निराश न होयें २०० एपिसोड के बाद जब पहेली को थोडा सा रूप बदला जायेगा तब आप फिर से जारी रख पायेंगें अपना संग्राम.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
दो रास्ते
मोहम्मद रफी
मुमताज/राजेश खन्ना
ये रेशमी ज़ुल्फ़ें , ये शरबती आंखें ही है, वरना और भी गीत है जिसमें एक ही बात कही गयी थी , आंखों के बारे में...
गुलाबी आंखें जो तेरी देखी..
तेरी आंखों के सिवा..
ये आंखें , ऊफ़्फ़ यू मां...
इस मुल्क के सरहद की निगेहबां हैं आंखें..
आंख मिलये ब्ना मुस्कुराये ना...
आंख मिली दिल मिला...
आंख में सूरत तेरी...
आंखें झुकी सी चाल रुकी सी...
आंखें बडी है नेमत...
आंखें हमारी हो सपने...
और कई, जैसे राज कपूर पर फ़िल्माये गये यह गीत --
गोरी की अंखिंयां, नज़र मिला ले....(मदन मोहन-फ़िल्म धुन)
आपका जवाब मुझे तो सही लग रहा है ।
तू कहाँ ये बता .. गीत में तबले का कमाल है या ढोलक का मुझे तो ये ढोलक जैसी लग रही है ।
ye tabla hi hai pakkkaaa..
gana yahi hai
ye reshmi zulfen, Ye sharbati aankhen
inhen dekh kar jee rahe hain sabhi
inhen dekh kar jee rahe hain sabhi
ye reshmi zulfen, Ye sharbati aankhen
inhen dekh kar jee rahe hain sabhi
inhen dekh kar jee rahe hain sabhi
jo ye aankhe sharam se, jhuk jaayengi
jo ye aankhe sharam se, jhuk jaayengi
saari baaten yahin bas, ruk Jaayengi
chup rahnaa ye afsaanaa, koi inko naa batlaanaa
ke inhen dekh kar pee rahe hain sabhi
inhen dekh kar pee rahe hain sabhi
ye reshmi zulfen, ye sharbati aankhen
inhen dekh kar jee rahe hain sabhi
inhen dekh kar jee rahe hain sabhi
zulfen magaroor itni, ho jaayengi
zulfen magaroor itni, ho jaayengi
dil to tadpaayengi, jee ko tarsaayengi
ye kar dengi deewaana, koi inko naa batlaanaa
ke inhen dekh kar pee rahe hain sabhi
inhen dekh kar pee rahe hain sabhi
ye reshmi zulfen, ye sharbati aankhen
inhen dekh kar jee rahe hain sabhi
inhen dekh kar jee rahe hain sabhi