ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 163
प्रोफ़. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने कहा है कि "Dream is not something that we see in sleep; Dream is something that does not allow us to sleep"| इस एक लाइन में उन्होने कितनी बड़ी बात कही हैं। सच ही तो है, सपने तभी सच होते हैं जब उसको पूरा करने के लिए हम प्रयास भी करें। केवल स्वप्न देखने से ही वह पूरा नहीं हो जाता। ख़ैर, आप भी सोच रहे होंगे कि मैं किस बात को लेकर बैठ गया। दरअसल इन दिनों आप सुन रहे हैं किशोर कुमार के गीतों से सजी लघु शृंखला 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़', जिसके तहत हम किशोर दा की आवाज़ के ज़रिये ज़िंदगी के दस अलग अलग पहलुओं पर रोशनी डाल रहे हैं, और आजका पहलू है 'सपना'। जी हाँ, वही सपना जो हर इंसान देखता है, कोई सोते हुए देखता है तो कोई जागते हुए। किसी को ज़िंदगी में बड़ा नाम कमाने का सपना होता है, तो किसी को अर्थ कमाने का। आप यूं भी कह सकते हैं कि यह दुनिया सपनों की ही दुनिया है। आज किशोर दा की आवाज़ के ज़रिये हम जो सपना देखने जा रहे हैं वह मेरे ख़याल से हर आम आदमी का सपना है। हर आदमी अपने परिवार को सुखी देखना चाहता है, वह चाहता है अपने परिवार के लिए एक सुंदर सा घर बनायें, छोटी सी प्यारी सी एक दुनिया बसायें, जिसमें हों केवल ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ, मिलन ही मिलन। जी हाँ, आज ज़िक्र है फ़िल्म 'नौकरी' के गीत का, "छोटा सा घर होगा बादलों की छाँव में, आशा दीवानी मन में बंसुरी बजाए, हम ही हम चमकेंगे तारों के इस गाँव में, आँखों की रोशनी हरदम ये समझाये"।
'दो बीघा ज़मीन' के बाद बिमल राय और सलिल चौधरी का साथ एक बार फिर जमा १९५४ की दो फ़िल्मों में। एक थी 'बिराज बहू' और दूसरी 'नौकरी'। जहाँ 'दो बीघा ज़मीन' की कहानी ग्रामीण समस्या पर आधारित थी, 'नौकरी' का आधार था शहरों में बेरोज़गारी की समस्या। बिमल राय प्रोडक्शन्स के बैनर तले बनी इस फ़िल्म के नायक थे किशोर कुमार, और उनके साथ थे शीला, निरुपा राय एवं बलराज साहनी। दुर्भाग्यवश 'नौकरी' वह कमाल नहीं कर सकी जो कमाल 'दो बीघा ज़मीन' ने दिखाया था। लेकिन सलिल चौधरी के स्वरबद्ध कम से कम एक गीत को श्रोताओं ने कालजयी करार दिया। और वह गीत है आज का प्रस्तुत गीत। गीतकार शैलेन्द्र के सीधे सरल शब्दों की एक और मिसाल यह गीत बड़े ही प्यारे शब्दों में एक आम आदमी के सपनों की बात करता है। पहले अंतरे में भाई अपनी छोटी बहन के लिए चांदी की कुर्सी और बेटा अपनी माँ के लिए सोने के सिंहासन का सपना देखता है, तो दूसरे अंतरे में भाई अपनी बहन की शादी करवाने का सपना देखता है। तथा तीसरे अंतरे में माँ के अपने बेटे का घर बसाने के सपने का ज़िक्र हुआ है। कुल मिलाकर यह गीत एक आम आदमी और एक आम घर परिवार के सपनों का संगम है। गीत के अंत में आप को एक लड़की की आवाज़ भी सुनाई देगी, क्या आप जानते हैं यह किसकी आवाज़ है? यह आवाज़ है लता और आशा की बहन उषा मंगेशकर की। जी हाँ, उनका गाया यह पहला पहला गीत था। इसी साल उन्होने 'चांदनी चौक' व 'सुबह का तारा' में भी गानें गाये और इस तरह से अपनी बड़ी दो बहनों की तरह वो भी फ़िल्म संगीत के क्षेत्र में अपने पाँव बढ़ा ही दिये। दोस्तों, आज का यह गीत सुनने से पहले आप को यह बता दें कि इस गीत का एक सैड वर्ज़न भी है जिसे हेमन्त कुमार ने गाया है, और इस गीत की धुन पर सलिल दा ने एक ग़ैर फ़िल्मी बंगला गीत भी रचा है जिसे उन्ही की बेटी अंतरा चौधरी ने गाया था जिसके बोल हैं "एक जे छिलो राजा होबुचंद्र ताहार नाम..."। हेमन्त दा और अंतरा चौधरी के गाये इन गीतों को आप फिर कभी सुन लीजियेगा दोस्तों, फिलहाल किशोर दा के गाये गीत की बारी। और हाँ, एक और बात, सपने देखिये लेकिन सोती आँखों से नहीं, बल्कि जागती हुई आँखों से। बड़े बड़े सपने देखिये, उन्हे पूरा करने के लिए जी तोड़ मेहनत कीजिये। यकीन मानिए, एक दिन आप को अपनी मेहनत का सिला ज़रूर मिलेगा, और आप भी कहेंगे कि "सच हुए सपने तेरे, झूम ले ओ मन मेरे" !
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. दादा के गाये इस गीत के क्या कहने, शायद ही कोई ऐसा होगा जो इसे सुनकर प्रेरणा से न भर जाए.
2. कल के गीत का थीम है - "प्रेरणा".
3. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"नैन".
कौन सा है आपकी पसंद का गीत -
अगले रविवार सुबह की कॉफी के लिए लिख भेजिए (कम से कम ५० शब्दों में ) अपनी पसंद को कोई देशभक्ति गीत और उस ख़ास गीत से जुडी अपनी कोई याद का ब्यौरा. हम आपकी पसंद के गीत आपके संस्मरण के साथ प्रस्तुत करने की कोशिश करेंगें.
पिछली पहेली का परिणाम -
चलिए पराग जी नींद से जागे, और सही जवाब देकर दिशा जी से २ अंकों की बढ़त ले ली..१२ अंकों के लिए बधाई जनाब. मनु जी आपकी कशमकश कब दूर होगी...स्वप्न जी और दिलीप जी आपका भी आभार, शरद जी नहीं दिखे कल :)
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
प्रोफ़. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने कहा है कि "Dream is not something that we see in sleep; Dream is something that does not allow us to sleep"| इस एक लाइन में उन्होने कितनी बड़ी बात कही हैं। सच ही तो है, सपने तभी सच होते हैं जब उसको पूरा करने के लिए हम प्रयास भी करें। केवल स्वप्न देखने से ही वह पूरा नहीं हो जाता। ख़ैर, आप भी सोच रहे होंगे कि मैं किस बात को लेकर बैठ गया। दरअसल इन दिनों आप सुन रहे हैं किशोर कुमार के गीतों से सजी लघु शृंखला 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़', जिसके तहत हम किशोर दा की आवाज़ के ज़रिये ज़िंदगी के दस अलग अलग पहलुओं पर रोशनी डाल रहे हैं, और आजका पहलू है 'सपना'। जी हाँ, वही सपना जो हर इंसान देखता है, कोई सोते हुए देखता है तो कोई जागते हुए। किसी को ज़िंदगी में बड़ा नाम कमाने का सपना होता है, तो किसी को अर्थ कमाने का। आप यूं भी कह सकते हैं कि यह दुनिया सपनों की ही दुनिया है। आज किशोर दा की आवाज़ के ज़रिये हम जो सपना देखने जा रहे हैं वह मेरे ख़याल से हर आम आदमी का सपना है। हर आदमी अपने परिवार को सुखी देखना चाहता है, वह चाहता है अपने परिवार के लिए एक सुंदर सा घर बनायें, छोटी सी प्यारी सी एक दुनिया बसायें, जिसमें हों केवल ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ, मिलन ही मिलन। जी हाँ, आज ज़िक्र है फ़िल्म 'नौकरी' के गीत का, "छोटा सा घर होगा बादलों की छाँव में, आशा दीवानी मन में बंसुरी बजाए, हम ही हम चमकेंगे तारों के इस गाँव में, आँखों की रोशनी हरदम ये समझाये"।
'दो बीघा ज़मीन' के बाद बिमल राय और सलिल चौधरी का साथ एक बार फिर जमा १९५४ की दो फ़िल्मों में। एक थी 'बिराज बहू' और दूसरी 'नौकरी'। जहाँ 'दो बीघा ज़मीन' की कहानी ग्रामीण समस्या पर आधारित थी, 'नौकरी' का आधार था शहरों में बेरोज़गारी की समस्या। बिमल राय प्रोडक्शन्स के बैनर तले बनी इस फ़िल्म के नायक थे किशोर कुमार, और उनके साथ थे शीला, निरुपा राय एवं बलराज साहनी। दुर्भाग्यवश 'नौकरी' वह कमाल नहीं कर सकी जो कमाल 'दो बीघा ज़मीन' ने दिखाया था। लेकिन सलिल चौधरी के स्वरबद्ध कम से कम एक गीत को श्रोताओं ने कालजयी करार दिया। और वह गीत है आज का प्रस्तुत गीत। गीतकार शैलेन्द्र के सीधे सरल शब्दों की एक और मिसाल यह गीत बड़े ही प्यारे शब्दों में एक आम आदमी के सपनों की बात करता है। पहले अंतरे में भाई अपनी छोटी बहन के लिए चांदी की कुर्सी और बेटा अपनी माँ के लिए सोने के सिंहासन का सपना देखता है, तो दूसरे अंतरे में भाई अपनी बहन की शादी करवाने का सपना देखता है। तथा तीसरे अंतरे में माँ के अपने बेटे का घर बसाने के सपने का ज़िक्र हुआ है। कुल मिलाकर यह गीत एक आम आदमी और एक आम घर परिवार के सपनों का संगम है। गीत के अंत में आप को एक लड़की की आवाज़ भी सुनाई देगी, क्या आप जानते हैं यह किसकी आवाज़ है? यह आवाज़ है लता और आशा की बहन उषा मंगेशकर की। जी हाँ, उनका गाया यह पहला पहला गीत था। इसी साल उन्होने 'चांदनी चौक' व 'सुबह का तारा' में भी गानें गाये और इस तरह से अपनी बड़ी दो बहनों की तरह वो भी फ़िल्म संगीत के क्षेत्र में अपने पाँव बढ़ा ही दिये। दोस्तों, आज का यह गीत सुनने से पहले आप को यह बता दें कि इस गीत का एक सैड वर्ज़न भी है जिसे हेमन्त कुमार ने गाया है, और इस गीत की धुन पर सलिल दा ने एक ग़ैर फ़िल्मी बंगला गीत भी रचा है जिसे उन्ही की बेटी अंतरा चौधरी ने गाया था जिसके बोल हैं "एक जे छिलो राजा होबुचंद्र ताहार नाम..."। हेमन्त दा और अंतरा चौधरी के गाये इन गीतों को आप फिर कभी सुन लीजियेगा दोस्तों, फिलहाल किशोर दा के गाये गीत की बारी। और हाँ, एक और बात, सपने देखिये लेकिन सोती आँखों से नहीं, बल्कि जागती हुई आँखों से। बड़े बड़े सपने देखिये, उन्हे पूरा करने के लिए जी तोड़ मेहनत कीजिये। यकीन मानिए, एक दिन आप को अपनी मेहनत का सिला ज़रूर मिलेगा, और आप भी कहेंगे कि "सच हुए सपने तेरे, झूम ले ओ मन मेरे" !
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. दादा के गाये इस गीत के क्या कहने, शायद ही कोई ऐसा होगा जो इसे सुनकर प्रेरणा से न भर जाए.
2. कल के गीत का थीम है - "प्रेरणा".
3. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"नैन".
कौन सा है आपकी पसंद का गीत -
अगले रविवार सुबह की कॉफी के लिए लिख भेजिए (कम से कम ५० शब्दों में ) अपनी पसंद को कोई देशभक्ति गीत और उस ख़ास गीत से जुडी अपनी कोई याद का ब्यौरा. हम आपकी पसंद के गीत आपके संस्मरण के साथ प्रस्तुत करने की कोशिश करेंगें.
पिछली पहेली का परिणाम -
चलिए पराग जी नींद से जागे, और सही जवाब देकर दिशा जी से २ अंकों की बढ़त ले ली..१२ अंकों के लिए बधाई जनाब. मनु जी आपकी कशमकश कब दूर होगी...स्वप्न जी और दिलीप जी आपका भी आभार, शरद जी नहीं दिखे कल :)
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
ruk jana nahi tu kahin haar ke
nain ansu jo lie hain....
ROHIT RAJPUT
ek baar fir badhai aapko,
shabd bhi thee 'nain' aur prernadayak bhi hai yah geet, to bas maamla fit lagta hai aapka..
ha ha ha ha ha ha
आज तो पहेली थोडी मुश्किल जरूर थी पर आपने नम्बर लगा ही दिया ।
n
m..........
hame pataa nahi kyon...
DADA shabd padhte hi barmun DAA ki yaad ho aayee...
kishor kumaar kaa to dhyaan hi nahi aayaa...
:(
सुजॉय जी, अगर आप भारतीय समयानुसार रात के ९ बजे आपका आलेख प्रसिद्द करेंगे तो फिर आप को यह शिकायत न होगी की पराग नींद से नहीं जागे, क्योंकि तबतक यहाँ पर सुबह के करीब ८ बज गए होंगे. हा हा हा
वैसे आजकल आप बहुत ही मुश्कील सूत्र दे रहे हैं पहले के मुकाबले .
आभारी
पराग
और एक अनोखी बात इस धुन के बारे में. सलिल साहब के घर के बाहर खडा चौकीदार एक दिन यह धुन गुनगुना रहा था जो सलिल जी को पसंद आयी. उन्होंने उसीको सुधारकर यह सुरीला गीत बनाया.
पराग
aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa
aaaaaiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiir
rrrrrrrrrrrrrrrrrrrr
eeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee
filhaal to yahi gana sun rahe hain
shkriya gana snwaane ka .sabhi digajon ko pranaam ,apun to darashak deergha me hi theek hain .
aaaaaaaiiiiiiiiiiiiiiirrrrrrrrrreeeeeeeee