Skip to main content

धीरे से जाना खटियन में...किशोर दा की जयंती पर एक बहुत ही विशेष गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 161

वि नीरज ने लिखा था कि "खिलते हैं गुल यहाँ खिल के बिखरने को, मिलते हैं दिल यहाँ मिलके बिछड़ने को"। संसार के एक शाश्वत सत्य को उजागर किया था नीरज ने अपने इस गीत में। पर आत्मा कहती है कि इस संसार में कुछ चीज़ें ऐसी भी हैं जो शाश्वत हैं। विज्ञान कहती है कि आवाज़ शाश्वत होती है। आज से लेकर अगले दस दिनों तक 'आवाज़' के इस मंच पर ऐसी ही एक शाश्वत आवाज़ को नमन। ये वो आवाज़ है दोस्तों जिसने जब हमें हँसाया तो हम हँस हँस कर लोट पोट हो गये, दर्द भरा कोई अफ़साना सुनाया तो दिल को रुलाकर छोड़ दिया, ज़िंदगी की सच्चाई बयान कि तो लगा जैसे जीवन का सही अर्थ पता चल गया हो, मस्ती भरे नग़में गाये तो दिल झूम उठा, और दिल के तराने छेड़े तो जैसे किसी रिश्ते की डोर और मज़बूत हो गयी। ये आवाज़ सिर्फ़ एक आवाज़ ही नहीं है, इनके तो कई कई आयाम हैं। ये हरफ़नमौला कलाकार एक गायक भी हैं और संगीतकार भी, अभिनेता भी हैं और एक संवेदनशील लेखक भी, फ़िल्म निर्माता और निर्देशक भी रहे हैं ये शख्स। हर दिल पर राज करनेवाला ये फ़नकार हैं आभास कुमार गांगुली, यानी कि हमारे, आपके, हम सभी के प्यारे किशोर कुमार। आज, ४ अगस्त, किशोर दा की ८०-वीं जयंती के उपलक्ष पर हम आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु कर रहे हैं किशोर दा को समर्पित विशेष लघु शृंखला 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़'। इसके तहत किशोर दा आप का परिचय करवायेंगे जीवन के दस अलग अलग रूपों से, अलग अलग भावों से, अलग अलग सौग़ातों से। किशोर दा ने हर रंग के गानें गाये हैं, ज़िंदगी का कोई भी पहलू ऐसा नहीं जो किशोर दा की आवाज़ से बावस्ता न हो। लेकिन किशोर दा के जिस अंदाज़ की वजह से लोग सब से पहले उन्हे याद करते हैं, वह है उनका खिलंदरपन, उनका मज़ाकिया स्वभाव, उनके हास्य रस में डूबे नग़में। शायद इसीलिए, इस शृंखला का पहला गीत भी हमने कुछ इसी रंग का चुना है। सन् १९७३ में बनी फ़िल्म 'छुपा रुस्तम' का गीत "धीरे से जाना खटियन में ओ खटमल"।

'छुपा रुस्तम' फ़िल्म का निर्माण व निर्देशन किया था विजय आनंद ने, और फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे देव आनंद और हेमा मालिनी। सचिन देव बर्मन के संगीत में ढलकर इस फ़िल्म का सब से लोकप्रिय गीत किशोर कुमार ने गाया था। जी हाँ, हम प्रस्तुत गीत की ही बात कर रहे हैं। यह फ़िल्म संगीत के इतिहास का शायद एकमात्र गीत होगा जो खटमल पर बना है। बर्मन दादा की इस धुन में बंगाल के लोकसंगीत की झलक है, लेकिन किशोर दा ने अपनी निजी अंदाज़ से गीत को कुछ ऐसी शक्ल दे दी है कि गाना बस किशोर दा का ही बनकर रह गया है। अगर आप को याद हो तो १९५८ की फ़िल्म 'चलती का नाम गाड़ी' में एक गीत था "मैं सितारों का तराना.... पाँच रुपया बारह आना", जिसके हर अंतरे में किशोर दा कुछ अजीब-ओ-ग़रीब सी हरकत कर जाते हैं। ऐसे एक अंतरे में वो सचिन दा की आवाज़ को नकल कर गा उठते हैं "धीरे से जाना बगियन में रे भँवरा, धीरे से जाना बगियन में"। दरसल यह सचिन दा का बनाया और उन्ही का गाया हुआ एक ग़ैर फ़िल्मी लोक गीत है। सचिन दा की आवाज़ में इस औरिजिनल गीत को भी आज हम आपको सुन्वायेंगें, तभी आज पहली बार आप ओल्ड इस गोल्ड पर दो प्लेयर पायेंगें। अब वापस आते हैं किशोर दा पर। तो 'चलती का नाम गाड़ी' के उस गीत में बर्मन दा के इस ग़ैर फ़िल्मी गीत की एक छोटी सी झलक मिलती है, और उसके बाद, करीब करीब १५ साल बाद, जब फ़िल्म 'छुपा रुस्तम' के गीत संगीत की बात चली तो इसी धुन पर 'बगियन' को 'खटियन' बना दिया गया और 'भँवरे' को 'खटमल'। वैसे गीत के आख़िर में किशोर दा 'बगियन' और 'भँवरे' पर आ ही जाते हैं, और फिर से उसी सचिन दा वाले अंदाज़ में। गीतकार नीरज ने भी बड़ी दक्षता का परिचय देते हुए इस गीत को शीर्षक गीत बना दिया है यह लिख कर कि "क्यों छुप छुप के प्यार करे तू, बड़ा छुपा हुआ रुस्तम है तू, ले ले हमको भी शरण में ओ खटमल, धीरे से जाना खटियन में"। तो सुनिए इस गीत को और आनंद उठाइए किशोर दा के उस अंदाज़ का जो उन्हे दूसरे सभी गायकों से अलग करती है।



अब ये भी सुनिए वो मूल गीत बर्मन दा (सीनीयर) की आवाज़ में -



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

1. किशोर दा एक भावपूर्ण गीत.
2. कल के गीत का थीम है - रिश्ते.
3. मुखड़े में शब्द है -"उमर'.

कौन सा है आपकी पसंद का गीत -
अगले रविवार सुबह की कॉफी के लिए लिख भेजिए (कम से कम ५० शब्दों में ) अपनी पसंद को कोई देशभक्ति गीत और उस ख़ास गीत से जुडी अपनी कोई याद का ब्यौरा. हम आपकी पसंद के गीत आपके संस्मरण के साथ प्रस्तुत करने की कोशिश करेंगें.

पिछली पहेली का परिणाम -
दिशा जी बधाई आप पराग जी के बराबर अंकों पर आ गयी हैं अब, पराग जी कहाँ हैं आप, जागिये ज़रा....मनु जी आप भी फुर्ती दिखाईये अब तनिक...:) स्वप्न जी और शरद यकीन मानिये हम भी आप दोनों की हाजिरजवाबी को बहुत "मिस" कर रहे हैं. दिलीप जी, पोस्ट तो शाम ६.३० भारतीय समयानुसार आ चुकी थी, पता नहीं आप क्यों नहीं देख पाए....

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Anonymous said…
KYUNKI KAL RAKHI HAI...

phoolon ka taron ka sab ka kehna hai... sari umar hame sang rehna hai.

ROHIT RAJPUT
'अदा' said…
sahi kaha rohit ji..
vaise to umar se aur bhi ek gaana mujhe yaad aa raha hai lekin aapka jawaab sahi hai.. kal rakhi jo hai..
sab ko rakhi ki shubh kaamnayein..
bahut bahut badahi ...
'अदा' said…
Rohit ji ka khata to khul hi gaya, gana unhone pehchaan bhi liya jo theme 'rishte' ke tahat aata hain ...
Phoolon Ka Taaron Ka Sabka Kehna Hai
Ek Hazaron Mein Meri Behna Hai
Sari Umar Hame Sang Rehna Hai

Ye Na Jaana Duniya Ne Tu Hai Kyon Udaas
Teri Pyaari Aankhon Mein Pyar Ki Hai Pyaas
Aa Mere Paas Aa Keh Jo Kehna Hai
Ek Hazaron Mein ...

Jabse Meri Aankhon Se Ho Gayi Tu Door
Tabse Sare Jeevan Ke Sapne Hain Choor
Aankhon Mein Neend Na Dil Mein Chaina Hai
Ek Hazaron Mein ...

Dekho Hum Tum Dono Hain Ek Dali Ke Phool
Maein Na Bhoola Tu Kaise Mujhko Gai Bhool
Aa Mere Paas Aa Keh Jo Kehna Hai
Ek Hazaron Mein ...
film : hare raama hare krishna
Disha said…
yahi gaanaa hai
manu said…
hnm..
bilkul yahi...
मैनें भी इसी गाने पर मुहर लगा दी थी पर अभी देखा तो मेरा पोस्ट प्रकाशित ही नहीं हुआ । अब राखी का अवसर है तो यही गीत होगा ’ मेरी उमर के नौजवानों दिल न लगाना ओ दीवानों ’ तो हो नहीं सकता । आज दिशा जी कैसे चूक गईं ।
hmn.. नहीं hnm...
मनु जी
ये hmn... क्या है ?
Parag said…
सुजॉय जी, मेरे हाथ में चोट आने के कारन मैं अंतर्जाल से थोडा दूर हूँ कुछ दिन के लिए.

पराग
'अदा' said…
Sharad ji,
hnm..
manu ji ka likhne waala 'takia kalam' hai..
ha ha ha ha ha
मुझे लग रहा है वे पहले हनुमान जी को याद करते है उसी का short है hnm..
Manju Gupta said…
फूलों का तारों का सब का कहना है .........जवाब है .
manu said…
h--- HAMEIN
n--- NAHIN
m--- MAALOOM



hame nahi pataa hotaa jawaab aksar...
par hajiri lagaani hoti hai na...?

:)
::))
Shamikh Faraz said…
फूलों का तारों का सब का कहना
एक हजारों में मेरी बहना है,

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट