Skip to main content

एक हजारों में मेरी बहना है...रक्षा बंधन पर शायद हर भाई यही कहता होगा...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 162

"कभी भ‍इया ये बहना न पास होगी, कहीं परदेस बैठी उदास होगी, मिलने की आस होगी, जाने कौन बिछड़ जाये कब भाई बहना, राखी बंधवा ले मेरे वीर"। रक्षाबंधन के पवित्र पर्व के उपलक्ष्य पर हिंद युग्म की तरफ़ से हम आप सभी को दे रहे हैं हार्दिक शुभकामनायें। भाई बहन के पवित्र रिश्ते की डोर को और ज़्यादा मज़बूत करता है यह त्यौहार। राखी उस धागे का नाम है जिस धागे में बसा हुआ है भाई बहन का अटूट स्नेह, भाई का अपनी बहन को हर विपदा से बचाने का प्रण, और बहन का भाई के लिए मंगलकामना। इस त्यौहार को हमारे फ़िल्मकारों ने भी ख़ूब उतारा है सेल्युलायड के परदे पर। गानें भी एक से बढ़कर एक बनें हैं इस पर्व पर। क्योंकि इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर चल रहा है किशोर कुमार के गीतों से सजी लघु शृंखला 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़', जिसके तहत हम जीवन के अलग अलग पहलुओं को किशोर दा की आवाज़ के ज़रिये महसूस कर रहे हैं, तो आज महसूस कीजिए भाई बहन के नाज़ुक-ओ-तरीन रिश्ते को किशोर दा के एक बहुत ही मशहूर गीत के माध्यम से। यह एक ऐसा सदाबहार गीत है भाई बहन के रिश्ते पर, जिस पर वक्त की धुल ज़रा भी नहीं चढ़ पायी है, ठीक वैसे ही जैसे कि भाई बहन के रिश्ते पर कभी कोई आँच नहीं आ सकती। 'हरे रामा हरे कृष्णा' फ़िल्म के इस गीत को आप ने कई कई बार सुना होगा, लेकिन आज इस ख़ास मौके पर इस गीत का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। हमें पूरी उम्मीद है कि आज इस गीत का आप दूसरे दिनों के मुक़ाबले ज़्यादा आनंद उठा पायेंगे।

फ़िल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' सन् १९७१ की फ़िल्म थी जिसके मुख्य कलाकार थे देव आनंद, ज़ीनत अमान और मुमताज़। दोस्तों, यह फ़िल्म उन गिने चुने फ़िल्मों में से है जिनकी कहानी नायक और नायिका के बजाये भाई और बहन के चरित्रों पर केन्द्रित है। भाई बहन के रिश्ते पर कामयाब व्यावसायिक फ़िल्म बनाना आसान काम नहीं है। इसमें फ़िल्मकार के पैसे दाव पर लग जाते हैं। लेकिन देव आनंद ने साहस किया और उनके उसी साहस का नतीजा है कि दर्शकों को इतनी अच्छी भावुक फ़िल्म देखने को मिली। इस फ़िल्म को देख कर किसी की आँखें नम न हुई हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। माँ बाप के अलग हो जाने की वजह से बचपन में एक दूसरे से बिछड़ गये भाई और बहन। भाई तो ज़िंदगी की सही राह पर चला लेकिन बहन भिड़ गयी हिप्पियों के दल में और डुबो दिया अपने को नशे और ख़ानाबदोशी की ज़िंदगी में। नेपाल की गलियों में भटकता हुआ भाई अपनी बहन को ढ़ूंढ ही निकालता है, लेकिन शुरु में बहन बचपन में बिछड़े भाई को पहचान नहीं पाती है। तब भाई वह गीत गाता है जो बचपन में वह उसके लिए गाया करता था (लता मंगेशकर और राहुल देव बर्मन की आवाज़ों में बचपन वाला गीत है)। भाई किस तरह से ग़लत राह पर चल पड़ने वाली बहन को सही दिशा दिखाने की कोशिश करता है, इस गीत के एक एक शब्द में उसी का वर्णन मिलता है। गीत को सुनते हुए बहन भाई को पहचान लेती है, गीत के इन दृश्यों को आप शायद ही सूखी आँखों से देखे होंगे। बहन अपने भाई को अपना परिचय देना तो चाहती है, लेकिन वो इतनी आगे निकल चुकी होती है कि वापस ज़िंदगी में लौटना उसके लिए नामुमकिन हो जाता है। इसलिए वो अपना परिचय छुपाती है और अंत में ख़ुदकुशी कर लेती है। प्रस्तुत गीत फ़िल्म का सब से महत्वपूर्ण गीत है। आनंद बक्शी, राहुल देव बर्मन और किशोर कुमार की तिकड़ी ने एक ऐसा दिल को छू लेनेवाला गीत तैयार किया है कि चाहे कितनी भी बार गीत को सुने, हर बार आँखें भर ही आती हैं। देव आनंद साहब ने ख़ुद इस फ़िल्म की कहानी लिखी और फ़िल्म को निर्देशित भी किया। इस फ़िल्म के लिए देव साहब की जितनी तारीफ़ की जाये कम ही होगी। इसके बाद शायद ही इस तरह की कोई फ़िल्म दोबारा बनी हो! इस फ़िल्म को बहुत ज़्यादा पुरस्कार तो नहीं मिला सिवाय आशा भोंसले के ("दम मारो दम" गीत के लिए फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार), लेकिन असली पुरस्कार है दर्शकों का प्यार जो इस फ़िल्म को भरपूर मिला, और साथ ही इस फ़िल्म के गीत संगीत को भी। तो लीजिए, रक्षाबंधन के इस विशेष अवसर पर सुनिये किशोर दा की आवाज़ में एक भाई के दिल की पुकार। आप सभी को एक बार फिर से रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनायें।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

1. किशोर दा के गाये बहतरीन गीतों में से एक.
2. कल के गीत का थीम है - "सपने".
3. मुखड़े की तीसरी पंक्ति में शब्द है -"गाँव".

कौन सा है आपकी पसंद का गीत -
अगले रविवार सुबह की कॉफी के लिए लिख भेजिए (कम से कम ५० शब्दों में ) अपनी पसंद को कोई देशभक्ति गीत और उस ख़ास गीत से जुडी अपनी कोई याद का ब्यौरा. हम आपकी पसंद के गीत आपके संस्मरण के साथ प्रस्तुत करने की कोशिश करेंगें.

पिछली पहेली का परिणाम -
रोहित राजपूत जी रूप में हमें मिले एक नए प्रतिभागी...२ अंकों के लिए बधाई रोहित जी, पराग जी अपना ख्याल रखियेगा, सभी श्रोताओं को एक बार फिर इस पावन पर्व की ढेरों शुभकामनायें...

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Parag said…
छोटासा घर होगा बाद्लओंकी छाओं में
Parag said…
छोटासा घर होगा बाद्लओंकी छाओं में
आँखों की रौशनी हर दम यह समझाए
हम ही हम चमकेंगे तारोंके उस गाँव में
आँखों को रौशनी हरदम यह समझाए
manu said…
shaayad...
मैं भी यही समझ रहा था, मगर सपने की थीम से थोडा कन्फ़्युज़ हो गया हूं.

कल ही किशोर दा की जन्म दिवस और राखी पर किसी नें गाया था .(देव साहब का गाना) इस गीत को फ़िर मैने सुबह याद किया.
'अदा' said…
parag ji, bahut bahut badhai aapko..
vaise main late hun lekin ye geet to main nahi pehchanti ye pakki baat hai..
aap sabko rakhi ki shubhkamnaayein
Swapna Manjusha 'ada'

gaaon shabd se bahut saare geet hain kishore kumar ke
dogana hai :
Parbat Ke Peeche Chambela Gaon
Gori Gori Gaon Ki Chori
etc
lekin ye geet mujhe nahi maloom tha..
parag ji bahut bahut badhai ek baar fir.
Parag said…
http://www.youtube.com/watch?v=KRfgKRy-W7E

Is durlabh geet ka video yahan par upalbdh hain

Parag
पराग जी,
बधाई । आ.....अई रे । आ...अई रे
सही गीत इस तरह है
छोटासा घर होगा बाद्लओंकी छाओं में
आशा दीवानी मन में बंसरी बजाए
हम ही हम चमकेंगे तारोंके उस गाँव में
आँखों की रौशनी हरदम यह समझाए ।
फ़िल्म " नौकरी
Manju Gupta said…
छोटासा घर होगा बाद्लओंकी छाओं में
Shamikh Faraz said…
पराग जी,
बधाई ।

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट