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ये मेरा दीवानापन है या मोहब्बत का सरूर.... एक सदाबहार गीत मुकेश का गाया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 148

रोम में एक समय ऐसा था जब यहूदियों के साथ बड़ी ज़्यादतियाँ की जाती थी। फ़िल्म 'यहूदी' की कहानी भी इसी समय को आधार बनाकर लिखी गयी 'पीरियड फ़िल्म' थी। यह कहानी थी एक यहूदी लड़की की, कि किस तरह से उसे एक रोमन राजकुमार से प्यार हो जाता है, और फिर रोमन समाज उस प्यार को क्या अंजाम देता है। बिमल राय निर्देशित यह फ़िल्म आयी थी सन् १९५८ में। फ़िल्म में कई बड़े कलाकार थे जैसे कि सोहराब मोदी (एज़रा), दिलीप कुमार (प्रिंस मारकस), मीना कुमारी (हना), नासिर हुसैन (ब्रूटस) और निगार सुल्ताना (औक्टाविया)। हृषिकेश मुखर्जी ने इस फ़िल्म की एडिटिंग की थी। एक विदेशी पीरियड फ़िल्म होने की वजह से इस फ़िल्म के गीत संगीत की ज़िम्मेदारी एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी थी। किसी भी पीरियड फ़िल्म में उस समय के संगीत का होना बेहद ज़रूरी हो जाता है वर्ना फ़िल्म की आत्मा ही ख़त्म हो जाती है। और अगर कहानी विदेशी हो तो मामला और भी गम्भीर हो जाता है। इस मामले में यह ज़रूर कहना पड़ेगा कि इस फ़िल्म के संगीतकार शंकर जयकिशन ने गीतों में वही रंग भरने की पूरी पूरी कोशिश की है। इससे पहले शंकर जयकिशन के संगीत से सजी एक और पीरियड फ़िल्म 'आम्रपाली' का एक गीत हमने आप को सुनवाया है। तो आज सुनिये फ़िल्म 'यहूदी' से मुकेश का गाया "ये मेरा दीवानापन है"।

शैलेन्द्र के लिखे इस गीत में भी उनके दूसरे गीतों की तरह सरलता है, सादगी है, लेकिन सीधे सरल शब्दों में तह-ए-दिल से निकली हर एक आह का पुर-असर ज़िक्र वो कर गये हैं इस गीत में। चलिये आज शैलेन्द्र साहब के बारे में थोड़ी सी बातें आप को बतायी जाये! ३० अगस्त को रावलपिंडी में जनम लेनेवाले शंकर शैलेन्द्र, जो बाद में केवल शैलेन्द्र के नाम से जाने गये, पहचाने गये, और अपने ख़यालों व ज़िंदगी के तमाम तजुरबात को अमर गीतों की शक्ल देकर ज़माने भर के तरफ़ से माने गये। शैलेन्द्र एक ऐसे शायर, एक ऐसे कवि की हैसीयत रखते हैं, जिनकी शायरी के मज़बूत कंधों पर हिंदी फ़िल्म संगीत की इमारत आज तक खड़ी है, और न जाने कितने और दीर्घ समय तक खड़ी रहेगी। "बरसात में हम से मिले तुम" से लेकर "जीना यहाँ मरना यहाँ" तक फ़िल्म जगत को केवल १७ सालों में जो अमर गानें उन्होने दिये हैं, वो इतने कम अरसे में शायद ही किसी और गीतकार ने दिये होंगे! दोस्तों, आप को शायद याद हो, 'राज कपूर विशेष' के दौरान 'तीसरी क़सम' के गाने के साथ हम ने आप को दुबई के १०४.४ आवाज़ FM पर प्रसारित शैलेन्द्र साहब के बेटे मनोज शैलेन्द्र से की गयी एक मुलाक़ात का अंश सुनवाया था। उसी मुलाक़ात में जब मनोज जी से यह पूछा गया था कि शैलेन्द्र जी के पसंदीदा गीतों का ज़िक्र कीजिये, तो 'बंदिनी', 'संगम' और 'दूर गगन की छाँव में' जैसी फ़िल्मों के गानों के साथ साथ 'यहूदी' के इस गीत की भी बात छिड़ी थी, ख़ुद मनोज जी के शब्दों में - "there are some songs which I also distinctly remember baba enjoyed and recited in front of us, one of them was from Yahudi - "ये मेरा दीवानापन है""। एक और बेहद ज़रूरी बात, वह यह कि १९५९ से 'फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार' के अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ गीतकार का पुरस्कार दिया जाने लगा, और दोस्तों पता है आप को कि उस पहले पहले साल में यह पुरस्कार शैलेन्द्र को ही मिला था और वह भी 'यहूदी' के इसी गीत के लिए। अब इसके बाद शायद इस गीत की महानता का गुणगान करना ज़रूरी नहीं रह गया है। तो दोस्तों, सुनिये मुकेश, शैलेन्द्र और शंकर जयकिशन को समर्पित आज का यह गीत।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा दूसरा (पहले गेस्ट होस्ट हमें मिल चुके हैं शरद तैलंग जी के रूप में)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

1. कल सदी का पहला सम्पूर्ण सूर्य ग्रहण है और ये गीत समर्पित है ऊर्जा के संबसे बड़े श्रोत को.
2. कवि प्रदीप हैं इस गीत के रचेता.
3. मुखड़े में शब्द है -"सूरज" :)

पिछली पहेली का परिणाम -
अदा जी एक बार फिर बधाई. ३६ अंक हो गए हैं आपके. दिशा जी बस ज़रा सा पीछे रह गयी. कल के गीत के साथ कुछ समस्या थी जिसे सुधार लिया गया है, आप सब जो कल उस गीत को नहीं सुन पाए आज ज़रूर सुनें. कमाल का गीत है. दिलीप जी हम आपकी आवाज़ में भी इसे जल्द ही सुनेंगें.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

'अदा' said…
This post has been removed by the author.
'अदा' said…
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'अदा' said…
Sooraj re jalte rahena
'अदा' said…
जगत भर की रोशनी के लिये
करोड़ों की ज़िंदगी के लिये
सूरज रे जलते रहना
सूरज रे जलते रहना
film: harishchandra taramati
Disha said…
देख तेरे इंसान की हालत क्या हो गयी भगवान कितना बदल गया इंसान
सूरज ना बदला चाँद ना बदला ना बदला रे आसमान कितना बदल गया इंसान
Disha said…
आज के इस इंसान की हालत क्या हो गयी भगवान कितना बदल गया इंसान
सूरज ना बदला चाँद ना बदला ना बदला रे आसमान कितना बदल गया इंसान(अमर रहे ये प्यार)
सूरज रे जलते रहना(हरिश्चन्द्र तारामती)
Manju Gupta said…
सूरज रे जलते रहना -जवाब है .
Anu Gupta said…
तारों में सजके..
अपने सूरज से.. देखो धरती चली मिलने
मुकेश जी के इस गीत के लिये धन्यवाद्
sumit said…
taaro mein sajke, apne sooraj se dekho dharti chali milne.......

ya ek rafi sahab ka song - sooraj ko choone nikla tha, aaya haath andhera.....
मुकेश जी जहां भी जाते इस गीत की फ़रमाईश ज़रूर होती थी. स्वयं नितिन मुकेश ये बात स्वीकार करते हैं कि उन्हे भी इसी गीत को गाने का आग्रह हमेशा ही होता है.

इस गीत में मुकेश जी नें स्वरों के तीनों सप्तकों में मुखडा गाया था.

सूरज पर दोनों गीत सही है.
आज आने में बहुत देर हो गई । आज दोपहर से ही हमारे शहर में मूसलाधार वारिश का दौर चल रहा था फलस्वरूप बिजली भी बन्द हो गई थी अब जाकर आई है ।
जवाब अदा जी का ही सही है ’जगत भर की रोशनी..’क्योंकि प्रश्न के अनुसार यह गीत सूर्य को ही समर्पित है जब कि ’देख तेरे इन्सान.. तथा तारों में सज के... गीत इन्सान और धरती के विषय में हैं। तारों में सज के.. के गीतकार कवि प्रदीप भी नहीं है ।
अदा जी बधाई ।
दिशा जी
अमर रहे ये प्यार के गीत " आज के इस इन्सान को ये क्या हो गया ...कैसी ये मनहूस घडी़ है’ तथा देख तेरे सन्सार की हालत (नास्तिक) अलग अलग गीत है
Parag said…
हाथ को चोट लगने के कारण दो दिनोंसे पहेली पर आ नहीं सका इसलिए माफ़ी चाहता हूँ. शरद जी के विस्तृत टिप्पणी के बाद लगता है की अदा जी का जवाब सही लग रहा है.

पराग
Shamikh Faraz said…
तारों में सजके अपने सूरज से धरती चली मिलने.
मुकेश का एक सदाबहार नगमा

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