स्वरगोष्ठी – ६८ में आज
स्वर-साधक मन्ना डे और राग दरबारी
हिन्दी फिल्मों में १९४३ से २००६ तक सक्रिय रहने वाले पार्श्वगायक मन्ना डे फिल्म-संगीत-क्षेत्र में अपनी उत्कृष्ठ स्तर की गायकी के लिए हमेशा याद किए जाएँगे। फिल्मों में राग आधारित गीतों की सूची में उनके गाये गीत शीर्ष पर हैं। १ मई, २०१२ को मन्ना दा अपनी आयु के ९३ वर्ष पूर्ण कर ९४वें वर्ष में प्रवेश करेंगे। इस उपलक्ष्य में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हम उनके स्वस्थ और दीर्घायु जीवन की प्रार्थना करते हुए उन्हें जन्म-दिवस पर बधाई देते हैं।
‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक में मैं, कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का, एक बार फिर हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज की और अगले सप्ताह की गोष्ठी में हम फिल्म-जगत के सुप्रसिद्ध पार्श्व-गायक मन्ना डे को उनके जन्म-दिवस के अवसर पर, उन्हीं के गाये गीतों से अपनी शुभकामनाएँ अर्पित करेंगे। आज के अंक में हम उनके राग-आधारित गाये असंख्य गीतों में से राग दरबारी कान्हड़ा के तीन श्रेष्ठ गीत सुनवाने जा रहे हैं। परम्परागत भारतीय संगीत में राग दरबारी का जो स्वरूप बना हुआ है, आज की प्रस्तुतियों में आपको वह स्वरूप स्पष्ट रूप से परिलक्षित होगा। साथ ही राग दरबारी पर भी हम थोड़ी चर्चा भी करेंगे।
आपको सुनवाने के लिए मन्ना डे का गाया आज का पहला गीत जो हमने चुना है, वह १९५९ की फिल्म ‘रानी रूपमती’ से है। इस फिल्म के संगीतकार हैं- एस.एन. त्रिपाठी, जिन्होने कई राग-आधारित गीतों से फिल्म को सुसज्जित किया था। इन गीतों में एक गीत है- ‘उड़ जा भँवर माया कमल का आज बन्धन तोड़ दे...’, जो राग दरबारी पर आधारित गीतों में एक उत्कृष्ट गीत है। फिल्म में यह गीत दो भागों में है। मन्ना डे का गाया गीत का पहला भाग राग दरबारी पर आधारित है, जिसमें जीवन में वैराग्य के महत्त्व को रेखांकित किया गया है। गीत का दूसरा भाग राग वृन्दावनी सारंग पर आधारित है और इसे लता मंगेशकर ने गाया है, जिसमें जीवन में प्रेम का महत्त्व रेखांकित है। आज हम आपको गीत का पूर्वार्द्ध, जो राग दरबारी कान्हड़ा पर आधारित है, सुनवा रहे हैं। गीतकार हैं, भरत व्यास। अति कोमल गांधार का आन्दोलन राग दरबारी की एक मुख्य विशेषता होती है, जिसका दर्शन आपको गीत में होगा। आइए, रूपक ताल में निबद्ध इस गीत का आनन्द लिया जाए-
फिल्म – रानी रूपमती : ‘उड़ जा भँवर माया कमल का...’ : संगीत - एस.एन. त्रिपाठी
राग दरबारी के स्वरों में श्रृंगार और भक्ति रस खूब मुखर होता है, किन्तु मन्ना डे के दरबारी के स्वरॉ में गीत का वैराग्य भाव कितना मुखरित हुआ है, आपने यह गीत सुन कर स्पष्ट अनुभव किया होगा। मन्ना डे को संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा उनके चाचा कृष्णचन्द्र (के.सी.) डे से मिली, जो बंगाल की भक्ति संगीत शैलियों के सिद्ध गायक थे। इसके अलावा अपने विद्यार्थी जीवन में उस्ताद दबीर खाँ से खयाल, तराना और ठुमरी की शिक्षा भी प्राप्त हुई। १९४० में मन्ना डे अपने चाचा के साथ कोलकाता से मुम्बई आए अपने चाचा के साथ-साथ खेमचन्द्र प्रकाश, शंकरराव व्यास, अनिल विश्वास, सचिनदेव बर्मन आदि के सहायक के रूप में कार्य किया। इस दौर में उन्होने कई फिल्मों में संगीत निर्देशन भी किया। फिल्म-संगीत के क्षेत्र में स्वयं को स्थापित करने के प्रयासों के बीच मन्ना डे ने मुम्बई में उस्ताद अमान अली खाँ और उस्ताद अब्दुल रहमान खाँ से संगीत सीखना जारी रखा।
मन्ना डे के स्वर में राग दरबारी पर आधारित आज का दूसरा गीत श्रृंगार रस प्रधान है। यह गीत हमने १९६८ की फिल्म ‘मेरे हुज़ूर’ से लिया है। इसके संगीतकार शंकर-जयकिशन और गीतकार हसरत जयपुरी हैं। फिल्मों में राग दरबारी पर आधारित श्रृंगार रस प्रधान गीतों की सूची में यह गीत सर्वोच्च स्थान पर रखे जाने योग्य है। तीन ताल में निबद्ध इस गीत में मन्ना डे ने अन्तिम अन्तरे में सरगम तानों का प्रयोग अत्यन्त कुशलता से किया है। आइए, सुनते हैं यह सुरीला गीत।
फिल्म – मेरे हुज़ूर : ‘झनक झनक तोरी बाजे पायलिया...’ : संगीत – शंकर-जयकिशन
फिल्मों में राग आधारित गीतों के गायन में मन्ना डे का कोई विकल्प नहीं था। उनके गाये गीतों में ध्रुवपद, खयाल और ठुमरी अंग की स्पष्ट झलक मिलती है। उन्होने श्रृंगार, भक्ति आदि रसों में अनेक राग आधारित गीतों को गाया है, किन्तु हास्य-रस-प्रधान गीतों के गायन में भी उनका कोई जवाब नहीं था। आज के अंक का तीसरा और अन्तिम गीत राग दरबारी के स्वरों पर आधारित एक हास्य गीत है, किन्तु उससे पहले थोड़ी चर्चा राग दरबारी के स्वरूप के विषय में आवश्यक है।
प्राचीन काल में कर्णाट नामक एक राग प्रचलित था। १५५० की राजस्थानी पेंटिंग में इस राग का नाम आया है। बाद में यह राग कानडा या कान्हड़ा नाम से प्रचलित हुआ। अकबर के दरबारी गायक तानसेन ने इस राग के स्वरों में कुछ परिवर्तन कर राज-दरबार में गाया। तब से यह दरबारी कान्हड़ा नाम से प्रचलित हुआ। सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति के इस राग में धैवत और निषाद स्वर कोमल, आन्दोलन के साथ अति कोमल गांधार स्वर और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग होते हैं। अवरोह के स्वर वक्रगति से लगाए जाते हैं।
संगीतकार सचिनदेव बर्मन, १९६४ की एक फिल्म- ‘जिद्दी’ के संगीतकार थे। इस फिल्म में उन्होने हास्य अभिनेता महमूद के लिए एक हास्य-गीत- ‘प्यार की आग में तन बदन जल गया...’ राग दरबारी के स्वरों में ढाला था। हसरत जयपुरी के इस गीत को मन्ना डे ने बड़े कौशल से गाया। महमूद के लिए मन्ना डे द्वारा कई हास्य-गीत गाये गए हैं, जिनमें यह गीत विशेष उल्लेखनीय है। कहरवा ताल का लोच गीत में हास्य-रस की वृद्धि करता है। आप यह गीत सुनिए और आज के इस अंक से मुझे यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।
फिल्म – जिद्दी : ‘प्यार की आग में तन बदन जल गया...’ : संगीत सचिनदेव बर्मन
आज की पहेली
आज की ‘संगीत-पहेली’ में हम आपको सुनवा रहे हैं मन्ना डे की ही आवाज़ में १९६२ की एक फिल्म के गीत का अंश। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ७०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक-श्रोता हमारी दूसरी श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ – यह गीत किस राग पर आधारित है?
२ – पर्दे पर यह गीत किस अभिनेता पर फिल्माया गया है?
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ७०वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com अथवा admin@radioplaybackindia.com पर भी अपना सन्देश भेज सकते हैं।
आपकी बात
‘स्वरगोष्ठी’ के ६६वें अंक की पहेली में हमने आपको बांग्ला में एक रवीद्र-गीत का अंश सुनवा कर आपसे ताल का नाम और उस गीत के समतुल्य हिन्दी फिल्मी गीत का परिचय पूछा था। सही उत्तर है सात मात्रा का रूपक ताल और हिन्दी फिल्म अभिमान का गीत- ‘तेरे मेरे मिलन की ये रैना...’। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर हमारे तीन पाठकों- बैंगलुरु के पंकज मुकेश, पटना की अर्चना टण्डन और मीरजापुर (उत्तर प्रदेश) के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर हार्दिक बधाई। हमारा ६६वाँ अंक ‘उस्ताद अली अकबर खाँ और राग मारवा’ विषय पर केन्द्रित था। इस अंक के बारे में हमें कई पाठकों/श्रोताओं के प्रतिक्रिया मिली है। जाने-माने संगीत-समीक्षक मुकेश गर्ग ने आलेख में टाइप की एक अशुद्धि को इंगित किया है। उनका आभार व्यक्त करते हुए हम अपेक्षा करते हैं कि भविष्य में भी इसी प्रकार हमारा मार्गदर्शन करते रहें। अनुपमा त्रिपाठी ने इस अंक में दी गई जानकारी को ‘बेहद उपयोगी’ बताया। हमारे एक अन्य पाठक, शिवम मिश्रा ने उस्ताद अली अकबर खाँ की स्मृतियों को नमन करते हुए प्रस्तुत आलेख को पसन्द किया। ‘ब्लॉग बुलेटिन’ ने हमारी पोस्ट को अपने पृष्ठ पर शामिल करते हुए आभार प्रकट किया है। इनके साथ ही उन सभी संगीत-प्रेमियों का हम आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होने ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक को पसन्द किया। आपको याद ही होगा कि ‘स्वरगोष्ठी’ के ६५वाँ अंक हमने पण्डित कुमार गन्धर्व के प्रति समर्पित किया था। कुछ विलम्ब से ही सही, कुमार जी की सुपुत्री और सुप्रसिद्ध गायिका सुश्री कलापिनी कोमकली जी ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए हमारे आलेख और राग के चयन को ‘बहुत अच्छा’ कहा। हम कलापिनी जी के हृदय से आभारी हैं।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, सुर गन्धर्व मन्ना डे के जन्म-दिवस पर आयोजित ‘स्वरगोष्ठी’ का यह अनुष्ठान अगले अंक में भी जारी रहेगा। मन्ना डे के गाये राग आधारित गीतों के समृद्ध खजाने में से चुन कर कुछ और गीत हम आपके लिए प्रस्तुत करेंगे। आगामी रविवार की सुबह ९-३० बजे आप और हम ‘स्वरगोष्ठी’ के अगले अंक में पुनः मिलेंगे। तब तक के लिए हमें विराम लेने की अनुमति दीजिए।
कृष्णमोहन मिश्र
Comments
Paheli
(1) Rag_Darbari
(2) Actor_ ???
Archana Tandan
Patna, Bihar.