ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 612/2010/312
'कोमल है कमज़ोर नहीं' - हिंदी सिनेमा की कुछ सशक्त महिला कलाकारों, जिन्होंने फ़िल्म जगत में अपना अमिट छाप छोड़ा और आनेवाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनीं, को समर्पित है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह बेहद ख़ास लघु शृंखला। कल इसकी पहली कड़ी को हमनें समर्पित किया था हिंदी सिनेमा की सर्वप्रथम महिला संगीत निर्देशिका, गायिका व फ़िल्म निर्मात्री जद्दनबाई को। आज दूसरी कड़ी में ज़िक्र एक और ऐसी अदाकारा की जो फ़िल्मों के शुरुआती दौर में 'लीडिंग् लेडी' के रूप में सामने आयीं, और वह भी ऐसे समय में जब अच्छे घर की महिलाओं के लिए अभिनय का द्वार लगभग बंद के समान था। ये हैं दुर्गा खोटे। इनका जन्म १४ जनवरी १९०५ को हुआ था, जिन्होंने ५० साल की अपनी फ़िल्मी करीयर में लगभग २०० फ़िल्मों में अभिनय किया और बहुत से थिएटरों के लिए काम किए। साल २००० में प्रकाशित 'इण्डिया टूडे' की विशेष मिलेनियम अंक में दुर्गा खोटे का नाम उन १०० भारतीय नामों में शामिल था जिन्होंने भारत को किसी न किसी रूप में एक आकार दिया है। उनके लिए जो शब्द उसमें इस्तमाल किए गये थे, वो थे - "Durga Khote marks the pioneering phase for woman in Indian Cinema." ऐसा नहीं कि दुर्गा खोटे से पहले किसी महिला ने अभिनय नहीं किया, लेकिन एक इज़्ज़तदार घर से फ़िल्मों में आनेवाली वो पहली महिला थीं और उन दिनों अच्छे घरों के लड़कों को भी फ़िल्मों में जाने की इज़ाज़त नहीं थी, लड़कियों का तो सवाल ही नहीं था। दुर्गा खोटे का नाम १० सर्वश्रेठ फ़िल्मी माँओं की फ़ेहरिस्त में भी शामिल है, और माँ की भूमिका में उनकी कुछ यादगार फ़िल्में हैं 'मुग़ल-ए-आज़म' (जोधाबाई), 'भरत मिलाप' (कैकेयी), 'चरणों की दासी', 'मिर्ज़ा ग़ालिब', 'बॊबी' और उनकी आख़िरी उल्लेखनीय फ़िल्म थी 'बिदाई', जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिला था। हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री तथा दादा साहब फाल्के पुरस्कारों से भी सम्मानित किया था। आइए आज दुर्गा खोटे को सलाम करते हुए सुनें उसी फ़िल्म 'बिदाई' का एक गीत जो उन्हीं पर फ़िल्माया भी गया था।
नवंबर १९९१ को दुर्गा खोटे के निधन के बाद लिस्नर्स बुलेटिन में उन पर एक लेख प्रकाशित हुई थी; उसी का एक अंश प्रस्तुत है यहाँ पर - "सन् १९३० में श्री मोहन भवनानी वाडिया के साथ एक मूक फ़िल्म बना रहे थे। फ़िल्म लगभग पूरी हो चुकी थी। उसी समय बोलती फ़िल्मों की लहर ने भवनानी को इसी फ़िल्म में एक सवाक् अंश जोड़ने के लिए विवश किया जिसके लिए वो एक नई युवती चाहते थे। यह कार्य उन्होंने वाडिया को सौंप दिया। वाडिया शालिनी के मित्र थे। उन्होंने उस भूमिका हेतु शालिनी के समक्ष प्रस्ताव रखा जिसे शालिनी ने तुरन्त अस्वीकार कर दिया। काफ़ी आग्रह करने पर उन्होंने अपनी छोटी बहन दुर्गा का नाम प्रस्तावित किया तथा वाडिया को वह दुर्गा के पास भी ले गईं। परिस्थितिवश दुर्गा खोटे ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस प्रकार दुर्गा को प्रथम फ़िल्म 'ट्रैप्ड' उर्फ़ 'फ़रेबी जाल' (१९३१) में सिर्फ़ दस मिनट की भूमिका मिली जिसमें उनके गाए ३ गीत भी सम्मिलित थे। फ़िल्म की शूटिंग् पूरी होने पर उन्हें २५० रुपय का चेक मिला जिससे उस समय उनके आवश्यक खर्चें निकल आये। इस फ़िल्म के प्रदर्शित होनें पर दुर्गा खोटे की बड़ी दुर्गति हुई। अपनी समस्याओं का निराकरण तो दूर, उल्टे और उलझतीं गयीं किन्तु साहसिक दुर्गा न तो भटकीं और न धैर्य को छोड़ा।" और दोस्तों, इसीलिए आज 'कोमल है कमज़ोर नहीं' में हम बात कर रहे हैं इस सशक्त महिला कीं। वापस आते हैं 'बिदाई' पर; फ़िल्म 'बिदाई' की कहानी दुर्गा खोटे पर ही केन्द्रित थी। आज का प्रस्तुत गीत एक भक्ति रचना है जिसे सुमन कल्याणपुर ने गाया है। दोस्तों, गायिका सुमन कल्याणपुर की कहानी भी कम उल्लेखनीय है। लता और आशा की चमक के आगे दूसरी सभी गायिकाओं की चमक फीकी पड़ जाया करती थी। समस्त कमचर्चित पार्श्वगायिकाओं में सुमन कल्याणपुर ही थीं जिन्होंने सब से ज़्यादा गीत गाये और सब से ज़्यादा लोकप्रियता उन्हें ही मिली। उनकी आवाज़ लता जी की तरह होने की वजह से जहाँ उन्हें मौके भी मिले, लेकिन साथ ही उनके लिए एक रुकावट भी सिद्ध हुई। सुमन जी के ससुराल वालों ने भी उन्हें जनता के समक्ष आने का मौका नहीं दिया और वो गायन छोड़ने के बाद गुमनामी में चली गयीं। आइए, जिस तरह से कल हमनें जद्दनबाई के साथ साथ नरगिस जी को भी याद किया था, ठीक वैसे ही आज दुर्गा खोटे जी के साथ साथ सलाम करें सुरीली गायिका सुमन कल्याणपुर जी को भी, 'कोमल है कमज़ोर नहीं' शृंखला की दूसरी कड़ी में।
क्या आप जानते हैं...
कि सुमन कल्याणपुर का जन्म २८ जनवरी १९३७ को ढाका में हुआ था, जहाँ पर वो १९४३ तक रहीं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 03/शृंखला 12
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - अपने जमाने में इस फिल्म के गीत बहुत मकबूल हुए थे.
सवाल १ - गायिका बताएं - २ अंक
सवाल २ - संगीत किसका है - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
इस बार अंजना जी को अमित जी को मात देने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी....
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'कोमल है कमज़ोर नहीं' - हिंदी सिनेमा की कुछ सशक्त महिला कलाकारों, जिन्होंने फ़िल्म जगत में अपना अमिट छाप छोड़ा और आनेवाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनीं, को समर्पित है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह बेहद ख़ास लघु शृंखला। कल इसकी पहली कड़ी को हमनें समर्पित किया था हिंदी सिनेमा की सर्वप्रथम महिला संगीत निर्देशिका, गायिका व फ़िल्म निर्मात्री जद्दनबाई को। आज दूसरी कड़ी में ज़िक्र एक और ऐसी अदाकारा की जो फ़िल्मों के शुरुआती दौर में 'लीडिंग् लेडी' के रूप में सामने आयीं, और वह भी ऐसे समय में जब अच्छे घर की महिलाओं के लिए अभिनय का द्वार लगभग बंद के समान था। ये हैं दुर्गा खोटे। इनका जन्म १४ जनवरी १९०५ को हुआ था, जिन्होंने ५० साल की अपनी फ़िल्मी करीयर में लगभग २०० फ़िल्मों में अभिनय किया और बहुत से थिएटरों के लिए काम किए। साल २००० में प्रकाशित 'इण्डिया टूडे' की विशेष मिलेनियम अंक में दुर्गा खोटे का नाम उन १०० भारतीय नामों में शामिल था जिन्होंने भारत को किसी न किसी रूप में एक आकार दिया है। उनके लिए जो शब्द उसमें इस्तमाल किए गये थे, वो थे - "Durga Khote marks the pioneering phase for woman in Indian Cinema." ऐसा नहीं कि दुर्गा खोटे से पहले किसी महिला ने अभिनय नहीं किया, लेकिन एक इज़्ज़तदार घर से फ़िल्मों में आनेवाली वो पहली महिला थीं और उन दिनों अच्छे घरों के लड़कों को भी फ़िल्मों में जाने की इज़ाज़त नहीं थी, लड़कियों का तो सवाल ही नहीं था। दुर्गा खोटे का नाम १० सर्वश्रेठ फ़िल्मी माँओं की फ़ेहरिस्त में भी शामिल है, और माँ की भूमिका में उनकी कुछ यादगार फ़िल्में हैं 'मुग़ल-ए-आज़म' (जोधाबाई), 'भरत मिलाप' (कैकेयी), 'चरणों की दासी', 'मिर्ज़ा ग़ालिब', 'बॊबी' और उनकी आख़िरी उल्लेखनीय फ़िल्म थी 'बिदाई', जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिला था। हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री तथा दादा साहब फाल्के पुरस्कारों से भी सम्मानित किया था। आइए आज दुर्गा खोटे को सलाम करते हुए सुनें उसी फ़िल्म 'बिदाई' का एक गीत जो उन्हीं पर फ़िल्माया भी गया था।
नवंबर १९९१ को दुर्गा खोटे के निधन के बाद लिस्नर्स बुलेटिन में उन पर एक लेख प्रकाशित हुई थी; उसी का एक अंश प्रस्तुत है यहाँ पर - "सन् १९३० में श्री मोहन भवनानी वाडिया के साथ एक मूक फ़िल्म बना रहे थे। फ़िल्म लगभग पूरी हो चुकी थी। उसी समय बोलती फ़िल्मों की लहर ने भवनानी को इसी फ़िल्म में एक सवाक् अंश जोड़ने के लिए विवश किया जिसके लिए वो एक नई युवती चाहते थे। यह कार्य उन्होंने वाडिया को सौंप दिया। वाडिया शालिनी के मित्र थे। उन्होंने उस भूमिका हेतु शालिनी के समक्ष प्रस्ताव रखा जिसे शालिनी ने तुरन्त अस्वीकार कर दिया। काफ़ी आग्रह करने पर उन्होंने अपनी छोटी बहन दुर्गा का नाम प्रस्तावित किया तथा वाडिया को वह दुर्गा के पास भी ले गईं। परिस्थितिवश दुर्गा खोटे ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस प्रकार दुर्गा को प्रथम फ़िल्म 'ट्रैप्ड' उर्फ़ 'फ़रेबी जाल' (१९३१) में सिर्फ़ दस मिनट की भूमिका मिली जिसमें उनके गाए ३ गीत भी सम्मिलित थे। फ़िल्म की शूटिंग् पूरी होने पर उन्हें २५० रुपय का चेक मिला जिससे उस समय उनके आवश्यक खर्चें निकल आये। इस फ़िल्म के प्रदर्शित होनें पर दुर्गा खोटे की बड़ी दुर्गति हुई। अपनी समस्याओं का निराकरण तो दूर, उल्टे और उलझतीं गयीं किन्तु साहसिक दुर्गा न तो भटकीं और न धैर्य को छोड़ा।" और दोस्तों, इसीलिए आज 'कोमल है कमज़ोर नहीं' में हम बात कर रहे हैं इस सशक्त महिला कीं। वापस आते हैं 'बिदाई' पर; फ़िल्म 'बिदाई' की कहानी दुर्गा खोटे पर ही केन्द्रित थी। आज का प्रस्तुत गीत एक भक्ति रचना है जिसे सुमन कल्याणपुर ने गाया है। दोस्तों, गायिका सुमन कल्याणपुर की कहानी भी कम उल्लेखनीय है। लता और आशा की चमक के आगे दूसरी सभी गायिकाओं की चमक फीकी पड़ जाया करती थी। समस्त कमचर्चित पार्श्वगायिकाओं में सुमन कल्याणपुर ही थीं जिन्होंने सब से ज़्यादा गीत गाये और सब से ज़्यादा लोकप्रियता उन्हें ही मिली। उनकी आवाज़ लता जी की तरह होने की वजह से जहाँ उन्हें मौके भी मिले, लेकिन साथ ही उनके लिए एक रुकावट भी सिद्ध हुई। सुमन जी के ससुराल वालों ने भी उन्हें जनता के समक्ष आने का मौका नहीं दिया और वो गायन छोड़ने के बाद गुमनामी में चली गयीं। आइए, जिस तरह से कल हमनें जद्दनबाई के साथ साथ नरगिस जी को भी याद किया था, ठीक वैसे ही आज दुर्गा खोटे जी के साथ साथ सलाम करें सुरीली गायिका सुमन कल्याणपुर जी को भी, 'कोमल है कमज़ोर नहीं' शृंखला की दूसरी कड़ी में।
क्या आप जानते हैं...
कि सुमन कल्याणपुर का जन्म २८ जनवरी १९३७ को ढाका में हुआ था, जहाँ पर वो १९४३ तक रहीं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 03/शृंखला 12
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - अपने जमाने में इस फिल्म के गीत बहुत मकबूल हुए थे.
सवाल १ - गायिका बताएं - २ अंक
सवाल २ - संगीत किसका है - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
इस बार अंजना जी को अमित जी को मात देने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी....
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
आपने शायद इस फिल्म का एक बेहद मधुर,मर्मस्पर्शी भजन नही सुना,अन्यथा उसे ही सुना
'मैं जा रही थी मन ले के तृष्णा
अच्छे समय पे तुम आये,तुम आये,तुम आये कृष्णा'
एक एक शब्द भीतर तक एक हलचल सी मचा देता है.
आँखें स्वयम मूँद जाती है और....जैसे वो पास आके बैठ जाता और कहता है-'तुम्हे छोड़ कर कहाँ जाता मैं इंदु? मुझे तो आना ही था'
काश उस भजन को सुनाया होता.कहीं नही अड़ता,टिकता ये भजन उसके सामने.कहना नही चाहिए था.इतने दिनों बाद आई और उलाहने देने लगी.हा हा हा
क्या करूं ? ऐसिच हूँ मैं -झगडालू