सुर संगम - 12 - शास्त्रिय और लोक संगीत की होली
"आज बिरज में होरी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया
अबीर गुलाल के बादल छाए
अबीर गुलाल के बादल छाए
आज बिरज में होरी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया"
सुप्रभात! रविवार की इस रंगीन सुबह में सुर-संगम की १२वीं कड़ी लिए मैं सुमित चक्रवर्ती पुन: उपस्थित हूँ। दोस्तों क्या कभी आपने महसूस किया है कि होली के आते ही समां में कैसी मस्ती सी घुल जाती है. इससे पहले कि आप बाहर निकल कर रंग और गुलाल से जम कर होली खेलें जरा संगीत के माध्यम से अपना मूड तो सेट कर लीजिए. आज की हमारी कड़ी भी रंगों के त्योहार - होली पर ही आधारित है जिसमें हमने पारंपरिक लोक व शास्त्रीय संगीत की होली रचने की एक कोशिश की है। भारतीय त्योहारों में होली को शास्त्रीय व लोक संगीत का एक महत्त्वपूर्ण घटक माना गया है। रंगों का यह उत्सव हमारे जीवन को हर्षोल्लास व संगीत से भर देता है। फाल्गुन के महीने में पिचकारियों से निकले रंग मानो मुर्झाने वाली, शीतकालीन हवाओं को बहाकर पृथ्वी की छवि में बसंत ऋतु के जीवंत दृश्य भर देते हैं। तो आइये सुनते हैं ऐसे ही दृश्य को दर्शाती इस ठुमरी को, शोभा गुर्टू जी की आवाज़ में।
ठुमरी - आज बिरज में होरी रे रसिया
होली भारत के सबसे जीवंत व उल्लास भरे त्योहारों में से एक है। इसे देश के हर कोने में अलग-अलग और अनूठी शैलियों में मनाया जाता है जिसकी झलक मूलत: इन प्रांतों के संगीत में पाई जाती है। होली के साथ जुड़ी संगीत शैलियाँ भिन्न होते हुए भी मुख्यतः पौराणिक संदर्भ और लोककथाओं पर आधारित होती हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत शैली के मूल १० निम्नलिखित रूप हैं - ध्रुपद, धामर, होरी, ख़याल, टप्पा, चतुरांग, राग अगर, तराना, सरगम और ठुमरी। इनमें से ध्रुपद शैली को सबसे प्राचीन माना जाता है तथा बाकी सभी शैलियों का जन्म भी इसी से हुआ। 'होरी' ध्रुपद का ही सबसे लोकप्रिय रूप है जिसे होली के त्योहार पर गाया जाता है। ये रचनाएँ मुख्यतः राधा-कृष्ण के प्रेम-प्रसंग और बसंत ऋतु पर आधारित होती हैं। दिलचस्प बात यह है कि इसे शास्त्रीय व अर्धशास्त्रीय दोनों रूपों में प्रस्तुत किया जाता है। होरी को साधारणतः बसंत, काफी व खमाज आदि रागों और दीपचंदी ताल में गाया जाता है। तो चलिए क्यों न हम भी एक बार फिर से रंग जाएँ गिरिजा देवी द्वारा प्रस्तुत इस 'होरी' के रंग में।
उड़त अबीर गुलाल - गिरिजा देवी
भारतीय संगीत में जब हम होली की बात कर ही रहे हैं तो फ़िल्मी गीतों का उल्लेख करना भी अनिवार्य बन जाता है। हमारी हिन्दी फ़िल्मों में भी अक्सर होली पर आधारित गीतों को दर्शाया जाता है जो किसी न किसी राग या ठुमरी पर ही आधारित होते है। होली पर आधारित फ़िल्मी गीतों में मैं जिस गीत को नींव का पत्थर मानता हूँ वह है फ़िल्म 'नवरंग' का अत्यंत लोकप्रिय गीत - 'अरे जारे हट नटखट ना छेड़ मेरा घूँघट'। यह गीत संगीतकार सी. रामचन्द्र ने राग पहाड़ी पर रचा और इसके बोल लिखे भरत व्यास ने। इस गीत को गाया था स्वयं सी. रामचन्द्र, आशा भोंसले और महेन्द्र कपूर ने तथा गीत में दर्शाया गया था अभिनेत्री सन्ध्या को राधा-कृष्ण की अट्खेलियों को नृत्य के रूप में प्रस्तुत करते हुए। आइये आनंद लेते हैं इस रंगारंग गीत का।
अरे जा रे हट नटखट - नवरंग
और अब बारी इस कड़ी की पहेली का जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। 'सुर-संगम' के ५०-वे अंक तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से ज़्यादा अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।
सुनिए इस टुकड़े को और पहचानिए कि यह कौन सा वाद्य है।
पिछ्ली पहेली का परिणाम: अमित तिवारी जी ने गीत को और उसके राग को बिलकुल सही पहचाना और ५ अंक अर्जित कर लिए हैं। बधाई व शुभकामनाएँ!
तो लीजिए, हम आ पहुँचे हैं 'सुर-संगम' की आज की कड़ी की समाप्ति पर। आशा है आपको यह कड़ी पसन्द आई। सच मानिए तो मुझे भी बहुत आनन्द आया इस कड़ी को लिखने में। आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। हमारे और भी श्रोता व पाठक आने वाली कड़ियों को सुनें, पढ़ें तथा पहेलियों में भाग लें, इसी आशा के साथ आगामी रविवार की सुबह हम पुनः उपस्थित होंगे एक नई रोचक कड़ी लेकर, तब तक के लिए अपने मित्र सुमित चक्रवर्ती को आज्ञा दीजिए, आप सभी को होली की पुनः ढेरों शुभकामनाएँ, नमस्कार!
प्रस्तुति- सुमित चक्रवर्ती
फाल्गुन के महीने में पिचकारियों से निकले रंग मानो मुर्झाने वाली, शीतकालीन हवाओं को बहाकर पृथ्वी की छवि में बसंत ऋतु के जीवंत दृश्य भर देते हैं। तो आइये सुनते हैं ऐसे ही दृश्य को दर्शाती इस ठुमरी को, शोभा गुर्टू जी की आवाज़ में।
"आज बिरज में होरी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया
अबीर गुलाल के बादल छाए
अबीर गुलाल के बादल छाए
आज बिरज में होरी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया"
सुप्रभात! रविवार की इस रंगीन सुबह में सुर-संगम की १२वीं कड़ी लिए मैं सुमित चक्रवर्ती पुन: उपस्थित हूँ। दोस्तों क्या कभी आपने महसूस किया है कि होली के आते ही समां में कैसी मस्ती सी घुल जाती है. इससे पहले कि आप बाहर निकल कर रंग और गुलाल से जम कर होली खेलें जरा संगीत के माध्यम से अपना मूड तो सेट कर लीजिए. आज की हमारी कड़ी भी रंगों के त्योहार - होली पर ही आधारित है जिसमें हमने पारंपरिक लोक व शास्त्रीय संगीत की होली रचने की एक कोशिश की है। भारतीय त्योहारों में होली को शास्त्रीय व लोक संगीत का एक महत्त्वपूर्ण घटक माना गया है। रंगों का यह उत्सव हमारे जीवन को हर्षोल्लास व संगीत से भर देता है। फाल्गुन के महीने में पिचकारियों से निकले रंग मानो मुर्झाने वाली, शीतकालीन हवाओं को बहाकर पृथ्वी की छवि में बसंत ऋतु के जीवंत दृश्य भर देते हैं। तो आइये सुनते हैं ऐसे ही दृश्य को दर्शाती इस ठुमरी को, शोभा गुर्टू जी की आवाज़ में।
ठुमरी - आज बिरज में होरी रे रसिया
होली भारत के सबसे जीवंत व उल्लास भरे त्योहारों में से एक है। इसे देश के हर कोने में अलग-अलग और अनूठी शैलियों में मनाया जाता है जिसकी झलक मूलत: इन प्रांतों के संगीत में पाई जाती है। होली के साथ जुड़ी संगीत शैलियाँ भिन्न होते हुए भी मुख्यतः पौराणिक संदर्भ और लोककथाओं पर आधारित होती हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत शैली के मूल १० निम्नलिखित रूप हैं - ध्रुपद, धामर, होरी, ख़याल, टप्पा, चतुरांग, राग अगर, तराना, सरगम और ठुमरी। इनमें से ध्रुपद शैली को सबसे प्राचीन माना जाता है तथा बाकी सभी शैलियों का जन्म भी इसी से हुआ। 'होरी' ध्रुपद का ही सबसे लोकप्रिय रूप है जिसे होली के त्योहार पर गाया जाता है। ये रचनाएँ मुख्यतः राधा-कृष्ण के प्रेम-प्रसंग और बसंत ऋतु पर आधारित होती हैं। दिलचस्प बात यह है कि इसे शास्त्रीय व अर्धशास्त्रीय दोनों रूपों में प्रस्तुत किया जाता है। होरी को साधारणतः बसंत, काफी व खमाज आदि रागों और दीपचंदी ताल में गाया जाता है। तो चलिए क्यों न हम भी एक बार फिर से रंग जाएँ गिरिजा देवी द्वारा प्रस्तुत इस 'होरी' के रंग में।
उड़त अबीर गुलाल - गिरिजा देवी
भारतीय संगीत में जब हम होली की बात कर ही रहे हैं तो फ़िल्मी गीतों का उल्लेख करना भी अनिवार्य बन जाता है। हमारी हिन्दी फ़िल्मों में भी अक्सर होली पर आधारित गीतों को दर्शाया जाता है जो किसी न किसी राग या ठुमरी पर ही आधारित होते है। होली पर आधारित फ़िल्मी गीतों में मैं जिस गीत को नींव का पत्थर मानता हूँ वह है फ़िल्म 'नवरंग' का अत्यंत लोकप्रिय गीत - 'अरे जारे हट नटखट ना छेड़ मेरा घूँघट'। यह गीत संगीतकार सी. रामचन्द्र ने राग पहाड़ी पर रचा और इसके बोल लिखे भरत व्यास ने। इस गीत को गाया था स्वयं सी. रामचन्द्र, आशा भोंसले और महेन्द्र कपूर ने तथा गीत में दर्शाया गया था अभिनेत्री सन्ध्या को राधा-कृष्ण की अट्खेलियों को नृत्य के रूप में प्रस्तुत करते हुए। आइये आनंद लेते हैं इस रंगारंग गीत का।
अरे जा रे हट नटखट - नवरंग
और अब बारी इस कड़ी की पहेली का जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। 'सुर-संगम' के ५०-वे अंक तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से ज़्यादा अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।
सुनिए इस टुकड़े को और पहचानिए कि यह कौन सा वाद्य है।
पिछ्ली पहेली का परिणाम: अमित तिवारी जी ने गीत को और उसके राग को बिलकुल सही पहचाना और ५ अंक अर्जित कर लिए हैं। बधाई व शुभकामनाएँ!
तो लीजिए, हम आ पहुँचे हैं 'सुर-संगम' की आज की कड़ी की समाप्ति पर। आशा है आपको यह कड़ी पसन्द आई। सच मानिए तो मुझे भी बहुत आनन्द आया इस कड़ी को लिखने में। आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। हमारे और भी श्रोता व पाठक आने वाली कड़ियों को सुनें, पढ़ें तथा पहेलियों में भाग लें, इसी आशा के साथ आगामी रविवार की सुबह हम पुनः उपस्थित होंगे एक नई रोचक कड़ी लेकर, तब तक के लिए अपने मित्र सुमित चक्रवर्ती को आज्ञा दीजिए, आप सभी को होली की पुनः ढेरों शुभकामनाएँ, नमस्कार!
प्रस्तुति- सुमित चक्रवर्ती
आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.
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होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
सुमित चक्र्वर्ती