ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 433/2010/133
तो दोस्तों, कहिए आपके शहर में बारिश शुरु हुई कि नहीं! अगर हाँ, तो भई आप बाहर हो रही बारिश को अपनी खिड़की से झांक झांक कर देखिए, उसका मज़ा लीजिए, और साथ ही 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों चल रही शृंखला 'रिमझिम के तराने' का भी आनंद लीजिए। और अगर अभी तक आपके शहर में, आपके गाँव में बरखा रानी की कृपा अभी तक नहीं हो पायी है, तो फिर आप केवल इन गीतों को ही सुन कर ठंडक की अनुभूति कर सकते हैं। ख़ैर, आज इस शृंखला की तीसरी कड़ी में बरसात के साथ हम मिला रहे हैं मिलन का रंग। पहली कड़ी में हमने ज़िक्र किया था कि बरसात के साथ अक्सर जुदाई के दर्द को जोड़ा जाता है। लेकिन आज जिस गीत को हमने चुना है, वह है मिलन की मस्ती का। लता मंगेशकर और साथियों की आवाज़ों में सन् १९४९ की राज कपूर की दूसरी निर्मित व निर्देशित फ़िल्म 'बरसात' का शीर्षक गीत "बरसात में तुम से मिले हम सजन हम से मिले तुम"। शैलेन्द्र का गीत और शंकर-जयकिशन का संगीत। हालाँकि शंकर जयकिशन ने विविध रागों का इस्तेमाल अपने गीतों में किया है, लेकिन राग भैरवी का इस्तेमाल जैसे उनका एक ऒबसेशन हुआ करता था। अपने पहले ही फ़िल्म से उन्होने इस राग इस्तेमाल शुरु किया। इस राग की खासियत ही यह है कि चाहे ख़ुशी का गीत हो या ग़म का, हर मूड को उभारने के लिए इस राग का इस्तेमाल हो सकता है। अब देखिए ना, इसी फ़िल्म में जहाँ एक तरफ़ इस मस्ती भले ख़ुशमिज़ाज गीत को इस राग पर आधारित किया गया है, वहीं दूसरी ओर दर्द भरा गीत "छोड़ गए बालम मुझे हाए अकेला छोड़ गए" और "मैं ज़िंदगी में हरदम रोता ही रहा हूँ" भी इसी राग पर आधारित है। जयकिशन साहब तो इस क़दर दीवाने थे इस राग के कि उन्होने अपनी बेटी का नाम तक भैरवी रख दिया।
दोस्तों, फ़िल्म 'बरसात' की बातें तो हमने पहले भी की है इस स्तंभ में, और ख़ुद मुकेश के शब्द भी पढ़े हैं जिनमें उन्होने राज कपूर के बारे में कहते हुए इस फ़िल्म के बनने की कहानी बताई थी अमीन सायानी के एक इंटरव्यू में। दोस्तों, बात चल रही थी राग भैरवी की। युं तो शंकर जयकिशन ने इस राग का बेशुमार इस्तेमाल किया है, लेकिन आश्चर्य की बात है कि इस राग का बहुत ही कम इस्तेमाल बारिश से संबंधित गीतों में हुआ है। इस गीत के अलावा शंकर-जयकिशन के जिस गीत में इस राग की झलक मिलती है वह है फ़िल्म 'सांझ और सवेरा' में मोहम्मद रफ़ी और सुमन कल्याणपुर का गाया हुआ "अजहूँ ना आए बालमा, सावन बीता जाए"। इसके अलावा तो मैं कोई और गीत इस जोड़ी का ढूंढ़ नहीं पाया जो बारिश का भी हो और भैरवी पर भी आधारित हो। सिर्फ़ एस.जे का ही क्यों, किसी और संगीतकार द्वारा स्वरबद्ध ऐसा गीत भी मिलना मुश्किल है। बस बर्मन दादा रचित फ़िल्म 'मेरी सूरत तेरी आँखें" में रफ़ी साहब का गाया हुआ गीत है "नाचे मन मोरा मगन तिक ता धिकि धिकि, बदरा घिर आए, ऋत है भीगी भीगी" जिसका आधार भी भैरवी है। दरअसल हक़ीक़त यह है कि जब भी कभी राग आधारित बारिश के गाने की बात आती है तो संगीतकारों का ध्यान सब से पहले मेघ, मेघ मल्हार, मिया की मल्हार, सुर मल्हार जैसे रागों की तरफ़ ही जाता रहा है। तो लीजिए दोस्तों, आज 'रिमझिम के तराने' को करते हैं भैरवी के नाम और सुनते हैं फ़िल्म 'बरसात' का यह मचलता हुआ नग़मा।
क्या आप जानते हैं...
कि संगीतकार शंकर-जयकिशन के शंकरसिंह रघुवंशी को आमतौर पर लोग हैदराबादी समझते हैं, लेकिन वो मूलत: वहाँ के नहीं हैं। उनके पिता रामसिंह रघुवंशी मध्य प्रदेश के थे और काम के सिलसिले में हैदराबाद जाकर बस गए थे।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. फिल्म के नाम में शब्द है "मकान". गीतकार बताएं -३ अंक.
२. ऋषिकेश मुखर्जी की इस फिल्म में अभिनेत्री कौन है - २ अंक.
३. संगीतकार और गायक एक ही हैं. नाम बताएं - १ अंक.
४. मुखड़े में शब्द है "बरखा", गीत के बोल बताएं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी ३ अंक, अवध जी, इंदु जी और उज्जवल जी २-२ अंकों के लिए बधाई आप सबको, कम से कम सारे सवालों के उत्तर तो आये
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
तो दोस्तों, कहिए आपके शहर में बारिश शुरु हुई कि नहीं! अगर हाँ, तो भई आप बाहर हो रही बारिश को अपनी खिड़की से झांक झांक कर देखिए, उसका मज़ा लीजिए, और साथ ही 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों चल रही शृंखला 'रिमझिम के तराने' का भी आनंद लीजिए। और अगर अभी तक आपके शहर में, आपके गाँव में बरखा रानी की कृपा अभी तक नहीं हो पायी है, तो फिर आप केवल इन गीतों को ही सुन कर ठंडक की अनुभूति कर सकते हैं। ख़ैर, आज इस शृंखला की तीसरी कड़ी में बरसात के साथ हम मिला रहे हैं मिलन का रंग। पहली कड़ी में हमने ज़िक्र किया था कि बरसात के साथ अक्सर जुदाई के दर्द को जोड़ा जाता है। लेकिन आज जिस गीत को हमने चुना है, वह है मिलन की मस्ती का। लता मंगेशकर और साथियों की आवाज़ों में सन् १९४९ की राज कपूर की दूसरी निर्मित व निर्देशित फ़िल्म 'बरसात' का शीर्षक गीत "बरसात में तुम से मिले हम सजन हम से मिले तुम"। शैलेन्द्र का गीत और शंकर-जयकिशन का संगीत। हालाँकि शंकर जयकिशन ने विविध रागों का इस्तेमाल अपने गीतों में किया है, लेकिन राग भैरवी का इस्तेमाल जैसे उनका एक ऒबसेशन हुआ करता था। अपने पहले ही फ़िल्म से उन्होने इस राग इस्तेमाल शुरु किया। इस राग की खासियत ही यह है कि चाहे ख़ुशी का गीत हो या ग़म का, हर मूड को उभारने के लिए इस राग का इस्तेमाल हो सकता है। अब देखिए ना, इसी फ़िल्म में जहाँ एक तरफ़ इस मस्ती भले ख़ुशमिज़ाज गीत को इस राग पर आधारित किया गया है, वहीं दूसरी ओर दर्द भरा गीत "छोड़ गए बालम मुझे हाए अकेला छोड़ गए" और "मैं ज़िंदगी में हरदम रोता ही रहा हूँ" भी इसी राग पर आधारित है। जयकिशन साहब तो इस क़दर दीवाने थे इस राग के कि उन्होने अपनी बेटी का नाम तक भैरवी रख दिया।
दोस्तों, फ़िल्म 'बरसात' की बातें तो हमने पहले भी की है इस स्तंभ में, और ख़ुद मुकेश के शब्द भी पढ़े हैं जिनमें उन्होने राज कपूर के बारे में कहते हुए इस फ़िल्म के बनने की कहानी बताई थी अमीन सायानी के एक इंटरव्यू में। दोस्तों, बात चल रही थी राग भैरवी की। युं तो शंकर जयकिशन ने इस राग का बेशुमार इस्तेमाल किया है, लेकिन आश्चर्य की बात है कि इस राग का बहुत ही कम इस्तेमाल बारिश से संबंधित गीतों में हुआ है। इस गीत के अलावा शंकर-जयकिशन के जिस गीत में इस राग की झलक मिलती है वह है फ़िल्म 'सांझ और सवेरा' में मोहम्मद रफ़ी और सुमन कल्याणपुर का गाया हुआ "अजहूँ ना आए बालमा, सावन बीता जाए"। इसके अलावा तो मैं कोई और गीत इस जोड़ी का ढूंढ़ नहीं पाया जो बारिश का भी हो और भैरवी पर भी आधारित हो। सिर्फ़ एस.जे का ही क्यों, किसी और संगीतकार द्वारा स्वरबद्ध ऐसा गीत भी मिलना मुश्किल है। बस बर्मन दादा रचित फ़िल्म 'मेरी सूरत तेरी आँखें" में रफ़ी साहब का गाया हुआ गीत है "नाचे मन मोरा मगन तिक ता धिकि धिकि, बदरा घिर आए, ऋत है भीगी भीगी" जिसका आधार भी भैरवी है। दरअसल हक़ीक़त यह है कि जब भी कभी राग आधारित बारिश के गाने की बात आती है तो संगीतकारों का ध्यान सब से पहले मेघ, मेघ मल्हार, मिया की मल्हार, सुर मल्हार जैसे रागों की तरफ़ ही जाता रहा है। तो लीजिए दोस्तों, आज 'रिमझिम के तराने' को करते हैं भैरवी के नाम और सुनते हैं फ़िल्म 'बरसात' का यह मचलता हुआ नग़मा।
क्या आप जानते हैं...
कि संगीतकार शंकर-जयकिशन के शंकरसिंह रघुवंशी को आमतौर पर लोग हैदराबादी समझते हैं, लेकिन वो मूलत: वहाँ के नहीं हैं। उनके पिता रामसिंह रघुवंशी मध्य प्रदेश के थे और काम के सिलसिले में हैदराबाद जाकर बस गए थे।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. फिल्म के नाम में शब्द है "मकान". गीतकार बताएं -३ अंक.
२. ऋषिकेश मुखर्जी की इस फिल्म में अभिनेत्री कौन है - २ अंक.
३. संगीतकार और गायक एक ही हैं. नाम बताएं - १ अंक.
४. मुखड़े में शब्द है "बरखा", गीत के बोल बताएं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी ३ अंक, अवध जी, इंदु जी और उज्जवल जी २-२ अंकों के लिए बधाई आप सबको, कम से कम सारे सवालों के उत्तर तो आये
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
तेरे लिए मन तरसे
अवध लाल