दोस्तों यूँ तो आज शुक्रवार है, यानी किसी ताज़े अपलोड का दिन, पर नए संगीत के इस सफर को जरा विराम देकर आज हम आपको मिलवाने जा रहे हैं आवाज़ के एक नए वाहक से. दोस्तों आपको याद होगा हर रविवार हम आपके लिए लेकर आते थे शृंखला "रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत". जो हमारे नए श्रोता हैं वो पुरानी कड़ियों का आनंद यहाँ ले सकते हैं. कुछ दिनों तक इसे सजीव सारथी सँभालते रहे फिर काम बढ़ा तो तलाश हुई किसी ऐसे प्रतिनिधि की जो इस काम को संभाले. क्योंकि इस काम पे लगभग आपको पूरे हफ्ते का समय देना पड़ता था, दुर्लभ गीतों की खोज, फिर आलेख जिसमें विविधता आवश्यक थी. दीपाली दिशा आगे आई और कुछ कदम इस कार्यक्रम को और आगे बढ़ा दिया, उनके बाद किसी उचित प्रतिनिधि के अभाव में हमें ये श्रृखला स्थगित करनी पड़ी. पर कुछ दिनों पहले आवाज़ से जुड़े एक नए श्रोता मुवीन जुड़े और उनसे जब आवाज़ के संपादक सजीव ने इस शृंखला का जिक्र किया तो उन्होंने स्वयं इस कार्यक्रम को फिर से अपने श्रोताओं के लिए शुरू करने की इच्छा जतलाई. तो दोस्तों हम बेहद खुशी के साथ आपको बताना चाहेंगें कि इस रविवार से मुवीन आपके लिए फिर से लेकर आयेंगें रविवार सुबह की कॉफी से संग कुछ बेहद बेहद दुर्लभ और नायाब गीत. जिन्हें आप हमेशा हमेशा सजेह कर रखना चाहेंगें. लेकिन पहले आपका परिचय मुवीन से करवा दें.
नाम : मुवीन
जन्म स्थान : गाँव दुलखरा, जिला बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश
जन्मतिथि : ०६ मार्च, १९८१
शिक्षा : स्नातक
कार्य क्षेत्र : दिल्ली में प्राइवेट कम्पनी में नौकरी
तीसरी कक्षा पास की ही थी कि पिताजी गर्मियों कि छुट्टियों में दिल्ली घुमाने सपरिवार लेकर आये. आए दिल्ली घूमने के लिए और यहीं के होकर रह गए, ये बात १९८८ की है. बचपन से ही गीत सुनने और गुनगुनाने का शौक था. गाँव के स्कूल में कोई कार्यक्रम ऐसा नहीं होता था जिसमें मैंने न गाया हो ये सिलसिला दसवीं कक्षा तक चलता रहा. उसके बाद कुछ पढाई के दबाव के कारण सिलसिला टूट गया और आज तक नहीं जुड़ पाया.
मगर सुनने का शौक अब भी बरक़रार रहा. गीतों का संग्रह करने का विचार पहली बार १९९६ में आया और लगभग ५०० से ज्यादा ऑडियो केसेट संग्रह कर जमां कर लीं. कुछ खरीदी तो कुछ में अपनी पसंद के गीत खाली केसेट में रिकॉर्ड करवाए. अभी संग्रह करने की प्यास लगी ही थी कि प्रोधिगिकी ने ऐसी करवट बदली के ऑडियो केसेट की जगह CD ने ले ली. खैर उन गीतों को CD में उतारा. आज जब कंप्यूटर का ज़माना है तो ऑडियो केसेट या CD दोनों को पीछे छोड़ दिया.
आज मेरे संग्रह की शुरुआत १९०५ में गाये हुए रागों से होती है जो अब्दुल करीम (११ नवम्बर, १८७२-१९३७) के हैं. इसके अलावा अमीर खान, अनजानीबाई, आज़मबाई, अजमत खान, बड़े गुलाम अली खान, बड़ी मोती बाई, फैय्याज खान, गौहर जाँ आदि का संग्रह है. भारतीय संगीत को सुनना और इसकी जानकारी को उन संगीत प्रेमियों तक पहुचाना अच्छा लगता है जिन तक ये संगीत किसी न किसी वजह से नहीं पहुच सका.
मैं किसी विशेष गायक या गायिका, संगीतकार, गीतकार इत्यादि की सीमा में बंधकर नहीं रहा सभी के गीतों को सामान आदर के साथ सुनता हूँ. लेकिन फिर भी मोहम्मद रफ़ी साब की आवाज़, नौशाद अली, शंकर जयकिशन का संगीत और मजरूह सुल्तानपुरी, शैलेन्द्र की शायरी कुछ ज्यादा ही मुझपर असर करती है.
संपर्क : -
anwarsaifi@gmail.com
+91 9971748099
नाम : मुवीन
जन्म स्थान : गाँव दुलखरा, जिला बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश
जन्मतिथि : ०६ मार्च, १९८१
शिक्षा : स्नातक
कार्य क्षेत्र : दिल्ली में प्राइवेट कम्पनी में नौकरी
तीसरी कक्षा पास की ही थी कि पिताजी गर्मियों कि छुट्टियों में दिल्ली घुमाने सपरिवार लेकर आये. आए दिल्ली घूमने के लिए और यहीं के होकर रह गए, ये बात १९८८ की है. बचपन से ही गीत सुनने और गुनगुनाने का शौक था. गाँव के स्कूल में कोई कार्यक्रम ऐसा नहीं होता था जिसमें मैंने न गाया हो ये सिलसिला दसवीं कक्षा तक चलता रहा. उसके बाद कुछ पढाई के दबाव के कारण सिलसिला टूट गया और आज तक नहीं जुड़ पाया.
मगर सुनने का शौक अब भी बरक़रार रहा. गीतों का संग्रह करने का विचार पहली बार १९९६ में आया और लगभग ५०० से ज्यादा ऑडियो केसेट संग्रह कर जमां कर लीं. कुछ खरीदी तो कुछ में अपनी पसंद के गीत खाली केसेट में रिकॉर्ड करवाए. अभी संग्रह करने की प्यास लगी ही थी कि प्रोधिगिकी ने ऐसी करवट बदली के ऑडियो केसेट की जगह CD ने ले ली. खैर उन गीतों को CD में उतारा. आज जब कंप्यूटर का ज़माना है तो ऑडियो केसेट या CD दोनों को पीछे छोड़ दिया.
आज मेरे संग्रह की शुरुआत १९०५ में गाये हुए रागों से होती है जो अब्दुल करीम (११ नवम्बर, १८७२-१९३७) के हैं. इसके अलावा अमीर खान, अनजानीबाई, आज़मबाई, अजमत खान, बड़े गुलाम अली खान, बड़ी मोती बाई, फैय्याज खान, गौहर जाँ आदि का संग्रह है. भारतीय संगीत को सुनना और इसकी जानकारी को उन संगीत प्रेमियों तक पहुचाना अच्छा लगता है जिन तक ये संगीत किसी न किसी वजह से नहीं पहुच सका.
मैं किसी विशेष गायक या गायिका, संगीतकार, गीतकार इत्यादि की सीमा में बंधकर नहीं रहा सभी के गीतों को सामान आदर के साथ सुनता हूँ. लेकिन फिर भी मोहम्मद रफ़ी साब की आवाज़, नौशाद अली, शंकर जयकिशन का संगीत और मजरूह सुल्तानपुरी, शैलेन्द्र की शायरी कुछ ज्यादा ही मुझपर असर करती है.
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Sujoy Chatterjee
muveen