ताज़ा सुर ताल २७/२०१०
विश्व दीपक - नमस्कार दोस्तों! 'ताज़ा सुर ताल' में आज हम जिस फ़िल्म के गीतों को लेकर आए हैं, उसके बारे में तो हमने पिछली कड़ी में ही आपको बता दिया था, इसलिए बिना कोई भूमिका बाँधे आपको याद दिला दें कि आज की फ़िल्म है 'आयशा'।
सुजॊय - अमित त्रिवेदी के संगीत से सजे फ़िल्म 'उड़ान' के गानें पिछले हफ़्ते हमने सुने थे, और आज की फ़िल्म 'आयशा' में भी फिर एक बार उन्ही का संगीत है। शायद अब तक हम 'उड़ान' के गीतों को सुनते नहीं थके थे कि एक और ज़बरदस्त ऐल्बम के साथ अमित हाज़िर हैं। मैं कल जब 'आयशा' के गीतों को सुन रहा था विश्व दीपक जी, मुझे ऐसा लगा कि 'देव-डी' और 'उड़ान' से ज़्यादा वरायटी 'आयशा' में अमित ने पैदा की है। इससे पहले कि वो ख़ुद को टाइप-कास्ट कर लेते और उनकी तरफ़ भी उंगलियाँ उठनी शुरु हो जाती, उससे पहले ही वे अपने स्टाइल में नयापन ले आए।
विश्व दीपक - 'आयशा' के गानें लिखे हैं जावेद अख़्तर साहब ने। पार्श्वगायक की हैसियत से में इस ऐल्बम में नाम शामिल हैं अमित त्रिवेदी, अनुष्का मनचन्दा, नोमान पिण्टो, निखिल डी'सूज़ा, रमण महादेवन, सम्राट कौशल, अनुषा मणि, ऐश किंग और तोची रैना की। दो एक नामों को छोड़ कर बाक़ी सभी नाम नए हैं। निखिल और नोमान की आवाज़ें हमने पिछले हफ़्ते की फ़िल्म 'उड़ान' में भी सुनी थी।
सुजॊय - अभी पिछले शनिवार की ही बात है, गायक अभिजीत 'ज़ी बांगला' के एक टॊक शो में पधारे थे। उसमें बातों बातों में जब आज के गीत संगीत की चर्चा छिड़ी, तो उन्होने कहा कि कुछ साल पहले तक लोग कुमार शानू, उदित नारायण, सोनू निगम, अभिजीत जैसी आवाज़ों को अलग अलग पहचानते थे, गीत सुन कर बोल देते थे कि किस संगीतकार की धुन है, लेकिन आज फ़िल्म संगीत ऐसा हो गया है कि गीत सुनने के बाद ना गायक के नाम का अनुमान लगाया जा सकता है और ना ही संगीतकार का। विश्व दीपक जी, आप बताइए, क्या आपको लगता है कि बहुत ज़्यादा फ़्रेश टैलेण्ट्स को अगर गायक के रूप में मौके दिए जाएँ तो फ़िल्मी गीतों की लोकप्रियता पर विपरीत असर पड़ेगा? मुझे कुछ कुछ ऐसा लगता है कि अत्यधिक नई आवाज़ें श्रोताओं को डिस्ट्रैक्ट करती है। किसी आवाज़ को लोगों के दिलों में बिठाने के लिए उससे कई गीत गवाने ज़रूरी हैं।
विश्व दीपक - सुजॊय जी, मैं अभिजीत जी के बात से पूरी तरह सहमत नहीं। हाँ, इतना तो है कि हमें अपने स्थापित गायकों को मौका देते रहना चाहिए ताकि श्रोता भी उन स्थापित कलाकारों के नाम से खुद को जोड़ सकें। इससे गाने को भी लोकप्रियता हासिल होगी। लेकिन बस कुछ हीं कलाकारों के साथ काम करने से दूसरे प्रतिभावान गायकों की अनदेखी होने का खतरा है.. पुराने समय में इतनी सारी सुविधाएँ मौजूद नहीं थी इसलिए संगीतकारों के पास नए-नए लोग कम हीं आते थे.. पर अब "इंटरनेट बूम" के बाद अपनी आवाज़ को संगीतकार के पास पहुँचाने के हज़ार जरिये हैं और संगीतकार भी बस साज़ों के साथ प्रयोग करने तक हीं सीमित नहीं रहे, वे अब आवाज़ के साथ भी प्रयोग करना चाहते हैं। अब जब इतने सारे विकल्प उपलब्ध हैं तो वे एक हीं के साथ जुड़कर क्यों रहें? और फिर अगर किसी गायक में क्षमता है कि वो अपने आप को किसी संगीतकार के लिए "जरूरी" साबित कर दे तो संगीतकार भी दूसरे किसी विकल्प के बारे में नहीं सोचेगा। हर संगीतकार के पास ऐसे एक या दो गायक जरूर हीं होते है। आप "कैलाश खेर" , "सुखविंदर", "के के", "मोहित चौहान" या फिर "श्रेया घोषाल" को हीं देख लीजिए.. भले हीं हज़ार गायक हों, लेकिन इनकी आवाज़ अमूमन हर एलबम में सुनाई पड़ हीं जाती है। जहाँ तक "संगीत" सुनकर "संगीतकार" पहचानने की बात है तो अभी भी हर संगीतकार अपना एक स्पेशल टच जरूर हीं रखता है, जिसे सुनते हीं लोग संगीतकार का नाम जान लेते हैं। हाँ, कुछ गाने या फिर कुछ जौनर ऐसे हैं, जिन्हें सुनकर संगीतकार के बारे में ठीक-ठीक जाना नहीं जा सकता, लेकिन मेरे हिसाब से यह अच्छी बात है। इससे साबित होता है कि हर संगीतकार आजकल आगे बढ रहा है, कोई भी एक जगह ठहरकर नहीं रहना चाहता। इसलिए सभी हर क्षेत्र में निपुण होने की कोशिश कर रहे हैं। यह "संगीत" के लिए अच्छी खबर है। नहीं तो पहले यह होता था कि अगर "ड्र्म्स" का इस्तेमाल सही हुआ है तो ये "एल-पी" हैं हैं। दूसरा कोई संगीतकार वैसा जादू तैयार कर हीं नहीं पाता था। आजकल टेक्नोलॉजी इतनी विकसित हो गई है कि ऐसी किसी कमी की संभावना हीं खत्म हो गई है।
सुजॊय - विश्व दीपक जी, इस बहस को विराम देते हैं और सुनते हैं फ़िल्म 'आयशा' का पहला गीत जिसे गाया है अमित त्रिवेदी और ऐश किंग ने।
गीत: सुनो आएशा
विश्व दीपक - फ़िल्म का शीर्षक गीत हमने सुना। एक पेपी नंबर, लेकिन जिन साज़ों का इस्तेमाल हुआ है, और ऒरकेस्ट्रेशन जिस तरह का किया गया है, अरेंजमेण्ट में एक नवीनता है। अमित का संगीत संयोजन किसी दूसरे संगीतकार से नहीं मिलता, यही उनकी ख़ासियत है। गाने का जो बेसिक रीदम पैटर्ण है, वो कुछ कुछ फ़िल्म 'दोस्ताना' के "जाने क्यों दिल चाहता है" गीत जैसा है, और कुछ कुछ "जब मिला तू" जैसा भी है। लेकिन ’आयशा' के इस गीत को इन गीतों से नर्म अंदाज़ में गाया गया है। ऐश किंग ने अमित का अच्छा साथ दिया है इस गीत में। आपको याद दिला दें कि ये वही ऐश किंग हैं जिन्होने पिछले साथ फ़िल्म 'दिल्ली-६' में "दिल गिरा दफ़्फ़तन" गाया था।
सुजॊय - आपने संगीत संयोजन का ज़िक्र किया, तो मैं इस बात पर प्रकाश डालना चाहूँगा कि इस गीत में सैक्सोफ़ोन का ख़ासा इस्तेमाल हुआ है, और इससे याद अया कि अभी हाल ही में जाने माने सैक्सोफ़ोनिस्ट मनोहारी सिंह, यानी कि मनोहारी दादा का देहावसान हो गया जो फ़िल्म इंडस्ट्री के मशहूर सैक्सोफ़ोनिस्ट और फ़्ल्युटिस्ट रहे हैं। तो इस गीत को हम अपनी तरफ़ से मनोहारी दादा के नाम डेडिकेट करते हुए उन्हे अपनी श्रद्धांजली अर्पित करते हैं।
विश्व दीपक - यह बहुत अच्छी बात कही आपने। 'ताजा सुर ताल' के ज़रिए गुज़रे ज़माने के अज़ीम फ़नकारों को श्रद्धांजलि से बढ़कर और अच्छी बात क्या हो सकती है! चलिए इस थिरकते गीत से जो सुरीली शुरुआत हुई है इस ऐल्बम की, अब आगे बढ़ते हैं और सुनते हैं फ़िल्म का दूसरा गीत तोची रैना की आवाज़ में।
गीत: गल मिठि मिठि (मीठी मीठी) बोल
सुजॊय - भई ऐसा कह सकते हैं कि 'आयशा' ऐल्बम में जो पंजाबी तड़का अमित त्रिवेदी ने लगाया है, उसी का स्वाद चख रहे थे हम। गीत के बोल भी पूरी तरह से पंजाबी हैं और पाश्चात्य रीदम और साज़ों के साथ फ़्युज़ किया गया है। बीट्स धीमी हैं और पंजाबी भंगड़े की तरह फ़ास्ट रीदम नहीं है। वैसे यह गीत आपको 'लव आजकल' के "आहुँ आहुँ" की याद दिला हीं जाता है। आपको याद दिला दें कि तोची रैना ने अमित त्रिवेदी के लिए "ओ परदेसी" गीत गाया था 'देव-डी' में जिसे ख़ूब सराहना मिली थी।
विश्व दीपक - युं तो आज के दौर में लगभग सभी फ़िल्मों में पंजाबी गीत होते ही हैं, लेकिन यह गीत लीक से हट के है। इस गीत में वो सब बातें मौजूद हैं जो इसे लोकप्रियता की पायदानों पे चढने में मदद करेंगे। देखते हैं जनता का क्या फ़ैसला होता है! और अब फ़िल्म का तीसरा गीत। यह है अमित त्रिवेदी और नोमान पिण्टो का गाया "शाम भी कोई जैसे है नदी"। जावेद साहब का शायराना अंदाज़ है इस गीत में, आइए सुनते हैं।
गीत: शाम भी कोई जैसे है नदी (बूम बूम बूम परा)
सुजॊय - यह गीत भी अपना छाप छोड़ हीं जाती है। अरेंजमेण्ट ऐसा है गाने का कि ऐसा लगता है जैसे कोई युवक हाथ में गीटार लिए आपके ही सामने बैठे गा रहा हो बिल्कुल लाइव! और यही बात आकर्षित करती है इस गीत की तरफ़। अमित और नोमान ने जिस नरमी और फ़ील के साथ गाने को गाया है, और धुन भी उतना ही मेलोडियस! एक कर्णप्रिय यूथ अपील इस गीत से छलकती है।
विश्व दीपक - हाँ, और यह तो बिल्कुल अमित त्रिवेदी टाइप का गाना है। इस गीत को रॉक शैली में भी बनाया जा सकता था, लेकिन उससे शायद फ़ील कम हो जाती। इस तरह के नरम बोलों के लिए इस तरह का म्युज़िक अरेंजमेण्ट बिलकुल सटीक है।
सुजॊय - अच्छा, हमने इस फ़िल्म के अभिनेताओं का ज़िक्र तो किया ही नहीं! फ़िल्म 'आयशा' में नायक हैं अभय देओल और नायिका हैं सोनम कपूर। यानी कि आयशा बनी हैं सोनम कपूर। सोनम भी फ़िल्म दर फ़िल्म अपने कैरियर की सीढ़ियाँ चढ़ती जा रही हैं। 'दिल्ली-६' और ' आइ हेट लव स्टोरीज़' में उनके अभिनय को सराहा गया, और शायद 'आयशा' में भी वो सफल रहेंगी। अभय देओल अपना एक लो-प्रोफ़ाइल मेनटेन करते हैं लेकिन तीनों भाइयों की अगर बात करें तो मुझे तो सनी और बॊबी से ज़्यादा अभय की ऐकटिंग ज़्यादा जँचती है। ख़ैर, पसंद अपनी-अपनी ख़याल अपना-अपना। लीजिए सुनिए 'आएशा' का चौथा गाना।
गीत: बहके बहके नैन
विश्व दीपक - बहके बहके अंदाज़ में यह गीत गाया है अनुष्का मनचन्दा, सम्राट कौशल और रमण महादेवन ने। पूरी तरह से कारनिवल फ़ील लिए हुए है। हिंदी और अंग्रेज़ी के बोलों का संतुलित संगम है यह गीत। सम्राट और रमण ने जहाँ अंग्रेज़ी बोलों के साथ पूरा न्याय किया है, वहीं अनुष्का भी अपनी गायकी का लोहा मनवाने में कामयाब रही हैं। जिस तरह की अदायगी, जिस तरह का थ्रो इस गाने में चाहिए था, अनुष्का ने उसका पूरा पूरा ख़याल रखा। ऐकॊरडिओन की ध्वनियाँ इस गीत में सुनने को मिलती है, और जो हमें याद दिलाती है शंकर जयकिशन की।
सुजॊय - पूरी तरह से एक डांस नंबर है यह गीत और जैसा कि आपने कहा कि कारनिवल गीत, तो कुछ इसी तरह के कारनिवल गीतों की याद दिलाएँ आप सब को। फ़िल्म 'धूम' में "सलामी", 'धूम-२' में "टच मी डोण्ट टच मी सोणीया", 'हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड' में "प्यार की ये कहानी सुनों", ये सभी इसी जौनर में आते हैं।
विश्व दीपक - हाँ, और इन सब गीतों में करीबीयन, अरबी और कुछ कुछ गोवन (पोर्चुगीज़) संगीत की छाप नज़र आती है। और ऐसे गीतों में लैटिन नृत्य शैली का ख़ास तौर से प्रयोग होता है। इस गीत से एक मूड बन गया है, तो इस मूड को थोड़ा सा बदलते हुए एक बिल्कुल ही अलग किस्म का गीत सुनते हैं।
गीत: लहरें
सुजॊय - "खोयी खोयी सी हूँ मैं, क्यों ये दिल का हाल है, धुंधले सारे ख़्वाब हैं, उलझा हर ख़याल है, सारी कलियाँ मुरझा गईं, लोग उनके यादों में रह गए, सारे घरोंदे रेत के, लहरें आईं लहरों में मिल गए" - एक बेहतरीन गीत, शब्दों के लिहाज़ से, संगीत के लिहाज़ से और गायकी के लिहाज़ से भी। अनुषा मणि की मुख्य आवाज़ थी इस गीत में जिसे उन्होने एक हस्की फ़ील के साथ गाया। नोमान पिण्टो और निखिल डी'सूज़ा ने वोकल बैकिंग दी।
विश्व दीपक - हर तरह से यह गीत इस ऐल्बम का सर्वश्रेष्ठ गीत है, और हो सकता है कि अनुषा मणि पिछले साल "इकतारा" के कविता सेठ की तरह इस बार फ़िल्मफ़ेयर के सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार हासिल कर लें। अब तक इस फ़िल्म के जितने भी गानें हमने सुनें, किसी भी गीत से हताशा नहीं हुई और हर एक गीत में कुछ ना कुछ अच्छी बात दिल को छू गई। तो अब जो इस फ़िल्म का एक अंतिम गीत बचा है, उसे भी सुनते चलें।
सुजॊय - ज़रूर!
गीत: बाइ दि वे
सुजॊय - जिस तरह से ऐल्बम की सुरीली शुरुआत हुई थी "सुनो आयशा" गीत के साथ, उतना ही धमाकेदार समापन हुआ अनुष्का मनचन्दा और नोमान पिण्टो के गाए इस फ़ास्ट डान्स नंबर से। इस रॉक पॊप सॊंग में अनुष्का जिस तरह से बोलती भी हैं, हमें फ़िल्म 'गजनी' में सुज़ेन डी'मेलो के गाए "ऐ बच्चु तू सुन ले" गीत की झलक दिखा जाती है।
"उड़ान" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ****
सुजॊय - कुल मुलाकर, इस ऐल्बम के बारे में मेरा तो यही ख़याल है कि 'उड़ान' से ज़्यादा वरायटी इस ऐल्बम में है और बहुत जल्द ही अमित त्रिवेदी पहले कतार के संगीतकारों में अपना स्थान पक्का कर लेंगे और उस राह पर वो बड़े पुख़्ता क़दमों से चल भी पड़े हैं। अनुष्का मनचन्दा को अगर इसी तरह से गाने के मौके मिलते रहें तो वो भी सुनिधि की तरह नाम कर सकती है ब-शर्ते कि वो अपनी वरसटायलिटी बनाए और इन तेज़ रफ़्तार रॉकक गीतों के बाहर भी दूसरे जौनर के गीतों को निभाने की कोशिश करे। अनुषा मणि के लिए शुभकामनाएँ कि आने वाले दिनों में वो अपनी क्षमता का और सबूत पेश करें। और अमित त्रिवेदी का संगीत जितना नवीन है, उनकी आवाज़ में भी वही ताज़गी है। और रही बात जावेद अख़्तर साहब, तो भई उनकी शान में और क्या कह सकते हैं, वो तो हैं ही नंबर वन!
विश्व दीपक - सुजॊय जी, सही कहा आपने। आयशा के गीतों के सुनने के बाद मुझे लग रहा है कि हमने पिछली दफ़ा जो "आयशा" के आने की घोषणा की थी तो हमारी वह उम्मीद पूरी तरह से सही हीं साबित हुई है। अमित के बारे में और क्या कहूँ, मैंने "उड़ान" के गीतों की समीक्षा के दौरान हीं अपना दिल खोल कर रख दिया था। हाँ, जावेद साहब की कही कुछ बातें आपसे जरूर बाँटना चाहूँगा। "आयशा" के "म्युजिक-रीलिज" के समय जावेद साहब ने हँसी-मज़ाक में हीं सही, लेकिन एक "गीतकार" की हालत जरूर बयान कर दी। उन्होने कहा कि आज का दिन मेरे लिए सबसे अच्छा दिन है, क्योंकि आज के बाद मुझे "रिया कपूर" (फिल्म की निर्माता और सोनम की छोटी बहन) के फोन नहीं आएँगे। आज के बाद कोई मुझसे यह नहीं कहेगा कि "मुखरा" बदल दीजिये या फिर "दूसरे अंतरा" की तीसरी पंक्ति "पुराने गानों" जैसी लग रही है, इसे हटाईये। जावेद साहब ने अपनी नानी/दादी का ज़िक्र करते हुए कहा कि वे मुझे डराने के लिए "भूत" का नाम लेती थीं और आजकल के निर्माता-निर्देशक मुझे डराने के लिए "यूथ" (युवा-पीढी) का नाम लेते हैं और कहते हैं कि यह "यूथ" की भाषा नहीं। आखिरकार जावेद साहब पूछ हीं बैठे कि भई यूथ की भाषा क्या है, उसकी कोई डिक्शनरी, उसका कोई ग्रामर तो होगा हीं। जिस किसी के पास वे किताबें हों, मुझे दे जाए, बड़ी हीं कृपा होगी। अगली फिल्म से मैं उस किताब को देखकर हीं गाने लिखूँगा। तो अगर यह हालत जावेद साहब की है, तो दूसरे गीतकारों के साथ क्या होता होगा। जब तक निर्माता, निर्देशक या दूसरा कोई और गीतकार के काम में दखल देना बंद नहीं करेगा, तब तक दिल को छूने वाले अच्छे गाने कहाँ से लिखे जाएँगें। जाते-जाते जावेद साहब ने गीतकार-संगीतकार के लिए बन रहे नए ऐक्ट की भी बात की, जिसमें गानों के राईट इन सबको भी हासिल होंगे। उन्होंने कहा कि जब गीतकार गाने का मालिक हो जाएगा तो फिर लोग उसे तुच्छ जीव समझने की भूल नहीं करेंगे। मुझे भी उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है। खैर, बात तो समीक्षा की हो रही थी और मैं न जाने कहाँ बह निकला। तो वापस आते हैं "आयशा" पे। मुझे पक्का यकीन है कि आप सबों को इसके सारे गाने पसंद आएँगे। इसी उम्मीद के साथ हम आज की समीक्षा पर विराम लगाते हैं। अगली दफ़ा ऐसी हीं कोई फिल्म होगी.. शायद "पिपली लाईव" या "खट्टा-मीठा" या फिर कोई और हीं फिल्म। अभी कह नहीं सकता, जानने के लिए अगले "ताज़ा सुर ताल" का हिस्सा जरूर बनें।
और अब आज के ३ सवाल
TST ट्रिविया # ७९- अमित त्रिवेदी के जोड़ीदार गीतकार रहे हैं अमिताभ भट्टाचार्य। इस फ़िल्म में जावेद अख़्तर का साथ अमित को मिला। तो बताइए कि इससे पहले जावेद साहब के लिखे किस गीत की धुन अमित त्रिवेदी ने बनाई थी?
TST ट्रिविया # ८०- हमने मनोहारी सिंह का ज़िक्र आज इस स्तंभ में किया। आपको बताना है कि मनोहारी दा ने सब से पहले किस हिंदी फ़िल्मी गीत में सैक्सोफ़ोन बजाया था?
TST ट्रिविया # ८१- गीतकार जावेद अख़्तर को आप फ़िल्म 'ठोकर' के मशहूर गीत "ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ" से कैसे जोड़ सकते हैं? (इस नज़्म का ज़िक्र हमने महफ़िल-ए-ग़ज़ल पर भी किया था)
TST ट्रिविया में अब तक -
पिछले हफ़्ते के सवालों के जवाब:
१. कविता चौधरी।
२. 'यूं होता तो क्या होता'।
३. अमित त्रिवेदी (संगीतकार) और अमिताभ भट्टाचार्य (गीतकार) ने। (इस राज़ का पर्दाफ़ाश खुद अमित ने एक इंटरव्यु में किया था)।
सीमा जी आपने दो सवालों के सही जवाब दिए। बधाई स्वीकारें!
तीसरा नहीं भी पता था तो तुक्का मार देतीं.. क्योंकि तुक्के में इन्हीं दोनों कलाकारों के नाम आने की ज्यादा संभावनाएँ हैं।.. खैर कोई बात नहीं.. इस बार के सवालों पर नज़र दौड़ाईये।
विश्व दीपक - नमस्कार दोस्तों! 'ताज़ा सुर ताल' में आज हम जिस फ़िल्म के गीतों को लेकर आए हैं, उसके बारे में तो हमने पिछली कड़ी में ही आपको बता दिया था, इसलिए बिना कोई भूमिका बाँधे आपको याद दिला दें कि आज की फ़िल्म है 'आयशा'।
सुजॊय - अमित त्रिवेदी के संगीत से सजे फ़िल्म 'उड़ान' के गानें पिछले हफ़्ते हमने सुने थे, और आज की फ़िल्म 'आयशा' में भी फिर एक बार उन्ही का संगीत है। शायद अब तक हम 'उड़ान' के गीतों को सुनते नहीं थके थे कि एक और ज़बरदस्त ऐल्बम के साथ अमित हाज़िर हैं। मैं कल जब 'आयशा' के गीतों को सुन रहा था विश्व दीपक जी, मुझे ऐसा लगा कि 'देव-डी' और 'उड़ान' से ज़्यादा वरायटी 'आयशा' में अमित ने पैदा की है। इससे पहले कि वो ख़ुद को टाइप-कास्ट कर लेते और उनकी तरफ़ भी उंगलियाँ उठनी शुरु हो जाती, उससे पहले ही वे अपने स्टाइल में नयापन ले आए।
विश्व दीपक - 'आयशा' के गानें लिखे हैं जावेद अख़्तर साहब ने। पार्श्वगायक की हैसियत से में इस ऐल्बम में नाम शामिल हैं अमित त्रिवेदी, अनुष्का मनचन्दा, नोमान पिण्टो, निखिल डी'सूज़ा, रमण महादेवन, सम्राट कौशल, अनुषा मणि, ऐश किंग और तोची रैना की। दो एक नामों को छोड़ कर बाक़ी सभी नाम नए हैं। निखिल और नोमान की आवाज़ें हमने पिछले हफ़्ते की फ़िल्म 'उड़ान' में भी सुनी थी।
सुजॊय - अभी पिछले शनिवार की ही बात है, गायक अभिजीत 'ज़ी बांगला' के एक टॊक शो में पधारे थे। उसमें बातों बातों में जब आज के गीत संगीत की चर्चा छिड़ी, तो उन्होने कहा कि कुछ साल पहले तक लोग कुमार शानू, उदित नारायण, सोनू निगम, अभिजीत जैसी आवाज़ों को अलग अलग पहचानते थे, गीत सुन कर बोल देते थे कि किस संगीतकार की धुन है, लेकिन आज फ़िल्म संगीत ऐसा हो गया है कि गीत सुनने के बाद ना गायक के नाम का अनुमान लगाया जा सकता है और ना ही संगीतकार का। विश्व दीपक जी, आप बताइए, क्या आपको लगता है कि बहुत ज़्यादा फ़्रेश टैलेण्ट्स को अगर गायक के रूप में मौके दिए जाएँ तो फ़िल्मी गीतों की लोकप्रियता पर विपरीत असर पड़ेगा? मुझे कुछ कुछ ऐसा लगता है कि अत्यधिक नई आवाज़ें श्रोताओं को डिस्ट्रैक्ट करती है। किसी आवाज़ को लोगों के दिलों में बिठाने के लिए उससे कई गीत गवाने ज़रूरी हैं।
विश्व दीपक - सुजॊय जी, मैं अभिजीत जी के बात से पूरी तरह सहमत नहीं। हाँ, इतना तो है कि हमें अपने स्थापित गायकों को मौका देते रहना चाहिए ताकि श्रोता भी उन स्थापित कलाकारों के नाम से खुद को जोड़ सकें। इससे गाने को भी लोकप्रियता हासिल होगी। लेकिन बस कुछ हीं कलाकारों के साथ काम करने से दूसरे प्रतिभावान गायकों की अनदेखी होने का खतरा है.. पुराने समय में इतनी सारी सुविधाएँ मौजूद नहीं थी इसलिए संगीतकारों के पास नए-नए लोग कम हीं आते थे.. पर अब "इंटरनेट बूम" के बाद अपनी आवाज़ को संगीतकार के पास पहुँचाने के हज़ार जरिये हैं और संगीतकार भी बस साज़ों के साथ प्रयोग करने तक हीं सीमित नहीं रहे, वे अब आवाज़ के साथ भी प्रयोग करना चाहते हैं। अब जब इतने सारे विकल्प उपलब्ध हैं तो वे एक हीं के साथ जुड़कर क्यों रहें? और फिर अगर किसी गायक में क्षमता है कि वो अपने आप को किसी संगीतकार के लिए "जरूरी" साबित कर दे तो संगीतकार भी दूसरे किसी विकल्प के बारे में नहीं सोचेगा। हर संगीतकार के पास ऐसे एक या दो गायक जरूर हीं होते है। आप "कैलाश खेर" , "सुखविंदर", "के के", "मोहित चौहान" या फिर "श्रेया घोषाल" को हीं देख लीजिए.. भले हीं हज़ार गायक हों, लेकिन इनकी आवाज़ अमूमन हर एलबम में सुनाई पड़ हीं जाती है। जहाँ तक "संगीत" सुनकर "संगीतकार" पहचानने की बात है तो अभी भी हर संगीतकार अपना एक स्पेशल टच जरूर हीं रखता है, जिसे सुनते हीं लोग संगीतकार का नाम जान लेते हैं। हाँ, कुछ गाने या फिर कुछ जौनर ऐसे हैं, जिन्हें सुनकर संगीतकार के बारे में ठीक-ठीक जाना नहीं जा सकता, लेकिन मेरे हिसाब से यह अच्छी बात है। इससे साबित होता है कि हर संगीतकार आजकल आगे बढ रहा है, कोई भी एक जगह ठहरकर नहीं रहना चाहता। इसलिए सभी हर क्षेत्र में निपुण होने की कोशिश कर रहे हैं। यह "संगीत" के लिए अच्छी खबर है। नहीं तो पहले यह होता था कि अगर "ड्र्म्स" का इस्तेमाल सही हुआ है तो ये "एल-पी" हैं हैं। दूसरा कोई संगीतकार वैसा जादू तैयार कर हीं नहीं पाता था। आजकल टेक्नोलॉजी इतनी विकसित हो गई है कि ऐसी किसी कमी की संभावना हीं खत्म हो गई है।
सुजॊय - विश्व दीपक जी, इस बहस को विराम देते हैं और सुनते हैं फ़िल्म 'आयशा' का पहला गीत जिसे गाया है अमित त्रिवेदी और ऐश किंग ने।
गीत: सुनो आएशा
विश्व दीपक - फ़िल्म का शीर्षक गीत हमने सुना। एक पेपी नंबर, लेकिन जिन साज़ों का इस्तेमाल हुआ है, और ऒरकेस्ट्रेशन जिस तरह का किया गया है, अरेंजमेण्ट में एक नवीनता है। अमित का संगीत संयोजन किसी दूसरे संगीतकार से नहीं मिलता, यही उनकी ख़ासियत है। गाने का जो बेसिक रीदम पैटर्ण है, वो कुछ कुछ फ़िल्म 'दोस्ताना' के "जाने क्यों दिल चाहता है" गीत जैसा है, और कुछ कुछ "जब मिला तू" जैसा भी है। लेकिन ’आयशा' के इस गीत को इन गीतों से नर्म अंदाज़ में गाया गया है। ऐश किंग ने अमित का अच्छा साथ दिया है इस गीत में। आपको याद दिला दें कि ये वही ऐश किंग हैं जिन्होने पिछले साथ फ़िल्म 'दिल्ली-६' में "दिल गिरा दफ़्फ़तन" गाया था।
सुजॊय - आपने संगीत संयोजन का ज़िक्र किया, तो मैं इस बात पर प्रकाश डालना चाहूँगा कि इस गीत में सैक्सोफ़ोन का ख़ासा इस्तेमाल हुआ है, और इससे याद अया कि अभी हाल ही में जाने माने सैक्सोफ़ोनिस्ट मनोहारी सिंह, यानी कि मनोहारी दादा का देहावसान हो गया जो फ़िल्म इंडस्ट्री के मशहूर सैक्सोफ़ोनिस्ट और फ़्ल्युटिस्ट रहे हैं। तो इस गीत को हम अपनी तरफ़ से मनोहारी दादा के नाम डेडिकेट करते हुए उन्हे अपनी श्रद्धांजली अर्पित करते हैं।
विश्व दीपक - यह बहुत अच्छी बात कही आपने। 'ताजा सुर ताल' के ज़रिए गुज़रे ज़माने के अज़ीम फ़नकारों को श्रद्धांजलि से बढ़कर और अच्छी बात क्या हो सकती है! चलिए इस थिरकते गीत से जो सुरीली शुरुआत हुई है इस ऐल्बम की, अब आगे बढ़ते हैं और सुनते हैं फ़िल्म का दूसरा गीत तोची रैना की आवाज़ में।
गीत: गल मिठि मिठि (मीठी मीठी) बोल
सुजॊय - भई ऐसा कह सकते हैं कि 'आयशा' ऐल्बम में जो पंजाबी तड़का अमित त्रिवेदी ने लगाया है, उसी का स्वाद चख रहे थे हम। गीत के बोल भी पूरी तरह से पंजाबी हैं और पाश्चात्य रीदम और साज़ों के साथ फ़्युज़ किया गया है। बीट्स धीमी हैं और पंजाबी भंगड़े की तरह फ़ास्ट रीदम नहीं है। वैसे यह गीत आपको 'लव आजकल' के "आहुँ आहुँ" की याद दिला हीं जाता है। आपको याद दिला दें कि तोची रैना ने अमित त्रिवेदी के लिए "ओ परदेसी" गीत गाया था 'देव-डी' में जिसे ख़ूब सराहना मिली थी।
विश्व दीपक - युं तो आज के दौर में लगभग सभी फ़िल्मों में पंजाबी गीत होते ही हैं, लेकिन यह गीत लीक से हट के है। इस गीत में वो सब बातें मौजूद हैं जो इसे लोकप्रियता की पायदानों पे चढने में मदद करेंगे। देखते हैं जनता का क्या फ़ैसला होता है! और अब फ़िल्म का तीसरा गीत। यह है अमित त्रिवेदी और नोमान पिण्टो का गाया "शाम भी कोई जैसे है नदी"। जावेद साहब का शायराना अंदाज़ है इस गीत में, आइए सुनते हैं।
गीत: शाम भी कोई जैसे है नदी (बूम बूम बूम परा)
सुजॊय - यह गीत भी अपना छाप छोड़ हीं जाती है। अरेंजमेण्ट ऐसा है गाने का कि ऐसा लगता है जैसे कोई युवक हाथ में गीटार लिए आपके ही सामने बैठे गा रहा हो बिल्कुल लाइव! और यही बात आकर्षित करती है इस गीत की तरफ़। अमित और नोमान ने जिस नरमी और फ़ील के साथ गाने को गाया है, और धुन भी उतना ही मेलोडियस! एक कर्णप्रिय यूथ अपील इस गीत से छलकती है।
विश्व दीपक - हाँ, और यह तो बिल्कुल अमित त्रिवेदी टाइप का गाना है। इस गीत को रॉक शैली में भी बनाया जा सकता था, लेकिन उससे शायद फ़ील कम हो जाती। इस तरह के नरम बोलों के लिए इस तरह का म्युज़िक अरेंजमेण्ट बिलकुल सटीक है।
सुजॊय - अच्छा, हमने इस फ़िल्म के अभिनेताओं का ज़िक्र तो किया ही नहीं! फ़िल्म 'आयशा' में नायक हैं अभय देओल और नायिका हैं सोनम कपूर। यानी कि आयशा बनी हैं सोनम कपूर। सोनम भी फ़िल्म दर फ़िल्म अपने कैरियर की सीढ़ियाँ चढ़ती जा रही हैं। 'दिल्ली-६' और ' आइ हेट लव स्टोरीज़' में उनके अभिनय को सराहा गया, और शायद 'आयशा' में भी वो सफल रहेंगी। अभय देओल अपना एक लो-प्रोफ़ाइल मेनटेन करते हैं लेकिन तीनों भाइयों की अगर बात करें तो मुझे तो सनी और बॊबी से ज़्यादा अभय की ऐकटिंग ज़्यादा जँचती है। ख़ैर, पसंद अपनी-अपनी ख़याल अपना-अपना। लीजिए सुनिए 'आएशा' का चौथा गाना।
गीत: बहके बहके नैन
विश्व दीपक - बहके बहके अंदाज़ में यह गीत गाया है अनुष्का मनचन्दा, सम्राट कौशल और रमण महादेवन ने। पूरी तरह से कारनिवल फ़ील लिए हुए है। हिंदी और अंग्रेज़ी के बोलों का संतुलित संगम है यह गीत। सम्राट और रमण ने जहाँ अंग्रेज़ी बोलों के साथ पूरा न्याय किया है, वहीं अनुष्का भी अपनी गायकी का लोहा मनवाने में कामयाब रही हैं। जिस तरह की अदायगी, जिस तरह का थ्रो इस गाने में चाहिए था, अनुष्का ने उसका पूरा पूरा ख़याल रखा। ऐकॊरडिओन की ध्वनियाँ इस गीत में सुनने को मिलती है, और जो हमें याद दिलाती है शंकर जयकिशन की।
सुजॊय - पूरी तरह से एक डांस नंबर है यह गीत और जैसा कि आपने कहा कि कारनिवल गीत, तो कुछ इसी तरह के कारनिवल गीतों की याद दिलाएँ आप सब को। फ़िल्म 'धूम' में "सलामी", 'धूम-२' में "टच मी डोण्ट टच मी सोणीया", 'हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड' में "प्यार की ये कहानी सुनों", ये सभी इसी जौनर में आते हैं।
विश्व दीपक - हाँ, और इन सब गीतों में करीबीयन, अरबी और कुछ कुछ गोवन (पोर्चुगीज़) संगीत की छाप नज़र आती है। और ऐसे गीतों में लैटिन नृत्य शैली का ख़ास तौर से प्रयोग होता है। इस गीत से एक मूड बन गया है, तो इस मूड को थोड़ा सा बदलते हुए एक बिल्कुल ही अलग किस्म का गीत सुनते हैं।
गीत: लहरें
सुजॊय - "खोयी खोयी सी हूँ मैं, क्यों ये दिल का हाल है, धुंधले सारे ख़्वाब हैं, उलझा हर ख़याल है, सारी कलियाँ मुरझा गईं, लोग उनके यादों में रह गए, सारे घरोंदे रेत के, लहरें आईं लहरों में मिल गए" - एक बेहतरीन गीत, शब्दों के लिहाज़ से, संगीत के लिहाज़ से और गायकी के लिहाज़ से भी। अनुषा मणि की मुख्य आवाज़ थी इस गीत में जिसे उन्होने एक हस्की फ़ील के साथ गाया। नोमान पिण्टो और निखिल डी'सूज़ा ने वोकल बैकिंग दी।
विश्व दीपक - हर तरह से यह गीत इस ऐल्बम का सर्वश्रेष्ठ गीत है, और हो सकता है कि अनुषा मणि पिछले साल "इकतारा" के कविता सेठ की तरह इस बार फ़िल्मफ़ेयर के सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार हासिल कर लें। अब तक इस फ़िल्म के जितने भी गानें हमने सुनें, किसी भी गीत से हताशा नहीं हुई और हर एक गीत में कुछ ना कुछ अच्छी बात दिल को छू गई। तो अब जो इस फ़िल्म का एक अंतिम गीत बचा है, उसे भी सुनते चलें।
सुजॊय - ज़रूर!
गीत: बाइ दि वे
सुजॊय - जिस तरह से ऐल्बम की सुरीली शुरुआत हुई थी "सुनो आयशा" गीत के साथ, उतना ही धमाकेदार समापन हुआ अनुष्का मनचन्दा और नोमान पिण्टो के गाए इस फ़ास्ट डान्स नंबर से। इस रॉक पॊप सॊंग में अनुष्का जिस तरह से बोलती भी हैं, हमें फ़िल्म 'गजनी' में सुज़ेन डी'मेलो के गाए "ऐ बच्चु तू सुन ले" गीत की झलक दिखा जाती है।
"उड़ान" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ****
सुजॊय - कुल मुलाकर, इस ऐल्बम के बारे में मेरा तो यही ख़याल है कि 'उड़ान' से ज़्यादा वरायटी इस ऐल्बम में है और बहुत जल्द ही अमित त्रिवेदी पहले कतार के संगीतकारों में अपना स्थान पक्का कर लेंगे और उस राह पर वो बड़े पुख़्ता क़दमों से चल भी पड़े हैं। अनुष्का मनचन्दा को अगर इसी तरह से गाने के मौके मिलते रहें तो वो भी सुनिधि की तरह नाम कर सकती है ब-शर्ते कि वो अपनी वरसटायलिटी बनाए और इन तेज़ रफ़्तार रॉकक गीतों के बाहर भी दूसरे जौनर के गीतों को निभाने की कोशिश करे। अनुषा मणि के लिए शुभकामनाएँ कि आने वाले दिनों में वो अपनी क्षमता का और सबूत पेश करें। और अमित त्रिवेदी का संगीत जितना नवीन है, उनकी आवाज़ में भी वही ताज़गी है। और रही बात जावेद अख़्तर साहब, तो भई उनकी शान में और क्या कह सकते हैं, वो तो हैं ही नंबर वन!
विश्व दीपक - सुजॊय जी, सही कहा आपने। आयशा के गीतों के सुनने के बाद मुझे लग रहा है कि हमने पिछली दफ़ा जो "आयशा" के आने की घोषणा की थी तो हमारी वह उम्मीद पूरी तरह से सही हीं साबित हुई है। अमित के बारे में और क्या कहूँ, मैंने "उड़ान" के गीतों की समीक्षा के दौरान हीं अपना दिल खोल कर रख दिया था। हाँ, जावेद साहब की कही कुछ बातें आपसे जरूर बाँटना चाहूँगा। "आयशा" के "म्युजिक-रीलिज" के समय जावेद साहब ने हँसी-मज़ाक में हीं सही, लेकिन एक "गीतकार" की हालत जरूर बयान कर दी। उन्होने कहा कि आज का दिन मेरे लिए सबसे अच्छा दिन है, क्योंकि आज के बाद मुझे "रिया कपूर" (फिल्म की निर्माता और सोनम की छोटी बहन) के फोन नहीं आएँगे। आज के बाद कोई मुझसे यह नहीं कहेगा कि "मुखरा" बदल दीजिये या फिर "दूसरे अंतरा" की तीसरी पंक्ति "पुराने गानों" जैसी लग रही है, इसे हटाईये। जावेद साहब ने अपनी नानी/दादी का ज़िक्र करते हुए कहा कि वे मुझे डराने के लिए "भूत" का नाम लेती थीं और आजकल के निर्माता-निर्देशक मुझे डराने के लिए "यूथ" (युवा-पीढी) का नाम लेते हैं और कहते हैं कि यह "यूथ" की भाषा नहीं। आखिरकार जावेद साहब पूछ हीं बैठे कि भई यूथ की भाषा क्या है, उसकी कोई डिक्शनरी, उसका कोई ग्रामर तो होगा हीं। जिस किसी के पास वे किताबें हों, मुझे दे जाए, बड़ी हीं कृपा होगी। अगली फिल्म से मैं उस किताब को देखकर हीं गाने लिखूँगा। तो अगर यह हालत जावेद साहब की है, तो दूसरे गीतकारों के साथ क्या होता होगा। जब तक निर्माता, निर्देशक या दूसरा कोई और गीतकार के काम में दखल देना बंद नहीं करेगा, तब तक दिल को छूने वाले अच्छे गाने कहाँ से लिखे जाएँगें। जाते-जाते जावेद साहब ने गीतकार-संगीतकार के लिए बन रहे नए ऐक्ट की भी बात की, जिसमें गानों के राईट इन सबको भी हासिल होंगे। उन्होंने कहा कि जब गीतकार गाने का मालिक हो जाएगा तो फिर लोग उसे तुच्छ जीव समझने की भूल नहीं करेंगे। मुझे भी उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है। खैर, बात तो समीक्षा की हो रही थी और मैं न जाने कहाँ बह निकला। तो वापस आते हैं "आयशा" पे। मुझे पक्का यकीन है कि आप सबों को इसके सारे गाने पसंद आएँगे। इसी उम्मीद के साथ हम आज की समीक्षा पर विराम लगाते हैं। अगली दफ़ा ऐसी हीं कोई फिल्म होगी.. शायद "पिपली लाईव" या "खट्टा-मीठा" या फिर कोई और हीं फिल्म। अभी कह नहीं सकता, जानने के लिए अगले "ताज़ा सुर ताल" का हिस्सा जरूर बनें।
और अब आज के ३ सवाल
TST ट्रिविया # ७९- अमित त्रिवेदी के जोड़ीदार गीतकार रहे हैं अमिताभ भट्टाचार्य। इस फ़िल्म में जावेद अख़्तर का साथ अमित को मिला। तो बताइए कि इससे पहले जावेद साहब के लिखे किस गीत की धुन अमित त्रिवेदी ने बनाई थी?
TST ट्रिविया # ८०- हमने मनोहारी सिंह का ज़िक्र आज इस स्तंभ में किया। आपको बताना है कि मनोहारी दा ने सब से पहले किस हिंदी फ़िल्मी गीत में सैक्सोफ़ोन बजाया था?
TST ट्रिविया # ८१- गीतकार जावेद अख़्तर को आप फ़िल्म 'ठोकर' के मशहूर गीत "ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ" से कैसे जोड़ सकते हैं? (इस नज़्म का ज़िक्र हमने महफ़िल-ए-ग़ज़ल पर भी किया था)
TST ट्रिविया में अब तक -
पिछले हफ़्ते के सवालों के जवाब:
१. कविता चौधरी।
२. 'यूं होता तो क्या होता'।
३. अमित त्रिवेदी (संगीतकार) और अमिताभ भट्टाचार्य (गीतकार) ने। (इस राज़ का पर्दाफ़ाश खुद अमित ने एक इंटरव्यु में किया था)।
सीमा जी आपने दो सवालों के सही जवाब दिए। बधाई स्वीकारें!
तीसरा नहीं भी पता था तो तुक्का मार देतीं.. क्योंकि तुक्के में इन्हीं दोनों कलाकारों के नाम आने की ज्यादा संभावनाएँ हैं।.. खैर कोई बात नहीं.. इस बार के सवालों पर नज़र दौड़ाईये।
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regards
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