Skip to main content

दिल तड़प तड़प के.....सलिल दा की धुन पर मुकेश (जयंती पर विशेष) और लता की आवाजें

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 445/2010/145

'गीत अपना धुन पराई' लघु शृंखला में इन दिनों आप सुन रहे हैं फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के कुछ ऐसे सदाबहार नग़में जो प्रेरित हैं किसी मूल विदेशी धुन या गीत से। ये दस गीत दस अलग अलग संगीतकारों के हमने चुने हैं। पिछले चार कड़ियों में हम सुन चुके हैं स्नेहल भाटकर, अनिल बिस्वास, मुकुल रॊय और राहुल देव बर्मन के स्वरबद्ध गीत; आज बारी है संगीतकार सलिल चौधरी की। सलिल दा और प्रेरीत गीतों का अगर एक साथ ज़िक्र हो रहा हो तो सब से पहले जो गीत याद आता है, वह है फ़िल्म 'छाया' का - "इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा", जो कि मोज़ार्ट की सीम्फ़नी से प्रेरीत था। लेकिन आज हमने आपको सुनवाने के लिए यह गीत नहीं चुना है, बल्कि एक और ख़ूबसूरत गीत जो आधारित है पोलैण्ड के एक लोक गीत पर। फ़िल्म 'मधुमती' का यह सदाबहार गीत है "दिल तड़प तड़प के दे रहा है ये सदा, तू हम से आँख ना चुरा, तुझे क़सम है आ भी जा"। लता मंगेशकर और मुकेश की आवाज़ों में गीतकार शैलेन्द्र की रचना। मूल पोलैण्ड का लोक गीत कुछ इस तरह से है - "Szła Dzieweczka do Laseczka, do zielonego". दोस्तों, अब आप मुझसे यह मत पूछिएगा कि इसका उच्चारण किस तरह से होगा! बस यही कहेंगे कि सलिल दा ने क्या ख़ूब भारतीयकरण किया है। लगता ही नहीं कि इसकी धुन किसी विदेशी गीत पर आधारित है। पोलैण्ड के ही किसी वेबसाइट से इस गीत के बारे में कुछ जानकारी हासिल हुई है, उसे रोमन में ही प्रस्तुत कर रहे हैं - "The lyrics are mostly nonsense. The girl goes into the green woods and meets a handsome hunter. She asks his advice, then she tells him she would have given him bread and butter, but she already ATE it! It's just a FUN song to sing!!"

और आइए अब बात करें सलिल दा के कुछ ऐसे गीतों की जो उन्होने किसी ना किसी विदेशी धुन से प्रेरित होकर बनाई है। 'छाया' और 'मधुमती' के इन दो गीतों के अलावा सलिल दा के कुछ और ऐसे प्रेरीत गीत इस प्रकार हैं:

१. धरती कहे पुकार के (दो बिघा ज़मीन) - मूल गीत: "मीडोलैण्ड्स" (लेव निपर)
२. हल्के हल्के चलो सांवरे (तांगेवाली) - मूल गीत: "दि वेडिंग् साम्बा" (एडमुंडो रॊस)
३. ज़िंदगी है क्या सुन मेरे यार (माया) - मूल गीत: "थीम म्युज़िक ऒफ़ लाइमलाइट" (चारली चैपलिन)
४. आँखों में तुम दिल में तुम हो (हाफ़ टिकट) - मूल गीत: "बटन्स ऐण्ड बोज़" (दिना शोर)
५. बचपन बचपन (मेमदीदी) - मूल गीत: "ए-टिस्केट ए-टास्केट" (नर्सरी राइम)

सलिल दा ने करीब ७५ हिंदी फ़िल्मों में संगीत दिया। इनके अलावा ४० बंगला और २६ मलयालम फ़िल्मों में भी उन्होने संगीत दिया। विदेशी संगीतज्ञों में उनके ख़ास चहेते थे मोज़ार्ट, बीथोवेन, चैकोव्स्की और चोपिन आदि। तो आइए आज सलिल दा के नाम करते हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह कड़ी और सुनते हैं फ़िल्म 'मधुमती' का यह एवरग्रीन हिट। इसके साथ ही 'गीत अपना धुन पराई' लघु शृंखला का पहला हिस्सा होता है पूरा। रविवार की शाम को हम इसी शृंखला को आगे बढ़ाने के लिए पुन: उपस्थित होंगे, तब तक के लिए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की टीम को इजाज़त दीजिए, लेकिन आप बने रहिए 'आवाज़' के साथ, नमस्कार!



क्या आप जानते हैं...
कि सलिल चौधरी की पुत्री एवं गायिका अंतरा चौधरी ने सोनू निगम के साथ फ़िल्म 'खोया खोया चांद' में एक युगल गीत गाया है।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. लोकप्रिय गीत "दि ब्रीज़ ऐण्ड आइ" से प्रेरित है ये गीत, संगीतकार बताएं - ३ अंक.
२. फिल्म के प्रमुख अभिनेता ही फिल्म ने निर्माता है, नाम बताएं - २ अंक.
३. गीतकार बताएं इस शीर्षक गीत के - २ अंक.
४. गायिका कौन है, बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी इस बार भी आपका अंदाजा एकदम सही है, और इंदु जी भी ऑन स्पोट है. किश जी इस बार आप एकदम सही है अपने जवाबों के साथ. बस इतना और समझ लीजिए कि आपने सिर्फ एक सवाल का ही जवाब देना है, सभी का नहीं....बहुत अच्छे, स्कोर अब तक - शरद जी - ६५, अवध जी ५७ और इंदु जी हैं २७ पर.

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Music Director : Ravi
Anonymous said…
फिल्म के प्रमुख अभिनेता ही फिल्म ने निर्माता है, नाम बताएं - Guru Dutt

Kish..
Ottawa, Canada
indu puri said…
२. फिल्म के प्रमुख अभिनेता ही फिल्म ने निर्माता है, नाम बताएं. पर किसका ? फिल्म का या अभिनेता-निर्माता का?
सरजी! प्रश्न स्पष्ट पूछा करे स्टूडेंट आज कल सर्वे में बीजी है. फिर भी...
फिल्म-ये रास्ते हैं प्यार के
अभिनेता-निर्माता सुनील दत्त जी
AVADH said…
महागुरु और इंदु बहिन के संकेतों पर फिर एक तुक्का - गीतकार: राजिंदर कृष्ण
अवध लाल
Anonymous said…
If the movie is Yeh Raaste Hain Pyaar Ke and the geetkar is Rajinder Krishan, then the gayika is Asha Bhonsle

Kish...
कुछ दिनों से मुझे महागुरू कहा जा रहा है जबकि मेरा फ़िल्मी ज्ञान बहुत ही सीमित है यह अवश्य है कि सबसे पहले जवाब देने की कोशिश में मैं ६.२० बजे ही तैयार हो जाता हूँ तथा जल्दी जवाब देने की कोशिश करता हूँ और फ़िर सारी जानकारी तो मुझे नेट पर ही मिलती है इतना सब कुछ याद तो नहीं रख सकता । मैरे लिए तो महागुरू ये कमप्यूटर ही है । आप लोग मेरे बारे में गलतफ़हमी में न रहें ।
Anonymous said…
Sharadji, you deserve all the accolades and credits for your efforts and diligence.

Please keep up!

Warmest Regards,
Kish..
Ottawa

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की