ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 437/2010/137
'रिमझिम के तराने' शृंखला की आज है आठवीं कड़ी। दोस्तों, हमने इस बात का ज़िक्र तो नहीं किया था, लेकिन हो सकता है कि शायद आप ने ध्यान दिया हो, कि इस शृंखला में हम बारिश के १० गीत सुनवा रहे हैं जिन्हे १० अलग अलग संगीतकारों ने स्वरबद्ध किए हैं। अब तक हमने जिन संगीतकारों को शामिल किया, वो हैं कमल दासगुप्ता, वसंत देसाई, शंकर जयकिशन, हेमन्त कुमार, सचिन देव बर्मन, रवीन्द्र जैन, और राहुल देव बर्मन। आज जिस संगीतकार की बारी है, वह एक बेहद सुरीले और गुणी संगीतकार हैं, जिनकी धुनें हमें एक अजीब सी शांति और सुकून प्रदान करती हैं। एक सुकून दायक ठहराव है जिनके संगीत में। उनके गीतों में ना अनर्थक साज़ों की भीड़ है, और ना ही बोलों में कोई सस्तापन। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं ख़य्याम साहब की। आज की कड़ी में सुनिए आशा भोसले की आवाज़ में सन् १९८० की फ़िल्म 'थोड़ी सी बेवफ़ाई' का रिमझिम बरसता गीत "बरसे फुहार, कांच की जैसी बूंदें बरसे जैसे, बरसे फुहार"। गुलज़ार साहब का लिखा हुआ गीत है। इस फ़िल्म के दूसरे गानें भी काफ़ी मशहूर हुए थे, मसलन लता-किशोर के गाए "आँखों में हमने आप के सपने सजाए हैं" और "हज़ार राहें मुड़के देखीं"; भुपेन्द्र का गाया "आज बिछड़े हैं कल का डर भी नहीं", अनवर और सुलक्षणा का गाया "मौसम मौसम लवली मौसम"; तथा जगजीत कौर व सुलक्षणा का गाया "सुनो ना भाभी"। अंतिम दो गीतों को छोड़कर बाकी सभी गीतों में ख़य्याम साहब का ठहराव भरा अंदाज़ साफ़ झलकता है, जिन्हे जितनी भी बार सुना जाए उतना ही अच्छा लगता है और दिल को सुकून पहुँचाता है। अगर आप के शहर में बारिश ना भी हो रही हो, तो भी इन गीतों को, और ख़ास कर आज के प्रस्तुत गीत को सुन कर आपके तन-मन में ठंडक का अहसास हो जाएगा, ऐसा हमारा ख़याल है!
दोस्तों, आइए आज ख़य्याम साहब की कुछ बातें की जाए। बातें जो ख़य्याम साहब ने ख़ुद बताया था विविध भारती के किसी कार्यक्रम में: "पंडित अमरनाथ, हुस्नलाल जी, भगतराम जी, तीन भाई, इन लोगों से मैंने संगीत सीखा सब से पहले। उन दिनों ऐक्टर बनने का शौक था मुझे। लेकिन उन दिनों ऐक्टर बनने के लिए भी संगीत सीखना ज़रूरी था। लाहौर में मेरी मुलाक़ात हुई चिशती बाबा से, जो उन दिनों टॊप के संगीतकार हुआ करते थे। एक बार वो एक म्युज़िकल कॊम्पीटिशन कर रहे थे। आधे घंटे के बाद उन्होनें अपने ऐसिस्टैण्ट को बोला कि मैंने वह जो धुन बजाई थी, वह मैंने क्या बजाया था, बजाओ ज़रा! उन दिनों आज की तरह धुन रिकार्ड नहीं किया जाता था। मैं कोने में बैठा हुआ था, मैंने उनसे कहा कि मैं बजा सकता हूँ। तो उन्होने मुझसे कहा कि तुम कैसे बजाओगे, तुम्हे याद है? फिर मैंने बजाया और वो बोले कि तुम मेरे साथ काम करो, तुम्हारा जेहन अच्छा है संगीत का, मेरे ऐसिस्टैण्ट रहो और शिष्य भी। मैंने कहा कि मुझे तो ऐक्टर बनना है। तो उन्होने कहा कि मेरे साथ रहो, इस तरह से लोगों से मिल भी सकते हो, ऐक्टर भी बन जाओगे।" दोस्तों, ख़य्याम ऐक्टर तो नहीं बने, लेकिन उनके संगीतकार बनने की आगे की कहानी हम फिर किसी दिन आपको सुनवाएँगे। फिलहाल सुनते हैं आशा जी की आवाज़ में यह सुकून भरा नग़मा "बरसे फुहार"।
क्या आप जानते हैं...
कि संगीतकार ख़य्याम ने सन १९४७ के आसपास शर्माजी के नाम से कई फ़िल्मों में संगीत दिया था। ऐसा उन्हे उन दिनों बम्बई में चल रही साम्प्रदायिक तनाव के मद्देनज़र करना पड़ा था।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस नाम से ८० के दशक में भी एक फिल्म आई थी जिसमें अमिताभ ने यादगार अभिनय किया था, संगीतकार बताएं-३ अंक.
२. मुखड़े में शब्द है -"आग", गीतकार का नाम बताएं - २ अंक.
३. रफ़ी साहब के गाये इस बहके बहके गीत की फिल्म का नाम बताएं - २ अंक.
४. गीत के दो वर्जन हैं, फिल्म में, पहली पंक्ति बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी, गलती के लिए माफ़ी चाहेंगें, वैसे एक बार आप और शरद जी एकदम सही ठहरे
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'रिमझिम के तराने' शृंखला की आज है आठवीं कड़ी। दोस्तों, हमने इस बात का ज़िक्र तो नहीं किया था, लेकिन हो सकता है कि शायद आप ने ध्यान दिया हो, कि इस शृंखला में हम बारिश के १० गीत सुनवा रहे हैं जिन्हे १० अलग अलग संगीतकारों ने स्वरबद्ध किए हैं। अब तक हमने जिन संगीतकारों को शामिल किया, वो हैं कमल दासगुप्ता, वसंत देसाई, शंकर जयकिशन, हेमन्त कुमार, सचिन देव बर्मन, रवीन्द्र जैन, और राहुल देव बर्मन। आज जिस संगीतकार की बारी है, वह एक बेहद सुरीले और गुणी संगीतकार हैं, जिनकी धुनें हमें एक अजीब सी शांति और सुकून प्रदान करती हैं। एक सुकून दायक ठहराव है जिनके संगीत में। उनके गीतों में ना अनर्थक साज़ों की भीड़ है, और ना ही बोलों में कोई सस्तापन। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं ख़य्याम साहब की। आज की कड़ी में सुनिए आशा भोसले की आवाज़ में सन् १९८० की फ़िल्म 'थोड़ी सी बेवफ़ाई' का रिमझिम बरसता गीत "बरसे फुहार, कांच की जैसी बूंदें बरसे जैसे, बरसे फुहार"। गुलज़ार साहब का लिखा हुआ गीत है। इस फ़िल्म के दूसरे गानें भी काफ़ी मशहूर हुए थे, मसलन लता-किशोर के गाए "आँखों में हमने आप के सपने सजाए हैं" और "हज़ार राहें मुड़के देखीं"; भुपेन्द्र का गाया "आज बिछड़े हैं कल का डर भी नहीं", अनवर और सुलक्षणा का गाया "मौसम मौसम लवली मौसम"; तथा जगजीत कौर व सुलक्षणा का गाया "सुनो ना भाभी"। अंतिम दो गीतों को छोड़कर बाकी सभी गीतों में ख़य्याम साहब का ठहराव भरा अंदाज़ साफ़ झलकता है, जिन्हे जितनी भी बार सुना जाए उतना ही अच्छा लगता है और दिल को सुकून पहुँचाता है। अगर आप के शहर में बारिश ना भी हो रही हो, तो भी इन गीतों को, और ख़ास कर आज के प्रस्तुत गीत को सुन कर आपके तन-मन में ठंडक का अहसास हो जाएगा, ऐसा हमारा ख़याल है!
दोस्तों, आइए आज ख़य्याम साहब की कुछ बातें की जाए। बातें जो ख़य्याम साहब ने ख़ुद बताया था विविध भारती के किसी कार्यक्रम में: "पंडित अमरनाथ, हुस्नलाल जी, भगतराम जी, तीन भाई, इन लोगों से मैंने संगीत सीखा सब से पहले। उन दिनों ऐक्टर बनने का शौक था मुझे। लेकिन उन दिनों ऐक्टर बनने के लिए भी संगीत सीखना ज़रूरी था। लाहौर में मेरी मुलाक़ात हुई चिशती बाबा से, जो उन दिनों टॊप के संगीतकार हुआ करते थे। एक बार वो एक म्युज़िकल कॊम्पीटिशन कर रहे थे। आधे घंटे के बाद उन्होनें अपने ऐसिस्टैण्ट को बोला कि मैंने वह जो धुन बजाई थी, वह मैंने क्या बजाया था, बजाओ ज़रा! उन दिनों आज की तरह धुन रिकार्ड नहीं किया जाता था। मैं कोने में बैठा हुआ था, मैंने उनसे कहा कि मैं बजा सकता हूँ। तो उन्होने मुझसे कहा कि तुम कैसे बजाओगे, तुम्हे याद है? फिर मैंने बजाया और वो बोले कि तुम मेरे साथ काम करो, तुम्हारा जेहन अच्छा है संगीत का, मेरे ऐसिस्टैण्ट रहो और शिष्य भी। मैंने कहा कि मुझे तो ऐक्टर बनना है। तो उन्होने कहा कि मेरे साथ रहो, इस तरह से लोगों से मिल भी सकते हो, ऐक्टर भी बन जाओगे।" दोस्तों, ख़य्याम ऐक्टर तो नहीं बने, लेकिन उनके संगीतकार बनने की आगे की कहानी हम फिर किसी दिन आपको सुनवाएँगे। फिलहाल सुनते हैं आशा जी की आवाज़ में यह सुकून भरा नग़मा "बरसे फुहार"।
क्या आप जानते हैं...
कि संगीतकार ख़य्याम ने सन १९४७ के आसपास शर्माजी के नाम से कई फ़िल्मों में संगीत दिया था। ऐसा उन्हे उन दिनों बम्बई में चल रही साम्प्रदायिक तनाव के मद्देनज़र करना पड़ा था।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस नाम से ८० के दशक में भी एक फिल्म आई थी जिसमें अमिताभ ने यादगार अभिनय किया था, संगीतकार बताएं-३ अंक.
२. मुखड़े में शब्द है -"आग", गीतकार का नाम बताएं - २ अंक.
३. रफ़ी साहब के गाये इस बहके बहके गीत की फिल्म का नाम बताएं - २ अंक.
४. गीत के दो वर्जन हैं, फिल्म में, पहली पंक्ति बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी, गलती के लिए माफ़ी चाहेंगें, वैसे एक बार आप और शरद जी एकदम सही ठहरे
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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अवध लाल
अवध lal
२. गीतकार - राजिंदर कृष्ण
३. फ़िल्म - शराबी
४. गीत - सावन के महीने में, इक आग सी सीने में, लगती है तो पी लेता हूं, दो-चार घड़ी जी लेता हूं.