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दुम न हिलाओ, कान काट खाओ.....उबलता आक्रोश युवाओं का समेटा वी डी, ऋषि और उन्नी ने इस नए गीत में

Season 3 of new Music, Song # 15

"जला दो अभी फूंक डालो ये दुनिया...", गुरु दत्त के स्वरों में एक सहमा मगर संतुलित आक्रोश था जिसे पूरे देश के युवाओं में समझा. बाद के दशकों में ये स्वर और भी मुखरित हुए, कभी व्यंग बनकर (हाल चाल ठीक ठाक है) कभी गुस्सा (दुनिया माने बुरा तो गोली मारो) तो कभी अंडर करंट आक्रोश (खून चला) बनकर. कुछ ऐसे ही भाव लेकर आये हैं आज के युवा गीतकार विश्व दीपक "तन्हा" अपने इस नए गीत में. ऋषि पर आरोप थे कि उनकी धुनों में नयापन नहीं दिख रहा, पर हम बताना चाहेंगें कि हमारे अब तक के सभी सत्रों में ऋषि के गीत सबसे अधिक बजे हैं, जाहिर है एक संगीतकार के लिहाज से उनका अपना एक स्टाइल है जो अब निखर कर सामने आ रहा है, रही बात विविधता की तो हमें लगता है कि जितने विविध अंदाज़ ऋषि ने आजमाए हैं शायद ही किसी ने किये होंगें. अब आज का ही गीत ले लीजिए, ये उनके अब तक के सभी गीतों से एकदम अलग है. गायक उन्नी का ये दूसरा गीत है इस सत्र में, पर पहला एकल गीत भी है ये उनका. गीत के अंत में कुछ संवाद भी हैं जिन्हें आवाज़ दी है खुद विश्व दीपक ने, बैक अप आवाज़ तो ऋषि की है ही....तो लीजिए सुनिए आज का ये जोश से भरा दनदनाता गीत.

गीत के बोल -

सादी या आधी या पौनी थालियाँ,
भूखे को सारी……. हैं गालियाँ….

झटका ज़रा दो,
फ़टका जमा दो,
हक़ ना मिले तो,
ऐसी की तैसी……

दुम ना हिलाओ,
कान काट खाओ,
हड्डियाँ चबाओ,
ऐसी की तैसी….

भुलावे में जिये अभी तक,
चढावे में दिये उन्हें सब,
मावे की लगी जो हीं लत,
वादों पे लगी चपत…….

झटका ज़रा दो,
फ़टका जमा दो,
हक़ ना मिले तो,
ऐसी की तैसी……

दुम ना हिलाओ,
कान काट खाओ,
हड्डियाँ चबाओ,
ऐसी की तैसी….

लुट के, घुट के, फुट के, रोना क्या?
लुट के, घुट के, फुट के, रोना क्या?
लुट के, घुट के, फुट के, रोना क्या?
लुट के, घुट के, फुट के, रोना क्या?

बढ के गढ ले…. आ जा………. बरछा धर ले…….

ऐसी की तैसी….

मौका है ये
जाने ना दे
कांधे पर से

बेताल फिर डाल पर….

छलावे से छिने हुए घर ,
अलावे जां जमीं मुकद्दर,
दावे से तेरे होंगे सब,
हो ले जो ऐसा अजब…

झटका ज़रा दो,
फ़टका जमा दो,
हक़ ना मिले तो,
ऐसी की तैसी……

दुम ना हिलाओ,
कान काट खाओ,
हड्डियाँ चबाओ,
ऐसी की तैसी….

कचरा हटा दो,
ऐसी की तैसी….
लफ़ड़ा मिटा दो,
ऐसी की तैसी…

तुम्हें बिगड़ा कहे जो,
पिछड़ा कहे जो,
उसकी तो
ऐसी की तैसी…



ऐसी की तैसी - द रीबेल है मुज़ीबु पर भी, जिसे श्रोताओं ने खूब सराहा है... देखिए यहाँ

मेकिंग ऑफ़ "ऐसी की तैसी- द रीबेल" - गीत की टीम द्वारा

ऋषि एस: ये शायद मेरा पहला गाना है जो मेलोडी पर आधारित नहीं है। ऐसे गानों की उम्र कम होती है क्योंकि ५ या १० सालों बाद समकालीन संगीत (contemporary music) का साउंड बदल जाएगा और ऐसे गानों को सुनने में तब मज़ा नहीं आएगा जितना आज आता है। ऐसी हालत में गाने को जीवित रखने वाली बात उसके बोल में होती है, और इस गाने में वीडी ने सामाजिक मुद्दों से जुड़ा विषय चुना है। गाने में जो संदेश है वही इस गाने को समय के साथ बिखरने, बिगड़ने और पुराना होने से बचाएगा और यही संदेश गाने में जो मेलोडी की कमी है उसे पूरा करेगा। इसलिए मुझे इस गाने पर फख्र है। उन्नी के साथ यह मेरा पहला गाना है। भले हीं उन्नी ने इस जौनर का कोई भी गाना पहले नहीं गाया है, लेकिन पहले प्रयास में हीं उन्नी ने इस गाने को बखूबी निभाया है।

उन्नीकृष्णन के बी: ये एक बहुत ही शानदार तजुर्बा रहा मेरे लिए. अमूमन मैं कुछ शास्त्रीय या राग आधारित रोमांटिक गीत गाना अधिक पसंद करता था, पर ये गाना अपने संगीत में, शब्दों में ट्रीटमेंट में हर लिहाज से एकदम अलग था. इसे गाने के लिए मुझे अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आना था, ऋषि और वी डी का ये आईडिया था और उन्हें इस पर पूरा विश्वास भी था, संशय था तो बस मुझे था क्योंकि मेरे लिए ये स्टाईल बिलकुल अलग था, पर इन दोनों के निर्देशन में मैंने ये कोशिश की, और मुझे गर्व है जो भी अंतिम परिणाम आया है, इस गीत का हिस्सा मुझे बनाया इसके लिए मैं ऋषि और वी डी का शुक्रगुजार हूँ.

विश्व दीपक तन्हा: बहुत दिनों से मेरी चाहत थी कि ऐसा हीं कुछ लिखूँ, लेकिन सही मौका नहीं मिल पा रहा था। फिर एक दिन ऋषि जी ने इस गाने का ट्युन भेजा। पहली मर्तबा सुनने पर हीं यह जाहिर हो गया कि इसके साथ कुछ अलग किया जा सकता है। लेकिन ऋषि जी ने समय की कमी का हवाला देकर यह कह दिया कि आप जो कुछ भी लिख सकते हो, लिख दो, जरूरी नहीं कि हम कोई ठोस संदेश दे हीं। फिर भी मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि कुछ न कुछ संदेश तो होगा हीं, क्योंकि किसी मस्ती भरे गाने के माध्यम से अगर हम समाज को मैसेज़ देने में कामयाब होते हैं तो इसमें हमारी जीत है। मैने उन्हें यह भी यकीन दिलाया कि मैं इसे लिखने में ज्यादा समय न लूँगा, इसलिए आप मेरी तरफ से निश्चिंत रहें। गाना लिखने के दौरान मैंने एक-दो जगहों पर ट्युन से भी छेड़-छाड़ की, जैसे "बेताल फिर डाल पर" यह पंक्ति कहीं भी फिट नहीं हो रही थी, फिर भी ऋषि जी ने मेरी भावनाओं का सम्मान करते हुए बोल के हिसाब से धुन में परिवर्त्तन कर दिया। गाने के बोल और धुन तैयार हो जाने के बाद गायक की बात आई तो ऋषि जी ने उन्नी के नाम का सुझाव दिया। मैने उन्नी को पहले सुना था और मुझे उनकी आवाज़ पसंद भी आई थी, इसलिए मैंने भी हामी भर दी। मेरे हिसाब से उन्नी ने इस गाने के लिए अच्छी-खासी मेहनत की है और यह मेहनत गाने में दिखती है। हम तीनों ने मिलकर जितना हो सकता था, उतना "आक्रोश" इस गाने में डाला है.. उम्मीद करता हूँ कि आप तक हमारी यह फीलिंग पहूँचेगी। और हाँ, इस गाने के अंतिम ५ या १० सेकंड मेरी आवाज़ में हैं। ऋषि जी कहते हैं कि यह मेरी गायकी की शुरूआत है, आपको भी ऐसा लगता है क्या? :)
उन्नीकृष्णन के बी
उन्नीकृष्णन पेशे से कम्प्यूटर इन्जीनियर हैं लेकिन संगीत का शौक बचपन से ही रखते हैं। कर्नाटक शास्त्रीय संगीत में इन्होंने विधिवत शिक्षा प्राप्त की है तथा स्कूल व कालिज में भी स्टेज पर गाते आये हैं। नौकरी शुरू करने के बाद कुछ समय तक उन्नी संगीत को अपनी दिनचर्या में शामिल नहीं कर पाये मगर पिछले काफी वक्त से वो फिर से नियमित रूप से रियाज़ कर रहे हैं‚ हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ले रहे हैं‚ गाने रिकार्ड कर रहे हैं और आशा करते हैं कि अपनी आवाज़ के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचें।

ऋषि एस
ऋषि एस॰ ने हिन्द-युग्म पर इंटरनेट की जुगलबंदी से संगीतबद्ध गीतों के निर्माण की नींव डाली है। पेशे से इंजीनियर ऋषि ने सजीव सारथी के बोलों (सुबह की ताज़गी) को अक्टूबर 2007 में संगीतबद्ध किया जो हिन्द-युग्म का पहला संगीतबद्ध गीत बना। हिन्द-युग्म के पहले एल्बम 'पहला सुर' में ऋषि के 3 गीत संकलित थे। ऋषि ने हिन्द-युग्म के दूसरे संगीतबद्ध सत्र में भी 5 गीतों में संगीत दिया। हिन्द-युग्म के थीम-गीत को भी संगीतबद्ध करने का श्रेय ऋषि एस॰ को जाता है। इसके अतिरिक्त ऋषि ने भारत-रूस मित्रता गीत 'द्रुजबा' को संगीत किया। मातृ दिवस के उपलक्ष्य में भी एक गीत का निर्माण किया। भारतीय फिल्म संगीत को कुछ नया देने का इरादा रखते हैं।

विश्व दीपक तन्हा
विश्व दीपक हिन्द-युग्म की शुरूआत से ही हिन्द-युग्म से जुड़े हैं। आई आई टी, खड़गपुर से कम्प्यूटर साइंस में बी॰टेक॰ विश्व दीपक इन दिनों पुणे स्थित एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। अपनी विशेष कहन शैली के लिए हिन्द-युग्म के कविताप्रेमियों के बीच लोकप्रिय विश्व दीपक आवाज़ का चर्चित स्तम्भ 'महफिल-ए-ग़ज़ल' के स्तम्भकार हैं। विश्व दीपक ने दूसरे संगीतबद्ध सत्र में दो गीतों की रचना की। इसके अलावा दुनिया भर की माँओं के लिए एक गीत को लिखा जो काफी पसंद किया गया।
Song - Aaissi Kii Taiisi
Voice - Unnikrishnan K B
Backup voice - Rishi S
Music - Rishi S
Lyrics - Vishwa Deepak Tanha
Graphics - samarth garg


Song # 15, Season # 03, All rights reserved with the artists and Hind Yugm

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Comments

Anonymous said…
is gaane ko sunne me badaa mazaa aaya ! teeno me bahut accha kaam kiya hai ! bahut bahut badhaai :)
Kuhoo
i love the sounds rishi used to create the atmosphere, vd congrats for ur singing debut :)

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