ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 402/2010/102
'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कल से हमने शुरु की है आप ही के पसंदीदा गीतों पर आधारित लघु शृंखला 'पसंद अपनी अपनी'। आज इसकी दूसरी कड़ी में प्रस्तुत है रश्मि प्रभा जी के पसंद का एक गीत। इससे पहले कि हम रश्मि जी के पसंद के गाने का ज़िक्र करें, हम यह बताना चाहेंगे कि ये वही रश्मि जी हैं जो एक जानी मानी लेखिका हैं, और प्रकाशन की बात करें तो "कादम्बिनी" , "वांग्मय", "अर्गला", "गर्भनाल" के साथ साथ कई महत्त्वपूर्ण अखबारों में उनकी रचनायें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है जिसमें अभी हाल ही में हिंद युग्म से प्रकाशित "शब्दों का रिश्ता" भी शामिल है. जिन्हे मालूम नहीं उनके लिए हम यह बता दें कि रश्मि जी कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हैं और इनका नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त जी ने ही किया था। रश्मि जी आवाज़ से भी सक्रिय रूप से जुड़ी हुईं हैं और कविताओं के अलावा 'आवाज़' के 'गुनगुनाते लम्हे' सीरीज़ में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। तो रश्मि जी ने जिस गीत की फ़रमाइश की हैं वह एक बड़ा ही अनूठा और ख़ूबसूरत गीत है किशोर कुमार और सुधा मल्होत्रा का गाया हुआ, "कश्ती का ख़ामोश सफ़र है, शाम भी है तन्हाई भी, दूर किनारे पर बजती है लहरों की शहनाई भी"। फ़िल्म 'गर्ल फ़्रेंड' का यह गीत है जिसे लिखा है गीतकार साहिर लुधियानवी और संगीतकार हैं हेमन्त कुमार। इस गीत का फ़ॊरमैट थोड़ा अलग हट के है। गीत शुरु तो होता है उपर लिखे मुखड़े से, लेकिन इसके बाद ही आता है "आज मुझे कुछ कहना है, लेकिन यह शर्मीली निगाहें मुझको इजाज़त दें तो कहूँ..., आज मुझे कुछ कहना है"। "आज मुझे कुछ कहना है" को बतौर मुखड़ा ट्रीट किया जाता है कहीं कहीं। दरसल इस गीत को मुखड़े और अंतरे में विभाजित नहीं किया जा सकता। आप ख़ुद ही सुन कर अनुभव कीजिए। गीत ख़त्म होता है "छोड़ो अब क्या कहना है" के साथ। ये एक खूबसूरत नज़्म है साहिर साहब की लिखी हुई.
अभी हाल में मैंने एक एच.एम.वे की सी.डी खरीदी है 'किशोर सिंग्स फ़ॊर किशोर', जिसमें इस गीत को शामिल किया गया है। दोस्तों, वैसे यह गीत आजकल बहुत कम ही सुनाई देता है, लेकिन कितना सुंदर गीत है। किशोर दा के गाए सॊफ़्ट रोमांटिक गीतों में इस गीत का दर्जा बहुत ऊँचा होना चाहिए। जितने सुंदर बोल साहिर साहब ने लिखे हैं, उतनी ही ख़ूबसूरत धुन है हेमन्त दा का, और गीत को सुन कर ऐसा लगता है जैसे इन दोनों गायकों के लिए ही बना था यह गाना। सुधा मल्होत्रा वैसे तो कमचर्चित ही रह गईं, लेकिन इस तरह के बहुत से सुमधुर सुरीले गीत उन्होने गाए हैं जिन्हे आज सुनो तो दिल उदास हो जाता है यह सोच कर कि ऐसे सुरीले गीतों को गाने वाली गायिका को वह मुक़ाम क्यों नहीं हासिल हुआ जिसकी वो हक़दार थीं। 'गर्ल फ़्रेंड' १९६० की फ़िल्म थी जिसके मुख्य कलाकार थे किशोर कुमार व वहीदा रहमान। सत्येन बोस निर्देशित इस फ़िल्म का निर्माण किया था बासु चटर्जी ने। किशोर कुमार ने लता मंगेशकर और आशा भोसले के साथ ही ज़्यादातर युगल गीत गाए हैं। लेकिन कुछ ऐसी ऐसी गायिकाओं के साथ भी गाए हैं जिनके साथ उनके जोड़ी की कल्पना करना मुश्किल सा लगता है। जैसे कि शमशाद बेग़म, गीता दत्त, सुधा मल्होत्रा, सुलक्षणा पण्डित आदि। तो आइए आज का यह गीत सुना जाए और रश्मि जी का हम शुक्रिया अदा करना चाहेंगे इतनी ख़ूबसूरत गीत को चुनने के लिए।
क्या आप जानते हैं...
कि बतौर संगीतकार किशोर कुमार की पहली फ़िल्म थी १९६१ की 'झुमरू' और अंतिम फ़िल्म थी १९८९ की 'ममता की छाँव में', जो उनकी मृत्यु के दो साल बाद प्रदर्शित हुई थी।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मुखड़े में शब्द है -"जियरा", गायिका का नाम बताएं-३ अंक.
2. फिल्म के नाम में "चाँद" शब्द है, निर्देशक बताएं- २ अंक.
3. गीतकार बताएं -२ अंक.
4. ठंडी फुहारों सा मन को भाता ये गीत किस संगीतकार की दें है-२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी एक दम सही, आपको तो मानना पड़ेगा, पदम जी, इंदु और अवध जी खरे उतरे परीक्षा में
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कल से हमने शुरु की है आप ही के पसंदीदा गीतों पर आधारित लघु शृंखला 'पसंद अपनी अपनी'। आज इसकी दूसरी कड़ी में प्रस्तुत है रश्मि प्रभा जी के पसंद का एक गीत। इससे पहले कि हम रश्मि जी के पसंद के गाने का ज़िक्र करें, हम यह बताना चाहेंगे कि ये वही रश्मि जी हैं जो एक जानी मानी लेखिका हैं, और प्रकाशन की बात करें तो "कादम्बिनी" , "वांग्मय", "अर्गला", "गर्भनाल" के साथ साथ कई महत्त्वपूर्ण अखबारों में उनकी रचनायें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है जिसमें अभी हाल ही में हिंद युग्म से प्रकाशित "शब्दों का रिश्ता" भी शामिल है. जिन्हे मालूम नहीं उनके लिए हम यह बता दें कि रश्मि जी कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हैं और इनका नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त जी ने ही किया था। रश्मि जी आवाज़ से भी सक्रिय रूप से जुड़ी हुईं हैं और कविताओं के अलावा 'आवाज़' के 'गुनगुनाते लम्हे' सीरीज़ में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। तो रश्मि जी ने जिस गीत की फ़रमाइश की हैं वह एक बड़ा ही अनूठा और ख़ूबसूरत गीत है किशोर कुमार और सुधा मल्होत्रा का गाया हुआ, "कश्ती का ख़ामोश सफ़र है, शाम भी है तन्हाई भी, दूर किनारे पर बजती है लहरों की शहनाई भी"। फ़िल्म 'गर्ल फ़्रेंड' का यह गीत है जिसे लिखा है गीतकार साहिर लुधियानवी और संगीतकार हैं हेमन्त कुमार। इस गीत का फ़ॊरमैट थोड़ा अलग हट के है। गीत शुरु तो होता है उपर लिखे मुखड़े से, लेकिन इसके बाद ही आता है "आज मुझे कुछ कहना है, लेकिन यह शर्मीली निगाहें मुझको इजाज़त दें तो कहूँ..., आज मुझे कुछ कहना है"। "आज मुझे कुछ कहना है" को बतौर मुखड़ा ट्रीट किया जाता है कहीं कहीं। दरसल इस गीत को मुखड़े और अंतरे में विभाजित नहीं किया जा सकता। आप ख़ुद ही सुन कर अनुभव कीजिए। गीत ख़त्म होता है "छोड़ो अब क्या कहना है" के साथ। ये एक खूबसूरत नज़्म है साहिर साहब की लिखी हुई.
अभी हाल में मैंने एक एच.एम.वे की सी.डी खरीदी है 'किशोर सिंग्स फ़ॊर किशोर', जिसमें इस गीत को शामिल किया गया है। दोस्तों, वैसे यह गीत आजकल बहुत कम ही सुनाई देता है, लेकिन कितना सुंदर गीत है। किशोर दा के गाए सॊफ़्ट रोमांटिक गीतों में इस गीत का दर्जा बहुत ऊँचा होना चाहिए। जितने सुंदर बोल साहिर साहब ने लिखे हैं, उतनी ही ख़ूबसूरत धुन है हेमन्त दा का, और गीत को सुन कर ऐसा लगता है जैसे इन दोनों गायकों के लिए ही बना था यह गाना। सुधा मल्होत्रा वैसे तो कमचर्चित ही रह गईं, लेकिन इस तरह के बहुत से सुमधुर सुरीले गीत उन्होने गाए हैं जिन्हे आज सुनो तो दिल उदास हो जाता है यह सोच कर कि ऐसे सुरीले गीतों को गाने वाली गायिका को वह मुक़ाम क्यों नहीं हासिल हुआ जिसकी वो हक़दार थीं। 'गर्ल फ़्रेंड' १९६० की फ़िल्म थी जिसके मुख्य कलाकार थे किशोर कुमार व वहीदा रहमान। सत्येन बोस निर्देशित इस फ़िल्म का निर्माण किया था बासु चटर्जी ने। किशोर कुमार ने लता मंगेशकर और आशा भोसले के साथ ही ज़्यादातर युगल गीत गाए हैं। लेकिन कुछ ऐसी ऐसी गायिकाओं के साथ भी गाए हैं जिनके साथ उनके जोड़ी की कल्पना करना मुश्किल सा लगता है। जैसे कि शमशाद बेग़म, गीता दत्त, सुधा मल्होत्रा, सुलक्षणा पण्डित आदि। तो आइए आज का यह गीत सुना जाए और रश्मि जी का हम शुक्रिया अदा करना चाहेंगे इतनी ख़ूबसूरत गीत को चुनने के लिए।
क्या आप जानते हैं...
कि बतौर संगीतकार किशोर कुमार की पहली फ़िल्म थी १९६१ की 'झुमरू' और अंतिम फ़िल्म थी १९८९ की 'ममता की छाँव में', जो उनकी मृत्यु के दो साल बाद प्रदर्शित हुई थी।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मुखड़े में शब्द है -"जियरा", गायिका का नाम बताएं-३ अंक.
2. फिल्म के नाम में "चाँद" शब्द है, निर्देशक बताएं- २ अंक.
3. गीतकार बताएं -२ अंक.
4. ठंडी फुहारों सा मन को भाता ये गीत किस संगीतकार की दें है-२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी एक दम सही, आपको तो मानना पड़ेगा, पदम जी, इंदु और अवध जी खरे उतरे परीक्षा में
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
ढेर सारा प्यार
आज फिर तुमने(आप लिखूं?)बहुत भावुक कर दिया.अगर मैं सही पहचान रही हूँ तों ये वो ही गाना है जो मुझे बहुत-३ पसंद है.शुरू की दो पंक्तियाँ सूली उपर सेज पिया की किस बिध मिलना होय'और म्युज़िक का वो छोटा सा टुकड़ा इंस्ट्रूमेंट क्या है नही मालुम पर जैसे वायलिन की आवाज जब उदास सुर छेड़ती है तों भीतर तक चीर जाती है,बस उसी तरह वो म्युज़िक का टुकड़ा मुझे फूट फूट कर रुलाने के लिए पर्याप्त है.
जब भी इस् गाने को सुनती हूँ जैसे राधे बन जाती हूँ कालिंदी के तट पर अपने कृष्ण की प्रतीक्षा करती राधे.
यकीन नही करोगे पर संगीत के जादू को महसूस करना है तों एकदम एकांत,शांत कमरा,पर्दे गिरे हुए हल्का हल्का अन्धेरा हो और लेट कर आँखे मूँद कर इस् गाने को सुनकर देखो 'वो' चुपके से आएगा और तुम्हे छू जायेगा.मेरे लिए ऐसे ही कुछ गीत 'उससे'मिलने का जरिया है.'वो' मेरा बदा प्यारा दोस्त है ,उसे ढूधने मंदिर,मस्जिद में नही जाना पड़ता मुझे.
प्यार
तुम्हारी दोस्त/आंटी
इंदु
बहुत प्यारा गीत है ..........
और एक अन्य लोकप्रिय गीत था मन्ना दा की आवाज़ में " फुल गेंदवा न मारो न मारो लगत करेजवा में चोट"
अवध लाल
अल्पनाजी के ब्लोग पर और मेरे ब्लोग पर इस गीत का वर्शन गाना है. इसे गाकर बहुत ही दिली सुकून हासिल हुआ.
पहेलियां बूझना मेरे बस का तो नही पर गाना शायद
जबसे बलम घर आये
जियरा मचल मचल जाये ।
गायिका लता मंगेश कर ।
... शुक्रिया क्या कहना , आज मुझे बस यही कहना है
Hamne to pahli baar hi suna Aaj...