Season 3 of new Music, Song # 02
नए संगीत के तीसरे सत्र की दूसरी कड़ी में हम हाज़िर हैं एक और ओरिजिनल गीत के साथ. एक बार फिर इन्टरनेट के माध्यम से पुणे और हैदराबाद के तार जुड़े और बना "मन बता" का ताना बाना. जी हाँ आज के इस नए और ताज़ा गीत का शीर्षक है - मन बता. ऋषि एस की संगीत प्रतिभा से आवाज़ के नए पुराने सभी श्रोता बखूबी परिचित हैं. जहाँ पहले सत्र में ऋषि के संगीतबद्ध ३ गीत थे तो दूसरे सत्र में भी उनके ६ गीत सजे. गीतकार विश्व दीपक "तन्हा" के साथ उनकी पैठ जमी, दूसरे सत्र के बाद प्रकाशित विशेष गीत जो खासकर "माँ" दिवस के लिए तैयार किया गया था, "माँ तो माँ है" को आवाज़ पर ख़ासा सराहा गया. तीसरी फनकारा जो इस गीत से जुडी हैं वो हैं, कुहू गुप्ता. कुहू ने "काव्यनाद" अल्बम में महादेवी वर्मा रचित "जो तुम आ जाते एक बार" को आवाज़ क्या दी. युग्म और इंटनेट से जुड़े सभी संगीतकारों को यकीं हो गया कि जिस गायिका की उन्हें तलाश थी वो कुहू के रूप में उन्हें मिल गयी हैं. ऋषि जो अक्सर महिला गायिका के अभाव में दोगाना या फीमेल सोलो रचने से कतराते थे, अब ऐसे ही गीतों के निर्माण में लग गए, और इसी कोशिश का एक नमूना है आज का ये गीत. इस गीत को एक फ्यूज़न गीत भी कहा जा सकता है, जिसमें टेक्नो साउंड (बोलों के साथ) और मेलोडी का बेहद सुन्दर मिश्रण किया गया है. टेक्नो पार्ट को आवाज़ दी है खुद ऋषि ने, तो दोस्तों आज सुनिए ये अनूठा गीत, और अपने स्नेह सुझावों से इन कलाकारों का मार्गदर्शन करें.
गीत के बोल -
male:
मन जाने ये अनजाने-से अफ़साने जो हैं,
समझाने को बहलाने को बहकाने को हैं..
मन तो है मुस्तफ़ा,
मन का ये फ़लसफ़ा,
मन को है बस पता..
मन होके मनचला,
करने को है चला,
उसपे ये सब फिदा..
female:
मन बता मैं क्या करूँ क्या कहूँ मैं और किस.. अदा से?
मन बता मैं क्या करूँ क्या कहूँ मैं और किस.. अदा से?
अंतरा
male:
जाने कब से चाहा लब से कह दूँ,
पूरे दम से जाके थम से कह दूँ,
आके अब कहीं,
माने मन नहीं,
मन का शुक्रिया....
female:
ओठों को मैं सी लूँ या कि खोलूँ, मन बता
आँखों से हीं सारी बातें बोलूँ, मन बता
आगे जाके साँसें उसकी पी लूँ, मन बता
बैठे बैठे मर लूँ या कि जी लूँ, मन बता..
बस कह दे तू तेरा फ़ैसला,
बस भर दे तू जो है फ़ासला..
मन बता मैं क्या करूँ क्या कहूँ मैं और किस.. अदा से?
मन बता मैं क्या करूँ क्या कहूँ मैं और किस.. अदा से?
गीत अब यहाँ उपलब्ध है
मेकिंग ऑफ़ "मन बता..." - गीत की टीम द्वारा
ऋषि एस - ये एक कोशिश है एक समकालीन ढंग के गीत को रचने की बिना मेलोडी के मूल्यों को खोये. गीतकार विशेष तारीफ़ के हक़दार हैं यहाँ, क्योंकि मुखड़े की धुन अपेक्षाकृत बेहद कठिन थी जिस पर शब्द बिठाना काफी मुश्किल काम था. गायिका के बारे में क्या कहूँ, वो अंतर्जालीय संगीत घरानों की सबसे लोकप्रिय गायिकाओं में से एक हैं. उनकी तारीफ़ में कुछ भी कहना कही बातों को दोहराना होगा. अब कुछ रोचक तथ्य सुनिए...मुझे खुद गाना पड़ा क्योंकि कोई पुरुष आवाज़ उपलब्ध नहीं थी, गीतकार के पास समय नहीं था इसलिए गीत रातों रात लिखवाना पड़ा...हा हा हा...पर उनके शब्दों की ताकत को सलाम करना पड़ेगा, कि 'मन बता मन बता' गाते गाते जिंदगी में भी दुविधा का माहौल बन गया था, मेरी भी और कुहू की भी....बाकी आप खुद कुहू से जानिये...
कुहू गुप्ता - ऋषि के साथ मैं इससे पहले २ गाने कर चुकी हूँ और इनकी रचनाओं की बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ. यह गाना मुझे पहली बार सुनने में ही बहुत पसंद आया. ख़ासकर इसमें जो टेक्नो और मेलोडी का मेल है वो एक ही बार में श्रोता का ध्यान आकर्षित करता है. विश्व ने हर बार की तरह बहुत ही सुन्दर शब्द लिख कर इस रचना को और सशक्त बनाया. अब बारी मेरी थी कि मैं इस गाने में अपनी पूरी क्षमता से स्वर भरूँ. स्वरों को अंतिम रूप देने में हमें काफी टेक और रिटेक लगे जिसमें ऋषि ने अपने धैर्य का भरपूर परिचय दिया. अंत में यही कहूँगी कि इस गाने को साथ करने में मुझे बहुत मज़ा आया.
विश्व दीपक "तन्हा"- यह गाना किन हालातों में बना.... यही बताना है ना? तो बात उस दौर की है, जब ऋषि जी मेरी एक कविता "मोहे पागल कर दे" को संगीतबद्ध करते-करते पागल-से हो गए थे.. कविता में कुछ बदलाव भी किए, धुन भी कई बार बदले लेकिन ऋषि जी थे कि संतुष्ट होने का नाम हीं नहीं ले रहे थे। फिर एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि यार.. "मोहे पागल कर दे" मैं बना तो दूँ, हमारे पास गायिका भी हैं (तब तक उन्होंने कुहू जी से बात भी कर ली थी) लेकिन मुझे मज़ा नहीं आ रहा। इसलिए सोचता हूँ कि इसे कुछ दिनों के लिए रोक दिया जाए, जब मूड बनेगा तो इसे फिर से शुरू करूँगा। फिर उन्होंने एक नई धुन पर काम करना शुरू किया। इस दौरान उनसे बातें होती रहीं.. और एक दफ़ा बातों-बातों में इस नए गाने की बात निकल पड़ी। उन्होंने तब तक यह निश्चय नहीं किया था कि गाना कौन लिखेगा...... तो मैंने मौके को दोनों हाथों से लपक लिया :) लेकिन मेरी यह मज़बूरी थी कि मैं अगले हीं हफ़्ते घर जाने वाला था..होली के लिए.. और वो भी एक हफ़्ते के लिए और ऋषि जी चाहते थे कि यह गाना होली वाले सप्ताह में बनकर तैयार हो जाए, वो इस गाने के लिए ज्यादा वक्त लेना नहीं चाहते थे। बात अटक गई... और उन्होंने मुझसे कह दिया (सोफ़्ट्ली एक धमकी-सी दी :) ) कि आप अगर इसे होली के पहले लिख पाओगे (क्योंकि गाने में मुखड़े की धुन दूसरे गानों जैसी सीधी-सीधी नहीं है) तो लिखो नहीं तो मैं इसे "सजीव" जी को दे देता हूँ। मैंने कहा कि अगर ऐसी बात है तो आपको यह गाना मैं दो दिनों में दो दूँगा.. और अगले दिन मैं आफ़िस में इसी गाने पर माथापच्ची करता रहा. कुछ पंक्तियाँ भी लिखीं और उन पंक्तियों को ऋषि जी को मेल कर दिया.. अच्छी बात है कि उन्हें ये पंक्तियाँ पसंद आईं लेकिन उन्हें लगा कि शब्द धुन पर सही से आ नहीं रहे। इसलिए रात को हम साथ-साथ बैठें (गूगल चैट एवं वोईस.. के सहारे) और हमने गाने का मुखड़ा तैयार कर लिया.. फिर अगली रात गाने का अंतरा. और इस तरह दो रातों की मेहनत के बाद गाने की धुन और गाने के बोल हमारे पास थे। ऋषि जी खुश...क्योंकि गाना बन चुका था... मैं खुश.. क्योंकि मैंने अपना वादा निभाया था.... और हम सब खुश.....क्योंकि कुहू जी इसे गाने जा रही थीं। इस गाने के बन जाने के बाद हमें यह भी यकीन हो गया कि साथ बैठकर गाना जल्दी और सही बनता है। इस गाने की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जिसे आज कल के जमाने का "ढिनचक ढिनचक" चाहिए...तो गाने में वो भी है (टेक्नो पार्ट) और जिसे पिछले जमाने की कोयल जैसी आवाज़ चाहिए तो उसके लिए कुहू जी है हीं। और हाँ... ऋषि जी ... आपकी आवाज़ भी कुछ कम नहीं है.. हा हा.... बस इस गाने में वो टेक्नो के पीछे छुप गया है. अगली बार सामने ले आईयेगा...... क्या कहते हैं? :)
ऋषि एस॰
ऋषि एस॰ ने हिन्द-युग्म पर इंटरनेट की जुगलबंदी से संगीतबद्ध गीतों के निर्माण की नींव डाली है। पेशे से इंजीनियर ऋषि ने सजीव सारथी के बोलों (सुबह की ताज़गी) को अक्टूबर 2007 में संगीतबद्ध किया जो हिन्द-युग्म का पहला संगीतबद्ध गीत बना। हिन्द-युग्म के पहले एल्बम 'पहला सुर' में ऋषि के 3 गीत संकलित थे। ऋषि ने हिन्द-युग्म के दूसरे संगीतबद्ध सत्र में भी 5 गीतों में संगीत दिया। हिन्द-युग्म के थीम-गीत को भी संगीतबद्ध करने का श्रेय ऋषि एस॰ को जाता है। इसके अतिरिक्त ऋषि ने भारत-रूस मित्रता गीत 'द्रुजबा' को संगीत किया। मातृ दिवस के उपलक्ष्य में भी एक गीत का निर्माण किया। भारतीय फिल्म संगीत को कुछ नया देने का इरादा रखते हैं।
कुहू गुप्ता
पुणे में रहने वाली कुहू गुप्ता पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। गायकी इनका जज्बा है। ये पिछले 6 वर्षों से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ले रही हैं। इन्होंने राष्ट्रीय स्तर की कई गायन प्रतिस्पर्धाओं में भाग लिया है और इनाम जीते हैं। इन्होंने ज़ी टीवी के प्रचलित कार्यक्रम 'सारेगामा' में भी 2 बार भाग लिया है। जहाँ तक गायकी का सवाल है तो इन्होंने कुछ व्यवसायिक प्रोजेक्ट भी किये हैं। वैसे ये अपनी संतुष्टि के लिए गाना ही अधिक पसंद करती हैं। इंटरनेट पर नये संगीत में रुचि रखने वाले श्रोताओं के बीच कुहू काफी चर्चित हैं। कुहू ने हिन्द-युग्म ताजातरीन एल्बम 'काव्यनाद' में महादेवी वर्मा की कविता 'जो तुम आ जाते एक बार' को गाया है, जो इस एल्बम का सबसे अधिक सराहा गया गीत है।
विश्व दीपक 'तन्हा'
विश्व दीपक हिन्द-युग्म की शुरूआत से ही हिन्द-युग्म से जुड़े हैं। आई आई टी, खड़गपुर से कम्प्यूटर साइंस में बी॰टेक॰ विश्व दीपक इन दिनों पुणे स्थित एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। अपनी विशेष कहन शैली के लिए हिन्द-युग्म के कविताप्रेमियों के बीच लोकप्रिय विश्व दीपक आवाज़ का चर्चित स्तम्भ 'महफिल-ए-ग़ज़ल' के स्तम्भकार हैं। विश्व दीपक ने दूसरे संगीतबद्ध सत्र में दो गीतों की रचना की। इसके अलावा दुनिया भर की माँओं के लिए एक गीत को लिखा जो काफी पसंद किया गया।
Song - Man Bata
Voices - Kuhoo Gupta, Rishi S
Music - Rishi S
Lyrics - Vishwa Deepak "tanha"
Graphics - Samarth Garg
Song # 02, Season # 03, All rights reserved with the artists and Hind Yugm
इस गीत का प्लेयर फेसबुक/ऑरकुट/ब्लॉग/वेबसाइट पर लगाइए
नए संगीत के तीसरे सत्र की दूसरी कड़ी में हम हाज़िर हैं एक और ओरिजिनल गीत के साथ. एक बार फिर इन्टरनेट के माध्यम से पुणे और हैदराबाद के तार जुड़े और बना "मन बता" का ताना बाना. जी हाँ आज के इस नए और ताज़ा गीत का शीर्षक है - मन बता. ऋषि एस की संगीत प्रतिभा से आवाज़ के नए पुराने सभी श्रोता बखूबी परिचित हैं. जहाँ पहले सत्र में ऋषि के संगीतबद्ध ३ गीत थे तो दूसरे सत्र में भी उनके ६ गीत सजे. गीतकार विश्व दीपक "तन्हा" के साथ उनकी पैठ जमी, दूसरे सत्र के बाद प्रकाशित विशेष गीत जो खासकर "माँ" दिवस के लिए तैयार किया गया था, "माँ तो माँ है" को आवाज़ पर ख़ासा सराहा गया. तीसरी फनकारा जो इस गीत से जुडी हैं वो हैं, कुहू गुप्ता. कुहू ने "काव्यनाद" अल्बम में महादेवी वर्मा रचित "जो तुम आ जाते एक बार" को आवाज़ क्या दी. युग्म और इंटनेट से जुड़े सभी संगीतकारों को यकीं हो गया कि जिस गायिका की उन्हें तलाश थी वो कुहू के रूप में उन्हें मिल गयी हैं. ऋषि जो अक्सर महिला गायिका के अभाव में दोगाना या फीमेल सोलो रचने से कतराते थे, अब ऐसे ही गीतों के निर्माण में लग गए, और इसी कोशिश का एक नमूना है आज का ये गीत. इस गीत को एक फ्यूज़न गीत भी कहा जा सकता है, जिसमें टेक्नो साउंड (बोलों के साथ) और मेलोडी का बेहद सुन्दर मिश्रण किया गया है. टेक्नो पार्ट को आवाज़ दी है खुद ऋषि ने, तो दोस्तों आज सुनिए ये अनूठा गीत, और अपने स्नेह सुझावों से इन कलाकारों का मार्गदर्शन करें.
गीत के बोल -
male:
मन जाने ये अनजाने-से अफ़साने जो हैं,
समझाने को बहलाने को बहकाने को हैं..
मन तो है मुस्तफ़ा,
मन का ये फ़लसफ़ा,
मन को है बस पता..
मन होके मनचला,
करने को है चला,
उसपे ये सब फिदा..
female:
मन बता मैं क्या करूँ क्या कहूँ मैं और किस.. अदा से?
मन बता मैं क्या करूँ क्या कहूँ मैं और किस.. अदा से?
अंतरा
male:
जाने कब से चाहा लब से कह दूँ,
पूरे दम से जाके थम से कह दूँ,
आके अब कहीं,
माने मन नहीं,
मन का शुक्रिया....
female:
ओठों को मैं सी लूँ या कि खोलूँ, मन बता
आँखों से हीं सारी बातें बोलूँ, मन बता
आगे जाके साँसें उसकी पी लूँ, मन बता
बैठे बैठे मर लूँ या कि जी लूँ, मन बता..
बस कह दे तू तेरा फ़ैसला,
बस भर दे तू जो है फ़ासला..
मन बता मैं क्या करूँ क्या कहूँ मैं और किस.. अदा से?
मन बता मैं क्या करूँ क्या कहूँ मैं और किस.. अदा से?
गीत अब यहाँ उपलब्ध है
मेकिंग ऑफ़ "मन बता..." - गीत की टीम द्वारा
ऋषि एस - ये एक कोशिश है एक समकालीन ढंग के गीत को रचने की बिना मेलोडी के मूल्यों को खोये. गीतकार विशेष तारीफ़ के हक़दार हैं यहाँ, क्योंकि मुखड़े की धुन अपेक्षाकृत बेहद कठिन थी जिस पर शब्द बिठाना काफी मुश्किल काम था. गायिका के बारे में क्या कहूँ, वो अंतर्जालीय संगीत घरानों की सबसे लोकप्रिय गायिकाओं में से एक हैं. उनकी तारीफ़ में कुछ भी कहना कही बातों को दोहराना होगा. अब कुछ रोचक तथ्य सुनिए...मुझे खुद गाना पड़ा क्योंकि कोई पुरुष आवाज़ उपलब्ध नहीं थी, गीतकार के पास समय नहीं था इसलिए गीत रातों रात लिखवाना पड़ा...हा हा हा...पर उनके शब्दों की ताकत को सलाम करना पड़ेगा, कि 'मन बता मन बता' गाते गाते जिंदगी में भी दुविधा का माहौल बन गया था, मेरी भी और कुहू की भी....बाकी आप खुद कुहू से जानिये...
कुहू गुप्ता - ऋषि के साथ मैं इससे पहले २ गाने कर चुकी हूँ और इनकी रचनाओं की बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ. यह गाना मुझे पहली बार सुनने में ही बहुत पसंद आया. ख़ासकर इसमें जो टेक्नो और मेलोडी का मेल है वो एक ही बार में श्रोता का ध्यान आकर्षित करता है. विश्व ने हर बार की तरह बहुत ही सुन्दर शब्द लिख कर इस रचना को और सशक्त बनाया. अब बारी मेरी थी कि मैं इस गाने में अपनी पूरी क्षमता से स्वर भरूँ. स्वरों को अंतिम रूप देने में हमें काफी टेक और रिटेक लगे जिसमें ऋषि ने अपने धैर्य का भरपूर परिचय दिया. अंत में यही कहूँगी कि इस गाने को साथ करने में मुझे बहुत मज़ा आया.
विश्व दीपक "तन्हा"- यह गाना किन हालातों में बना.... यही बताना है ना? तो बात उस दौर की है, जब ऋषि जी मेरी एक कविता "मोहे पागल कर दे" को संगीतबद्ध करते-करते पागल-से हो गए थे.. कविता में कुछ बदलाव भी किए, धुन भी कई बार बदले लेकिन ऋषि जी थे कि संतुष्ट होने का नाम हीं नहीं ले रहे थे। फिर एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि यार.. "मोहे पागल कर दे" मैं बना तो दूँ, हमारे पास गायिका भी हैं (तब तक उन्होंने कुहू जी से बात भी कर ली थी) लेकिन मुझे मज़ा नहीं आ रहा। इसलिए सोचता हूँ कि इसे कुछ दिनों के लिए रोक दिया जाए, जब मूड बनेगा तो इसे फिर से शुरू करूँगा। फिर उन्होंने एक नई धुन पर काम करना शुरू किया। इस दौरान उनसे बातें होती रहीं.. और एक दफ़ा बातों-बातों में इस नए गाने की बात निकल पड़ी। उन्होंने तब तक यह निश्चय नहीं किया था कि गाना कौन लिखेगा...... तो मैंने मौके को दोनों हाथों से लपक लिया :) लेकिन मेरी यह मज़बूरी थी कि मैं अगले हीं हफ़्ते घर जाने वाला था..होली के लिए.. और वो भी एक हफ़्ते के लिए और ऋषि जी चाहते थे कि यह गाना होली वाले सप्ताह में बनकर तैयार हो जाए, वो इस गाने के लिए ज्यादा वक्त लेना नहीं चाहते थे। बात अटक गई... और उन्होंने मुझसे कह दिया (सोफ़्ट्ली एक धमकी-सी दी :) ) कि आप अगर इसे होली के पहले लिख पाओगे (क्योंकि गाने में मुखड़े की धुन दूसरे गानों जैसी सीधी-सीधी नहीं है) तो लिखो नहीं तो मैं इसे "सजीव" जी को दे देता हूँ। मैंने कहा कि अगर ऐसी बात है तो आपको यह गाना मैं दो दिनों में दो दूँगा.. और अगले दिन मैं आफ़िस में इसी गाने पर माथापच्ची करता रहा. कुछ पंक्तियाँ भी लिखीं और उन पंक्तियों को ऋषि जी को मेल कर दिया.. अच्छी बात है कि उन्हें ये पंक्तियाँ पसंद आईं लेकिन उन्हें लगा कि शब्द धुन पर सही से आ नहीं रहे। इसलिए रात को हम साथ-साथ बैठें (गूगल चैट एवं वोईस.. के सहारे) और हमने गाने का मुखड़ा तैयार कर लिया.. फिर अगली रात गाने का अंतरा. और इस तरह दो रातों की मेहनत के बाद गाने की धुन और गाने के बोल हमारे पास थे। ऋषि जी खुश...क्योंकि गाना बन चुका था... मैं खुश.. क्योंकि मैंने अपना वादा निभाया था.... और हम सब खुश.....क्योंकि कुहू जी इसे गाने जा रही थीं। इस गाने के बन जाने के बाद हमें यह भी यकीन हो गया कि साथ बैठकर गाना जल्दी और सही बनता है। इस गाने की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जिसे आज कल के जमाने का "ढिनचक ढिनचक" चाहिए...तो गाने में वो भी है (टेक्नो पार्ट) और जिसे पिछले जमाने की कोयल जैसी आवाज़ चाहिए तो उसके लिए कुहू जी है हीं। और हाँ... ऋषि जी ... आपकी आवाज़ भी कुछ कम नहीं है.. हा हा.... बस इस गाने में वो टेक्नो के पीछे छुप गया है. अगली बार सामने ले आईयेगा...... क्या कहते हैं? :)
ऋषि एस॰
ऋषि एस॰ ने हिन्द-युग्म पर इंटरनेट की जुगलबंदी से संगीतबद्ध गीतों के निर्माण की नींव डाली है। पेशे से इंजीनियर ऋषि ने सजीव सारथी के बोलों (सुबह की ताज़गी) को अक्टूबर 2007 में संगीतबद्ध किया जो हिन्द-युग्म का पहला संगीतबद्ध गीत बना। हिन्द-युग्म के पहले एल्बम 'पहला सुर' में ऋषि के 3 गीत संकलित थे। ऋषि ने हिन्द-युग्म के दूसरे संगीतबद्ध सत्र में भी 5 गीतों में संगीत दिया। हिन्द-युग्म के थीम-गीत को भी संगीतबद्ध करने का श्रेय ऋषि एस॰ को जाता है। इसके अतिरिक्त ऋषि ने भारत-रूस मित्रता गीत 'द्रुजबा' को संगीत किया। मातृ दिवस के उपलक्ष्य में भी एक गीत का निर्माण किया। भारतीय फिल्म संगीत को कुछ नया देने का इरादा रखते हैं।
कुहू गुप्ता
पुणे में रहने वाली कुहू गुप्ता पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। गायकी इनका जज्बा है। ये पिछले 6 वर्षों से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ले रही हैं। इन्होंने राष्ट्रीय स्तर की कई गायन प्रतिस्पर्धाओं में भाग लिया है और इनाम जीते हैं। इन्होंने ज़ी टीवी के प्रचलित कार्यक्रम 'सारेगामा' में भी 2 बार भाग लिया है। जहाँ तक गायकी का सवाल है तो इन्होंने कुछ व्यवसायिक प्रोजेक्ट भी किये हैं। वैसे ये अपनी संतुष्टि के लिए गाना ही अधिक पसंद करती हैं। इंटरनेट पर नये संगीत में रुचि रखने वाले श्रोताओं के बीच कुहू काफी चर्चित हैं। कुहू ने हिन्द-युग्म ताजातरीन एल्बम 'काव्यनाद' में महादेवी वर्मा की कविता 'जो तुम आ जाते एक बार' को गाया है, जो इस एल्बम का सबसे अधिक सराहा गया गीत है।
विश्व दीपक 'तन्हा'
विश्व दीपक हिन्द-युग्म की शुरूआत से ही हिन्द-युग्म से जुड़े हैं। आई आई टी, खड़गपुर से कम्प्यूटर साइंस में बी॰टेक॰ विश्व दीपक इन दिनों पुणे स्थित एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। अपनी विशेष कहन शैली के लिए हिन्द-युग्म के कविताप्रेमियों के बीच लोकप्रिय विश्व दीपक आवाज़ का चर्चित स्तम्भ 'महफिल-ए-ग़ज़ल' के स्तम्भकार हैं। विश्व दीपक ने दूसरे संगीतबद्ध सत्र में दो गीतों की रचना की। इसके अलावा दुनिया भर की माँओं के लिए एक गीत को लिखा जो काफी पसंद किया गया।
Song - Man Bata
Voices - Kuhoo Gupta, Rishi S
Music - Rishi S
Lyrics - Vishwa Deepak "tanha"
Graphics - Samarth Garg
Song # 02, Season # 03, All rights reserved with the artists and Hind Yugm
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Comments
मेरी एक कविता का शीर्षक यहाँ गीत बन गया ...क्या बात है ...
बधाई ...!!
Kuhu ko indore me sunaa thaa, ab to bahut hi umdaa aa rahee hai.
pooraa prayas eksadam film ke star par hai.
J.M.SOREN
आप सभी लोग, जो की professionally संगीत के क्ष्रेत्र में नहीं हैं बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं.
लगे रहो, ऊपर वाला हुनर और भी दे !
ऋषि / कुहु और विश्वदीपक जी, सभी को बधाई !