ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 395/2010/95
भारतीय शास्त्रीय संगीत की यह विशिष्टता रही है कि हर मौसम, हर ऋतु के हिसाब से इसे गाया जा सकता है। तो ज़ाहिर है कि सावन पर भी कई राग प्रचलित होंगे। मल्हार, मेघ, मेघ मल्हार, मियाँ की मल्हार, गौर मल्हार इन्ही रागों में से एक है। आज 'सखी सहेली' शृंखला के अंतरगत हमने जिस युगल गीत को चुना है, वह आधारित है राग गौर मल्हार पर। "गरजत बरसत सावन आयो रे", फ़िल्म 'बरसात की रात' का यह गीत है जिसे सुमन कल्याणपुर और कमल बारोट ने गाया है। साहिर लुधियानवी के बोल और रोशन साहब की तर्ज़। इसी राग पर वसंत देसाई ने भी फ़िल्म 'आशीर्वाद' में एक गाना बनाया था "झिर झिर बरसे सावनी अखियाँ, सांवरिया घर आ"। 'बरसात की रात' रोशन साहब के करीयर की एक महत्वपूर्ण फ़िल्म साबित हुई। इस फ़िल्म के हर एक गीत में कुछ ना कुछ अलग बात थी। और क्यों ना हो जब फ़िल्म की कहानी ही एक क़व्वाली प्रतियोगिता के इर्द गिर्द घूम रही हो। ज़ाहिर है कि इस फ़िल्म में कई क़व्वालियाँ थीं जैसे कि "ना तो कारवाँ की तलाश है", "निगाह-ए-नाज़ के मारों का हाल क्या होगा" और "पहचानता हूँ ख़ूब तुम्हारी नज़र को मैं"। फ़िल्मों में क़व्वालियों को लोकप्रिय बनाने में रोशन साहब के योगदान को सभी स्वीकारते हैं। लेकिन यह फ़िल्म क़व्वाली से नहीं शुरु होती बल्कि आज के प्रस्तुत शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीत के साथ। एक तरफ़ रोशन साहब की क़व्वालियाँ, और दूसरी तरफ़ शास्त्रीय संगीत में इस तरह की दक्षता। और दक्षता क्यों ना हो जब उन्हे उस्ताद अल्लाउद्दिन ख़ान साहब से संगीत सीखने का मौका मिला था! सुमन और कमल जी के गाए इस गीत का जो शुरुआती संगीत है, उसे किसी ज़माने में विविध भारती के शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम 'संगीत सरिता' के शीर्षक धुन के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। इस गीत के बहाने क्यों ना आपको कुछ और ऐसी सावनी गीतों की याद दिलाई जाए जो शास्रीय संगीत पर आधारित है! "कहाँ से आए बदरा घुलता जाए कजरा" (चश्म-ए-बद्दूर), कारे कारे बदरा सूनी सूनी रतिया" (मेरा नाम जोकर), डर लागे गरजे बदरिया (राम राज्य), "सावन आए या ना आए" (मेरी सूरत तेरी आँखें), "जा रे बदरा बैरी जा" (बहाना), "ओ सजना बरखा बहार आई" (परख), "घर आजा घिर आए बदरा सांवरिया" (छोटे नवाब), "अजहूँ ना आए साजना सावन बीता जाए" (सांझ और सवेरा), आदि।
दोस्तों, आज हम थोड़ी बातें करते हैं गायिका कमल बारोट की। कमल बारोट ने दूसरी गायिका के रूप में असंख्य युगल गीत और क़व्वालियाँ गाईं हैं, जिनमें से कई बेहद कामयाब भी रहे हैं। क्योंकि इन दिनों ज़िक्र छिड़ा हुआ है फ़ीमेल डुएट्स की, तो चलिए इसी बहाने हम याद करें कमल बारोट के गाए कुछ फ़ीमेल डुएट्स की। १९६१ में आशा भोसले के साथ उनका गाया हुआ फ़िल्म 'घराना' का यह बच्चों वाला गाना "दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ" उस साल अमीन सायानी के वार्षिक गीत माला के २६-वे पायदान पर रहा। लता मंगेशकर के साथ "हँसता हुआ नूरानी चेहरा" और "अकेली मोहे छोड़ ना जाना", ये दोनों गीत बेहद लोकप्रिय रहे। कमल बारोट के कुछ और फ़ीमेल डुएट्स इस प्रकार हैं -शमशाद बेग़म के साथ "अल्लाह तेरी आहों में इतना असर दे" (एक दिन का बादशाह), मुबारक़ बेग़म के साथ "मतवारे सांवरिया के नैना" (हम एक हैं), मिनू पुरुषोत्तम के साथ "आँखों में कोई यादों में कोई" (काला चश्मा), कृष्णा कल्ले के साथ "छुट्टी आ गई ढोल बजाएँगे" (नौनिहाल), उषा मंगेशकर के साथ "हमें ये दुनिया वाले प्यार का इल्ज़ाम दें" (बड़ा आदमी), उषा तिमोथी के साथ "जइयो ना जमना पे अकेली तुम राधा" (सती नारी), आशा भोसले व उषा मंगेशकर के साथ "लुट जा लुट जा ये ही दिन है लुट जा" (आँखें), और भी तमाम गानें हैं इस तरह के। दोस्तों, सावन का महीना तो अभी बहुत दूर है, उससे पहले हमें चिलचिलाती गरमी का सामना भी करना है, लेकिन कम से कम इस गीत के माध्यम से हम सावन का मन ही मन आनंद तो ले ही सकते हैं। 'सखी सहेली' में आज सुमन कल्याणपुर और कमल बारोट की युगल आवाज़ें, प्रस्तुत है।
क्या आप जानते हैं...
कि सुमन कल्याणपुर का गाया पहला हिंदी फ़िल्मी गीत है 'मंगू' फ़िल्म का "कोई पुकारे धीरे से", जिसके संगीतकार थे मोहम्मद शफ़ी।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. "पंख" और "पंछी" शब्द हैं मुखड़े में में, फिल्म का नाम बताएं -३ अंक.
2. हेमलता के साथ किस गायिका ने इस गीत में आवाज़ मिलायी है - २ अंक.
3. हेमंत कुमार के संगीत निर्देशन में किस गीतकार ने लिखा था इस गीत को-२ अंक.
4. कौन थे फिल्म के प्रमुख अदाकार बताएं -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी बहुत बधाई, साथ में इंदु जी, पदम जी और अवध जी को बधाई, मनु जी बहुत दिनों बाद लौटे, वंदना जी सभी जवाब आपने नहीं देने हैं, कृपया नियमों को पढ़ें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
भारतीय शास्त्रीय संगीत की यह विशिष्टता रही है कि हर मौसम, हर ऋतु के हिसाब से इसे गाया जा सकता है। तो ज़ाहिर है कि सावन पर भी कई राग प्रचलित होंगे। मल्हार, मेघ, मेघ मल्हार, मियाँ की मल्हार, गौर मल्हार इन्ही रागों में से एक है। आज 'सखी सहेली' शृंखला के अंतरगत हमने जिस युगल गीत को चुना है, वह आधारित है राग गौर मल्हार पर। "गरजत बरसत सावन आयो रे", फ़िल्म 'बरसात की रात' का यह गीत है जिसे सुमन कल्याणपुर और कमल बारोट ने गाया है। साहिर लुधियानवी के बोल और रोशन साहब की तर्ज़। इसी राग पर वसंत देसाई ने भी फ़िल्म 'आशीर्वाद' में एक गाना बनाया था "झिर झिर बरसे सावनी अखियाँ, सांवरिया घर आ"। 'बरसात की रात' रोशन साहब के करीयर की एक महत्वपूर्ण फ़िल्म साबित हुई। इस फ़िल्म के हर एक गीत में कुछ ना कुछ अलग बात थी। और क्यों ना हो जब फ़िल्म की कहानी ही एक क़व्वाली प्रतियोगिता के इर्द गिर्द घूम रही हो। ज़ाहिर है कि इस फ़िल्म में कई क़व्वालियाँ थीं जैसे कि "ना तो कारवाँ की तलाश है", "निगाह-ए-नाज़ के मारों का हाल क्या होगा" और "पहचानता हूँ ख़ूब तुम्हारी नज़र को मैं"। फ़िल्मों में क़व्वालियों को लोकप्रिय बनाने में रोशन साहब के योगदान को सभी स्वीकारते हैं। लेकिन यह फ़िल्म क़व्वाली से नहीं शुरु होती बल्कि आज के प्रस्तुत शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीत के साथ। एक तरफ़ रोशन साहब की क़व्वालियाँ, और दूसरी तरफ़ शास्त्रीय संगीत में इस तरह की दक्षता। और दक्षता क्यों ना हो जब उन्हे उस्ताद अल्लाउद्दिन ख़ान साहब से संगीत सीखने का मौका मिला था! सुमन और कमल जी के गाए इस गीत का जो शुरुआती संगीत है, उसे किसी ज़माने में विविध भारती के शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम 'संगीत सरिता' के शीर्षक धुन के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। इस गीत के बहाने क्यों ना आपको कुछ और ऐसी सावनी गीतों की याद दिलाई जाए जो शास्रीय संगीत पर आधारित है! "कहाँ से आए बदरा घुलता जाए कजरा" (चश्म-ए-बद्दूर), कारे कारे बदरा सूनी सूनी रतिया" (मेरा नाम जोकर), डर लागे गरजे बदरिया (राम राज्य), "सावन आए या ना आए" (मेरी सूरत तेरी आँखें), "जा रे बदरा बैरी जा" (बहाना), "ओ सजना बरखा बहार आई" (परख), "घर आजा घिर आए बदरा सांवरिया" (छोटे नवाब), "अजहूँ ना आए साजना सावन बीता जाए" (सांझ और सवेरा), आदि।
दोस्तों, आज हम थोड़ी बातें करते हैं गायिका कमल बारोट की। कमल बारोट ने दूसरी गायिका के रूप में असंख्य युगल गीत और क़व्वालियाँ गाईं हैं, जिनमें से कई बेहद कामयाब भी रहे हैं। क्योंकि इन दिनों ज़िक्र छिड़ा हुआ है फ़ीमेल डुएट्स की, तो चलिए इसी बहाने हम याद करें कमल बारोट के गाए कुछ फ़ीमेल डुएट्स की। १९६१ में आशा भोसले के साथ उनका गाया हुआ फ़िल्म 'घराना' का यह बच्चों वाला गाना "दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ" उस साल अमीन सायानी के वार्षिक गीत माला के २६-वे पायदान पर रहा। लता मंगेशकर के साथ "हँसता हुआ नूरानी चेहरा" और "अकेली मोहे छोड़ ना जाना", ये दोनों गीत बेहद लोकप्रिय रहे। कमल बारोट के कुछ और फ़ीमेल डुएट्स इस प्रकार हैं -शमशाद बेग़म के साथ "अल्लाह तेरी आहों में इतना असर दे" (एक दिन का बादशाह), मुबारक़ बेग़म के साथ "मतवारे सांवरिया के नैना" (हम एक हैं), मिनू पुरुषोत्तम के साथ "आँखों में कोई यादों में कोई" (काला चश्मा), कृष्णा कल्ले के साथ "छुट्टी आ गई ढोल बजाएँगे" (नौनिहाल), उषा मंगेशकर के साथ "हमें ये दुनिया वाले प्यार का इल्ज़ाम दें" (बड़ा आदमी), उषा तिमोथी के साथ "जइयो ना जमना पे अकेली तुम राधा" (सती नारी), आशा भोसले व उषा मंगेशकर के साथ "लुट जा लुट जा ये ही दिन है लुट जा" (आँखें), और भी तमाम गानें हैं इस तरह के। दोस्तों, सावन का महीना तो अभी बहुत दूर है, उससे पहले हमें चिलचिलाती गरमी का सामना भी करना है, लेकिन कम से कम इस गीत के माध्यम से हम सावन का मन ही मन आनंद तो ले ही सकते हैं। 'सखी सहेली' में आज सुमन कल्याणपुर और कमल बारोट की युगल आवाज़ें, प्रस्तुत है।
क्या आप जानते हैं...
कि सुमन कल्याणपुर का गाया पहला हिंदी फ़िल्मी गीत है 'मंगू' फ़िल्म का "कोई पुकारे धीरे से", जिसके संगीतकार थे मोहम्मद शफ़ी।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. "पंख" और "पंछी" शब्द हैं मुखड़े में में, फिल्म का नाम बताएं -३ अंक.
2. हेमलता के साथ किस गायिका ने इस गीत में आवाज़ मिलायी है - २ अंक.
3. हेमंत कुमार के संगीत निर्देशन में किस गीतकार ने लिखा था इस गीत को-२ अंक.
4. कौन थे फिल्म के प्रमुख अदाकार बताएं -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी बहुत बधाई, साथ में इंदु जी, पदम जी और अवध जी को बधाई, मनु जी बहुत दिनों बाद लौटे, वंदना जी सभी जवाब आपने नहीं देने हैं, कृपया नियमों को पढ़ें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
ये गाना है?
ये ओल्ड इज गोल्ड है ?
किस एंगल से?
भैया हमको जीरो दे देदो ,इससे अच्छा है कि इस गाने को अपनी जुबान से गोल्ड कहूँ?
बाबा! क्या हो गया ही आप दोनों को?
jahan tk mera khayal hai.
bchpn me dekha 'porte' kuchh kuchh yaad aarha hai .
hlki bdhi shave sfed kpde...
chliye ydi pawan veg se udne wale ghode pr sawaar ho ke jwab nhi diya hai to apna jwab ..............ye hiiich
अवध लाल
पाबला भैया एन मौके पर कहाँ गायब हो जाते हैं आप ?
बचाइए न!