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मैंने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी....गुड्डो दादी की पसंद आज ओल्ड इस गोल्ड पर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 401/2010/101

'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में सभी श्रोताओं व पाठकों का फिर एक बार स्वागत है। पिछले दिनों हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए एक नए ई-मेल पते की शुरुआत की थी जिस पर हम आप से आपकी पसंद और सुझावों का स्वागत किया करते हैं। हमें बेहद ख़ुशी है कि आप में से कई 'आवाज़' के चाहनेवाले इस पते पर ना केवल अपनी पसंद लिख कर भेज रहे हैं, बल्कि साथ ही साथ सुझाव भी भेज रहे हैं और हमारी ग़लतियों को भी सुधार रहे हैं। हम पूरी कोशिश करते हैं कि आलेखों में लिखे जाने वाले तथ्य १००% सही हो, लेकिन कभी कभी ग़लतियाँ हो ही जाती हैं। इसलिए हम आप से फिर एक बार निवेदन करते हैं कि जब भी कभी आपको लगे कि दी जाने वाली जानकारी ग़लत है, तो हमें ज़रूर सूचित करें। और अब हम आते हैं आपकी पसंद पर। हमारा मतलब है, उन फ़रमाइशों पर जिन्हे आप ने की है हम से। जी हाँ, पिछले दिनों हमें आप की तरफ़ से जिन जिन गीतों को सुनवाने की फ़रमाइशें प्राप्त हुई हैं, उन्ही गीतों को लेकर हम आज से शुरु कर रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई लघु शृंखला 'पसंद अपनी अपनी'। हमारे ई-मेल पते पर सब से पहली पसंद जो हमें प्राप्त हुई है, वह है गुड्डो दादी का। दादी का आशीर्वाद हमारे साथ हमेशा रहा है और कई बार उन्होने हमारे इस प्रयास की सराहना भी की हैं। यहाँ तक कि सजीव जी के जन्मदिन पर अमेरीका से टेलीफ़ोन कर उन्होने शुभकामनाएँ दी थी। 'आवाज़' के इस माध्यम से जिस तरह का प्यार हम सब को मिला है और मिल रहा है, उसका मूल्यांकन कर पाना संभव नहीं। तो गुड्डो दादी की पसंद का गीत है फ़िल्म 'चन्द्रकान्ता' का "मैंने चांद और सितारों की तमन्ना की थी, मुझको रातों की स्याही के सिवा कुछ ना मिला"। मोहम्मद रफ़ी की आवाज़, एन. दत्ता का संगीत और गीतकार हैं साहिर लुधियानवी।

'चन्द्रकान्ता' १९५६ की फ़िल्म थी। सचिन देव बर्मन के सहायक के रूप में काम कर रहे एन. दत्ता को बतौर स्वतन्त्र संगीतकार पहला मौका दिया था जी. पी. सिप्पी ने १९५५ में फ़िल्म 'मरीन ड्राइव' में। इसके अगले ही साल, १९५६ में एन. दत्ता के संगीत से सजी दो फ़िल्में प्रदर्शित हुईं - 'दशहरा' और 'चन्द्रकान्ता'। रफ़ी साहब के गाए 'चंद्रकान्ता' के इस गीत ने एन. दत्ता को आपार ख्याति दिलाई। 'चन्द्रकान्ता' भी जी. पी. सिप्पी की ही फ़िल्म थी। दरअसल इस साल सिप्पी साहब ने दो फ़िल्में बनाई; एक तो थी 'चन्द्रकान्ता', और दूसरी फ़िल्म थी 'श्रीमति ४२०' जिसके लिए उन्होने ओ. पी. नय्यर को संगीतकार चुना था। भारत भूषण और बीना राय अभिनीत 'चन्द्रकान्ता' अगर आज लोगों की यादों में ताज़ा है तो सिर्फ़ इस गीत की वजह से। किस ख़ूबसूरती के साथ साहिर साहब ने जीवन के सपनों को चमकते चांद और सितारों के साथ तुलना की है, और दूसरी तरफ़ दुखों की तुलना रात के अंधकार से और अंधकार की तुलना काली स्याही से की है। अपनी व्यक्तिगत अनुभवों की वजह से साहिर साहब जब भी कभी इस तरह का ग़मज़दा नग़मा लिखते थे तो उसमें जैसे कलेजा चीर कर रख देते थे। दत्ता साहब की मेलडी में ढल कर किस तरह का पैथोस उभर कर आया है इस अंतरे में जब शायर लिखते हैं कि "प्यार मांगा तो सिसकते हुए अरमान मिले, चैन चाहा तो उमड़ते हुए तूफ़ान मिले, डूबते दिल ने किनारे की तमन्ना की थी, मैंने चांद और सितारों की तमन्ना की थी"। तो गुड्डो दादी, आपकी फरमाईश के इस गीत को सुनने और हम सब को सुनवाने की जो तमन्ना थी, वो तो हो रही है पूरी। आपका बहुत बहुत शुक्रिया और आगे भी इसी तरह से हमसे जुड़े रहिएगा। धन्यवाद!



क्या आप जानते हैं...
कि एन. दत्ता ने १९५६ में जिस 'दशहरा' नामक फ़िल्म में संगीत दिया था, उसी फ़िल्म में संगीतकार एस. एन. त्रिपाठी ने पर्दे पर एक भूमिका अदा की थी।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-

1. मुखड़े की पहली पंक्ति में शब्द है -"खामोश" फिल्म बताएं-३ अंक.
2. इस युगल गीत में एक आवाज़ सुधा मल्होत्रा की भी है, गायक बताएं- २ अंक.
3. सुधा जी को जिस शायर के साथ जोड़ कर देखा जाता है उन्हीं का लिखा है ये गीत,नाम बताएं-२ अंक.
4. संगीतकार कौन हैं इस खूबसूरत गीत के-२ अंक.

विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम-
इंदु जी आपका कार्यक्रम बढ़िया हो ये तो हम चाहेंगे, पर ओल्ड इस गोल्ड में हजारी भी जरूरी है याद रखिये, शरद जी शुक्रिया....आपके क्या कहने...अर्चना और अवध जी शुक्रिया

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

फ़िल्म का नाम है "गर्ल फ़्रेन्ड"
avadh lal said…
शायर साहिर लुधियानवी
अवध लाल
AVADH said…
पता नहीं कितना सच है पर कहते हैं कि इस गाने की सिचुएशन इन दोनों (शायर और गायिका)के वास्तविक जीवन से प्रेरित थी.
एक नौका में प्रेमी और प्रेमिका का वार्तालाप.
किश्ती का खामोश सफर
अवध लाल
संगीतकार - हेमंत कुमार
गायक - किशोर कुमार
प्रोग्राम बहुत धाँसू हुआ है जल्दी में हूँ .... वीडियो जल्दी ही मिलेगा ...बाय ... हा हा हा
Parasmani said…
मैंने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी...
दत्ता साहब की ये रचना, लगता है; जैसे सुनते ही रहें. रफ़ी साहब ने भी इस में जो दर्द भर दिया है, बेमिसाल है.
Anonymous said…
हिंदी युगम आपके पास गीतों का बहुत बड़ा कोरवों पांडवोंखाजाना है
चंद्रकांता चित्र का गीत
मैंने चंद सितारों की तमन्ना की थी
मुझे रातों की स्याही के सिवा कुछ न मिला
कितना दर्द है इस गीत के शब्दों में ,रफ़ी जी की दर्द भरी कांपती आवाज़
चित्र तो नहीं देखा
मिल भी नहीं रहा
यह गीत सारा दिन ही सुनती
धन्यवाद
आशीर्वाद के साथ
आपकी गुड्डोदादी चिकागो अमेरिका

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