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मैंने रंग ली आज चुनरिया....मदन साहब के संगीत से शुरू हुई ओल्ड इस गोल्ड की परंपरा में एक विराम उन्हीं की एक और संगीत रचना पर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 410/2010/110

'पसंद अपनी अपनी' शृंखला की आज है अंतिम कड़ी। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर युं तो इससे पहले भी पहेली प्रतियोगिता के विजेताओं को हमने अपनी फ़रमाइशी गानें सुनने और सुनवाने का मौका दिया है, लेकिन इस तरह से बिना किसी शर्त या प्रतियोगिता के फ़रमाइशी गीत सुनवाने का सिलसिला पहली बार हमने आयोजित किया है। आज इस पहले आयोजन की आख़िरी कड़ी है और इसमें हम सुनवा रहे हैं रश्मि प्रभा जी की फ़रमाइश पर फ़िल्म 'दुल्हन एक रात की' का लता मंगेशकर का गाया एक बड़ा ही सुंदर गीत "मैंने रंग ली आज चुनरिया सजना तेरे रंग में"। राजा मेहंदी अली ख़ान का गीत और मदन मोहन का संगीत। हमें ख़याल आया कि एक लम्बे समय से हमने 'ओल इज़ गोल्ड' पर मदन मोहन द्वारा स्वरबद्ध गीत नहीं सुनवाया है। तो लीजिए मदन जी के धुनों के शैदाईयों के लिए पेश है आज का यह गीत। युं तो चुनरिया रंगने की बात काफ़ी सारे गीतों में होती रही है, लेकिन इस गीत में जो मिठास है, जो सुरीलापन है, उसकी बात ही कुछ और है। इस फ़िल्म में रफ़ी साहब का गाया "एक हसीन शाम को दिल मेरा खो गया" गीत भी ख़ूब चला था। इसे भी हम आगे चलकर ज़रूर सुनवाएँगे। 'दुल्हन एक रात की' १९६८ की फ़िल्म थी। डी. डी. कश्यप निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे धर्मेन्द्र, नूतन, रहमान। थॊमस हार्डी की उपन्यास 'Tess of the D'Ubervilles' पर आधारित इस फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह की थी कि एक अमीर अंधी औरत का बिगड़ा हुआ बेटा उसकी माँ के लिए नियुक्त किए गए नर्स के साथ बलात्कार करता है, लेकिन उससे शादी करने से इंकार कर देता है। नर्स गर्भवती हो जाती है लेकिन बच्चा मर जाता है। नर्स अपनी ज़िंदगी जीती रहती है और अपने पुराने प्यार को वापस पाने की कोशिश करती है, लेकिन वह हादसा उसका पीछा नहीं छोड़ती और उसका बलात्कारी, जो अब बदल चुका है, उसकी ज़िंदगी में वापस आना चाहता है। यही है इसकी मूल कहानी। इतना पढ़ कर आप समझ गए होंगे कि 'दुल्हन एक रात की' शीर्षक कितना सार्थक है इस फ़िल्म के लिए।

दोस्तों, हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का जो स्वरूप पिछले ४१० कड़ियों से बरकरार रखा हुआ है, अब वक़्त आ गया है कि कुछ दिनों के लिए उसमें थोड़ा सा बदलाव किया जाए। कल से अगले ५० दिनों तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' एक अलग ही शक्ल में आप तक पहुंचेगा. हमें उम्मीद है कि आप इस बदले हुए स्वरूप को भी ठीक उसी तरह से गले लगाएँगे जिस तरह से अब तक इसे स्वीकारा है। यकीन मानिए कि हम फिर से वापस आएँगे अपने ऒरिजिनल फ़ॊरमैट में और गीतों के साथ साथ गीत से जुड़ी तमाम जानकारियाँ तथा पहेली प्रतियोगिता भी फिर एक बार लौट आएँगी, लेकिन अगले ५० दिनों में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर होगा कुछ अलग हट के। वैसे सजीव और मैं, हम दोनों की ही प्रस्तुति होगी, लेकिन कुछ अलग अंदाज़ में। कल से क्या बदलाव या क्या नया होने जा रहा है, इस सस्पेंस पर से परदा हम अभी नहीं उठाएँगे, उसके लिए तो आपको कल फिर से पधारना होगा हमारी महफ़िल में। तो बस इसी जानकारी के साथ कि हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के वर्तमान स्वरूप में आप से फिर मिलेंगे आज से ठीक ५० दिनों के बाद, आइए सुनते हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ४१०-वीं कड़ी में रश्मि प्रभा जी की फ़रमाइश पर फ़िल्म 'दुल्हन एक रात की' का यह गीत। आप सभी से अनुरोध है कि आप अपनी फ़रमाइशें हमें oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर भेजते रहिए। हो सकता है कि ५० दिनों के बाद जब हम वर्तमान स्वरूप में वापस आएँ तो सब से पहला गीत आप ही की पसंद का हो! तो जल्द से जल्द अपनी फ़रमाइश हमें लिख भेजिए और कीजिए बस थोड़ा सा इंतेज़ार! अब हम आप सब से इजाज़त चाहेंगे। बने रहिए 'आवाज़' और 'हिंद युग्म' के साथ। फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया तो! नमस्ते!



क्या आप जानते हैं...
कि राजा मेहंदी अली ख़ान, जिनकी जोड़ी संगीतकार मदन मोहन के साथ ख़ूब जमी, उन्होने अपना पहला फ़िल्मी गीत भी मदन मोहन के लिए ही लिखा था १९४७ की फ़िल्म 'दो भाई' में।

जाहिर है दोस्तों आज पहेली नहीं है, यकीं मानिये इतने दिनों तक आप सब को सवालों के जाल में फंसा कर हमें बहुत आनंद आता था, पर ये भी हम सर झुकाकर स्वीकार करते हैं कि आप सब गुणी श्रोताओं ने हर बार हमारी उम्मीदों से आगे बढ़कर कम से कम समय में सही जवाब पेश कर हमें अक्सर चौंकाया है. विशेषकर शरद जी का नाम हम लेना चाहेंगें, जिनके फिल्म संगीत ज्ञान के कायल हुआ बिना नहीं रहा जा सकता. जैसा कि सुजॉय ने बताया कि आने वाली ४५ कड़ियों में आप शरद जी, दिलीप कवठेकर जी, जैसे नियमित श्रोताओं का एक अन्य रूप में भी देखेंगें साथ ही कुछ नए फनकारों से भी आपका परिचय होगा. अनुरोध है कि अपना साथ और आशीर्वाद (उनके लिए जो बुजुर्ग हैं, इंदु जी के लिए नहीं :०) यूहीं बनाये रखियेगा.

विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

indu puri said…
प्रिय सुजॉय एवं सजीवजी ! आखिर आपने मान ही लिया कि मैं बुजुर्ग नहीं हूँ. हा हा हा वैसे बुजुर्ग होने में एक अलग ग्रेस और खूबसुरती है.
आशीर्वाद तो ले ही लो,क्यों खूबसूरत 'लडकियों'के आशीर्वाद नही चाहिए?
हा हा हा
ओल्ड इज गोल्ड को मिस करूंगी.जल्दी ही नए स्वरुप में इसे लेकर आयें,प्रतीक्षा रहेगी.
खूब खुश रहें और प्रोग्रेस करें.
इस अंक में कुछ बहुत ही प्यारे गानॉन से परिचय करवाया उसके लिए धन्यवाद,आभार,प्यार
आशीर्वाद?
वो तो ??????
मैं बुजुर्ग होउंगी तब दूंगी,तब तक यानि.......
पचास साल और प्रतीक्षा करें.
हा हा हा
AVADH said…
भाई हमारा स्नेह, शुभकामनाएं और आशीर्वाद तो आवाज़-युग्म याने सुजॉय और सजीव के साथ हमेशा रहेगा.
और भाई केवल इंदु बहिन ही नहीं मुझे यकीन है कि हममें से कोई भी (मैं महा गुरु शरद जी, और राज सिंह जी को भी उन दोनों की अनुमति के बगैर शामिल कर रहा हूँ) अपने आप को बुज़ुर्ग नहीं बल्कि गोल्डन एज वाला मानता है.
After all, the name of this programme is "ओल्ड इज़ गोल्ड".
अवध लाल
Old is old की महान परंपरा के आगाज़ से अंजाम तक का सफ़र बेहद सुरीला, रोचक और रोमंचित करने वाला रहा. सजीवजी और सुजॊय जी की तारीफ़ जितनी भी की जाये उतनी कम है.

अगले कार्यक्रम के लिये शुभकामनायें और अरिम बधाईयां.
दोस्तों ये अंजाम नहीं है, सिर्फ एक अल्प बिराम है, सफर जारी रहेगा एक ब्रेक के बाद, पर ब्रेक भी हो सकता है बेहद सुरीला, तो प्लीस प्लीस प्लीस महफ़िल में आना मत भूलिएगा. समय वही है शाम ६.३० (भारतीय)

शुक्रिया

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