ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 399/2010/99
कुछ आवाज़ें ऐसी होती हैं जिनमें इस मिट्टी की महक मौजूद होती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसी आवाज़ें इस मिट्टी से जुड़ी हुई लगती है, जिन्हे सुनते हुए हम जैसे किसी सुदूर गाँव की तरफ़ चल देते हैं और वहाँ का नज़ारा आँखों के सामने तैरने लगता है। जैसे दूर किसी पनघट से पानी भर कर सखी सहेलियाँ कतार बना कर चली आ रही हों गाँव की पगडंडियों पर। आज हमने जिस गीत को चुना है उसे सुनते हुए शायद आपके ज़हन में भी कुछ इसी तरह के ख्यालात उमड़ पड़े। जी हाँ, 'सखी सहेली' शृंखला की आज की कड़ी में प्रस्तुत है मिनू पुरुषोत्तम और परवीन सुल्ताना की आवाज़ों में फ़िल्म 'दो बूंद पानी' का एक बड़ा ही प्यारा गीत "पीतल की मेरी गागरी"। इसमें वैसे मिनू जी और परवीन जी के साथ साथ उनकी सखी सहेलियों की भी आवाज़ें मौजूद हैं, लेकिन मुख्य आवाज़ें इन दो गायिकाओं की ही हैं। संगीतकार जयदेव की इस रचना में इस देश की मिट्टी का सुरीलापन कूट कूट कर समाया हुआ है। लोक गीत के अंदाज़ में बना यह गीत कैफ़ी आज़मी साहब के कलम से निकला था। आपको याद होगा कि सन् १९७१ में ख़्वाजा अहमद अब्बास ने यह फ़िल्म बनाई थी 'दो बूंद पानी' जिसमें राजस्थान में पानी की समस्या को केन्द्रबिंदु में रखा गया था। एक तरफ़ पानी की समस्या पर बना फ़िल्म और दूसरी तरफ़ यह गीत जिसमें पानी भर कर लाने का दृश्य, क्या कॊन्ट्रस्ट है! यह एक बड़ा ही दुर्लभ गीत है जो आज कहीं से सुनाई नहीं देता। आख़िरी बार मैंने इसे विविध भारती पर कई महीने पहले सुना था, शायद यूनुस ख़ान द्वारा प्रस्तुत 'छाया गीत' कार्यक्रम में। आज यह दुर्लभ गीत ख़ास आप के लिए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर।
'दो बूंद पानी' के मुख्य कलाकार थे घनश्याम, जलाल आग़ा, सिमि गरेवाल और किरण कुमार। दोस्तों, यह ज़रूरी नहीं कि अच्छे गानें केवल कामयाब फ़िल्मों में ही मौजूद हों। ऐसे असंख्य फ़िल्में हैं जिसने बॊक्स ऒफ़िस पर भले ही झंडे ना गाढ़ें हों, लेकिन संगीत के मामले में उत्कृष्ट रहे हैं। "पीतल की मेरी गागरी" एक ऐसा कर्णप्रिय गीत है जिसे बार बार सुन कर भी जैसे मन नहीं भरता और इसे बार बार पूरे चाव से सुना जा सकता है। पीतल के गगरी की धुने, सखी सहेलियों की खिलखिलाती हँसी, राजस्थानी लोक धुन, कुल मिलाकर एक ऐसा ग्रामीण समां बांध देता है कि शहर के सारे तनाव और परेशानियाँ भूल कर दिल जैसे कुछ पल के लिए एक सुकूनदायक ज़मीन की ओर निकल पड़ता है। वैसे आपको बता दें कि इस गीत में कुल तीन अंतरे हैं, लेकिन रिकार्ड पर केवल दो ही अंतरों को रखा गया है। फ़िल्म के पर्दे पर जो तीसरा अंतरा है इस गीत का, उसे हम नीचे लिख रहे हैं:
इक दिन ऐसा भी था पानी था गाँव में,
लाते थे गागरी भर के तारों की छाँव में,
कहाँ से पानी लाएँ कहाँ ये प्यार बुझाएँ,
जल जल के बैरी धूप में कम ना आया रंग दुहाई रे,
पीतल की मेरी गागरी दिलदी से मोल मंगाई रे।
तो आइए इस गीत को सुनें और हमें पूरा विश्वास है कि इस गीत को सिर्फ़ एक बार सुन कर आपका दिल नहीं भरेगा, आप बार बार इसे सुनेंगे। और ख़ास कर आप में से जो भाई बहन राजस्थान के निवासी हैं और इन दिनों विदेश में हैं, उनकी तो यह गीत सुन कर आँखें ज़रूर नम हो जाएँगी! आइए सुनते हैं।
क्या आप जानते हैं...
कि 'दो बूंद पानी' फ़िल्म के लिए ख़्वाजा अहमद अब्बास को १९७२ में 'नरगिस दत्त अवार्ड' से सम्मानित किया गया था। अब्बास साहब को यही पुरस्कार १९७० में भी मिला था 'सात हिंदुस्तानी' फ़िल्म के लिए।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. शृंखला का ये अंतिम गीत है हिंदी फिल्म संगीत जगत की दो सबसे सफल गायिकाओं की आवाजों में इनके नाम बताएं-३ अंक.
2. इस मधुर गीत के गीतकार बताएं - २ अंक.
3. फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री के साथ अनुराधा पटेल ने इसे परदे पर निभाया है, किस प्रमुख अभिनेत्री ने इस फिल्म में काम कर खूब वाह वाही लूटी है -२ अंक.
4. एल पी का है संगीत, फिल्म के निर्देशक कौन हैं -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
मुबारकबाद शरद जी, बस अब आप शतक से मात्र २ अंक पीछे हैं, पदम जी ने भी बहुत कम समय में अर्ध शतक पूरा किया है, इंदु जी और अवध जी को भी बधाई...पुरस्कार ?....इस बार ये एक सरप्रायिस है :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
कुछ आवाज़ें ऐसी होती हैं जिनमें इस मिट्टी की महक मौजूद होती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसी आवाज़ें इस मिट्टी से जुड़ी हुई लगती है, जिन्हे सुनते हुए हम जैसे किसी सुदूर गाँव की तरफ़ चल देते हैं और वहाँ का नज़ारा आँखों के सामने तैरने लगता है। जैसे दूर किसी पनघट से पानी भर कर सखी सहेलियाँ कतार बना कर चली आ रही हों गाँव की पगडंडियों पर। आज हमने जिस गीत को चुना है उसे सुनते हुए शायद आपके ज़हन में भी कुछ इसी तरह के ख्यालात उमड़ पड़े। जी हाँ, 'सखी सहेली' शृंखला की आज की कड़ी में प्रस्तुत है मिनू पुरुषोत्तम और परवीन सुल्ताना की आवाज़ों में फ़िल्म 'दो बूंद पानी' का एक बड़ा ही प्यारा गीत "पीतल की मेरी गागरी"। इसमें वैसे मिनू जी और परवीन जी के साथ साथ उनकी सखी सहेलियों की भी आवाज़ें मौजूद हैं, लेकिन मुख्य आवाज़ें इन दो गायिकाओं की ही हैं। संगीतकार जयदेव की इस रचना में इस देश की मिट्टी का सुरीलापन कूट कूट कर समाया हुआ है। लोक गीत के अंदाज़ में बना यह गीत कैफ़ी आज़मी साहब के कलम से निकला था। आपको याद होगा कि सन् १९७१ में ख़्वाजा अहमद अब्बास ने यह फ़िल्म बनाई थी 'दो बूंद पानी' जिसमें राजस्थान में पानी की समस्या को केन्द्रबिंदु में रखा गया था। एक तरफ़ पानी की समस्या पर बना फ़िल्म और दूसरी तरफ़ यह गीत जिसमें पानी भर कर लाने का दृश्य, क्या कॊन्ट्रस्ट है! यह एक बड़ा ही दुर्लभ गीत है जो आज कहीं से सुनाई नहीं देता। आख़िरी बार मैंने इसे विविध भारती पर कई महीने पहले सुना था, शायद यूनुस ख़ान द्वारा प्रस्तुत 'छाया गीत' कार्यक्रम में। आज यह दुर्लभ गीत ख़ास आप के लिए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर।
'दो बूंद पानी' के मुख्य कलाकार थे घनश्याम, जलाल आग़ा, सिमि गरेवाल और किरण कुमार। दोस्तों, यह ज़रूरी नहीं कि अच्छे गानें केवल कामयाब फ़िल्मों में ही मौजूद हों। ऐसे असंख्य फ़िल्में हैं जिसने बॊक्स ऒफ़िस पर भले ही झंडे ना गाढ़ें हों, लेकिन संगीत के मामले में उत्कृष्ट रहे हैं। "पीतल की मेरी गागरी" एक ऐसा कर्णप्रिय गीत है जिसे बार बार सुन कर भी जैसे मन नहीं भरता और इसे बार बार पूरे चाव से सुना जा सकता है। पीतल के गगरी की धुने, सखी सहेलियों की खिलखिलाती हँसी, राजस्थानी लोक धुन, कुल मिलाकर एक ऐसा ग्रामीण समां बांध देता है कि शहर के सारे तनाव और परेशानियाँ भूल कर दिल जैसे कुछ पल के लिए एक सुकूनदायक ज़मीन की ओर निकल पड़ता है। वैसे आपको बता दें कि इस गीत में कुल तीन अंतरे हैं, लेकिन रिकार्ड पर केवल दो ही अंतरों को रखा गया है। फ़िल्म के पर्दे पर जो तीसरा अंतरा है इस गीत का, उसे हम नीचे लिख रहे हैं:
इक दिन ऐसा भी था पानी था गाँव में,
लाते थे गागरी भर के तारों की छाँव में,
कहाँ से पानी लाएँ कहाँ ये प्यार बुझाएँ,
जल जल के बैरी धूप में कम ना आया रंग दुहाई रे,
पीतल की मेरी गागरी दिलदी से मोल मंगाई रे।
तो आइए इस गीत को सुनें और हमें पूरा विश्वास है कि इस गीत को सिर्फ़ एक बार सुन कर आपका दिल नहीं भरेगा, आप बार बार इसे सुनेंगे। और ख़ास कर आप में से जो भाई बहन राजस्थान के निवासी हैं और इन दिनों विदेश में हैं, उनकी तो यह गीत सुन कर आँखें ज़रूर नम हो जाएँगी! आइए सुनते हैं।
क्या आप जानते हैं...
कि 'दो बूंद पानी' फ़िल्म के लिए ख़्वाजा अहमद अब्बास को १९७२ में 'नरगिस दत्त अवार्ड' से सम्मानित किया गया था। अब्बास साहब को यही पुरस्कार १९७० में भी मिला था 'सात हिंदुस्तानी' फ़िल्म के लिए।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. शृंखला का ये अंतिम गीत है हिंदी फिल्म संगीत जगत की दो सबसे सफल गायिकाओं की आवाजों में इनके नाम बताएं-३ अंक.
2. इस मधुर गीत के गीतकार बताएं - २ अंक.
3. फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री के साथ अनुराधा पटेल ने इसे परदे पर निभाया है, किस प्रमुख अभिनेत्री ने इस फिल्म में काम कर खूब वाह वाही लूटी है -२ अंक.
4. एल पी का है संगीत, फिल्म के निर्देशक कौन हैं -२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
मुबारकबाद शरद जी, बस अब आप शतक से मात्र २ अंक पीछे हैं, पदम जी ने भी बहुत कम समय में अर्ध शतक पूरा किया है, इंदु जी और अवध जी को भी बधाई...पुरस्कार ?....इस बार ये एक सरप्रायिस है :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
देखिये अपनी भी एक सीमा 'रेखा' हैमन 'उत्सव'मनान चाहता है पर अभी समय नही है
मेरी एक बड़ी प्यारी दोस्त आई हुई है.
वो मुझे अभी मारेगी
सो बाय
अवध लाल
फिलहाल --- अभिनेत्री हैं एवरग्रीन "रेखा जी"
April 9, 2010 7:02 PM
वाह! टाइमिंग देखिये जरा ...अवध जी ने बाज़ी मार ली ....चलिए जो जीता वही सिकंदर