ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 403/2010/103
'पसंद अपनी अपनी' के तहत इन दिनों आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन रहे हैं अपनी ही पसंद के गानें। आज बारी है इंदु जी के फ़रमाइश की। वैसे भए इस गीत की फ़रमाइश इंदु जी ने लिख भेजी है, लेकिन इस गीत के चुनाव के पीछे हमारे अति परिचित पाबला जी का भी योगदान है। तो हम इस गीत को इन दोनों की मिली जुली फ़रमाइश ही मान लेते हैं। यह गीत है फ़िल्म 'दूज का चांद' का "पड़े बरखा फुहार, करे जियरा पुकार, दुख जाने ना हमार, बैरन रुत बरसात की"। लता मंगेशकर की आवाज़, साहिर लुधियानवी के बोल और रोशन का संगीत। इसे संयोग ही हम कहेंगे कि पिछले तीन दिनों से हम जो फ़रमाइशी गीत सुन रहे हैं वो सभी साहिर साहब के ही लिखे हुए हैं। फ़िल्म 'दूज का चांद' के इस गीत को चुनने के पीछे जो विशेष कारण है उसे हम आप सब के साथ बाँटना चाहेंगे। पाबला जी की बेटी जब बहुत छोटी थी, तो किसी बिमारी की वजह से वो कई दिनों तक अवचेतन रही। किसी भी तरीके से कुछ हो नहीं पा रहा था। ऐसे में कहीं से जब यह गीत गूंजा तो उनकी बेटी ने रेस्पॊण्ड किया और उसकी चेतना वापस आई और फिर धीरे धीरे वो बिल्कुल ठीक हो गई। इसी वजह से पाबला जी के लिए यह गीत अविस्मरणीय है और होना भी चाहिए। हम तो शुक्रिया अदा करना चाहेंगे इंदु जी का जिन्होने अपने दोस्त पाबला जी के जीवन की इस अनोखी बात को हम तक पहुँचाया।
फ़िल्म 'दूज का चांद' आई थी सन् १९६४ में। नितिन बोस निर्देशित इस फ़िल्म की कहानी लिखी राजेन्द्र सिंह बेदी ने और मुख्य भूमिकाएँ अदा की राजकुमार, बी. सरोजा देवी, चन्द्रशेखर, भारत भूषण और अशोक कुमार ने। इस फ़िल्म के दूसरे गीतों की बात करें, तो रफ़ी साहब और सुमन कल्याणपुर का गाया "चांद तकता है इधर", मन्ना दा का गाया "फूल गेंदवा ना मारो लगत करेजवा में चोट", रफ़ी साहब का गाया "महफ़िल से उठ जाने वालों तुम पर अब क्या इल्ज़ाम", "सुन ऐ माहजबीं मुझे तुझसे इश्क़ नहीं", सुमन कल्याणपुर का गाया "झाँकती है मेरी आँखों से" तथा आशा और लता का गाया फ़िल्म का शीर्षक गीत "सजन सलोना माँग लो जी कोई निकला है दूज का चांद, सखी री आज न करियो लाज", ये सभी गानें अपने आप में सुरीले हैं सुमधुर हैं, लेकिन साहिर-रोशन की जोड़ी की जो दूसरी फ़िल्में हैं, जैसे कि 'बरसात की रात', 'ताजमहल', 'चित्रलेखा', 'दिल ही तो है' आदि, इन फ़िल्मों के संगीत के चमक के आगे 'दूज का चांद' थोड़ा ठंडा रहा, लेकिन ख़ास कर मन्ना डे का गाया "फूल गेंदवा ना मारो" को आज भी शास्त्रीय संगीत पर आधारित फ़िल्मी रचनाओं में बहुत ऊँचा दर्जा दिया जाता है। आज का प्रस्तुत गीत "पड़े बरखा फुहार" जुदाई का एक ग़मगीन नग़मा है। क्योंकि सावन के महीने को मिलन का महीना भी माना जाता है, तो ऐसे में जुदाई का दर्द और ज़्यादा गहरा जाता है। तभी तो हमारी फ़िल्मों में अक्सर जुदाई को सावन के साथ जोड़ा जाता है माहौल को और भी ज़्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए। इस जौनर के गीतों में "सावन के झूले पड़े तुम चले आओ", "अब के सजन सावन में आग लगेगी बदन में" जैसे गीत शामिल होते हैं। तो आइए इंदु जी और पाबला जी की फ़रमाइश पर सुनते हैं 'दूज का चांद' फ़िल्म का यह गीत लता जी की आवाज़ में।
क्या आप जानते हैं...
कि रोशन ने फ़िल्म 'दूर नहीं मंज़िल' के लिए सुमन कल्याणपुर से एक गीत रिकार्ड करवाया था "लिए चल गड़िया ओ मेरे मितवा दूर नहीं मंज़िल", पर उनकी मृत्यु के कारण बाकी गीत शंकर जयकिशन ने तैयार किए।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मुखड़े में शब्द है -"शिकायत", फिल्म का नाम बताएं-३ अंक.
2. शंकर जयकिशन के स्वरबद्ध किये इस गीत को किसने लिखा है- २ अंक.
3. रूठने मनाने का खेल है इस युगल गीत में, पुरुष गायक बताएं-२ अंक.
4. राजेन्द्र कुमार अभिनीत इस फिल्म के निर्देशक बताएं-२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
अल्पना जी आपका स्वागत है सही जवाब है, शरद जी, इंदु जी और अवध जी तो अब गुरु हैं ही, दिलीप जी और आशा जी आपके स्नेह शब्द सुखद लगे
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'पसंद अपनी अपनी' के तहत इन दिनों आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन रहे हैं अपनी ही पसंद के गानें। आज बारी है इंदु जी के फ़रमाइश की। वैसे भए इस गीत की फ़रमाइश इंदु जी ने लिख भेजी है, लेकिन इस गीत के चुनाव के पीछे हमारे अति परिचित पाबला जी का भी योगदान है। तो हम इस गीत को इन दोनों की मिली जुली फ़रमाइश ही मान लेते हैं। यह गीत है फ़िल्म 'दूज का चांद' का "पड़े बरखा फुहार, करे जियरा पुकार, दुख जाने ना हमार, बैरन रुत बरसात की"। लता मंगेशकर की आवाज़, साहिर लुधियानवी के बोल और रोशन का संगीत। इसे संयोग ही हम कहेंगे कि पिछले तीन दिनों से हम जो फ़रमाइशी गीत सुन रहे हैं वो सभी साहिर साहब के ही लिखे हुए हैं। फ़िल्म 'दूज का चांद' के इस गीत को चुनने के पीछे जो विशेष कारण है उसे हम आप सब के साथ बाँटना चाहेंगे। पाबला जी की बेटी जब बहुत छोटी थी, तो किसी बिमारी की वजह से वो कई दिनों तक अवचेतन रही। किसी भी तरीके से कुछ हो नहीं पा रहा था। ऐसे में कहीं से जब यह गीत गूंजा तो उनकी बेटी ने रेस्पॊण्ड किया और उसकी चेतना वापस आई और फिर धीरे धीरे वो बिल्कुल ठीक हो गई। इसी वजह से पाबला जी के लिए यह गीत अविस्मरणीय है और होना भी चाहिए। हम तो शुक्रिया अदा करना चाहेंगे इंदु जी का जिन्होने अपने दोस्त पाबला जी के जीवन की इस अनोखी बात को हम तक पहुँचाया।
फ़िल्म 'दूज का चांद' आई थी सन् १९६४ में। नितिन बोस निर्देशित इस फ़िल्म की कहानी लिखी राजेन्द्र सिंह बेदी ने और मुख्य भूमिकाएँ अदा की राजकुमार, बी. सरोजा देवी, चन्द्रशेखर, भारत भूषण और अशोक कुमार ने। इस फ़िल्म के दूसरे गीतों की बात करें, तो रफ़ी साहब और सुमन कल्याणपुर का गाया "चांद तकता है इधर", मन्ना दा का गाया "फूल गेंदवा ना मारो लगत करेजवा में चोट", रफ़ी साहब का गाया "महफ़िल से उठ जाने वालों तुम पर अब क्या इल्ज़ाम", "सुन ऐ माहजबीं मुझे तुझसे इश्क़ नहीं", सुमन कल्याणपुर का गाया "झाँकती है मेरी आँखों से" तथा आशा और लता का गाया फ़िल्म का शीर्षक गीत "सजन सलोना माँग लो जी कोई निकला है दूज का चांद, सखी री आज न करियो लाज", ये सभी गानें अपने आप में सुरीले हैं सुमधुर हैं, लेकिन साहिर-रोशन की जोड़ी की जो दूसरी फ़िल्में हैं, जैसे कि 'बरसात की रात', 'ताजमहल', 'चित्रलेखा', 'दिल ही तो है' आदि, इन फ़िल्मों के संगीत के चमक के आगे 'दूज का चांद' थोड़ा ठंडा रहा, लेकिन ख़ास कर मन्ना डे का गाया "फूल गेंदवा ना मारो" को आज भी शास्त्रीय संगीत पर आधारित फ़िल्मी रचनाओं में बहुत ऊँचा दर्जा दिया जाता है। आज का प्रस्तुत गीत "पड़े बरखा फुहार" जुदाई का एक ग़मगीन नग़मा है। क्योंकि सावन के महीने को मिलन का महीना भी माना जाता है, तो ऐसे में जुदाई का दर्द और ज़्यादा गहरा जाता है। तभी तो हमारी फ़िल्मों में अक्सर जुदाई को सावन के साथ जोड़ा जाता है माहौल को और भी ज़्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए। इस जौनर के गीतों में "सावन के झूले पड़े तुम चले आओ", "अब के सजन सावन में आग लगेगी बदन में" जैसे गीत शामिल होते हैं। तो आइए इंदु जी और पाबला जी की फ़रमाइश पर सुनते हैं 'दूज का चांद' फ़िल्म का यह गीत लता जी की आवाज़ में।
क्या आप जानते हैं...
कि रोशन ने फ़िल्म 'दूर नहीं मंज़िल' के लिए सुमन कल्याणपुर से एक गीत रिकार्ड करवाया था "लिए चल गड़िया ओ मेरे मितवा दूर नहीं मंज़िल", पर उनकी मृत्यु के कारण बाकी गीत शंकर जयकिशन ने तैयार किए।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मुखड़े में शब्द है -"शिकायत", फिल्म का नाम बताएं-३ अंक.
2. शंकर जयकिशन के स्वरबद्ध किये इस गीत को किसने लिखा है- २ अंक.
3. रूठने मनाने का खेल है इस युगल गीत में, पुरुष गायक बताएं-२ अंक.
4. राजेन्द्र कुमार अभिनीत इस फिल्म के निर्देशक बताएं-२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
अल्पना जी आपका स्वागत है सही जवाब है, शरद जी, इंदु जी और अवध जी तो अब गुरु हैं ही, दिलीप जी और आशा जी आपके स्नेह शब्द सुखद लगे
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
अवध लाल
बहुत प्यारा और उपयोगी गाना है ये .... अक्सर बुरे दिनों मे बहुत काम आता है ....
लेकिन गुजारिश है कि मेरी फरमाइश पर कोई ऐसा भी गीत सुनवाएं जिस से अगर कोई पति रूठ जाए तो पत्नी कैसे मनाये ... :-)
'देखो रूठो न करो बात नजरो की सुनो' अरे ज्यादा हुआ तों गा देना -'ए सनम आज ये कसम खाए,मुडके अब देखने का नाम न ले प्यार की वादियों में खो जाए'
आप लोगों को मनाने की नौबत बहुत कम आती है क्योंकि मनाते उसे है जिसे रुठा रहने दें हम तों जरा सा नाराज ,उदास देख ले तों कह उठते है- वो चुप रहे तों मेरे दिल के दाग जलते हैं जो बात करले,तों बुझते चराग जलते हैं' इसलिए म्हारे लिए 'ऐसे' गाने ही कम लिखे गए हैं .
ये आप लोग जान भी सबसे ज्यादा खाते हो और आगे पीछे डोलना भी आप ही लोगों को पड़ता है.
है न?
हा हा हा
जबर्दस्त बीमार होने पर बच्ची ने उस गाने को सुन कर आँखें खोली थी.तों वो गाना हम सब ढूँढेंगे पाबला भैया की बिटिया के लिए.
आशा है अवध जी,शरदजी आप सब भी इस् काम मे मुझे सहयोग देंगे.उस गाने में वायलिन या गिटार का उपयोग मुख्य वाद्य के रूप मे हुआ है.
जिस किसी को जानकारी हो प्लीज़ बताए. हम सभी की उस ओर से उस नन्ही गुडिया को ये एक स्पेशल गिफ्ट होगा.
जबसे आपकी पाबला पा जी और बिटिया माऊ के बारे में पोस्ट पढ़ी थी तब से
दिमाग में घूम रहा था कि वह कौन सा गीत हो सकता है.
आपने गायक रफ़ी साहेब की आवाज़ के बारे में लिखा है और कहा है कि गाने
में चाँद और सूरज शब्द भी आये हैं.
एक गीत अभी मेरे ध्यान में आया है, “ तौबा यह मतवाली चाल, झुक जाये फूलों
की डाल, चाँद और सूरज आ कर मांगे तुझसे तेरा जमाल, हसीना, तेरी मिसाल
कहाँ”.
फिल्म: पत्थर के सनम
इसमें भी नायक नायिका को छेड़ने / मनाने का गीत गा रहा है.
क्या यह गीत हो सकता है?
शुभेच्छु
अवध लाल