ताज़ा सुर ताल १४/२०१०
सुजॊय - सजीव, साल २०१० का एक चौथाई पूरा हो चुका है, यानी कि तीन महीने। इन तीन महीनों में हमने जिन जिन फ़िल्मों के संगीत की चर्चा यहाँ की, अपने नए साथियों के लिए बता दें उन फ़िल्मों के नाम।
सजीव - बिल्कुल बताओ, इससे इस बरस अब तक बनी फ़िल्मों का एक छोटा सा रीकैप भी हो जाएगा।
सुजॊय - ये फ़िल्में हैं दुल्हा मिल गया, वीर, रण, इश्क़िया, माइ नेम इज़ ख़ान, स्टाइकर, रोड टू संगम, लाहौर, सदियाँ, एल.एस.डी, शिवाजी दि बॊस, कार्तिक कॊलिंग् कार्तिक, वेल डन अब्बा।
सजीव - और हमने दो ग़ैर फ़िल्मी ऐल्बम्स की भी चर्चा की - अमन की आशा, और अपना होम प्रोडक्शन काव्यनाद। तो अब हम आगे बढ़ते हैं और आज हम लेकर आए हैं दो फ़िल्मों के गानें। पहली फ़िल्म है 'पाठशाला'। इस फ़िल्म की चर्चा और प्रचार काफ़ी पहले से शुरु हो गई थी, लेकिन फ़िल्म के बनने में बहुत लम्बा समय लग गया।
सुजॊय - लेकिन इस फ़िल्म का संगीत बिल्कुल फ़्रेश है। फ़िल्म में गीत संगीत हनीफ़ शेख़ का है। फ़िल्म के गीतों को गाया है लकी अली, कैलाश खेर, विशाल दादलानी, तुलसी कुमार और सलीम मरचेंट ने। गीतों में विविधता है, मेलोडी भी है और कुछ गानें आपके क़दमों को थिरकाने वाले भी हैं। और क्यों ना हो जब फ़िल्म का नायक शाहिद कपूर हैं।
सजीव - तो इस फ़िल्म के दो गीत हम यहाँ सुनेंगे, पहला गाना है लकी अली का गाया हुआ। गीटार के ख़ूबसूरत और प्रॊमिनेन्ट प्रयोग से सजा यह गीत है "बेक़रार"। बहुत दिनों के बाद लकी अली की आवाज़ सुनाई दी है। एक यूथ अपील है इस गीत में और बोल भी तो कितने ख़ूबसूरत हैं, "सूनी सूनी राहों में है तेरा ही इंतेज़ार, जली बूझी साँसों से अब तेरा ही है ख़ुमार, न जाने मैंने क्या खोया क्या पाया कुछ भी ना समझे यहाँ, भुला के सारी बातों को जी आया फिर भी ना आए क़रार, बेक़रार"। कहीं पर बहुत ऊँचे सुर हैं तो कहीं पर नाज़ुकी। लकी अली ने बड़ा ही ख़ूबसूरत अंजाम दिया है इस गीत को। और हनीफ़ की प्रतिभा को भी सलाम जिन्होने इस गीत को लिखा भी है और सुरों में ढाला है।
गीत - बेक़रार
सुजॊय - 'पाठशाला' में कुल पाँच गानें हैं। "बेक़रार" के बाद जो गीत हमें सुनना चाहिए वह बेशक़ कैलाश खेर का गाया "ऐ ख़ुदा" है। कैलाश खेर की आवाज़ में वह देसी महक है कि जिससे उनकी अवाज़ कभी बासी नहीं लगती। भले ही वो अपनी एक ही शैली व अंदाज़ में गाते हैं, लेकिन हर बार हमें सुन कर अच्छा ही लगता है।
सजीव - वैसे इस गीत को सुनते हुए कैलाश का गाया "या रब्बा" गीत की याद आ ही जाती है, जिसमें संगीत था शंकर अहसान लॊय का।
सुजॊय - तो फिर इस गीत को सुनते हैं और हम भी इसी बात को महसूस करने की कोशिश करते हैं।
गीत - ऐ ख़ुदा
सजीव - और अब आ रहे हैं प्रिन्स। जब म्युज़िक कंपनी 'टिप्स' हो, और गीतकार समीर हो, तो अगर श्रोता ९० के दशक के मेलडी की उम्मीद करें तो उन्हे ज़्यादा दोष नहीं दिया जा सकता।
सुजॊय - वैसे फ़िल्म 'प्रिन्स' के संगीतकार हैं सचिन गुप्ता, जिन्होने इससे पहले कुछ कम बजट की फ़िल्मों में संगीत दिया है। शायद यही उनकी पहली बड़ी फ़िल्म है। 'प्रिन्स' के कुछ गानें वैसे तो इन दिनों काफ़ी बज रहे हैं, और जो गीत सब से ज़्यादा सुनाई दे रहा है आजकल, उसी को सब से पहले सुना जाए!
सजीव - तुम्हारा इशारा "ओ मेरे ख़ुदा" की तरफ़ ही होगा। आतिफ़ असलम और श्रेया घोषाल की आवाज़ों में इस गीत से इतनी उम्मीदें लगाई गई कि इस गीत के कुल चार वर्ज़न साउंड ट्रैक में रखे गए हैं। लेकिन वाक़ई इस गीत में कुच ऐसी बात है कि जो आज के दौर के किसी कामयाब गीत में होनी चाहिए। भले ही गीत अंदाज़ पाश्चात्य है, लेकिन मेलडी बहुत सुरीला है, और श्रेया और आतिफ़ ने जैसे बिल्कुल इस गीत को जो मूड चाहिए था, वह बना दिया है।
सुजॊय - इस तरह के रोमांटिक गीतों में आतिफ़ की आवाज़ बहुत जचती है। हालाँकि बहुत से गायक और संगीतकार आतिफ़ को गायक मानने से ही इंकार कर देते हैं, लेकिन जो हक़ीक़त है उससे कोई मुंह नहीं मोड़ सकता। और हक़ीक़त यही है कि जो भी गीत आतिफ़ गाते हैं, वह युवा दिलों की धड़कर बन जाते हैं। अच्छा सजीव, यह गीत जिस तरह से शुरु होता है कि "जागी जागी सोयी ना मैं सारी रात तेरे लिए, भीगी भीगी पलकें मेरी उदास तेरे लिए, अखियाँ बिछाई मैंने तेरे लिए, दुनिया भुलाई मैंने तेरे लिए, जन्नतें सजाई मैंने तेरे लिए, छोड़ दी ख़ुदाई मैंने तेरे लिए"; तो इसमें "जागी जागी सोयी ना मैं सारी रात", इतना जो हिस्सा है, इसकी धुन आपको किसी पुराने गीत से मिलती जुलती लगती है?
सजीव - याद तो नहीं आ रहा, चलो तुम ही बताओ।
सुजॊय - दरसल यह मेरी खोज नहीं है, इंटरनेट पर ही मैंने यह बात पढ़ी और जब ख़ुद उस गीत को अपने पी.सी पर सुना तो यक़ीन हो गया। वह गीत है ९० के दशक की फ़िल्म 'यलगार' का, "हो जाता है कैसे प्यार न जाने कोई"। इस गीत के अंतरे का जो धुन है, जिसमें कुमार सानू गाते हैं "षोख़ हसीना से मिलने के बाद..." या फिर जब सपना मुखर्जी गाती हैं "लाख कोई सोचे सारे सारी रात..."। आप भी सुनिए इस गीत को और हमारे तमाम श्रोताओं को भी 'यलगार' के इस गीत को सुनने का सुझाव हम देंगे। लेकिन फिलहाल हम आपको सुनवा रहे हैं आतिफ़ और श्रेया का गाया "तेरे लिए"।
गीत - तेरे लिए
सजीव - अच्छा इस गीत से पहले तुम बता रहे थे कि इस गीत के चार वर्ज़न हैं, तो उनके बारे में भी बताते चलें।
सुजॊय - बाक़ी के तीन वर्ज़न रीमिक्स वर्ज़न हैं जिनका कुछ इस तरह से नामकरण किया किया गया है - 'डान्स मिक्स' जिसे शायद डिस्कोज़ के लिए बनाया गया होगा; दूसरा है 'हिप हॊप मिक्स' जो पहले के मुक़ाबले थोड़ा और सेन्सुयस भी। आतिफ़ की आवाज़ में एक सेन्सुयस फ़ील है जो इस तरह के गीतों में थोड़ा और जान डाल देता है। और जो तीसरा वर्ज़न है उसका नाम है 'अनप्लग्ड वर्ज़न' जिसमें अनर्थक साज़ों की भीड़ नहीं है, बल्कि केवल गीटार की पार्श्व में सुनाई देता है और इस वर्ज़न में आवाज़ ख़ुद सचिन गुप्ता की ही है। वेल डन सचिन!
सजीव - और दूसरे गीत की बारी। आतिफ़ असलम की आवाज़ और फिर से ईलेक्ट्रिक गीटार का इस्तेमाल। इसे फ़िल्म का थीम सॊंग् भी कहा जा सकता है जो नायक की शख्सियत का बयाँ करती है। "कौन हूँ मैं किसकी मुझे तलाश ", इस गीत में एक रॊक फ़ील है, केवल एक बार सुन कर शायद यह गीत आप के ज़हन में ना बैठ पाए, क्योंकि इस तरह के गीतों को 'सिचुयशनल सॊंग्' कहते हैं, जिसका अर्थ है कि फ़िल्म के कहानी के साथ ही इस गीत को जोड़ा जा सकता है। लेकिन बार बार सुन कर अच्छा लगने लगता है। और हो सकता है कि इसे सुनते हुए आपको 'शहंशाह' फ़िल्म का "अंधेरी रातों में सुनसान राहों पर" गीत याद आ जाए! सुनते हैं...
गीत - कौन हूँ मैं
सुजॊय - और अब आज का अंतिम गीत, और एक बार फिर आतिफ़ असलम की आवाज़। यह गीत है "आ भी जा सनम"। दरअसल इस फ़िल्म में एक गीत है "ओ मेरे ख़ुदा"। करीब करीब उसी धुन पर इस गीत को बनाया गया है, बस रीदम थोड़ी धीमी है। यह एक टिपिकल आतिफ़ असलम नंबर है और पहले भी इस तरह के गानें वो कई बार गा चुके हैं। इसलिए शायद बहुत ज़्यादा नयापन आपको इस गीत में ना लगे, लेकिन गाना अच्छा है, ठीक ठाक बना है।
सजीव - सुजॊय, इसे इत्तेफ़ाक़ ही कहो या कुछ और, हमने आज 'पाठशाला' और 'प्रिन्स' के गानें बजाए, और देखो इन दोनों फ़िल्मों को मैं शंकर अहसान लॊय के साथ जोड़ सकता हूँ, जब कि इन दोनों फ़िल्मों से शंकर अहसान लॊय का कुछ लेना देना नहीं है।
सुजॊय - वह कैसे?
सजीव - अब देखो, याद है मैंने कुछ देर पहले कहा था कैलाश खेर का गाया गीत "ऐ ख़ुद" शंकर अहसान लॊय के बनाए "ओ रब्बा" से मिलता जुलता है; अब देखो 'प्रिन्स' का यह गीत "ओ मेरे ख़ुदा" या "आ भी जा सनम" भी तो शंकर अहसान लॊय की फ़िल्म 'लंदन ड्रीम्स' के एक गीत से बहुत मिलता जुलता है। याद है 'लंदन ड्रीम्स' में एक गाना था "शोला शोला", उस गीत की पंक्ति "और चल तू पिघल हवा है तू बह निकल, राहें बना रस्ते बना चल रे" की धुन "ओ मेरे सनम" के बहुत करीब है।
सुजॊय - वाह! सही है! तो चलिए अब यह गीत सुनते हैं।
गीत - आ भी जा सनम
"पाठशाला" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ***
कुछ खास गायक गायिकाओं की आवाजें, संगीत में नयापन इस अल्बम को कुछ हद तक खास बनाता है. हालांकि शेल्फ वेल्यु नहीं है बहुत फिर भी लकी अली को बहुत दिनों बाद फिर से सुनना सुखद ही है
"प्रिंस" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ***
रेस की टीम ने आपको याद होगा जम कर धूम मचाई थी भले ही धुनें चुराई हुई थी, वही टीम यहाँ फिर है बस संगीतकार प्रीतम को बदल दिया गया है, जब धुनें चुरानी ही हों तो नामी संगीतकार को लेकर क्या करना :) खैर टिप्स की फिल्मों का फार्मूला साफ़ सपाट होता है, धूम धड़ाके वाला संगीत जिसकी आयु फिल्म के सिनेमाघरों पर टिकने तक ही होती है. आतिफ की आवाज़ में "खुदा" शब्द का उच्चारण कानों को चुभता है, बहरहाल नाचने झूमने का मन हो तो इस फुट टैप्पिंग अल्बम को सुना जा सकता है.
और अब आज के ३ सवाल
TST ट्रिविया # ४०- हनीफ़ शेख़ ने अहमद ख़ान की फ़िल्म 'पाठशाला' में संगीत दिया और गानें भी लिखे हैं। बताइए कि इससे पहले अहमद ख़ान की कौन सी फ़िल्म में हनीफ़ ने गीत गाया था और वह गीत कौन सा था?
TST ट्रिविया # ४१- इनका असली नाम है मकसूद महमूद अली। इनका जन्म १९ सितंबर १९५८ को हुआ था। इनकी माँ मशहूर अदाकारा मीना कुमारी की बहन थीं। बताइए इस शख़्स को दुनिया किस नाम से जानती है?
TST ट्रिविया # ४२- आतिफ़ असलम बहुत जल्दी फ़िल्म के पर्दे पर नज़र आएँगे बतौर हीरो। बताइए किस पाक़िस्तानी निर्देशक की यह फ़िल्म है और फ़िल्म का नाम क्या है?
TST ट्रिविया में अब तक -
सीमा जी एक बार फिर बुलंदी पर हैं, बधाई
सुजॊय - सजीव, साल २०१० का एक चौथाई पूरा हो चुका है, यानी कि तीन महीने। इन तीन महीनों में हमने जिन जिन फ़िल्मों के संगीत की चर्चा यहाँ की, अपने नए साथियों के लिए बता दें उन फ़िल्मों के नाम।
सजीव - बिल्कुल बताओ, इससे इस बरस अब तक बनी फ़िल्मों का एक छोटा सा रीकैप भी हो जाएगा।
सुजॊय - ये फ़िल्में हैं दुल्हा मिल गया, वीर, रण, इश्क़िया, माइ नेम इज़ ख़ान, स्टाइकर, रोड टू संगम, लाहौर, सदियाँ, एल.एस.डी, शिवाजी दि बॊस, कार्तिक कॊलिंग् कार्तिक, वेल डन अब्बा।
सजीव - और हमने दो ग़ैर फ़िल्मी ऐल्बम्स की भी चर्चा की - अमन की आशा, और अपना होम प्रोडक्शन काव्यनाद। तो अब हम आगे बढ़ते हैं और आज हम लेकर आए हैं दो फ़िल्मों के गानें। पहली फ़िल्म है 'पाठशाला'। इस फ़िल्म की चर्चा और प्रचार काफ़ी पहले से शुरु हो गई थी, लेकिन फ़िल्म के बनने में बहुत लम्बा समय लग गया।
सुजॊय - लेकिन इस फ़िल्म का संगीत बिल्कुल फ़्रेश है। फ़िल्म में गीत संगीत हनीफ़ शेख़ का है। फ़िल्म के गीतों को गाया है लकी अली, कैलाश खेर, विशाल दादलानी, तुलसी कुमार और सलीम मरचेंट ने। गीतों में विविधता है, मेलोडी भी है और कुछ गानें आपके क़दमों को थिरकाने वाले भी हैं। और क्यों ना हो जब फ़िल्म का नायक शाहिद कपूर हैं।
सजीव - तो इस फ़िल्म के दो गीत हम यहाँ सुनेंगे, पहला गाना है लकी अली का गाया हुआ। गीटार के ख़ूबसूरत और प्रॊमिनेन्ट प्रयोग से सजा यह गीत है "बेक़रार"। बहुत दिनों के बाद लकी अली की आवाज़ सुनाई दी है। एक यूथ अपील है इस गीत में और बोल भी तो कितने ख़ूबसूरत हैं, "सूनी सूनी राहों में है तेरा ही इंतेज़ार, जली बूझी साँसों से अब तेरा ही है ख़ुमार, न जाने मैंने क्या खोया क्या पाया कुछ भी ना समझे यहाँ, भुला के सारी बातों को जी आया फिर भी ना आए क़रार, बेक़रार"। कहीं पर बहुत ऊँचे सुर हैं तो कहीं पर नाज़ुकी। लकी अली ने बड़ा ही ख़ूबसूरत अंजाम दिया है इस गीत को। और हनीफ़ की प्रतिभा को भी सलाम जिन्होने इस गीत को लिखा भी है और सुरों में ढाला है।
गीत - बेक़रार
सुजॊय - 'पाठशाला' में कुल पाँच गानें हैं। "बेक़रार" के बाद जो गीत हमें सुनना चाहिए वह बेशक़ कैलाश खेर का गाया "ऐ ख़ुदा" है। कैलाश खेर की आवाज़ में वह देसी महक है कि जिससे उनकी अवाज़ कभी बासी नहीं लगती। भले ही वो अपनी एक ही शैली व अंदाज़ में गाते हैं, लेकिन हर बार हमें सुन कर अच्छा ही लगता है।
सजीव - वैसे इस गीत को सुनते हुए कैलाश का गाया "या रब्बा" गीत की याद आ ही जाती है, जिसमें संगीत था शंकर अहसान लॊय का।
सुजॊय - तो फिर इस गीत को सुनते हैं और हम भी इसी बात को महसूस करने की कोशिश करते हैं।
गीत - ऐ ख़ुदा
सजीव - और अब आ रहे हैं प्रिन्स। जब म्युज़िक कंपनी 'टिप्स' हो, और गीतकार समीर हो, तो अगर श्रोता ९० के दशक के मेलडी की उम्मीद करें तो उन्हे ज़्यादा दोष नहीं दिया जा सकता।
सुजॊय - वैसे फ़िल्म 'प्रिन्स' के संगीतकार हैं सचिन गुप्ता, जिन्होने इससे पहले कुछ कम बजट की फ़िल्मों में संगीत दिया है। शायद यही उनकी पहली बड़ी फ़िल्म है। 'प्रिन्स' के कुछ गानें वैसे तो इन दिनों काफ़ी बज रहे हैं, और जो गीत सब से ज़्यादा सुनाई दे रहा है आजकल, उसी को सब से पहले सुना जाए!
सजीव - तुम्हारा इशारा "ओ मेरे ख़ुदा" की तरफ़ ही होगा। आतिफ़ असलम और श्रेया घोषाल की आवाज़ों में इस गीत से इतनी उम्मीदें लगाई गई कि इस गीत के कुल चार वर्ज़न साउंड ट्रैक में रखे गए हैं। लेकिन वाक़ई इस गीत में कुच ऐसी बात है कि जो आज के दौर के किसी कामयाब गीत में होनी चाहिए। भले ही गीत अंदाज़ पाश्चात्य है, लेकिन मेलडी बहुत सुरीला है, और श्रेया और आतिफ़ ने जैसे बिल्कुल इस गीत को जो मूड चाहिए था, वह बना दिया है।
सुजॊय - इस तरह के रोमांटिक गीतों में आतिफ़ की आवाज़ बहुत जचती है। हालाँकि बहुत से गायक और संगीतकार आतिफ़ को गायक मानने से ही इंकार कर देते हैं, लेकिन जो हक़ीक़त है उससे कोई मुंह नहीं मोड़ सकता। और हक़ीक़त यही है कि जो भी गीत आतिफ़ गाते हैं, वह युवा दिलों की धड़कर बन जाते हैं। अच्छा सजीव, यह गीत जिस तरह से शुरु होता है कि "जागी जागी सोयी ना मैं सारी रात तेरे लिए, भीगी भीगी पलकें मेरी उदास तेरे लिए, अखियाँ बिछाई मैंने तेरे लिए, दुनिया भुलाई मैंने तेरे लिए, जन्नतें सजाई मैंने तेरे लिए, छोड़ दी ख़ुदाई मैंने तेरे लिए"; तो इसमें "जागी जागी सोयी ना मैं सारी रात", इतना जो हिस्सा है, इसकी धुन आपको किसी पुराने गीत से मिलती जुलती लगती है?
सजीव - याद तो नहीं आ रहा, चलो तुम ही बताओ।
सुजॊय - दरसल यह मेरी खोज नहीं है, इंटरनेट पर ही मैंने यह बात पढ़ी और जब ख़ुद उस गीत को अपने पी.सी पर सुना तो यक़ीन हो गया। वह गीत है ९० के दशक की फ़िल्म 'यलगार' का, "हो जाता है कैसे प्यार न जाने कोई"। इस गीत के अंतरे का जो धुन है, जिसमें कुमार सानू गाते हैं "षोख़ हसीना से मिलने के बाद..." या फिर जब सपना मुखर्जी गाती हैं "लाख कोई सोचे सारे सारी रात..."। आप भी सुनिए इस गीत को और हमारे तमाम श्रोताओं को भी 'यलगार' के इस गीत को सुनने का सुझाव हम देंगे। लेकिन फिलहाल हम आपको सुनवा रहे हैं आतिफ़ और श्रेया का गाया "तेरे लिए"।
गीत - तेरे लिए
सजीव - अच्छा इस गीत से पहले तुम बता रहे थे कि इस गीत के चार वर्ज़न हैं, तो उनके बारे में भी बताते चलें।
सुजॊय - बाक़ी के तीन वर्ज़न रीमिक्स वर्ज़न हैं जिनका कुछ इस तरह से नामकरण किया किया गया है - 'डान्स मिक्स' जिसे शायद डिस्कोज़ के लिए बनाया गया होगा; दूसरा है 'हिप हॊप मिक्स' जो पहले के मुक़ाबले थोड़ा और सेन्सुयस भी। आतिफ़ की आवाज़ में एक सेन्सुयस फ़ील है जो इस तरह के गीतों में थोड़ा और जान डाल देता है। और जो तीसरा वर्ज़न है उसका नाम है 'अनप्लग्ड वर्ज़न' जिसमें अनर्थक साज़ों की भीड़ नहीं है, बल्कि केवल गीटार की पार्श्व में सुनाई देता है और इस वर्ज़न में आवाज़ ख़ुद सचिन गुप्ता की ही है। वेल डन सचिन!
सजीव - और दूसरे गीत की बारी। आतिफ़ असलम की आवाज़ और फिर से ईलेक्ट्रिक गीटार का इस्तेमाल। इसे फ़िल्म का थीम सॊंग् भी कहा जा सकता है जो नायक की शख्सियत का बयाँ करती है। "कौन हूँ मैं किसकी मुझे तलाश ", इस गीत में एक रॊक फ़ील है, केवल एक बार सुन कर शायद यह गीत आप के ज़हन में ना बैठ पाए, क्योंकि इस तरह के गीतों को 'सिचुयशनल सॊंग्' कहते हैं, जिसका अर्थ है कि फ़िल्म के कहानी के साथ ही इस गीत को जोड़ा जा सकता है। लेकिन बार बार सुन कर अच्छा लगने लगता है। और हो सकता है कि इसे सुनते हुए आपको 'शहंशाह' फ़िल्म का "अंधेरी रातों में सुनसान राहों पर" गीत याद आ जाए! सुनते हैं...
गीत - कौन हूँ मैं
सुजॊय - और अब आज का अंतिम गीत, और एक बार फिर आतिफ़ असलम की आवाज़। यह गीत है "आ भी जा सनम"। दरअसल इस फ़िल्म में एक गीत है "ओ मेरे ख़ुदा"। करीब करीब उसी धुन पर इस गीत को बनाया गया है, बस रीदम थोड़ी धीमी है। यह एक टिपिकल आतिफ़ असलम नंबर है और पहले भी इस तरह के गानें वो कई बार गा चुके हैं। इसलिए शायद बहुत ज़्यादा नयापन आपको इस गीत में ना लगे, लेकिन गाना अच्छा है, ठीक ठाक बना है।
सजीव - सुजॊय, इसे इत्तेफ़ाक़ ही कहो या कुछ और, हमने आज 'पाठशाला' और 'प्रिन्स' के गानें बजाए, और देखो इन दोनों फ़िल्मों को मैं शंकर अहसान लॊय के साथ जोड़ सकता हूँ, जब कि इन दोनों फ़िल्मों से शंकर अहसान लॊय का कुछ लेना देना नहीं है।
सुजॊय - वह कैसे?
सजीव - अब देखो, याद है मैंने कुछ देर पहले कहा था कैलाश खेर का गाया गीत "ऐ ख़ुद" शंकर अहसान लॊय के बनाए "ओ रब्बा" से मिलता जुलता है; अब देखो 'प्रिन्स' का यह गीत "ओ मेरे ख़ुदा" या "आ भी जा सनम" भी तो शंकर अहसान लॊय की फ़िल्म 'लंदन ड्रीम्स' के एक गीत से बहुत मिलता जुलता है। याद है 'लंदन ड्रीम्स' में एक गाना था "शोला शोला", उस गीत की पंक्ति "और चल तू पिघल हवा है तू बह निकल, राहें बना रस्ते बना चल रे" की धुन "ओ मेरे सनम" के बहुत करीब है।
सुजॊय - वाह! सही है! तो चलिए अब यह गीत सुनते हैं।
गीत - आ भी जा सनम
"पाठशाला" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ***
कुछ खास गायक गायिकाओं की आवाजें, संगीत में नयापन इस अल्बम को कुछ हद तक खास बनाता है. हालांकि शेल्फ वेल्यु नहीं है बहुत फिर भी लकी अली को बहुत दिनों बाद फिर से सुनना सुखद ही है
"प्रिंस" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ***
रेस की टीम ने आपको याद होगा जम कर धूम मचाई थी भले ही धुनें चुराई हुई थी, वही टीम यहाँ फिर है बस संगीतकार प्रीतम को बदल दिया गया है, जब धुनें चुरानी ही हों तो नामी संगीतकार को लेकर क्या करना :) खैर टिप्स की फिल्मों का फार्मूला साफ़ सपाट होता है, धूम धड़ाके वाला संगीत जिसकी आयु फिल्म के सिनेमाघरों पर टिकने तक ही होती है. आतिफ की आवाज़ में "खुदा" शब्द का उच्चारण कानों को चुभता है, बहरहाल नाचने झूमने का मन हो तो इस फुट टैप्पिंग अल्बम को सुना जा सकता है.
और अब आज के ३ सवाल
TST ट्रिविया # ४०- हनीफ़ शेख़ ने अहमद ख़ान की फ़िल्म 'पाठशाला' में संगीत दिया और गानें भी लिखे हैं। बताइए कि इससे पहले अहमद ख़ान की कौन सी फ़िल्म में हनीफ़ ने गीत गाया था और वह गीत कौन सा था?
TST ट्रिविया # ४१- इनका असली नाम है मकसूद महमूद अली। इनका जन्म १९ सितंबर १९५८ को हुआ था। इनकी माँ मशहूर अदाकारा मीना कुमारी की बहन थीं। बताइए इस शख़्स को दुनिया किस नाम से जानती है?
TST ट्रिविया # ४२- आतिफ़ असलम बहुत जल्दी फ़िल्म के पर्दे पर नज़र आएँगे बतौर हीरो। बताइए किस पाक़िस्तानी निर्देशक की यह फ़िल्म है और फ़िल्म का नाम क्या है?
TST ट्रिविया में अब तक -
सीमा जी एक बार फिर बुलंदी पर हैं, बधाई
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regards
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