Skip to main content

मैं पल दो पल का शायर हूँ...हर एक पल के शायर साहिर हैं मनु बेतक्ल्लुस जी की खास पसंद

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 409/2010/109

पकी फ़रमाइशी गीतों के ध्वनि तरंगों पे सवार हो कर 'पसंद अपनी अपनी' शृंखला की नौवीं कड़ी में हम आज आ पहुँचे हैं। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है मनु बेतख़ल्लुस जी की पसंद पर एक गीत। अपनी इस पसंद के बारे में उन्होने हमें कुछ इस तरह से लिख भेजा है।

"गीत तो जाने कितने ही हैं..जो बेहद ख़ास हैं...और ज़ाहिर है..हर ख़ास गीत से कुछ ना कुछ दिली अहसास गहरे तक जुड़े हुए हैं... क्यूंकि आवाज़ को हम काफी समय से पढ़ते/सुनते आ रहे हैं...और आज अपने उन खास गीतों कि फेहरिश्त जब दिमाग में आ रही है..तो ये भी याद आ रहा है के ये गीत तो पहले ही बजाया जा चुका है... हरे कांच की चूड़ियाँ...तकदीर का फ़साना....जीवन से भरी तेरी आँखें... और ना जाने कितने ही.....जो मन से गहरे तक जुड़े हैं... ऐसे में एक और गीत याद आ रहा है...हो सकता है ये भी बजाया जा चुका हो पहले...मगर दिल कर रहा है इसी गीत को फिर से सुनने का.... मुकेश कि आवाज़ में फिल्म कभी कभी कि नज़्म.... आमतौर पर इसके एक ही पहलू पर ज्यादा गौर किया गया है..में पल दो पल का शायर हूँ.... इसी नज़्म का एक और पहलू है..जो उतना मशहूर नहीं हुआ था... मगर हमारे लिए ये पहलू बहुत मायने रखता है... में हर इक पल का शायर हूँ....
हर इक पल मेरी कहानी है..
हर इक पल मेरी हस्ती है
हर इक पल मेरी जवानी है.....

पल दो पल..को...हर इक पल कहती..... जिंदगी कि ललक पैदा करती.....इस नज़्म का एक एक हर्फ़ हमारे लिए बहुत ज़रूरी है.....इसे डूब कर सुन लेने के बाद जीना आसान लगने लगता है....
इसका एक अंतरा..

तुझको मुझको जीवन अमृत अब इन हाथों से पीना है.
इनकी यादों में बसना है, इनकी साँसों में जीना है..
तू अपनी अदाएं बख्श इन्हें,मैं अपनी वफाएं देता हूँ...
जो अपने लिए सोचीं थी कभी वो सारी दुआएं देता हूँ...
मैं हर इक पल का.....

और इसी के पहले अंतरे में....

ख़्वाबों कि और उमंगों कि मीयादें ख़त्म नहीं होतीं....(कितना गहरा असर डालतीं हैं....)
ऐसा ही एक और गीत था... वो भी साहिर की ही कलम का कमाल था... लता ने क्या गाया था.....

कितने दिन आँखें तरसेंगी,कितने दिन यूं दिल तरसेंगे...
इक दिन तो बादल बरसेंगे...ऐ मेरे प्यासे दिल....
आज नहीं तो कल महकेगी, ख़्वाबों कि महफ़िल...."

तो दोस्तों, मनु जी के इन शब्दों के बाद हमें नहीं लगता कि इस आलेख में कुछ और लिखने की आवश्यकता नहीं है। तो आइए सुना जाए मुकेश की आवाज़ में फ़िल्म 'कभी कभी' का यह गीत। संगीतकार हैं ख़य्याम। वैसे मनु जी, हम आपसे माफ़ी चाहेंगें कि आज गलती से हमने इस गीत का पहला ही संस्करण यहाँ जोड़ दिया है, जिसे समय के अभाव में हम बदल नहीं पाए, पर हमें यकीं है ये संस्करण भी आपको बेहद पसंद होगा.



क्या आप जानते हैं...
कि 'कभी कभी' फ़िल्म के लिए ख़य्याम को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था। और मुकेश को इसी फ़िल्म के गीत "कभी कभी मेरे दिल में" के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का पुरस्कार।

चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-

1. मुखड़े में शब्द है -"चुनरिया", फिल्म का नाम बताएं -३ अंक.
2. लता के गाये इस मधुर गीत को किस गीतकार ने लिखा है- २ अंक.
3. संगीतकार बताएं -२ अंक.
4. धर्मेन्द्र हैं नायक, नायिका का नाम बताएं-२ अंक.

विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम-
रोमेंद्र जी, इंदु जी, शरद जी और अवध जी को बहुत बहुत बधाई....

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

फ़िल्म का नाम : दु्ल्हन एक रात की
नूतन
इस फिल्म के और भी गाने बड़े खूबसूरत और मधुर है. बताऊं ?
उस से पहले एक खास खबर
'शरद जी! आपको भाभी बुला रही है ६.३० से७.३० तक उनके पास ही रहा करिये,कितनी गलत बात है आप उन्हें पूरा समय नही देते.''
''भाभी!कृपया इन्हें प्रतिबंधित करें ,हमारा तो नबंर ही नही आता.''
आपकी ननद
शशिकला
AVADH said…
इतना मधुर गीत
संगीतकार: मदन मोहन
अवध लाल
इंदु जी,
मुझे आपके इतनी फ़िल्मों और फिल्मी गानों की जानकारी नहीं ,लेकिन मुझे इतना पता है कि यह गाना (मैं कहीं कवि न बन जाऊँ) किसी भी मामले में गोल्ड से कम नहीं है। यह आपकी व्यक्तिगत राय हो सकती है कि धर्मेन्द्र पर फिल्माए गए गाने ओल्ड न माने जाएँ, लेकिन कोई महफ़िल एक व्यक्ति के राय से तो नहीं चलती ना।

मुझे इसलिए जवाब देना पर रहा है क्योंकि यह गाना मेरी पसंद है, नहीं तो मैं ओल्ड इज गोल्ड पर टिप्पणियों से दूर हीं रहता हूँ।

वैसे गानों को खारिज करने से पहले कारण भी बता दिया करें। (क्योंकि आपने जो कारण बताया है.... प्यार में दिल पे मार के गोली ले ले मेरी जां.... यह पंक्ति इस गाने का हिस्सा नहीं)

मेरी बात बुरी लगे तो माफ़ कर दीजिएगा... लेकिन हाँ जवाब जरूर दीजिएगा क्योंकि मुझे जवाब जानने का हक़ है।

धन्यवाद,
विश्व दीपक
*धर्मेन्द्र पर फिल्माए गए गाने ओल्ड न माने जाएँ

इस पंक्ति में कृपया "ओल्ड" को "गोल्ड" पढें....
manu said…
:)

waah...

hamaari pasand bhi shaamil hui...

shukriyaa.....AWAAZ...



magar nazm nahin sun paa rahe hain...

naa hi hindi mein kah paa rahe hain...
manu said…
sangeet kaar....


MADAN MOHAN...???

??

?
manu said…
sorry...

avadh ji pahle hi jawaab de chuke hain....



इतना मधुर गीत
संगीतकार: मदन मोहन
अवध लाल

April 19, 2010 9:02 PM



magar apnaa comment deleat karne ke bajaay ham ek aur comment denaa pasand kareinge...


:)
एक जवाब शायद रह गया है :-
लता ताई के गाये इस मधुर गीत " मैंने रंग ली आज चुनरिया ..." के गीतकार थे जनाब "राजा मेहंदी अली खान साहब " !

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...