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देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो...धार्मिक उन्माद के नाम पर ईश्वर को शर्मिंदा करने वालों को सीख देता एक गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 305/2010/05

'पंचम के दस रंग' शृंखला का आज का रंग है भक्ति रस का। राहुल देव बर्मन ने जब जब कहानी में सिचुयशन आए हैं, उसके हिसाब से भक्ति मूलक गानें बनाए हैं। कुछ गानें गिनाएँ आपको? फ़िल्म 'अमर प्रेम' का "बड़ा नटखट है रे कृष्ण कन्हैया", फ़िल्म 'मेरे जीवन साथी' का "आओ कन्हाई मेरे धाम", फ़िल्म 'बुड्ढा मिल गया' का "आयो कहाँ से घनश्याम", फ़िल्म 'नरम गरम' का "मेरे अंगना आए रे घनश्याम आए रे", फ़िल्म 'दि बर्निंग् ट्रेन' का "तेरी है ज़मीं तेरा आसमाँ", आदि। लेकिन आज हमने जिस गीत को चुना है वह एक भक्ति गीत होने के साथ साथ उससे भी ज़्यादा उपदेशात्मक गीत है। यह गीत आज की पीढ़ी, जो क्षणिक भोग की ख़ातिर ग़लत राह पर चल पड़ते हैं, उस पीढ़ी को सही राह पर लाने की एक छोटी सी अर्थपूर्ण कोशिश है। 'फ़िल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' का यह गीत है "देखो ओ दीवानो तुम ये काम ना करो, राम का नाम बदनाम ना करो"। फ़िल्म की कहानी तो आपको मालूम ही है, और हमने इस फ़िल्म की चर्चा भी की थी किशोर कुमार पर आयोजित लघु शूंखला के दौरान। देव आनंद की बहन ज़ीनत अमान पारिवारिक अशांति और अस्थिरता से तंग आ कर हिप्पियों के दल में भिड़ जाती है और आम ज़िंदगी छोड़ नेपाल की तंग गलियों में अफ़ीम गांजे की नशा खोरी में मग्न हो जाती है। बरसों बाद अपनी बहन की तलाश में देव आनंद आख़िर आ ही पहुँचते हैं अपनी बहन के पास, लेकिन बहुत देर हो चुकी होती है। हिप्पि लोग अक्सर राम और कृष्ण के भक्त होने की दुहाई देकर नशा करते हैं। इसी ढ़ोंग के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता है यह गीत जिसे आनंद बक्शी के सशक्त बोलों, राहुल देव बर्मन के भावपूर्ण धुनों और किशोर दा की मीठी आवाज़ ने अमर बना दिया है। फ़िल्म में यह गीत उसी वक्त शुरु हो जाता है जैसे ही आशा भोसले, उषा अय्यर और साथियों का गाया हुआ हिप्पिओं पर फ़िल्माया "आइ लव यु... हरे रामा हरे कृष्णा" गीत ख़त्म होता है। नशे में लीन हिप्पि झूम रहे होते हैं उस गीत के साथ और जैसे ही गीत ख़त्म होता है देव साहब अपने गीत से उन पर उपदेशों के बाण चलाने लग जाते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस गीत का हर एक शब्द उपदेशात्मक है जो हमें सोचने पर विवश कर देता है कि हम जिस राह पर चल रहे हैं क्या वह राह सही है? इस गीत को अगर हर कोई अपने अपने जीवन में अपना लें तो हर किसी का जीवन सुधर सकता है, एक सुंदर शांत समाज की स्थापना हो सकती है। यह कतई न समझें कि यह गीत केवल हिप्पियों पर आरोप मात्र है, बल्कि यह हम सभी के लिए उतना ही सार्थक है।

'हरे रामा हरे कृष्णा' फ़िल्म की बातें हमने पहले की है, इसलिए आज कुछ और बातें की जाए! दोस्तों, राहुल देव बर्मन की बातें तो हम जारी रखेंगे ही इस शृंखला में भी और आगे भी, लेकिन आज आइए आनंद बक्शी साहब की कुछ बातें हो जाए। बल्कि उन्ही के कहे हुए शब्द जो १९७६ में विविध भारती के 'जयमाला' कार्यक्रम के लिए रिकार्ड किया गया था। बक्शी साहब कहते हैं, "मुझे वो दिन याद है जब सर्द रातों को पहाड़ों के नीचे बैठ कर लाउड स्पीकर में गानें सुना करता था, और सोचा करता था कि क्या ऐसा भी दिन आएगा कि जब इसी लाउड स्पीकर के नीचे बैठ कर लोग मेरे गीत सुनेंगे। बेशक़ वो वक़्त भी आया, लेकिन एक बात कहूँ आप से वहाँ आप के साथ चैन और सुकून था और यहाँ? ख़ैर छोड़िए! गीत देसी भी होते हैं और बिदेसी भी। मैं एक प्रोफ़ेशनल सॊंग् राइटर हूँ, इसलिए मुझे हर तरह के गानें लिखने पड़ते हैं। लेकिन वो गानें जिनमें इस देश की ख़ुशबू और रंग हो, वह बड़ा मज़ा देते हैं।" दोस्तों, बक्शी साहब ने जिस सुकून और देसी रंग का ज़िक्र यहाँ किया, हम आज के गीत के संदर्भ में बस यही कह सकते हैं कि यह गीत आपको उतना ही सुकून प्रदान करेगा जितना कि इस गाने में हमारे देश की संस्कृति छुपी हुई है। आइए सुनते हैं।



चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-

कभी उल्फत की राहों में,
मुमकिन है भटक जाना भी,
साये में तलवार के चलना है,
खेल नहीं दिल का लगना भी....

पिछली पहेली का परिणाम-
रोहित जी बहुत स्वागत है आपका, २ अंक से खाता खुला है, इस बार नियमित रहिएगा, दिलीप जी वाकई ये गीत संगीत संयोजन के लिहाज से लाजवाब है...शरद जी आप तो गुरु हैं आपका क्या कहना, वैसे पहेली का फॉर्मेट आपको अच्छा लग रहा है जानकार खुशी हुई, किसी स्थापित चीज़ को हटा कर कुछ नया करना आसान नहीं होता, जब पहले दिन किसी का जवाब नहीं आया तो शंकित सा हो गया था. पर आपने जब जवाब दिया तो मन हल्का हो गया...

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

भाई आप भी चटर्जी और हम भी चटर्जी ! आप को शुभकामना !!!
आप के ब्लॉग पे पहली बार आया ,अच्छा लगा !!

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