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समाँ है सुहाना सुहाना नशे में जहाँ है....जहाँ किशोर की आवाज़ गूंजे वहां ऐसा क्यों न हो

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 165

पिछ्ले तीन दिनों से आप किशोर दा की आवाज़ में सुन रहे हैं जीवन के कुछ ज़रूरी और थोड़े संजीदे किस्म के विषयों पर आधारित गानें। आज माहौल को थोड़ा सा हल्का बनाते हैं और आज चुनते हैं ज़िंदगी का एक ऐसा रूप जिसमें है मस्ती, रोमांस और नशा। ऐसे गीतों में भी किशोर दा की आवाज़ ने वो अदाकारी दिखायी है कि ये गानें हर प्रेमी के दिल की आवाज़ बन कर रह गये हैं। आनंद बक्शी का लिखा और कल्याणजी-आनंदजी का स्वरबद्ध किया एक ऐसा ही गीत आज पेश है फ़िल्म 'घर घर की कहानी' से। जी हाँ, "समा है सुहाना, नशे में जहाँ है, किसी को किसी की ख़बर ही कहाँ है, हर दिल में देखो मोहब्बत जवाँ है"। कभी जवाँ दिलों की धड़कन बन कर गूँजा करता था यह नग़मा। इसमें कोई शक़ नहीं कि यह गीत समा को सुहाना बना देता है, इसकी मंद मंद रीदम से मन नशे में डूबता सा चला जाता है, और हर दिल में मोहब्बत की लौ जगा देती है। १९७० की फ़िल्म 'घर घर की कहानी' के मुख्य कलाकार थे राकेश रोशन और भारती। यह एक लो बजट फ़िल्म थी जिसकी बाकी सभी चीज़ों को लोग क्रमश: भूलने लगे हैं सिवाय एक चीज़ के, और वह है फ़िल्म का प्रस्तुत गीत। यह दक्षिण के फ़िल्मकारों की फ़िल्म थी, निर्माता थे नागा रेड्डी और निर्देशक थे टी. प्रकाश राव। यूं तो, जैसा कि हमने कहा कि फ़िल्म के नायक थे राकेश रोशन, लेकिन प्रस्तुत गीत फ़िल्माया गया है जलाल आग़ा पर। यह एक पिकनिक में गाया गया गीत है, जिस पर कालेज के छात्र छात्राओं को नृत्य करते हुए दिखाया गया है।

आज कल्याणजी-आनंदजी और किशोर कुमार की एक साथ बात चली है तो यहाँ पर मैं आप को विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम से आनंदजी की यादों के कुछ उजाले पेश कर रहा हूँ, जिनमें उन्होने किशोर दा के बारे में कई बातें कहे थे-

प्र: अच्छा आनंदजी, किशोर कुमार ने कोई विधिवत तालीम नहीं ली थी, इसके बावजूद भी कुछ लोग जन्मगत प्रतिभाशाली होते हैं, जैसे उपरवाले ने उनको सब कुछ ऐसे ही दे दिया है। उनकी गायकी की कौन सी बात आप को सब से ज़्यादा अपील करती थी?

देखिये, मैने बतौर संगीतकार कुछ ४०-५० साल काम किया है, लेकिन इतना कह सकता हूँ कि 'it should be a matured voice', और यह कुद्रतन होता है। और यहाँ पर क्या है कि कितना भी अच्छा गाते हों आप, लेकिन 'voice quality' अगर माइक पे अच्छी नहीं है तो क्या फ़ायदा! फ़िल्मी गीतों में ज़्यादा मुड़कियाँ लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती। हमारे यहाँ कुछ गायक हैं जो समझते हैं कि दो मुड़कियाँ ले लूँ तो मेरा गाना चलेगा, लेकिन फिर क्या होता है कि फिर हर वक़्त वो वैसा ही लगते हैं। सिर्फ़ गाना ही होगा, 'एक्टिंग' नहीं। लेकिन एक भोला भाला सीधा सादा आदमी खड़े खड़े ही गाना गा रहा है तो उसी तरह का गाना होना चाहिए। आप को मुड़कियाँ लेने की ज़रूरत नहीं है।

प्र: किशोर कुमार एक हरफ़नमौला, हर फ़न में माहिर एक कलाकार। एक खिलंदरपन था उनमें और बचपना भी। लेकिन जब वो सीरियस गाना गाते थे तो रुला देते थे। और जब वो हास्य का गाना गाते थे तो हँसी के फ़व्वारे छूटने लगते थे।

नहीं नहीं, जैसे आप स्विच बदलते हैं, वो वैसी ही थे। किसी को सीखाने से ये सब आयेगी नहीं। ये अंदर से ही आता है। उनकी 'voice quality' बहुत अच्छी थी। 'ultimate judgement' तो आप को ही लेना है, कि 'मैं सुर में गाऊँ कि नहीं', ये मुझे ही मालूम है। ये जो मैने 'सरगम' की कैसेट निकाली है उसमें यही कहा गया है कि आप अपने बच्चों में अभी से आदत डालेंगे।

प्र: आनंदजी, किशोर दा को जो समय आप देते थे उसमें वो आ जाते थे?

हम लोग उनको दोपहर का 'टाइम' ही देते थे। वो कहते थे कि 'आप के गाने में मुझे कोई प्रौब्लेम नहीं होती'. "ख‍इके पान बनारस वाला" वो दोपहर को गा कर चले गये थे, हम को याद ही नहीं था, क्योंकि पिक्चर के चार गानें बन गये थे, 'रिकार्ड' भी बन कर आ गयी थी, बाद में यह गाना डाला गया 'सिचुयशन' बनाकर।


तो दोस्तों, ये थी कुछ बातें आनंदजी के शब्दों में किशोर दा के बारे में। आगे चलकर समय समय पर इस साक्षात्कार से कई और अंश हम आप तक ज़रूर पहुँचायेंगे। तो आइए अब समा को ज़रा सुहाना बनाया जाये किशोर दा के गाये आज के प्रस्तुत गीत को सुनकर।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

1. कल सुनेगें दर्द में डूबी किशोर दा की सदा.
2. कल के गीत का थीम है - "दर्द, पीडा, उपेक्षा आदि".
3. एक अंतरा शुरू होता है इन शब्दों से -"तुझे क्या..".

पिछली पहेली का परिणाम -
पूर्वी जी बनी है एक और नयी प्रतिभागी....बधाई २ अंकों के लिए. रोहित जी ज़रा से पीछे रह गए. दिशा जी और प्राग जी दोनों नादारादा रहे कल. लगता नहीं कि २०० अंक पूरे होने से पहले हमें तीसरे विजेता मिल पायेंगें :(

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Disha said…
kisaka rastaa dekhe
Disha said…
किसका रस्ता देखे ए दिल ए सौदाई
मीलों हैं खामोशी बरसों है तन्हाई
भूली दुनिया कभी की तुझे भी मुझे भी
फिर क्यों आँख भर आई
फिल्म-जोशीला
Disha said…
तुझे क्या बीती हुई रातों से
मुझे क्या खोयी हुई बातों से
सेज नहीं चिता सही जो भी मिले सोना होगा
गयी जो डोरी छूटी हाथों से
लेना क्या टूटे हुए साथों से
खुशी जहाँ माँगी तूने वहीं मुझे रोना होगा
न कोइ तेरा ना कोइ मेरा फिर क्यों आँख भर आयी
दिशा जि
बीच में कहाँ गायब हो गईं थीं ? अब तो आपके मुकाबिल कई लोग आ गए है । बधाई
'अदा' said…
disha ji,

badhai aapko...

aur sharad ji,
kaise hain aap bahut dino se aapse bhi baat nahi hui hai..
aasha hai aap acche hain..
Manju Gupta said…
दिशा जी को बधाई .
manu said…
baht hi dardilaa geet hai..
aaj to meraa sab se manpasand geet hai dhanyavaad
Parag said…
सुजॉय जी
माफी चाहता हूँ मगर यह ७० और ८० के दशक के गानोंमें मुझे दिलचस्पी नहीं है.

पराग
Shamikh Faraz said…
दिशा जी को बधाई

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