Skip to main content

अब के बरस भेज भैया को बाबुल....एक अमर गीत एक अमर फिल्म से

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 178

रद तैलंग जी के पसंद पर कल आप ने फ़िल्म 'विद्यापति' का गीत सुना था लता जी की आवाज़ में, आज सुनिए लता जी की बहन आशा जी की आवाज़ में फ़िल्म संगीत के सुनहरे युग का एक और सुनहरा नग़मा। ससुराल में ज़िंदगी बिता रही हर लड़की के दिल की आवाज़ है यह गीत "अब के बरस भेज भ‍इया को बाबुल सावन में लीजो बुलाए रे, लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियाँ, दीजो संदेसा भिजाए रे"। हमारे देश के कई हिस्सों में यह रिवाज है कि सावन के महीने में बहू अपने मायके जाती हैं, ख़ास कर शादी के बाद पहले सावन में। इसी परम्परा को इन ख़ूबसूरत शब्दों में ढाल कर गीतकार शैलेन्द्र ने इस गीत को फ़िल्म संगीत का एक अनमोल नगीना बना दिया है। इस गीत को सुनते हुए हर शादी-शुदा लड़की का दिल भर आता है, बाबुल की यादें, अपने बचपन की यादें एक बार फिर से तर-ओ-ताज़ा हो जाती हैं उनके मन में। देश की हर बहू अपना बचपन देख पाती हैं इस गीत में। फ़िल्म 'बंदिनी' का यह गीत फ़िल्माया गया था नूतन पर। 'बंदिनी' सन् १९६३ की एक नायिका प्रधान फ़िल्म थी जिसका निर्माण व निर्देशन किया था बिमल राय ने। जरासंध की मर्मस्पर्शी कहानी, नबेन्दु घोष की पटकथा, नूतन, अशोक कुमार और धर्मेन्द्र के सशक्त अभिनय, और सचिन देव बर्मन तथा शैलेन्द्र के असरदार गीत-संगीत ने इस फ़िल्म को आज कालजयी बना दिया है। 'बंदिनी' का शुमार आज 'क्लासिक्स' में होता है। 'बंदिनी' कहानी है कल्याणी (नूतन) की, उसके दुखों की, उसकी व्यथा की, उसके त्याग और समर्पण की। किस तरह से एक भारतीय नारी का दृढ़ संकल्प होते हुए भी ज़िंदगी के किसी न किसी मोड़ पर उसे दुर्बल होना ही पड़ता है, इसका इस कहानी में प्रमाण मिलता है। इस फ़िल्म ने उस साल कई फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार जीते, जैसे कि नूतन (सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री), बिमल राय (सर्वश्रेष्ठ निर्देशक), जरासंध (सर्वश्रेष्ठ कहानी), कमल बोस (सर्वश्रेष्ठ सिनेमाटोग्राफ़र), और डी. बिलिमोरिया (सर्वश्रेष्ठ ध्वनि)। यह फ़िल्म आप सभी ने देखी होगी, अगर किसी ने नहीं देख रखी है तो मेरा सुझाव है कि आज ही इसकी सीडी या टेप मँगवाकर इसे देखें क्योंकि हिंदी सिनेमा की एक बेहतरीन फ़िल्म है 'बंदिनी'।

जहाँ तक इस फ़िल्म के गीत संगीत का सवाल है, इस फ़िल्म का कोई भी गीत ऐसा नहीं जो प्रचलित न हुआ हो। सचिन दा और शैलेन्द्र की टीम तो थी ही, साथ ही नये उभरते गीतकार गुलज़ार ने भी एक गीत इस फ़िल्म में लिखा था "मोरा गोरा अंग ल‍इ ले"। लता जी की आवाज़ में इस गीत के अलावा एक दूसरा गीत था "जोगी जब से तू आया मेरे द्वारे"। मुकेश की आवाज़ में "ओ जानेवाले हो सके तो लौट के आना", मन्ना डे की आवाज़ में "मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे", बर्मन दादा की आवाज़ में "मेरे साजन हैं उस पार", तथा आशा भोंसले की आवाज़ में "ओ पंछी प्यारे" और आज का यह प्रस्तुत गीत, ये सारे गानें आज सदाबहार नग़मों की फ़ेहरिस्त में दर्ज है। दोस्तों, अभी कुछ १०-१५ दिन पहले मैं विविध भारती पर ग़ैर फ़िल्मी गीतों का कार्यक्रम 'गुल्दस्ता' सुन रहा था। अचानक एक गीत बज उठा सुधा मल्होत्रा का गाया हुआ और संगीतकार का नाम बताया गया शिवराम कृष्ण। गीत कुछ ऐसा था "निम्बुआ तले डोला रख दे मुसाफ़िर, आयी सावन की बहार रे"। अब आप ज़रा इस लाइन को "अब के बरस भेज भ‍इया को बाबुल" की धुन पर गाने की कोशिश कीजिए ज़रा! जी हाँ, उस रात मैं भी चौंक गया था यह सुनकर कि इन दोनों गीतों की धुन हू-ब-हू एक है। मेरे दिल में हलचल होती रही कि कौन सा गीत पहले बना होगा, क्या एक संगीतकार दूसरे संगीतकार की धुन से प्रभावित होकर अपना गीत बनाए होंगे, वगैरह वगैरह। मेरी तफ़तीश अगले दिन समाप्त हुई जब मुझे पता चला कि यह असल में एक पारम्परिक लोक रचना है। यह एक कजरी है जिसे कई कई शास्त्रीय गायकों ने गाया है समय समय पर। सावन की ऋतु पर यह गीत गाँव गाँव में सुनने को मिलता है आज भी। और 'बंदिनी' के इस गीत में भी सावन का ही ज़िक्र है। तो दोस्तों, सावन का महीना भी चल रहा है, ऐसे में यह गीत बड़ा ही उपयुक्त बन पड़ा है हमारी इस महफ़िल के लिए। शरद जी को धन्यवाद देते हैं कि उन्होने इस गीत की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया। सुनिए और इसका आनंद उठाइए, और महिलायें इसे सुनकर अपने बचपन और बाबुल को याद करेंगीं ऐसा हमारा अनुमान है।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. इस गीत में शहनाई का बहुत व्यापक इस्तेमाल हुआ है.
२. गीतकार शम्स लखनवीं ने इस फिल्म की कहानी और संवाद लिखे थे.
३. एक अंतरा खत्म होता है इस शब्द पर -"दुवायें".

पिछली पहेली का परिणाम -
पूर्वी जी १० अंक कमाकर आप पराग जी, दिशा जी, और रोहित जी को जबरदस्त टक्कर दे रही हैं. बधाई. स्वप्न जी काश ऐसा हो पाता कि हम सब अपना श्रम लगाकर इस फिल्म का रीमेक बना पाते...आपकी पसंद कल्याणी के रोल के लिए श्रेष्ठ है. अन्य सभी श्रोताओं का भी आभार.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

शोभा said…
बहुत दिनों बाद यह गीत सुना। इस गीत मे ना जाने क्या है कि जब भी सुनती हूँ आँसू बह जाते हैं। बहुत ही मीठा और दिल को छू लेने वाला गीत सुनवाने के लिए आभार।
Parag said…
केवल किसी भी गीतकार के नाम से गीत पहचानना लगभग नामुमकिन है. मुझे खेद है की इस पहेली का जवाब मेरे पास नहीं है.

पराग
Manju Gupta said…
आज बहुत सालों बाद गीत सुना . मैका याद आगया . अविरल आंसू बहने लगे .
आभार .
'अदा' said…
HNM...
HNM...
HNM....
:)
:)
ab to iska istemaal sarvjanik ho gaya hai manu ji...isliye aapka COPYRIGHT khatam .
ha ha ha ha ha ha

अरे महाराज,
इ गीतवा के लिए तो हमहूँ हाथ खडा कर दिए हैं.....गाई होंगी नूरजहाँ ही
लेकिन अब का गायी होंगी इ तो वोही जाने भाई...
सोजोय जी,
हजूर तनिक रहम कीजियेगा बचवन पर.....
manu said…
taqdeer kaa fasaana
jaaker kise sunaayein...
is dil mein jal rahi hain armaan ki chitayein...
:)
manu said…
तुम तो रहो सलामत.....
सेहरा तुम्हे मुबारक...

मेरा हरेक आंसू देने लगा दुआएं............

इस गीत को कैसे भूल सकता हूँ...
'अदा' said…
HNM...
waah manu ji,
lagta hai aap theek kah rahe hain.
agar aisa hai to bahut bahut badhai..
lekin..

इस गीत को कैसे भूल सकता हूँ...

i wala line to nahi hai geet mein..
hmnnnnnnnn
Parag said…
मनु जी आपका जवाब सही मालूम होता है. मैंने ठीकसे सूत्र नहीं पढ़ा था, मैं शम्स लखनवी साहब के लिखे हुए गीतोंके बारेमें सोचता रह गया. आपका जवाब देखने के बाद समझ में आया की यह गीत उनका लिखा हुआ नहीं हैं, पर उन्हों ने इस फिल्म की कहानी और संवाद लिखे है. गाने के गीतकार तो हसरत साहब है. शेहनाई और "दुवायें" शब्द सब कुछ सही बैठ गया अब.

पराग
manu said…
ab kahnaa padegaa....

hnm...


hame
nahin
maaloon.............


ke kisne kyaa likha...?

तुम तो रहो सलामत.....
सेहरा तुम्हे मुबारक...

मेरा हरेक आंसू देने लगा दुआएं...


ye pataa nahi kab se likhaa huaa hai mujh mein.....?
bas duaayein aur shahnaayi shabd

dekhe aur tukkaa lagaa diya....


yaa kahein to dil nikaal ke rakh diyaa......
Shamikh Faraz said…
मनु जी,
कमाल.
मेरी पसन्द के गीतों को आप सब का समर्थन मिल रहा है उसके लिए बहुत बहुत आभारी हूँ ।
अदा जी ! आपका ईमेल ID क्या है

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...