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तकदीर का फ़साना जाकर किसे सुनाएँ...संगीतकार रामलाल का यह गीत दिल चीर कर निकल जाता है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 179

भी परसों आप ने संगीतकार वी. बल्सारा का स्वरबद्ध किया हुआ फ़िल्म 'विद्यापति' का गीत सुना था। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल अक्सर सज उठती है ऐसे ही कुछ कमचर्चित संगीतकार और गीतकारों के अविस्मरणीय गीत संगीत से। वी. बल्सारा के बाद आज भी हम एक ऐसे ही कमचर्चित संगीतकार की संगीत रचना लेकर उपस्थित हुए हैं। रामलाल चौधरी। संगीतकार रामलाल का ज़िक्र हमने इस शृंखला में कम से कम दो बार किया है, एक, फ़िल्म 'नवरंग' के गीत के वक़्त, जिसमें उन्होने शहनाई बजायी थी, और दूसरी बार फ़िल्म 'गीत गाया पत्थरों ने' के गीत में, जिसमें उनका संगीत था। उनके संगीत से सजी केवल दो ही फ़िल्मों ने सफलता की सुबह देखी, जिनमें से एक थी 'गीत गाया पत्थरों ने', और उनकी दूसरी मशहूर फ़िल्म थी 'सेहरा'। आज सुनिये इसी 'सेहरा' का एक बेहद मक़बूल गीत मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में - "तक़दीर का फ़साना जाकर किसे सुनायें, इस दिल में जल रही है अरमानों की चितायें". 'विद्यापति' और 'सेहरा' के इन दो गीतों में कम से कम तीन समानतायें हैं। पहला तो हम बता ही चुके हैं कि इनके संगीतकार बड़े ही कमचर्चित रहे हैं। दूसरा, इन दोनों गीतों में शहनाई का व्यापक इस्तेमाल हुआ है। और तीसरा ये दोनों गीत हम बजा रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड पहेली प्रतियोगिता' के पहले विजेयता शरद तैलंग जी के अनुरोध पर। जी हाँ, शरद जी का ही भेजा हुआ यह गीत है और उनकी पसंद की दाद दिए बिना मैं नहीं रह सकता।

'सेहरा' सन्‍ १९६३ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण किया था वी. शांताराम ने। कहानी और संवाद शम्स लखनवी के थे, जो कई फ़िल्मों में गीतकार के रूप में भी जाने गये। संध्या, प्रशांत, मुमताज़, उल्हास और ललिता पवार अभिनीत यह यादगार फ़िल्म अपने गीत संगीत की वजह से और भी ज़्यादा यादगार बन गया है। इस फ़िल्म में बाबुराव पेंढरकर और केशवराव दाते ने भी अभिनय किया था, जिनका परिचय शांताराम जी से उनके 'प्रभात स्टुडियोज़' के दिनों से था। गीतकार हसरत जयपुरी ने फ़िल्म के सभी गानें लिखे और बेशुमार तारिफ़ें बटोरीं। आज का प्रस्तुत गीत एक डबल वर्ज़न गीत है जिसे रफ़ी साहब और लता जी ने अलग अलग गाया है। इन दोनों गीतों का संगीत संयोजन एक दूसरे से बिल्कुल अलग है। आज हम सुनवा रहे हैं रफ़ी साहब वाला वर्ज़न। रफ़ी साहब ने प्रस्तुत गीत में जिस गायकी का परिचय दिया है, अपनी आवाज़ के ज़रिए जिस दर्द को उभारा है, इस गीत को सुनते हुए वो हमारे कलेजे को चीर कर रख देता है। "सासों में आज मेरे तूफ़ान उठ रहे हैं, शहनाइयों से कहदो कहीं और जाके गायें, मतवाले चाँद सूरज तेरा उठाये डोला, तुझको ख़ुशी की परियाँ घर तेरे लेके जायें, तुम तो रहो सलामत सेहरा तुम्हे मुबारक़, मेरा हर एक आँसू देने लगा दुवायें"। और रामलाल जी की क्या तारीफ़ करें, शहनाई में उनको महारथ तो हासिल थी ही, बस, फिर क्या था, शहनाई से बेहतर कौन सा साज़ होगा जो दर्द को संगीत के ज़रिए साकार कर सके। यह सोचकर दिल उदास हो जाता है कि ऐसे अनमोल गीतों के सर्जक को वो ख्याति नहीं मिली जिसके वो हक़दार थे। ऐसा लगा कि जैसे इस गीत के बोल उन्ही पर सच हो गये हों कि "तक़दीर का फ़साना जाकर किसे सुनायें"।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. यह गीत जिस वाक्य से शुरू होता है उस वाक्य से लिया गया था एक फिल्म का नाम जिसमें लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत था.
२. इस फिल्म एक गीत ओल्ड इस गोल्ड पर आ चुका है जिसमें सावन के आने का जिक्र था.
३. इस क्लासिक गीत को लिखा था शैलेन्द्र ने.

पिछली पहेली का परिणाम -
वाह वाह मनु जी, ज़ोरदार तालियों के साथ ६ अंकों पर पहुचने की बधाई स्वीकार करें, पराग जी इस बार हिंट कुछ छुपे हुए थे, पर आखिरकार आपने गुत्ति सुलझा ही ली, पर बाज़ी मनु जी मार ले गए. आज एक महान शहनाई वादक की पुण्यतिथि है (देखिये बॉक्स). ऐसे में ओल्ड इस गोल्ड पर एक और महान शहनाई के उस्ताद को याद करना एक दिव्य संयोग ही है

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Anonymous said…
dharti kahe pukar ke beej bichha le pyar ke...

ROHIT RAJPUT
Anonymous said…
dharti kahe pukar ke beej bichha le pyar ke
'अदा' said…
ROHIT RAJPUT JI,
kya baat hai...
ham bhi yahi sochte hain.

Mausam beeta jaaye..
Mausam beeta jaaye..

film: do beegha zameen
'अदा' said…
अपनी कहानी छोड़ जा
कुछ तो निशानी छोड़ जा
कौन कहे इस ओर
तू फिर आये न आये.
मौसम बीता जाए
मौसम बीता जाए
Manju Gupta said…
रोहित जी ने बाजी मार ली . बधाई .
वास्तव में मैं भी भूल गया कि मैंनें अपनी पसन्द के कौन कौन से गीत भेजे है । जब पहेली आती है तो मैं भी सोच में पड़ जाता हूँ कि कौन सा गीत हो सकता है । लेकिन मज़ा आ रहा है । अब अदा जी की पसन्द का भी आनन्द उठाएंगे ।
Shamikh Faraz said…
रोहित जी मुबारकबाद.
Anonymous said…
badhaai...rohit ji

purvi
बी एस पाबला said…
बेहतरीन

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