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बूढ़ी काकी - प्रेमचंद

सुनो कहानी: मुंशी प्रेमचंद की "बूढी काकी"

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में मुंशी प्रेमचन्द की कहानी "कातिल" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द की मार्मिक कथा "बूढ़ी काकी", जिसको स्वर दिया है नीलम मिश्रा ने।
कहानी का कुल प्रसारण समय 12 मिनट 28 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।




मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं
~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६)


स्वतन्त्रता दिवस पर विशेष प्रस्तुति


(प्रेमचंद की "बूढ़ी काकी" से एक अंश)

बूढ़ी काकी की कल्पना में पूड़ियों की तस्वीर नाचने लगी। ख़ूब लाल-लाल, फूली-फूली, नरम-नरम होंगीं। रूपा ने भली-भाँति भोजन किया होगा। कचौड़ियों में अजवाइन और इलायची की महक आ रही होगी। एक पूड़ी मिलती तो जरा हाथ में लेकर देखती। क्यों न चल कर कड़ाह के सामने ही बैठूँ। पूड़ियाँ छन-छनकर तैयार होंगी। कड़ाह से गरम-गरम निकालकर थाल में रखी जाती होंगी। फूल हम घर में भी सूँघ सकते हैं, परन्तु वाटिका में कुछ और बात होती है।


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#Thirty fifth Story, Jhanki: Munshi Premchand/Hindi Audio Book/2009/29. Voice: Neelam Mishra

Comments

अनुराग जी आलेख में आपने लिखा है कि आज स्वतत्रता दिवस है, इसे कृपया बदल दें. वाकई ये कहानी बहुत मार्मिक है, और नीलम जी ने वाचन भी अच्छा किया है...बधाई
Shamikh Faraz said…
मैंने यह कहानी पहली बार सुनी. इससे पहले इसे पढने या सुनने का कहीं इत्तेफाक नहीं हुआ. कहानी प्रेमचंद जी की हो और बढ़िया न हो ऐसा हो ही नहीं सकता.
Manju Gupta said…
नीलम जी की मधुर आवाज से कहानी शानदार -जानदार लगी .बधाई
manu said…
क्या लिखा है मुंशी जी ने....!!!!
और नीलम जी ने भी इस कहानी में अपनी आवाज़ देकर और भी दर्द पैदा कर दिया है....

लाल -लाल नर्म-नर्म
फूली फूली होंगी..........

जितना भूखी कुत्ती को ..
खाने वाले के सम्मुख बैठ कर होता है......

........................
चुपचाप रेंगती हुई..
पश्चाताप कर रही थी.........

ऊऊऊफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़

फिर दही और शक्कार से...
मैं तो मांग मांग कर खाऊँगी.........

............
.........................
......................
.............................
..............................................................................................................
................
.......................................................
हे राम
मुझे वहाँ ले चल....
जहां मेहमानों ने भोजन किया है
शोक के सम्मुख क्रोध कहा,,,,,,?????

क्या थे मुंशी जी भी....
shanno said…
इस कहानी को बहुत समय पहले पढ़ा था, किन्तु नीलम जी की स्पष्ट और दर्द भरी आवाज़ में सुनकर मैं फिर से सिहर गयी. उफ़!!
Neelabh said…
जो दर्द और आवाज़ का असर अनुराग जी की वाणी में होता है सुनने के समय, वो इस "बूढ़ी काकी" में दूर-दूर तक नहीं मिला... लगा ही नहीं कि मैं मुंशी प्रेमचंद जी की कोई बहुत ही मार्मिक कथा सुन रहा हूँ.... यूँ कहें कि अभी तक कि प्रेमचंद जी की प्रस्तुतियों में ये अब तक की सबसे खराब रचना है !
neelam said…
shukriyaa for your true criticism .i will try to improve myself .
Ashish Pandey said…
Neelam ji Ki awaj ne vastav mein budhi kaki ko sachchi awaz di hai. aapki awaz ke sath bhawnayen bhi dikhi
neelam said…
kise sach mana jaaye ek taraf nelabh ji ,doosri taraf aashish ji ,aap log
kisi ki bhabnaaon ke saath khilvaad n karen to kya hi behtar ho .

one person is wrong eithr neelabh or aashish .
Jyoti Bhargava said…
I'm grateful to you for posting a podcast of Boorhi Kaki. I'm sharing it with my teenage son who, unfortunately, is reluctant reader of Hindi prose. It'd be wonderful to listen to more story podcasts. My request is to have readers read them with more feeling, sensitivity and emotions.

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