ताजा सुर ताल (17)
ताजा सुर ताल में आज जिक्र एक गैर फ़िल्मी एल्बम के गीत की
सुजॉय -आज ताज़ा सुर ताल में हम जिस गायक की बात कर रहे हैं उनके बारे में हम बस यही कह सकते हैं कि "सुभान अल्लाह सुभान अल्लाह", ठीक वैसे ही जैसे कि उस गायक ने ये कहा था फ़िल्म 'फ़ना' के उस गीत में। जी हाँ हम बात कर रहे हैं कैलाश खेर साहब की, और मेरे साथ हैं मेरे को-होस्ट और मेरे साथी सजीव सारथी.
सजीव - यानी कि जिक्र है एक बार फिर कैलाश खेर की अल्बम "चांदन में", हमारे श्रोताओं को याद होगा इस अल्बम का और अन्य गीत हमने कुछ दिन पहले सुनवाया था जिसके बोल थे -"भीग गया मेरा मन..."
सुजॉय - ज़मीन से उठ कर जब कोई ज़र्रा सितारा बन जाए तो सभी को हैरत होती है। सीधे सादे ज़मीन से जुड़े कैलाश खेर के साथ भी यही हुआ। जो भी हुआ उनके साथ, मंगलमय ही हुआ, यहाँ भी मुझे उन्ही का गाया मंगल पाण्डेय का गीत याद आ रहा है "मंगल मंगल हो"।
सजीव - हाँ और यही वो गीत थे जिसमें उनके साथ थे सुखविंदर और संगीतकार थे रहमान, यही हमारे पिछले अंक का सवाल भी था, पर अफ़सोस किसी भी श्रोता ने सही जवाब नहीं दिया. लगता है नए संगीत के प्रति हमारे श्रोता अभी अधिक जगुरुक नहीं हैं.
सुजॉय - हाँ, खैर सजीव, कहते है ज़िंदगी का दूसरा नाम संघर्ष है और हमारे कैलाश खेर भी संघर्ष के पर्यायवाची है। बालावस्था में वो अपने घर मेरठ से भाग कर एक गुरु की तलाश में दिल्ली आ पहुँचे। १५ गुरुओं से मिलने के बाद वो आख़िर कार मुंबई आ पहुँचे। मुंबई में आने के बाद उन्होने अंधेरी रेल्वे स्टेशन पर तमाम रातें गुज़ारी। सूफ़ियाना गायक कैलाश खेर करता संघर्ष उम्र भर और उनको इसका सिला भी मिला। फ़िल्म 'वैसा भी होता है' में उनका गाया गीत "अल्लाह के बंदे" ने रातों रात उनकी ज़िंदगी बदल डाली।
सजीव - कैलाश खेर ने शुरु शुरु में कई विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाए हैं, जिनमें से कई बेहद लोकप्रिय भी हुए हैं। हमारी फ़िल्मों मे हीरो के प्लेबैक के लिए जिस तरह क्की आवाज़ें ली जाती हैं, कैलाश खेर की आवाज़ शायद वैसी नहीं है। लेकिन जब भी किसी फ़िल्म में किसी चरित्र के लिए कुछ अलग आवाज़ की ज़रूरत पड़ती है, तो संगीतकार उन्ही के पास जाते हैं। यही बात हमें याद दिलाते हैं ७० और ८० के दशक के गायक नरेन्द्र चंचल की। गायक कैलाश खेर की आवाज़ में इस मिट्टी की ख़ुशबू है, जिस वजह से वो जो भी गीत गाते हैं दिल को छू जाते हैं।
सुजॉय - अब ज़रा आप को कुछ ऐसे फ़िल्मों के नाम गिनाते हैं जिनमें कैलाश खेर ने अपनी आवाज़ दी है। ये फ़िल्में हैं स्वदेस, वक़्त, खोंसला का घोंसला, मंगल पाण्डेय, काल, फ़ना, अंदाज़, वैसा भी होता है, ख़ाकी, देव, बरसात, चॉकलेट, क्योंकि, एक अजनबी, दोस्ती, ज़िंदा, अलग, आप की ख़ातिर, नक्शा, और भी न जाने कितने। अभी हाल ही में फ़िल्म 'चांदनी चौक टू चायना' और आजकल 'कमीने' के लिए उनके गाए गीत भी ख़ूब बजे और बज रहे हैं। कैलाश खेर ने "कैलासा" नाम से एक ग़ैर फ़िल्मी ऐल्बम बनाई है जिसे लोगों ने हाथों हाथ ग्रहण किया। कैलासा बैंड में कैलाश खेर के साथी रहे हैं नरेश कामत और परेश कामत, जो कामत ब्रदर्स के नाम से भी जाने जाते हैं। इस टीम का जिक्र हम पहले ही कर चुके हैं. अपनी ताजा अल्बम "चांदन में" कैलाश की ये टीम अपने पिछले कामों के मुकाबले और निखर कर लौटी है.
सजीव - हाँ तो सुजॉय आज आप कौन सा गीत सुनवा रहे हैं इस अल्बम से
सुजॉय- ये अल्बम का शीर्षक गीत है -"आओ जी..." जिसका विडियो भी इन दिनों काफी चर्चित हो रहा है. इस गीत की खासियत यह है कि इसमें फ़्युज़न का प्रयोग हुआ है। एक तरफ़ कैलाश की मिट्टी की सुगंध लिए लोक शैली की गायकी, और दूसरी तरफ़ संगीत में है पाश्चात्य रंग, जिसका श्रेय जाता है कामत ब्रदर्स को। यानी कि हम इस गीत के लिए यह कह सकते हैं कि "गीत अपना और धुन पराई"। कैलाश की गायकी सूफ़ियाना ढंग की है। ऊँचे सुर उनके उतने ही अच्छे लगते है जितने कि उनके नर्म-ओ-नाज़ुक लोवर नोट्स। जो सुक्ष्म हरकतें वो करते हैं अपने गीतों में, जो केवल अच्छे रियाज़ और साफ़ दिलवाले ही कर सकते हैं। जितने सीदे सादे वो ख़ुद निजी ज़िंदगी में हैं, वही सादगी उनकी गायकी, उनके गाए गीतों में भी साफ़ झलकती है। उनके गाए गीतों के ज़रिए ऐसा लगता है जैसे कि सीधे ईश्वर से कोई संबंध हो रहा हो! एक आध्यात्मिक जगत में ले जाते हैं कैलाश खेर की आवाज़ और इस नये ऐल्बम के गीतों को सुनते हुए भी हम ऐसे ही एक जगत में पहुँच जाते हैं।
सजीव - बिलकुल सुजॉय, खासकर इस गीत में जब वो अंतरा उठाते हैं दोनों बार दिल में एक हूक सी उठा जाते हैं...अब आपने इतना कुछ कह ही दिया है तो हमारे श्रोता भी बैचैन होंगे गीत को सुनने के लिए. सुविधा के लिए बोल हम प्रस्तुत कर देते हैं.
राह बुहारूं, पग पखारूँ, तुम्हें निहारूं जी,
प्राण वारूँ, बैयाँ डारूं , मैं न हारूँ जी,
हो आये जी मारे चतर सुजान, लीजो पहचान,
कहे भरमाओ जी, आओ जी, आओ जी...आओ जी....
चांदन में, मैं तकूँ जी, तेरा सोना मुखडा,
प्यारा प्यारा मुखडा,
आँचल में मैं रखूं री.
चंदा का टुकडा,
ओ जी प्यारा मुखडा...
तू धरे जहाँ पाँव तो मुस्काये ये धरती,
सैयां ...सैयां...
मारी बिनती सुन लो आन, मारे भगवान्,
हमें न सताओ जी....आओ जी, आओ जी...आओ जी...
सर्प डसे सुन्ना सुन्ना, कैसा मीठा सा जहर,
दर्द बढे दूना दूना, उठे हिया में लहर,
उठे ह्रदय में लहर...
मैं करूँ श्रृगार तो शर्माए ये दर्पण,
सैयां...सैयां...
ऊंची चढ़ के देऊ अजान, न बनो अनजान,
पर्दा हटाओ जी...आओ जी आओ जी....आओ जी...
और अब सुनिए ये गीत -
आवाज़ की टीम ने दिए इस गीत को 4 की रेटिंग 5 में से. अब आप बताएं आपको ये गीत कैसा लगा? यदि आप समीक्षक होते तो प्रस्तुत गीत को 5 में से कितने अंक देते. कृपया ज़रूर बताएं आपकी वोटिंग हमारे सालाना संगीत चार्ट के निर्माण में बेहद मददगार साबित होगी.
क्या आप जानते हैं ?
आप नए संगीत को कितना समझते हैं चलिए इसे ज़रा यूं परखते हैं.संगीतकार प्रीतम ने "धूम २" की सफलता के बाद यश राज फिल्म्स की किस ताज़ा तरीन फिल्म के लिए संगीत तैयार किया है, कौन सी है वो जल्द आने वाली फिल्म? बताईये और हाँ जवाब के साथ साथ प्रस्तुत गीत को अपनी रेटिंग भी अवश्य दीजियेगा.
पिछले सवाल का सही जवाब हम उपर दे ही चुके हैं. हमारे श्रोता पिछले गीत की समीक्षा में इतने उलझ गए कि पहेली की बात भूल गए. पर हमें शिकायत नहीं है क्योंकि आप सब की रेटिंग जो अधिक जरूरी है वो हमें प्राप्त हो रही है....एक बार फिर सभी का आभार.
अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं. "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है. आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रुरत है उन्हें ज़रा खंगालने की. हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं. क्या आप को भी आजकल कोई ऐसा गीत भा रहा है, जो आपको लगता है इस आयोजन का हिस्सा बनना चाहिए तो हमें लिखे.
ताजा सुर ताल में आज जिक्र एक गैर फ़िल्मी एल्बम के गीत की
सुजॉय -आज ताज़ा सुर ताल में हम जिस गायक की बात कर रहे हैं उनके बारे में हम बस यही कह सकते हैं कि "सुभान अल्लाह सुभान अल्लाह", ठीक वैसे ही जैसे कि उस गायक ने ये कहा था फ़िल्म 'फ़ना' के उस गीत में। जी हाँ हम बात कर रहे हैं कैलाश खेर साहब की, और मेरे साथ हैं मेरे को-होस्ट और मेरे साथी सजीव सारथी.
सजीव - यानी कि जिक्र है एक बार फिर कैलाश खेर की अल्बम "चांदन में", हमारे श्रोताओं को याद होगा इस अल्बम का और अन्य गीत हमने कुछ दिन पहले सुनवाया था जिसके बोल थे -"भीग गया मेरा मन..."
सुजॉय - ज़मीन से उठ कर जब कोई ज़र्रा सितारा बन जाए तो सभी को हैरत होती है। सीधे सादे ज़मीन से जुड़े कैलाश खेर के साथ भी यही हुआ। जो भी हुआ उनके साथ, मंगलमय ही हुआ, यहाँ भी मुझे उन्ही का गाया मंगल पाण्डेय का गीत याद आ रहा है "मंगल मंगल हो"।
सजीव - हाँ और यही वो गीत थे जिसमें उनके साथ थे सुखविंदर और संगीतकार थे रहमान, यही हमारे पिछले अंक का सवाल भी था, पर अफ़सोस किसी भी श्रोता ने सही जवाब नहीं दिया. लगता है नए संगीत के प्रति हमारे श्रोता अभी अधिक जगुरुक नहीं हैं.
सुजॉय - हाँ, खैर सजीव, कहते है ज़िंदगी का दूसरा नाम संघर्ष है और हमारे कैलाश खेर भी संघर्ष के पर्यायवाची है। बालावस्था में वो अपने घर मेरठ से भाग कर एक गुरु की तलाश में दिल्ली आ पहुँचे। १५ गुरुओं से मिलने के बाद वो आख़िर कार मुंबई आ पहुँचे। मुंबई में आने के बाद उन्होने अंधेरी रेल्वे स्टेशन पर तमाम रातें गुज़ारी। सूफ़ियाना गायक कैलाश खेर करता संघर्ष उम्र भर और उनको इसका सिला भी मिला। फ़िल्म 'वैसा भी होता है' में उनका गाया गीत "अल्लाह के बंदे" ने रातों रात उनकी ज़िंदगी बदल डाली।
सजीव - कैलाश खेर ने शुरु शुरु में कई विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाए हैं, जिनमें से कई बेहद लोकप्रिय भी हुए हैं। हमारी फ़िल्मों मे हीरो के प्लेबैक के लिए जिस तरह क्की आवाज़ें ली जाती हैं, कैलाश खेर की आवाज़ शायद वैसी नहीं है। लेकिन जब भी किसी फ़िल्म में किसी चरित्र के लिए कुछ अलग आवाज़ की ज़रूरत पड़ती है, तो संगीतकार उन्ही के पास जाते हैं। यही बात हमें याद दिलाते हैं ७० और ८० के दशक के गायक नरेन्द्र चंचल की। गायक कैलाश खेर की आवाज़ में इस मिट्टी की ख़ुशबू है, जिस वजह से वो जो भी गीत गाते हैं दिल को छू जाते हैं।
सुजॉय - अब ज़रा आप को कुछ ऐसे फ़िल्मों के नाम गिनाते हैं जिनमें कैलाश खेर ने अपनी आवाज़ दी है। ये फ़िल्में हैं स्वदेस, वक़्त, खोंसला का घोंसला, मंगल पाण्डेय, काल, फ़ना, अंदाज़, वैसा भी होता है, ख़ाकी, देव, बरसात, चॉकलेट, क्योंकि, एक अजनबी, दोस्ती, ज़िंदा, अलग, आप की ख़ातिर, नक्शा, और भी न जाने कितने। अभी हाल ही में फ़िल्म 'चांदनी चौक टू चायना' और आजकल 'कमीने' के लिए उनके गाए गीत भी ख़ूब बजे और बज रहे हैं। कैलाश खेर ने "कैलासा" नाम से एक ग़ैर फ़िल्मी ऐल्बम बनाई है जिसे लोगों ने हाथों हाथ ग्रहण किया। कैलासा बैंड में कैलाश खेर के साथी रहे हैं नरेश कामत और परेश कामत, जो कामत ब्रदर्स के नाम से भी जाने जाते हैं। इस टीम का जिक्र हम पहले ही कर चुके हैं. अपनी ताजा अल्बम "चांदन में" कैलाश की ये टीम अपने पिछले कामों के मुकाबले और निखर कर लौटी है.
सजीव - हाँ तो सुजॉय आज आप कौन सा गीत सुनवा रहे हैं इस अल्बम से
सुजॉय- ये अल्बम का शीर्षक गीत है -"आओ जी..." जिसका विडियो भी इन दिनों काफी चर्चित हो रहा है. इस गीत की खासियत यह है कि इसमें फ़्युज़न का प्रयोग हुआ है। एक तरफ़ कैलाश की मिट्टी की सुगंध लिए लोक शैली की गायकी, और दूसरी तरफ़ संगीत में है पाश्चात्य रंग, जिसका श्रेय जाता है कामत ब्रदर्स को। यानी कि हम इस गीत के लिए यह कह सकते हैं कि "गीत अपना और धुन पराई"। कैलाश की गायकी सूफ़ियाना ढंग की है। ऊँचे सुर उनके उतने ही अच्छे लगते है जितने कि उनके नर्म-ओ-नाज़ुक लोवर नोट्स। जो सुक्ष्म हरकतें वो करते हैं अपने गीतों में, जो केवल अच्छे रियाज़ और साफ़ दिलवाले ही कर सकते हैं। जितने सीदे सादे वो ख़ुद निजी ज़िंदगी में हैं, वही सादगी उनकी गायकी, उनके गाए गीतों में भी साफ़ झलकती है। उनके गाए गीतों के ज़रिए ऐसा लगता है जैसे कि सीधे ईश्वर से कोई संबंध हो रहा हो! एक आध्यात्मिक जगत में ले जाते हैं कैलाश खेर की आवाज़ और इस नये ऐल्बम के गीतों को सुनते हुए भी हम ऐसे ही एक जगत में पहुँच जाते हैं।
सजीव - बिलकुल सुजॉय, खासकर इस गीत में जब वो अंतरा उठाते हैं दोनों बार दिल में एक हूक सी उठा जाते हैं...अब आपने इतना कुछ कह ही दिया है तो हमारे श्रोता भी बैचैन होंगे गीत को सुनने के लिए. सुविधा के लिए बोल हम प्रस्तुत कर देते हैं.
राह बुहारूं, पग पखारूँ, तुम्हें निहारूं जी,
प्राण वारूँ, बैयाँ डारूं , मैं न हारूँ जी,
हो आये जी मारे चतर सुजान, लीजो पहचान,
कहे भरमाओ जी, आओ जी, आओ जी...आओ जी....
चांदन में, मैं तकूँ जी, तेरा सोना मुखडा,
प्यारा प्यारा मुखडा,
आँचल में मैं रखूं री.
चंदा का टुकडा,
ओ जी प्यारा मुखडा...
तू धरे जहाँ पाँव तो मुस्काये ये धरती,
सैयां ...सैयां...
मारी बिनती सुन लो आन, मारे भगवान्,
हमें न सताओ जी....आओ जी, आओ जी...आओ जी...
सर्प डसे सुन्ना सुन्ना, कैसा मीठा सा जहर,
दर्द बढे दूना दूना, उठे हिया में लहर,
उठे ह्रदय में लहर...
मैं करूँ श्रृगार तो शर्माए ये दर्पण,
सैयां...सैयां...
ऊंची चढ़ के देऊ अजान, न बनो अनजान,
पर्दा हटाओ जी...आओ जी आओ जी....आओ जी...
और अब सुनिए ये गीत -
आवाज़ की टीम ने दिए इस गीत को 4 की रेटिंग 5 में से. अब आप बताएं आपको ये गीत कैसा लगा? यदि आप समीक्षक होते तो प्रस्तुत गीत को 5 में से कितने अंक देते. कृपया ज़रूर बताएं आपकी वोटिंग हमारे सालाना संगीत चार्ट के निर्माण में बेहद मददगार साबित होगी.
क्या आप जानते हैं ?
आप नए संगीत को कितना समझते हैं चलिए इसे ज़रा यूं परखते हैं.संगीतकार प्रीतम ने "धूम २" की सफलता के बाद यश राज फिल्म्स की किस ताज़ा तरीन फिल्म के लिए संगीत तैयार किया है, कौन सी है वो जल्द आने वाली फिल्म? बताईये और हाँ जवाब के साथ साथ प्रस्तुत गीत को अपनी रेटिंग भी अवश्य दीजियेगा.
पिछले सवाल का सही जवाब हम उपर दे ही चुके हैं. हमारे श्रोता पिछले गीत की समीक्षा में इतने उलझ गए कि पहेली की बात भूल गए. पर हमें शिकायत नहीं है क्योंकि आप सब की रेटिंग जो अधिक जरूरी है वो हमें प्राप्त हो रही है....एक बार फिर सभी का आभार.
अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं. "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है. आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रुरत है उन्हें ज़रा खंगालने की. हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं. क्या आप को भी आजकल कोई ऐसा गीत भा रहा है, जो आपको लगता है इस आयोजन का हिस्सा बनना चाहिए तो हमें लिखे.
Comments
२.५/५
सुधी श्रोताओं से मैं यह दरख्वास्त करूँगा कि इस गाने का विडियो जरूर देखें....बालपन के प्रेम को बड़ी हीं विशिष्ट शैली में दर्शाया गया है।
अब आज की पहेली का जवाब:
फिल्म "दिल बोले हडिप्पा" जिसमें जयदीप सहनी और कुमार ने गीत लिखे हैं और इसका टाईटल ट्रैक आजकल बड़ा हीं फेमस हो रहा हूँ, जिसमें आवाज़ें हैं मिका और सुनिधि चौहान की।
धन्यवाद,
विश्व दीपक
दिल बोले हडिप्पा में बस "जयदीप साहनी" ने हीं गाने लिखे हैं , कुमार ने नहीं।
धन्यवाद,
विश्व दीपक