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सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं....कौन न खो जाए मुकेश की इस मस्ती भरी आवाज़ में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 187

दिलीप कुमार के लिए पार्श्वगायन की अगर बात करें तो सब से पहले उनके लिए गाया था अरुण कुमार ने उनकी पहली फ़िल्म 'ज्वार भाटा' में। उसके बाद कुछ वर्षों के लिए तलत महमूद बने थे दिलीप साहब की आवाज़। बाद में रफ़ी साहब की आवाज़ ही ज़्यादा सुनाई दी थी दिलीप साहब के होठों से। लेकिन ५० के दशक में कुछ ऐसे गीत बनें हैं जिनमें दिलीप कुमार का प्लेबैक दिया था मुकेश ने, और ख़ास बात यह कि मुकेश की आवाज़ भी उन पर बहुत जचीं और ये तमाम गानें ख़ूब चले भी, फ़िल्म 'यहूदी' का 'ये मेरा दीवानापन है" कह लीजिए या फिर फ़िल्म 'अंदाज़' का "झूम झूम के नाचो आज, गाओ ख़ुशी के गीत", या फिर 'मधुमती' का "सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं" और "दिल तड़प तड़प के कह रहा है आ भी जा"। लेकिन कहा जाता है कि दिलीप साहब नहीं चाहते थे कि मुकेश उनके लिए गाए क्योंकि उनका ख़याल था कि मुकेश की आवाज़ उन पर फ़िट नहीं बैठती। यह बात है १९४८ की जब 'अंदाज़' बन रही थी। फ़िल्म के संगीतकार नौशाद साहब ने उन्हे समझाया कि ऐसे गीतों के लिए मुकेश की आवाज़ ही सब से ज़्यादा सही है, दिलीप साहब मान गए और गीत के सफल होने के बाद मुकेश जी को भी मान गए। आज हम दिलीप साहब और मुकेश जी की जोड़ी को सलाम करते हुए जिस गीत को आप तक पहुँचा रहे हैं वह है फ़िल्म 'मधुमती' का "सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं"। शैलेन्द्र के बोल और सलिल चौधरी का संगीत। यह अपने ज़माने का एक ब्लौकबस्टर फ़िल्म है। कहानी, अभिनय, संगीत, सब चीज़ों में एक नयापन लेकर आये थे बिमल राय। इस फ़िल्म का हर एक गीत हिट हुआ, और यह बताना मुश्किल है कि कौन सा गीत ज़्यादा बेहतर है।

बिमल राय ५० के दशक में गम्भीर सामाजिक मुद्दों पर फ़िल्में बनाने के लिए जाने जाते थे। उनकी हर एक फ़िल्म समाज को, लोगों को कुछ न कुछ शिक्षा ज़रूर दिया करती थी। लेकिन १९५८ की फ़िल्म 'मधुमती' बिल्कुल अलग हट के थी। यह कहानी थी पुनर्जन्म और भटकती हुई आत्मा की। शुरु शुरु में इस तरह की फ़िल्म बनाने के उनके निर्णय से उन्हे समालोचकों के बहुत से तानें सुनने पड़े थे। लेकिन बिमल दा पीछे नहीं हटे और ऋत्विक घटक की इस कहानी पर राजेन्द्र सिंह बेदी से संवाद लिखवा कर और सलिल चौधरी से दिलकश संगीत तैयार करवा कर यह सिद्ध किया कि इस तरह की फ़िल्में बनाने में भी वो दक्षता रखते हैं। इस फ़िल्म के गीत "आजा रे परदेसी" के लिए लता मंगेशकर को अपना पहला फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार मिला था, और उससे भी ज़रूरी बात यह कि यह पुरस्कार किसी गायक को उसी साल पहली बार दिया जा रहा था। दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला अभिनीत इस फ़िल्म की कहानी रोमहर्षक थी, ख़ास कर क्लाइमैक्स का दृश्य तो यादगार है। इसी क्लाइमैक्स को हाल ही में फ़रहा ख़ान ने अपने फ़िल्म 'ओम शांति ओम' में इस्तेमाल किया था। फ़िल्म 'मधुमती' का एक मज़बूत पक्ष रहा है उसका गीत संगीत। कुछ तो है बात इन पहाड़ी लोक धुनों पर बने गीतों में कि आज ५० सालों के बाद भी इस फ़िल्म के गानों को सुनकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि इतने पुराने ज़माने के हैं ये गानें। ऐसे गीत पुराने नहीं होते, काल का इन पर कोई असर नहीं चलता, ये तो कालजयी रचनाएँ हैं जिनकी मिठास समय के साथ साथ बढ़ती चली जाती है। सलिल दा के संगीत सफ़र का 'मधुमती' एक बेहद उल्लेखनीय पड़ाव था। और आज के लिए सब से ख़ास बात कि इस फ़िल्म का प्रस्तुत गीत गायक मुकेश के पसंदीदा गीतों में शामिल है। तो लीजिए, हसीन मौसम और सुहाने सफ़र में आप भी खो जाइए, कुछ देर के लिए ही सही!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. संगीतकार नौशाद के लिए गाया यहाँ मुकेश ने.
२. इस नाम की और और फिल्म बनी थी जिसमें शम्मी कपूर और हेमा मालिनी प्रमुख भूमिका में थे.
३. एक अंतरे में इन दो शब्दों का इस्तेमाल है -"साज़" और "वीणा".

पिछली पहेली का परिणाम -
पराग जी बधाई...आप एक बार फिर सब से आगे निकल आये. लगता है आप इंतज़ार करते हैं इस बात का कि कब बाकी लोग आपके बराबर आयें और फिर आप सबको छकाते हुए आगे निकलें. मंजू जी शरद जी की बात पर गौर कीजिये, कहाँ ध्यान है आपका, दिशा जी आप लेट हो गयी....क्या करें....दिलीप जी आपकी और हमारी तरंगें खूब मिलती है, पाबला जी लगता है आपकी नाराजगी दूर नहीं हुई, आपने गीत के बोल प्रस्तुत नहीं किये इस बार :)

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

क्या हुआ ? इतनी देर तक कोई भी नहीं । शम्मी कपूर और हेमा मालिनी की फ़िल्म क नाम तो सबको पता ही होगा फिर देर किस बात की ?
kamaal ho gayaa ! aaj abhi tak koi bhi isa geet ka sahi andaaz
nahi lagaa paayaa . koi kuchh to bolo.
Parag said…
tu kahe agar, tu kahe agar
tu kahe agar jeevan bhar
main geet sunaata jaaun
man been bajaata jaaun
'अदा' said…
शम्मी कपूर और हेमा मालिनी की फ़िल्म
itta bada bada clue ????
khair, sharad ji aap gayab ho jaate hain...
fir ham akele kya karein....
saanp chuchundar ki haalat ho jaati hai na ugalte banta hai na hi nigalate...
isi liye ham der se hi aate hain...
बी एस पाबला said…
अरे नहीं सुजॉय जी! नाराज़गी कैसी? थोड़ी बहुत चुहलबाजी भी होनी चाहिए ना :-)

दर असल दिशा जी ने गीत के बोल लिख ही दिए थे। पराग ने पहेली का उत्तर भी दे दिया था। सोचा अब अपना कोई रोल नहीं, सो खिसक लिए हम :-)
तू कहे तो मैं जीवन भर ये गीत सुनाता जाऊं,

आप कहें तो मुकेश जी को रोज़ ही गाता जाऊं!!!
Shamikh Faraz said…
भई अपने तो बस से बाहर है पहेली का उत्तर देना.
Shamikh Faraz said…
sharad ji maine aapki awaz kavi sammelan me suni. maza aa gaya. kya saz basta hai aapki awaz me. tareef k lie lafz nahi hai mere pas. bahut khub
'अदा' said…
Sujoy ji,
Pabla sahab ko naraaz karna matlab apne paaon par kulhaadi marna ...
agle saal (mujhe apne janmdin ki fikr hai ) kaun manayega ????
aur ek baat Pabla Sahab naraz ho hi nahi sakte agar aisa hua to unhein doosri photo khinchwaani padegi...
ha ha ha ha ha ha
Manju Gupta said…
अब तो गाने के दिग्गज भी विकल्प नहीं देते हैं .
आज समय पर पहुंच गया तो तीर लग गया!!

अंदाज़ फ़िल्म चार बार बनीं थी, १९४९/१९७१/१९९४/२००३, जिसमें मेहबूब खान की फ़िल्म का यह गीत दिलीप कुमार पर फ़िल्माया गया. खास बात ये है, इस फ़िल्म में दिलीप कुमार पर मुकेश जी नें आवाज़ उधार दी, जबकि राज कपूर पर मोह. रफ़ी जी नें. हैं ना मज़े की बात?
बी एस पाबला said…
अरे इतनी टाँग खिंचाई मत कीजिए भई, वैसे दूसरी फोटो खिंचाने का मन ही नहीं किया कभी :-)
Anonymous said…
Manju You will loose again unipathak award. I pray to God 4 this.
Anonymous said…
Manju You will loose again unipathak award. I pray to God 4 this.
बी एस पाबला said…
फिल्म: अंदाज़
संगीतकार: नौशाद

गीतकार: मज़रूह सुल्तानपुरी
गायक: मुकेश

गीत के बोल:
तू कहे अगर, तू कहे अगर
तू कहे अगर जीवन भर
मैं गीत सुनाता जाऊं
मन बीन बजाता जाऊं
तू कहे अगर

मैं साज़ हूँ तू सरगम है \- 2
देती जा सहारे मुझको \- 2
मैं राग हूँ तू वीणा है \- 2
इस दम जो पुकारे तुझको
आवाज़ में तेरी हर दम
आवाज़ मिलाता जाऊं
आकाश पे छाता जाऊं
तू कहे अगर...

इन बोलों में, तू ही तू है
मैं समझूँ या तू जाने, हो जाने
इनमें है कहानी मेरी, इनमें है तेरे अफ़साने
इनमें है तेरे अफ़साने
तू साज़ उठा उल्फ़त का
मैं झूम के गाता जाऊं
सपनों को जगाता जाऊं
तू कहे अगर...

सोचने में क्या जाता है कि-
इस बार तो पक्का मुझे ही अंक मिलेंगे क्योंकि तीनों हिंट को बोल्ड कर दिखाया भी है मैंने :-) वो भी हिंदी में :-)
कित्ती मेहनत लगती है
:-D
'अदा' said…
pabla sahab,
are meri itni himaat main aapki taang khichaiyi karun..
na baba naa..
aap is fhoto mein itne khush lagte hain ki iske saath NARAAZ wala mood jayega hi nahi na..
aur doosri foto daliyega bhi mat.
Is foto se ham sab ka blog khushgawaar ho jata hai..
sach kahte hain...
अजी हम तो इन सुंदर गीतो के सुनने के वाद धन्यवाद ही कहेगे.
एक और बात मधुमती फ़िल्म के लिये भी:

फ़िल्म के सभी खुशनुमा गानें दर्द के पर्याय माने जाने वाले मुकेशजी से गवाये है, सलिलदा नें, जबकि एक मात्र दर्द भरा गीत गवाया है, रफ़ी साहब से.

है ना ये भी मज़ेदार बात?

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