ताजा सुर ताल (12)
आत्मावलोकन यानी खुद के रूबरू होकर बीती जिंदगी का हिसाब किताब करना, हम सभी करते हैं ये कभी न कभी अपने जीवन में और जब हमारे फ़िल्मी किरदार भी किसी ऐसी अवस्था से दोचार होते हैं तो उनके ज़ज्बात बयां करते कुछ गीत भी बने हैं हमारी फिल्मों में, अक्सर नतीजा ये निकलता है कि कभी किस्मत को दगाबाज़ कहा जाता है तो कभी हालतों पर दोष मढ़ दिया जाता है कभी दूसरों को कटघरे में खडा किया जाता है तो कभी खुद को ही जिम्मेदार मान कर इमानदारी बरती जाती है. रेट्रोस्पेक्शन या कन्फेशन का ही एक ताजा उदाहरण है फिल्म "कमीने" का शीर्षक गीत. फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ जिंदगी को तो बा-इज्ज़त बरी कर दिया है और दोष सारा बेचारे दिल पर डाल दिया गया है, देखिये इन शब्दों को -
क्या करें जिंदगी, इसको हम जो मिले,
इसकी जाँ खा गए रात दिन के गिले....
रात दिन गिले....
मेरी आरजू कामिनी, मेरे ख्वाब भी कमीने,
एक दिल से दोस्ती थी, ये हुज़ूर भी कमीने...
शुरू में ये इजहार सुनकर लगता है कि नहीं ये हमारी दास्तान नहीं हो सकती, पर जैसे जैसे गीत आगे बढता है सच आइना लिए सामने आ खडा हो जाता है और कहीं न कहीं हम सब इस "कमीनेपन" के फलसफे में खुद को घिरा हुआ पाते हैं -
कभी जिंदगी से माँगा,
पिंजरे में चाँद ला दो,
कभी लालटेन देकर,
कहा आसमान पे टांगों.
जीने के सब करीने,
थे हमेशा से कमीने,
कमीने...कमीने....
मेरी दास्ताँ कमीनी,
मेरे रास्ते कमीने,
एक दिल से दोस्ती थी, ये हुज़ूर भी कमीने...
शायद ही किसी हिंदी गीत में "कमीने" शब्द इस तरह से प्रयोग हुआ हो, शायद ही किसी ने कभी गीत जिंदगी का इतना बोल्ड अवलोकन किया हो. इस डार्क टेक्सचर के गीत में तीन बातें है जो गीत को सफल बनाते है. विशाल ने इस गीत के जो पार्श्व बीट्स का इस्तेमाल किया है वो एकदम परफेक्ट है गीत के मूड पर, अक्सर स्वावलोकन में जिंदगी बेक गिअर में भागती है, कई किरदार कई, किस्से और संगीत संयोजन शब्दों के साथ साथ एक अनूठा सफ़र तय करता है, दूसरा प्लस है विशाल की खुद अपनी ही आवाज़ जो एक दम तटस्थ रहती है भावों के हर उतार चढावों में भी इस आवाज़ में दर्द भी है और गीत के "पन्च" शब्द 'कमीने' को गरिमापूर्ण रूप से उभारने का माद्दा भी और तीसरा जाहिर है गुलज़ार साहब के बोल, जो दूसरे अंतरे तक आते आते अधिक व्यक्तिगत से हो जाते हैं -
जिसका भी चेहरा छीला,
अन्दर से और निकला,
मासूम सा कबूतर,
नाचा तो मोर निकला,
कभी हम कमीने निकले,
कभी दूसरे कमीने,
मेरी दोस्ती कमीनी,
मेरे यार भी कमीने...
एक दिल से दोस्ती थी,
ये हुज़ूर भी कमीने....
अब हमारा अवलोकन किस हद तक सही है ये तो आप गीत सुनकर ही बता पायेंगें.चलिए अब बिना देर किये सुन डालिए ताजा सुर ताल में फिल्म "कमीने" का ये गीत -
आवाज़ की टीम ने दिए इस गीत को 4 की रेटिंग 5 में से. अब आप बताएं आपको ये गीत कैसा लगा? यदि आप समीक्षक होते तो प्रस्तुत गीत को 5 में से कितने अंक देते. कृपया ज़रूर बताएं आपकी वोटिंग हमारे सालाना संगीत चार्ट के निर्माण में बेहद मददगार साबित होगी.
क्या आप जानते हैं ?
आप नए संगीत को कितना समझते हैं चलिए इसे ज़रा यूं परखते हैं. फिल्म "ओमकारा" में भी संगीतकार विशाल ने एक युगल गीत को आवाज़ दी थी, कौन सा था वो गीत, बताईये और हाँ जवाब के साथ साथ प्रस्तुत गीत को अपनी रेटिंग भी अवश्य दीजियेगा.
पिछले सवाल का सही जवाब था अध्ययन सुमन जो कि टेलीविजन ऐक्टर शेखर सुमन के बेटे हैं. दिशा जी ने एकदम सही जवाब दिया जी हाँ उन्होंने फिल्म राज़ (द मिस्ट्री) में भी काम किया था, और तभी से महेश भट्ट कैम्प के स्थायी सदस्य बन चुके हैं. तनहा जी ने फिल्म "हाले-ए- दिल" का भी जिक्र किया. त्रुटि सुधार के लिए आप दोनों का धन्येवाद. मंजू जी, मनीष जी, निर्मला जी, प्रज्ञा जी ने भी गीत को पसंद किया. मनु जी रेटिंग आपने लिख कर बतानी है जैसे 5 में से 3, २ या १ इस तरह.:) वर्ना हम कैसे जान पायेंगें कि आपकी रेटिंग क्या है.
अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं. "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है. आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रुरत है उन्हें ज़रा खंगालने की. हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं. क्या आप को भी आजकल कोई ऐसा गीत भा रहा है, जो आपको लगता है इस आयोजन का हिस्सा बनना चाहिए तो हमें लिखे.
आत्मावलोकन यानी खुद के रूबरू होकर बीती जिंदगी का हिसाब किताब करना, हम सभी करते हैं ये कभी न कभी अपने जीवन में और जब हमारे फ़िल्मी किरदार भी किसी ऐसी अवस्था से दोचार होते हैं तो उनके ज़ज्बात बयां करते कुछ गीत भी बने हैं हमारी फिल्मों में, अक्सर नतीजा ये निकलता है कि कभी किस्मत को दगाबाज़ कहा जाता है तो कभी हालतों पर दोष मढ़ दिया जाता है कभी दूसरों को कटघरे में खडा किया जाता है तो कभी खुद को ही जिम्मेदार मान कर इमानदारी बरती जाती है. रेट्रोस्पेक्शन या कन्फेशन का ही एक ताजा उदाहरण है फिल्म "कमीने" का शीर्षक गीत. फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ जिंदगी को तो बा-इज्ज़त बरी कर दिया है और दोष सारा बेचारे दिल पर डाल दिया गया है, देखिये इन शब्दों को -
क्या करें जिंदगी, इसको हम जो मिले,
इसकी जाँ खा गए रात दिन के गिले....
रात दिन गिले....
मेरी आरजू कामिनी, मेरे ख्वाब भी कमीने,
एक दिल से दोस्ती थी, ये हुज़ूर भी कमीने...
शुरू में ये इजहार सुनकर लगता है कि नहीं ये हमारी दास्तान नहीं हो सकती, पर जैसे जैसे गीत आगे बढता है सच आइना लिए सामने आ खडा हो जाता है और कहीं न कहीं हम सब इस "कमीनेपन" के फलसफे में खुद को घिरा हुआ पाते हैं -
कभी जिंदगी से माँगा,
पिंजरे में चाँद ला दो,
कभी लालटेन देकर,
कहा आसमान पे टांगों.
जीने के सब करीने,
थे हमेशा से कमीने,
कमीने...कमीने....
मेरी दास्ताँ कमीनी,
मेरे रास्ते कमीने,
एक दिल से दोस्ती थी, ये हुज़ूर भी कमीने...
शायद ही किसी हिंदी गीत में "कमीने" शब्द इस तरह से प्रयोग हुआ हो, शायद ही किसी ने कभी गीत जिंदगी का इतना बोल्ड अवलोकन किया हो. इस डार्क टेक्सचर के गीत में तीन बातें है जो गीत को सफल बनाते है. विशाल ने इस गीत के जो पार्श्व बीट्स का इस्तेमाल किया है वो एकदम परफेक्ट है गीत के मूड पर, अक्सर स्वावलोकन में जिंदगी बेक गिअर में भागती है, कई किरदार कई, किस्से और संगीत संयोजन शब्दों के साथ साथ एक अनूठा सफ़र तय करता है, दूसरा प्लस है विशाल की खुद अपनी ही आवाज़ जो एक दम तटस्थ रहती है भावों के हर उतार चढावों में भी इस आवाज़ में दर्द भी है और गीत के "पन्च" शब्द 'कमीने' को गरिमापूर्ण रूप से उभारने का माद्दा भी और तीसरा जाहिर है गुलज़ार साहब के बोल, जो दूसरे अंतरे तक आते आते अधिक व्यक्तिगत से हो जाते हैं -
जिसका भी चेहरा छीला,
अन्दर से और निकला,
मासूम सा कबूतर,
नाचा तो मोर निकला,
कभी हम कमीने निकले,
कभी दूसरे कमीने,
मेरी दोस्ती कमीनी,
मेरे यार भी कमीने...
एक दिल से दोस्ती थी,
ये हुज़ूर भी कमीने....
अब हमारा अवलोकन किस हद तक सही है ये तो आप गीत सुनकर ही बता पायेंगें.चलिए अब बिना देर किये सुन डालिए ताजा सुर ताल में फिल्म "कमीने" का ये गीत -
आवाज़ की टीम ने दिए इस गीत को 4 की रेटिंग 5 में से. अब आप बताएं आपको ये गीत कैसा लगा? यदि आप समीक्षक होते तो प्रस्तुत गीत को 5 में से कितने अंक देते. कृपया ज़रूर बताएं आपकी वोटिंग हमारे सालाना संगीत चार्ट के निर्माण में बेहद मददगार साबित होगी.
क्या आप जानते हैं ?
आप नए संगीत को कितना समझते हैं चलिए इसे ज़रा यूं परखते हैं. फिल्म "ओमकारा" में भी संगीतकार विशाल ने एक युगल गीत को आवाज़ दी थी, कौन सा था वो गीत, बताईये और हाँ जवाब के साथ साथ प्रस्तुत गीत को अपनी रेटिंग भी अवश्य दीजियेगा.
पिछले सवाल का सही जवाब था अध्ययन सुमन जो कि टेलीविजन ऐक्टर शेखर सुमन के बेटे हैं. दिशा जी ने एकदम सही जवाब दिया जी हाँ उन्होंने फिल्म राज़ (द मिस्ट्री) में भी काम किया था, और तभी से महेश भट्ट कैम्प के स्थायी सदस्य बन चुके हैं. तनहा जी ने फिल्म "हाले-ए- दिल" का भी जिक्र किया. त्रुटि सुधार के लिए आप दोनों का धन्येवाद. मंजू जी, मनीष जी, निर्मला जी, प्रज्ञा जी ने भी गीत को पसंद किया. मनु जी रेटिंग आपने लिख कर बतानी है जैसे 5 में से 3, २ या १ इस तरह.:) वर्ना हम कैसे जान पायेंगें कि आपकी रेटिंग क्या है.
अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं. "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है. आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रुरत है उन्हें ज़रा खंगालने की. हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं. क्या आप को भी आजकल कोई ऐसा गीत भा रहा है, जो आपको लगता है इस आयोजन का हिस्सा बनना चाहिए तो हमें लिखे.
Comments
गायक/गायिका-श्रेया गोषाल और विशाल भारद्वाज
रेटिंग देने को मैं भी दे दूँ, लेकिन सोचता हूँ कि रेटिंग के साथ उस रेटिंग का कारण भी होना चाहिए। मतलब कि अगर अच्छी रेटिंग दी तो बताएँ कि गीत आपको क्यों अच्छा लगा और अगर बुरी रेटिंग दी तो भी उसका कारण जरूर बताएँ।
चूँकि मैं विशाल और गुलज़ार साहब का फ़ैन रहा हूँ, इसलिए मैं तो इस गाने को ५ में से चार रेटिंग दूँगा, मुख्यत: इस पंक्ति के लिए "जिसका भी चेहरा छीला, अंदर से और निकला, मासूम-सा कबूतर नाचा तो मोर निकला।" और हाँ विशाल साहब अपनी मीठी आवाज़ में इस तरह से "कमीने" बोलते हैं कि लगता हीं नहीं कि यह कोई गाली है। इन दोनों ने मिलकर "कमीने" को एक नया अर्थ दे दिया है। आज हीं मैं विशाल साहब का इंटरव्यू पढकर रहा था जिसमें उन्होंने कहा था कि हम कितना भी अंग्रेजी की गालियाँ बके लोगों को बुरा नहीं लगता, लेकिन जहाँ हिंदी का "कुत्ता" भी आ जाए तो लोगों के भौं चढ जाते हैं। बड़ी हीं फते की बात कही है उन्होंने।
-विश्व दीपक
सभी नये गीत या रचनायें खराब हैं ये कतई ज़रूरी नहीं. ऐसे गीत आनंद दे जाते हैं.
मैं इस गीत को ५ में से ३.५ दूंगा, क्योंकि मुझे लगता है, कि कहीं कहीं इस गीत के स्वरोंको और घुमाव दिया जा सकता था.
अपनी ही मात्र्भाषा में है...
थे हमेशा से कमीने,
कमीने...कमीने....
कमीने...कमीने....
यह दोबारा है..
अब गाने कि बात, मैं यह नहीं समझ पायी कि इस गाने को आवाज़ कि टीम ने ४/५ क्यों दिया, गुलज़ार साहब का लिखा हुआ है, इसलिए चलिए, उनके नाम ने ही कुछ अंक बटोर लिए, बेशक कविता मेरे सर के ऊपर से चली गयी... लेकिन इसके संगीत ने ऐसा कुछ प्रभाव नहीं छोड़ा है जिसके लिए इसकी रेटिंग इतनी ऊँची की जाए, या फिर मुझे यह संगीत समझ में ही नहीं आया..
मेरे ख्याल से मैं इसे २ अंक से ज्यादा नहीं दूंगी, ये मेरा फाइनल रेटिंग है लाक किया जाए...
सुर में तो कोई भी गाली बुरी नहीं लगेगी, 'सु-दृढ' गालियाँ भी....., गाकर देखिये अच्छा ही लगेगा..
ये वही बात हुई के कोई ख़ुशी-ख़ुशी चप्पल से मार रहा हो, और हम हँसते हँसते खा रहे हैं...
धीरे-धीरे सभी गालिआं सुर में ढल जाएँगी और किसी को बिलकुल भी बुरा नहीं लगेगा, चाहे वो 'कुत्ता' या फिर दूसरी 'सु-दृढ' गालियाँ ही क्यों न हों..
बस आत्मसात करने की आवश्यकता है...
जैसे हमने कमीने को कर लिया उन्हें भी कर ही लेंगे...
मेरे कहने का यह अर्थ न था कि मैं गालियों का समर्थन करता हूँ। लेकिन आपने यह मुहावरा सुना हीं होगा कि फ़िल्में समाज का दर्पण होती हैं। अब अगर किसी को अंडरवर्ल्ड की बात बतानी हो तो उसे रामायण-युगीन शब्दों के इस्तेमाल से तो नहीं हीं बता सकते। उसके लिए आपको थोड़ा-सा तो बुरा होना हीं पड़ेगा। जहाँ तक ’कमीने’ और ’कुत्ते’ की बात है तो मैने बस विशाल भारद्वाज की कही बातों को हीं दुहराया था। इससे आपको बुरा लगा तो क्षमा कीजिएगा। लेकिन बस ’गालियों’ के कारण हीं किसी चीज से नाक-भौं सिकोड़ना अच्छी बात नहीं है और यह मेरा मत है, आप भी मेरी हाँ में हाँ मिलाएँ यह जरूरी नहीं।
जानकारी के लिए बता दूँ कि ’कमीने’ नाम भी गुलज़ार साहब ने हीं सुझाया था। गुलज़ार एक ऐसे शख्स हैं जो अपनी मर्जी से काम करते हैं और अगर इस नाम या इस गाने में उन्हें कुछ भी बुरा लगता तो निस्संदेह वे इस फ़िल्म के लिए हामी नहीं भरते। कुछ हीं दिनों पहले ’बिल्लु’ आई थी, जिसमें गुलज़ार साहब के तीन गाने थे। वे चाहते तो सारे गाने उन्हीं के होते, लेकिन शाहरूख खान की इस जिद्द पर कि वे एक गाना ’लव मेरा हिट हिट’ शब्दों का इस्तेमाल करके लिखें, उन्होंने फिल्म से बाहर होना स्वीकार किया। मुझे नहीं पता कि मैं इतना क्यों लिख रहा हूँ, लेकिन चूँकि आपने मुझे संबोधित कर लिखा है, इसलिए क्लैरिफ़िकेशन देना मेरा फ़र्ज़ बनता था।
मुझे आपकी यह बात अच्छी लगी कि आपने रेटिंग के साथ-साथ रेटिंग का कारण भी दिया है।
धन्यवाद,
विश्व दीपक
i give it 4/5. lovely song
haan kuch jagah sirf khanapoorti ko misre milaye hain.
jaise maasoom sa kabootar
naacha to more nikla..
par bajaye iske .. song is a hit..superhit..exquisite music.
ultimate song.