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अँधेरी रात का सूरज - राकेश खंडेलवाल के बहुप्रतीक्षित काव्य संग्रह का ऑनलाइन विमोचन

कौन हूँ मैं, ये मैं भी नहीं जानता, आईने का कोई अक्स बतलायेगा असलियत क्या मेरी, मैं नहीं मानता..."

अपने ब्लॉग गीत कलश पर ये परिचय लिखने वाले राकेश खंडेलवाल जी ख़ुद को जाने या न जाने पर समस्त ब्लॉग्गिंग जगत उन्हें उनकी उत्कृष्ट कविताओं के माध्यम से जानता भी है और पहचानता भी है. आज उनकी प्रतीक्षित पुस्तक "अँधेरी रात का सूरज" का लोकार्पण है. चूँकि राकेश जी का प्रवास अमेरिका में है तो औपचारिक विमोचन आज राजधानी मंदिर औडीटोरियम में, वर्जीनिया और वाशिंगटन हिन्दी समिति द्वारा शाम ६.३० बजे डा० सत्यपाल आनंद (उर्दू,हिन्दी,पंजाबी और अंग्रेजी के विश्व प्रसिद्ध लेखक व कवि ), कनाडा से समीर लाल, न्यू जर्सी से अनूप एवं रजनी भार्गव, राले (नार्थ केरोलाइना) से डा० सुधा ढींगरा, न्यू जर्सी से ही सुरेन्द्र तिवारी, फिलाडेल्फिया से घनश्याम गुप्ता की उपस्थिति में होना है, जहाँ स्थानीय कवि एवं साहित्यकारों में श्री गुलशन मधुर ( भारत में विविध भारती के उद्घोषक रहे हैं ) मधु माहेश्वरी, डा० विशाखा ठाकर, बीना टोडी, रेखा मैत्र, डा० सुमन वरदान, डा० नरेन्द्र टंडन भी उपस्तिथ रहेंगे ऐसी सम्भावना है.

उधर सीहोर में पुस्तक के प्रकाशक, शिवना प्रकाशन ने जो आयोजन रखा है उसमें अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों की जानी मानी कवियित्री मोनिका हठीला के हाथों विमोचन होगा । वहीं हिंदी की मनीषी विद्वान तथा प्रोफेसर डॉ श्रीमती पुष्पा दुबे "अंधेरी रात का सूरज" पर अपनी विशेष टिप्‍पणी करेंगीं । इस आयोजन में शहर के सभी कवि साहित्यकार तथा पत्रकार उपस्थित रहेंगें.

अब अगर आप वॉशिंगटन नही जा सकते और सीहोर पहुँचाना भी आपके लिए मुश्किल हो तो क्या करें ? घबराईये नही, हिंद युग्म आवाज़ आज अपने इस अनूठे प्रयास के माध्यम से न सिर्फ़ आपको इस आयोजन से जोड़े रखेगा बल्कि आज आप इस पुस्तक की पहली झलक पाने वाले पहले पाठक/श्रोता होंगे. हमारा मानना है कि आवाज़ पर पधारने वाला हर अतिथि हमारे लिए विशेष है, इसीलिए हम चाहेंगे कि यह पुस्तक जो कि पाठकों के लिए बनी है, ख़ुद पाठकों के हाथों से इसका विमोचन हो.

तो दोस्तों बस एक क्लिक से करें राकेश जी के काव्य संग्रह का विमोचन -



स्वागत करें श्री राकेश खंडेलवाल जी का, कि वो कहें कुछ 'अपनी बात' -

कभी कभी अपनी बात कहना बहुत मुश्किल हो जाता है। समझ में नहीं आता कहाँ से शुरू किया जाये। ऐसा ही कुछ मुझे लग रहा है । क्या बात करूँ और कहां से प्रारंभ करूँ ?

लिखने की आदत जो भारत में रहते हुए निरन्तर प्रगति करती रही थी, अमेरिका आने के पश्चात व्यस्त जीवन में मंद गति से चलती रही। वाशिंगटन क्षेत्र में हिन्दी साहित्य प्रेमियों के बढ़ते हुए समूह ने इसे थोड़ा विस्तार दिया। एक घटना जिसने मुझे इस दिशा में तीव्र गति से बढ़ने को प्रेरित किया वह था मेरा श्री अनूप भार्गव से परिचय। फिलाडेल्फिया में रहने वाले माननीय घनश्याम गुप्ता जी एक अच्छे कवि और मित्र हैं। उनके बुलावे पर सन 1998 में फिलाडेल्फिया के कवि सम्मेलन में अनूपजी से हुआ परिचय प्रगाढ़ मित्रता में परिवर्तित हो गया । उनके तकनीकी ज्ञान ने जून 2003 में ईकविता समूह की रूपरेखा बनाई और प्रारंभ से ही मुझे इससे जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और कलम फिर प्रवाहित होती चली गई।

उन्हीं के सहयोग से सन 2005 में अपना ब्लाग गीतकलश शुरू किया । इस यात्रा के दौरान कई कवि मित्रों और साहित्यकारों का सान्निध्य प्राप्त हुआ जिनके उल्लेख के बिना मेरी बात अधूरी रह जायेगी। टोरांटो में रहने वाल समीर लाल जी से परिचय तो ब्लाग और फोन के माध्यम से था पर व्यक्तिगत तौर पर पहली बार उनसे मुलाकात बंफेलो (न्यूयार्क) में सितम्बर 2006 के कवि सम्मेलन में हुई। उनके विशेष प्रेम ने गीतकलश का रूप निखारा। पंकज सुबीर जी की सह्रदयता और निश्छलता उनके अतुलित ज्ञान को सम्मानित करती है और उनकी बातें निरन्तर लेखन की प्रेरणा होती हैं।

कई नाम ऐसे हैं जिनका उल्लेख इसलिये आवश्यक है कि उनके सहयोग के बिना यह रचनायें पुस्तक का रूप नहीं ले पातीं। सियेटल में रह रहे लोकप्रिय कवि अभिनव शुक्ल, विवेचनात्मक कवि श्री रिपुदमन पचौरी, श्री घनश्याम गुप्ता, परम आदरणीय श्री कुँअर बेचैनजी, महाकवि आदरणीय श्री गुलाब खंडेलवाल जी और माँ शारदा की वीणा को रंगों की तूलिका में परिवर्तित करने वाले कुशल चितेरे श्री विजेन्द्र विज इन सभी मित्रों एवं स्नेही जनों का अनुग्रह मेरा प्रेरणा स्रोत रहा है ।

मेरी कलम से जो भी लिखा गया, मैं इसे अपना योगदान नहीं मानता । मैंने सदैव कहा है-

काव्य का व्याकरण मैंने जाना नहीं
शब्द कांगा पे ही उतरते गये
भावनाओं की गंगा उमड़ती रही
छंद के शिल्प खुद ही सँवरते गये।

आपके हाथों में यह शब्द समन्वय है,आपको कितना पसन्द आया, यह जानने की आकाँक्षा रहेगी।

-राकेश खण्डेलवाल

पुस्तक की प्रस्तावना लिखते हुए कवि कुंवर बैचैन कहते हैं कि कविवर राकेश खण्डेलवाल के गीत सुसंस्कृत भाषा और संस्कृति के संवाहक हैं -

शब्द कोश के एक पृष्ठ पर अनेक शब्द यूँ ही उदास पड़े हुए थे । उन्हीं में एक शब्द कुछ ज्यादा ही उदास था ।इन शब्दों की उदासी से होती हुई जब एक कवि की नार इस अमुक शब्द पर पड़ी, वह जो अधिक उदास था, तो वह वहीं ठहरी रही ।
कवि ने उस शब्द से पूछा- ''भाई, तुम तो गीत हो, फिर इतने उदास क्यों हो ?''
शब्द कोश के पन्ने पर बैठे हुए ही गीत ने भरे मन से कहा- ''कविवर अगर मैं दुखी न होऊँ तो फिर क्या करूँ ? आज के कवि मेरी ओर ध्यान ही नहीं देते । कुछों को छोड़कर, जो ध्यान देते भी हैं, वो मुझे मेरे व्यक्तित्व के अनुसार लोक-जीवन के मंच पर नहीं लाते । मेरे जो मान-दण्ड हैं, जो मानक हैं उनकी उपेक्षा करते हैं और कुछ भी कहने लग जाते हैं ।''
''नहीं यह तो सच नहीं है । तुम्हें तो प्रत्येक युग में कवियों ने अपना कंठहार बनाया है । लोक जीवन से लेकर साहित्यिक मंचों तक तुम्हारा ही बोलबाला रहा है । तुम लोक में लोक गीत बनकर छाये रहे हो । सजी हुई दुल्हनों और बालिकाओं की ढोलक की थाप पर तुम खूब थिरके हो । खेतों में धान बोती सुकुमारियों और फस्लों को काटती मजदूरिनों को भी तुम रिझाते रहे हो । यहीं नहीं, तुम तो बड़े बड़े शिष्ट-विशिष्ट साहित्यकारों की लेखनी को भी अपना आशीष देते रहे हो । चाहे संस्कृत के कवि जयदेव हों, चाहे मैथिल कोकिल विद्यापति, चाहे ब्रज भाषा-शिरोमणि सूर हों या अवधि सम्राट तुलसी सभी को तुम्हारा स्नेह मिला है और उन्होंने तुम्हारा आदर किया है । ...फिर तुम इतने दुखी क्यों हो ?'' कवि ने कहा ।
''ये तो तुम ठीक ही कहते हो कविवर, किन्तु क्या तुमने लोगों से यह कहते हुए नहीं सुना कि गीत तो मर गया है'' गीत ने प्रश्न किया ।
''हाँ, सुना तो है, किन्तु क्या गीत कभी मर सकता है, कभी मरा है, वह तो अमर है । निराला, प्रसाद, महादेवी, बच्चन से लेकर आज तक क्या तुम जीवित नहीं हो । यह कहने वाले कि गीत मर गया है, अब कहने लगे हैं कि गीत तो अमर है ।''
कवि ने प्रतिप्रश्न करते हुए गीत से पूछा- ''क्या तुमने राकेश खण्डेलवाल का नाम सुना है ?''
''सुना तो है, लेकिन वे तो सात समुन्दर पार के देश अमेरिका में रहते हैं ?''
''हाँ, वे रहते भले ही अमेरिका में हों, किन्तु उनकी भाव-भूमि भारतीय ही है । उनमें भारत की मिट्टी की ही सुगंध है जो उनके गीतों के शब्द-पुष्पों में भीतर तक समाई हुई है । सुगंध ही नहीं वरन् इन शब्द-पुष्पों का रूप रंग भी भारतीय ही है । उनमें जो रस है वह भी कन्हैया द्वारा रचाई जाने वाली रास का प्रेम रस है, जिसमें शृँगार है, तन्मयता है, नशा है, उमंग है, लय है, नाद है, उन्मुक्तता है, निश्चिंतता है, योग है और सहयोग भी ।''
इस पर गीत कवि से सम्मोहित होते हुए बोला- ''कविवर फिर राकेश खण्डेलवाल के गीतों पर कोई चर्चा करो न ।''
कवि प्रसन्न हुआ और इस प्रकार व्याख्या करनी प्रारम्भ की । आइये आप भी कवि द्वारा बताई गईं उन विशेषताओं का आनंद लीजिये जो कविवर राकेश खण्डेलवाल के गीतों में सहज रूप में मिल जाती हैं.....

यों राकेश जी ने आधुनिक यथार्थ को भी अपनी कविता का विषय बनाया है और उसे बड़ी ही बारींकी से चित्रित भी किया है किन्तु राकेश जी मूलत: प्रेम के कवि हैं । उनके गीतों का प्राण यदि है तो वह प्रेम ही है । प्रेम का आत्मालाप-अभिव्यक्ति, आशा-निराशा, संयोग-वियोग, प्रशंसा-उपालम्भ, दुख-सुख, रूठना-मनाना, पूजा-अर्चन और सौन्दर्य-वर्णन सभी का चित्रण पूरे मनोयोग और सहजता के साथ कवि ने किया है ।

प्रेम में प्रेम का उपासक अपने प्रिय को रिझाने के लिये क्या नहीं करता । उसका भरसक प्रयास यही रहता है कि वह सब कुछ ऐसा करे जो प्रिय उसकी ओर ध्यान दे । ध्यान देना ही कांफी नहीं है, वरन् उस पर रीझ भी जाए । किन्तु प्रिय है कि उसका पाषाण हृदय पिघलता ही नहीं । प्रिय को रिझाने के लिये उसने क्या नहीं किया । सैकड़ों गीतों की रचना करके उसकी आराधना की, मगर प्रिय है कि उसकी ओर उसका ध्यान ही नहीं देता । ऐसी निष्ठुरता ऐसा पाहनपन भी कैसा-

आह न बोले, वाह न बोले
मन में है कुछ चाह न बोले
जिस पग पर चलते मेरे पग
कैसी है वह राह न बोले
फिर भी आराध्य, हृदय के पाषाणी, इतना बतला दो
कितने गीत और लिखने हैं ?
कितने गीत और लिखने हैं, लिखे सुबह से शाम हो गई ।
थकी लेखनी लिखते लिखते, स्याही सभी तमाम हो गई ॥


यह वह प्रेमी है जिसने अपने गीतों के शब्दों में गुलाब, गुलमोहर और चंदन की सुगंध भरी, नदिया-ताल-सरोवर के जल का कलकल नाद लिया, कोयल की कुहुक को समोया, अंधियारी रात में भी प्रिय के लिये चांदनी के चित्र बनाये, अर्चना की थाली में साधारण दीप नहीं, वरन् सितारों के दीप सजाए, एक एक पल प्रिय के नाम का जाप करने में लगा दिया और वह भी इस विश्वास के साथ कि कवि के गीतों को अपने प्रिय से ही स्वर मिलते हैं, आवारा भावों को शब्दों का अनुशासन मिलता है, छंदबध्दता मिलती है । प्रिय को आराध्य और स्वयं को आराधक मान कर हर तरह से उसकी उपासना की, किन्तु जैसे उपासक का व्रत खंडित हो गया हो या निष्ठा निष्काम हो गई हो ऐसा प्रतीत हुआ-

किन्तु उपासक के खंडित व्रत जैसा तप रह गया अधूरा
और अस्मिता दीपक की लौ में जलकर गुमनाम हो गई
बन आराधक मैंने अपनी निष्ठा भागीरथी बनाई
लगा तुम्हारे मंदिर की देहरी पर वह निष्काम हो गई


लेकिन प्रेम कभी थकता नहीं । यदि वह सच्चा है तो कभी निराश भी नहीं होता । प्रेम करना ही प्रेम को पाना है । प्रेम के प्रस्थान बिन्दु पर विश्वास ही प्रेम के चरमोत्कर्ष पर पहुँचना है । प्रिय का अनुग्रह, उसकी अनुकम्पा पान ही प्रेमी का लक्ष्य है । प्रिय यदि एक प्रकार से खुश नहीं होता तो दूसरी कोई युक्ति निकालता है किन्तु अंतत: प्रिय की अनुकम्पा पा ही लेता है-

अनुभूति को अहसासों को, बार बार पिंजरे में डाला
एक अर्थ से भरा नहीं मन, अर्थ दूसरा और निकाला ,
आदि-अंत में, धूप-छांव में, केवल किया तुम्हें ही वर्णित
अपने सार संकल्पों में मीत तुम्हें ही सदा सँभाला
मिली तुम्हारे अनुग्रह की अनुकम्पा शायद इसीलिये तो
सावन की काली मावस्या, दोपहरी की घाम हो गई ।....


यह बात सच है कि अब प्रेमी को अपने प्रिय की कृपा प्राप्त हो गई है किन्तु ऐसा भी समय आया था जब प्रेम के आराधक ने पत्थरों को भी सिंदूर में रंग दिया था, बरगदों के नीचे बैठकर मन्नतें मांगी थीं, शाम को घी के दीपक जलाए थे, घंटियां बजाईं थीं, शंख से जल चढ़ाया था, शास्त्रों में लिखे मंत्रों का उच्चारण किया था, एकादशी का उपवास रखा था, पूर्णिमा को नारायणी का पाठ किया था, रामायण-भागवत-गीता सभी को पढ़ा, वेद-श्रुतियाँ-ऋचाओं और उपनिषदों में भी उलझा रहा, किन्तु धुंध के बादल छंटे ही नहीं थे, और न भाग्य की रेखा ही बदली थी, किन्तु आंखिरकार प्रिय के ंकदमों को प्रेमी की ओर मुडना ही पड़ा । ..और जैसे ही प्रिय के पग इधर को उठे वैसे ही-

यों लगा मुस्कुराने लगी हर दिशा
छंद की पालकी में विचरने लगे
भाव मन की उमड़ती हुई आस के ।


इतना ही नहीं, वरन् प्रिय के स्वागत में प्रिय के पाँवों को चूमने के लिये डालियों से फूल स्वयं ही झरने लगे, डालियाँ प्रिय के साथ झूलने को आतुर हो उठीं, पुरवाई के झौंके उँगली थाम कर चल पड़े, हरी दूब पंजों पर उचक उचक कर उसे देखने लगी, उपवन में कलियाँ खिल उठीं, पत्तों पर रंग आने लगा, भंवरे उल्लास के गीत गाने लगे, सोया हुआ बसंत जाग गया, धूप प्रिय की राह में अल्पना सजाने लगी, कोंपलें अपनी पलकें मलने लगीं, ताल में शतदल कमल खिल उठे, गुलमोहर अपने नयनों में नवीन सपने सजाने लगा। यही नहीं वरन् बड़े-बड़े संन्यासियों ने भी अपने पारम्परिक गेरुए परिधान को त्याग दिया और वे भी प्रिय के रंग में रंग गए-

भूलकर अपने पारम्परिक वेश को
आपके रंग में सब रंगे रह गए
जिन पे दूजा न चढ़ पाया कोई कभी
सारे परिधान थे जो भी संन्यास के


गीत के प्रधान गुणों में आत्मभिव्यक्ति और आत्म निवेदन का विशेष महत्व है । गीत एक प्रकार से प्रेमी द्वारा प्रिय को लिखे प्रेम पत्र होते हैं जिनमें हृदय के समस्त संवेगों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है । यह बात अलगी रही कि होठों पर लगे संकोच के ताले बहुत दिनों बाद खुलते हैं और गाहे-ब-गाहे मौन रह जाना पड़ता है-

एक तुम्हारा प्रश् अधूरा
दूजे उत्तर जटिल बहुत था
तीजे रुंधे कंठ की वाणी
इसीलिये मैं मौन रह गया


गीत अनुभूतियों का आईना है । तरह तरह की अनुभूतियाँ होती रहती हैं, गीतकार उन्हीं को शब्द देता है । ...और अनुभूतियाँ अनन्त हैं, असीम हैं । गीतकार की इच्छा होती है कि वह कुछ ऐसा लिखे जो अद्वितीय हो । उससे पहले वैसा और नयी शैली में न कहा गया हो प्रेम के उस रूप को गीत का विषय बनाए जो बिल्कुल नया नवेला हो । ऐसी प्रीत जिसका जिक्र इतिहास में अब तक न हुआ हो । राकेश जी कहते हैं-

बहुत दिनों से सोच रहा हूं कोई गीत लिखूं
इतिहासों में मिले न जैसी ऐसी प्रीत लिखूं


कवि की चाहत है कि वह ऐसी प्रीत के बारे में कुछ कहे जिसमें भुजपाशों की सिहरन का कोई अर्थ न हो, थरथराते हुए अधर ही सारी कहानी को कह दें, प्रीति करने की वह रीति हो जिसके अनगिन और नये आयाम हों । उसकी कामना है वह चातक और पपीहे का मनमीत बनकर गीत लिखे । वैसे भी गीत और प्रीत का अमर संबंध है ।

-डॉ. कुँअर बेचैन

पुस्तक का कवर design किया है देश के ख्‍यात चित्रकार श्री विजेंद्र विज जी का जिन्‍होंने गहरे हरे रंग पर अपनी पेंटिंग से वो जादू रचा विजेंद्र विज जी ने जो चित्र आवरण के लिये चयन किया वो पुस्‍तक के शीर्षक को पूरी तरह से व्‍यक्‍त करता है । तिस पर ये कि उन्‍होंने जा रंग संयोजन किया है वो भी अद्भुत है । ऐसा लगता है कि अभी रंग बोल उठेंगें और राकेश जी के गीतों को गुनगुनाने लगेंगें.

अब आते हैं कविताओं पर. यूँ तो बहुत मुश्किल है हमारे लिए कि हम इस अदभुत कविता संग्रह में से मात्र कुछ कवितायें चुनें, पर फ़िर भी हमने पंकज सुबीर जी जिनका कि आज जन्मदिन भी है, की मदद से कुछ रचनाएँ चुनीं और साथ माँगा गजब के संगीत प्रेमी और सर से लेकर पांव तक कला में डूबे श्री संजय पटेल भाई का. संजय भाई आवाज़ के श्रोताओं के लिए और हिन्दी चिट्टाजगत के लिए एक जाना माना नाम है, यूँ तो सालों से बतौर उद्घोषक उन्होंने बहुत नाम कमाया है, पर बहुत कम लोगों ने उनकी जादू भरी आवाज़ सुनी होगी क्योंकि वो एक ऐसे शख्स हैं जो औरों की तारीफों में अपनी तारीफ करना भूल जाते हैं...आज आवाज़ की टीम गर्व के साथ उनकी आवाज़ को पहली बार इन्टरनेट पर प्रस्तुत कर रही है, राकेश जी की कविताओं को उन्होंने जिस अंदाज़ में पेश किया है वो साबित करता है कि वो कितने अच्छे काव्य मर्मज्ञ भी हैं... सुनें और आनंद लें -


चरखे का तकवा....



हम गीतों के गलियारों में ...



एक दीपक वही....



साँझा बाती के दीपक की...



मोनिका हठीला अखिल भारतीय कवियित्री हैं ‍कच्छ भुज की रहने वाली हैं । किसी कवि सम्‍मेलन से रायपूर से लौट रहीं थीं सीहोर में अपने मायके में रुकीं तो पंकज जी उनका अधिकार पूर्वक समय लिया । पेश है उनकी मधुर आवाज़ में राकेश जी के कुछ मुक्तक और कवितायें.



इन्टरनेट पर पहली बार मुखरित हो रही है पंकज सुबीर जी की आवाज़ भी आज इस शुभ अवसर पर साथ में हैं श्री रमेश हठीला जिन्होंने एक कविता गाई है वे मंच के स्थापित कवि रहे हैं पर अभी संन्यास ले चुके हैं । इनकी आवाजों में कुछ मुक्‍तक और गीत राकेश जी के हैं ।



हमारी ये प्रस्तुति आपको कैसी लगी, हमें अवश्य बतायें....पुस्तक की प्रति पाने के लिए संपर्क करें-

अँधेरी रात का सूरज : (काव्य-संग्रह)

राकेश खण्डेलवाल

1713 Wilcox Lane, Silver Spring

MD 20906-5945, USA

+2028777919

rakeshkhandelwal1k@gmail.com,

http://geetkalash.blogspot.com

मूल्य : मात्र 350 रुपये, 25$ US

प्रथम संस्करण : अक्टूबर 2008

प्रकाशक : शिवना प्रकाशन

Shivna Prakashan, P.C.Lab, Shop 3,4,5 Samrat Complex Basement,

Opp. New Bus Stand, Sehore, M.P. 466001, India +91-9977855399

www.subeer.com/prakashan.html

ग्राफिक एफ्फेक्ट्स - प्रशेन

Comments

OutStanding!!

एक जीवंत अहसाह, एक प्रामाणिक कायाप्रवेश !!!

सभी बधाई के हकदार !!!
सजीव जी एक ही बात कहना चाहता हूं मेरी आंखें भरी हुईं हैं और रोमावली खड़ा हो जाना क्‍या होता है ये आज जाना
राकेश खंडेलवाल तथा पंकज सुबीर को एक शानदार करती पाठकों को देने के लिए हार्दिक बधाई !
शोभा said…
आपकी कविता तो प्रभावी है ही साथ मैं आप एक मधुर और प्रभावी आवाज के स्वामी भी हैं. कविता सुनकर बहुत आनंद आया.
राकेश जी को बहुत-बहुत बधाई.
Udan Tashtari said…
Rakesh Bhai, Pankaj ji, Sajeev Bhai, Sanjay Bhai, Hathilaji, Monikaji sabhi anekon badhai ke hakdaar hain. Adbhut aayojan.

Ab main Washington me hun aur shaam kaa intezaar hai, jab ki is pustak kaa vimochan hona hai evan usi uplakshya me el virat kavi sammelan kaa aayojan hai.
वाह, वाह ! बहुत खूब लोकार्पण, हम जैसे प्रवासियों के लिये वरदान !
कुंवर बैचन जी की प्रस्तावना पढ के मन मयूर नाच उठा !
संजय पटेल जी की आवाज में राकेश जी के गीत, जैसे सोने पे सुहागा!
अब बस यही प्रश्न: सी डी कब बनवा रहें हैं ?
पुस्तक तो गुरुजी के हस्ताक्षर सहित हम प्राप्त कर ही लेंगे!

किसका है याद नहीं, पर एक शेर याद आया:
"उनके दामन को छू के आयें हैं,
हमको फूलों में तोलिये साहिब "

असंख्य धन्यवाद !
सभी लोगों को मेरा नमस्कार,
मेरी बधाई उन सभी को है जो इससे जुड़े हुए है, प्रतक्ष्य रूप से हो या अप्रतक्ष्य रूप से. उन सब को भी जिन्होंने यहाँ आके टिपण्णी दी, क्योंकि आख़िर में बधाई साहित्य को है और जीत भी साहित्य की है, जिसके हम सभी एक अंग है.

- अंकित "सफ़र"
adhbhut ...rakesh ji ko badhaayii ..saath hi sajeev v sanjay bhayi ka bahut aabhaar...
अनूप भार्गव said…
आज ही शाम को राकेश जी की पुस्तक के विमोचन समारोह में जाने की तैयारी के बीच इस प्रस्तुति को पढ़ने और सुनने का अवसर मिला | बहुत ही सुंदर प्रयास है | क्यों की राकेश जी को अच्छी तरह से जानता हूँ इसलिए यह कहने का भी अधिकार रखता हूँ की आप ने कुछ गीतों की प्रस्तुति राकेश जी से भी बेहतर की है | :-)

कुछ ही घंटो में शुरू होने वाले कार्यक्रम की उत्सुकता से प्रतीक्षा में ......
आप सभी को अनेक बधाईयाँ। ये बड़े गौरव की बात है कि आप सब इसमें कुछ न कुछ योगदान कर पा रहे है। ये हमारा सौभाग्य है कि हम भी राकेश भाईसाहब के गीतों को अलग-अलग मधुर स्वरों में सुन पा रहे हैं। सजीव जी हम आपके आभारी है आपके अथक प्रयास ने राकेश जी के गीतों को मधुर रस में डूबो कर इतने सुन्दर सजीले ढँग से प्रस्तुत किया...आपने सचमुच गीतों को जिवन्तता प्रदान की है।
सुबीर भाई आपने भी सचमुच कमाल कर दिया। ऎसा अद्भुत विमोचन हमने पहली बार देखा और सुना है।
RC said…
अनेक बधाई। Kaviaatein sunkar bada aanand aaya.
Rama said…
अनुपम प्रस्तुति के लिए राकेश जी को ढ़ेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं।
सजीव जी,संजय पटेल जी, मोनिका हठीला जी एवं रमेश हठीला जी, पंकज सुबीर जी सभी बधाई के हकदार हैं।

‘अंधेरी रात का सूरज’ का सूरज हिंदी साहित्याकाश में सदैव देदीप्तमान होता रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ मैं राकेश जी की सृजनात्मकता को पुन: स्वागत-नमन करती हूं।

हिन्द-युग्म ने जिस सुन्दर ढ़ंग से इसे प्रस्तुत किया है उसके लिए हिन्द-युग्म की पूरी टीम को बधाई एवं शुभकामनाएं।

डा. रमा द्विवेदी
एक तुम्हारा प्रश् अधूरा
दूजे उत्तर जटिल बहुत था
तीजे रुंधे कंठ की वाणी
इसीलिये मैं मौन रह गया
.बहुत-बहुत बधाई.
Ankit Safar said…
"my hearty congratulations to Rakesh ji for his book "Andheri Raat Ka Suraj". Its really nice to hear the energetic voice of Monica ji along with the superb geet of Rakesh ji that took me to a different world of pleasure & emotions. "
हिन्दी रचनात्मक किताबों के विमोचन में यह तरीका मील का पत्थर है। हम प्रशेन के ग्रॉफिक्स के सहारे, संजय पटेल, मोनिका हठीला, रमेश हठीला और पंकज सुबीर की आवाज़ों के सहारे, विजेन्द्र विज की पेंटिंग के माध्यम से तथा कुँवर बैचेन की भूमिका-शब्दों के माध्यम से राकेश खंडेलवाल के गीतों से पूरी तरह जुड़ जाते हैं। राकेश जी की पुस्तक तो बहुत पहले आ जानी चाहिए थी।

बहुत-बहुत बधाई।
हमारे कविराज, श्रीयुत राकेश जी हिन्दी साहित्य के काव्याकाश के जगमगाते सूर्य आखिर उदित हो ही गये और मुखरित भी हो गये!
सँजय भाई, हठीला जी, मोनिकाजी , सजीव जी व पँकज भाई के साथ ने इस समारोह को जो अपनत्व दिया है वह बेजोड है ~~
हिन्दी साहित्य की इस पारिवारिक प्रथा पर नाज़ है और श्री राकेशजी के लिये ढेरोँ बधाई व शुभकामनाएँ
सादर,
स -स्नेह,
-लावण्या
राकेश जी को ह्रदय से बधाई और शुभकामनाएं. और पोस्ट का तो क्या कहना - असाधारण.
बहुत ही अच्छा सरहानीय प्रयास है यह ...बहुत अच्छा लगा इस तरह से इस पुस्तक से परिचित होना ..बधाई राकेश जी आपको बहुत बहुत
सराहनीय प्रयास्।
बधाई
ब्लॉग पर ऐसा प्रयोग पहली बार देखा. जोरदार प्रयास हुआ है. मेहनत का काम था. सबको बधाई.

खंडेलवालजी को पुस्तक विमोचन पर विशेष बधाई.
Anonymous said…
सर्वप्रथम तो राकेश जी और हिन्द युग्म को इस अनूठे प्रयोग के लिये बधाई|
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार का विमोचन आने वाली पीढी के लिये एक
अति शुभ संकेत है|काव्य लेखन के लिये मंच मिलना अब इन्टरनेट पर एक
सामान्य बात है, पर विमोचन के लिये ये एक सम्पूर्ण आधार है और इसके
लिये सजीव जी को मै विशेष रूप से बधाई देना चाहूँगा क्योंकि साहित्य की
वो जिस तरह उपासना कर रहे हैं वो हर किसी के बस की नहीं है, ऐसे सच्चे
साधक को मेरा नमन|पंकज जी, मोनिका जी और रमेश जी की आवाज़ ने
वातावरण को और भी सुरीला बना दिया है| राकेश जी की एक एक रचना का
स्तर मुझे बहुत अच्छा लगा| पुनः हिन्द युग्म की समस्त टीम को मेरी बधाई|
dushyant chaturvedi
सर्वप्रथम तो राकेश जी और हिन्द युग्म को इस अनूठे प्रयोग के लिये बधाई|
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार का विमोचन आने वाली पीढी के लिये एक
अति शुभ संकेत है|काव्य लेखन के लिये मंच मिलना अब इन्टरनेट पर एक
सामान्य बात है, पर विमोचन के लिये ये एक सम्पूर्ण आधार है और इसके
लिये सजीव जी को मै विशेष रूप से बधाई देना चाहूँगा क्योंकि साहित्य की
वो जिस तरह उपासना कर रहे हैं वो हर किसी के बस की नहीं है, ऐसे सच्चे
साधक को मेरा नमन|पंकज जी, मोनिका जी और रमेश जी की आवाज़ ने
वातावरण को और भी सुरीला बना दिया है| राकेश जी की एक एक रचना का
स्तर मुझे बहुत अच्छा लगा| पुनः हिन्द युग्म की समस्त टीम को मेरी बधाई|
क्या टिप्पणी करें...बस अपनी उपस्थिती दर्ज कराना चाह रहा हूँ.राकेश जी के गीतों ने विगत एक साल से ऐसा बाँध रखा है कि ये गाँठ तो खुलने से रही अब.
Janmejay said…
namaskaar!
sarv pratham is project se jure sabhi logon ko meri hardik badhai!rakesh khandelwaal ji ka vishesh abhar ki unhone hindi sahity ko apni is pustak ke vimochan se aur bhi samridh kiya.

khandelwaal ji ki rachnayen pasand ayin,asha hai "awaz" par unki kavitayen sun'ne ko milti rahengi.

kavya-path ka pankaj ji aur sanjay ji ka karya hriday-sparshi hai,bahut-bahut dhanyawaad!haan,kshma karen,kintu kuchh jaghon par pankaj ji ka uchcharan khatka,yatha- "vidyapati" ko "vidhyapati" kahna(विद्यापति /विध्यापति,"anusharan" ko "anushran" kahna wa "कैनवास" ko " कैनवस" kahna.lekin pankaj ji ki kavy-path ki shaily bari achhi lagi.asha hai unhen yun hi hum "awaz' par age bhi sunte rahenge.

monika hatheela ji ki awaz nahi sun paya,"embeded code is invalid" show kar raha hai blog par.

pustak ke cover par bani विजेंद्र विज ji ki painting behad pasand ayi,yah cover-design is pustak ko behad jachta hai.halanki,cover par bayin taraf likha huwa text(upper half me kavi ka wa lower half me pustak ka) agar 180 degree par rotate kar diya jaye to jyada uchit lagega,aisa mera vyaktigat mat hai.shayad yah sundar cover, graphics ke traditional grammar ke hisab se bhi adhik jachega agar text bayin taraf se seedha hone ki bajay dayin taraf se seedha ho.lekin yah design bhi bara achha hai aur iske liye विजेंद्र विज ji ko badhai!

hind yugm dwara pustak-vimochan ke kshetr me utarna ek bara mahatwaporn kadam hai,samast yugm-pariwar ko meri hardik badhai!asha hai aisa kary age bhi jari rahega!

ek bar punah,is pustak avam is post se jure sabhi logon ko badhai,avam hindi pathkon ko is pustak ki badhai!

dhanyawaad!

-Janmejay
अद्भुत प्रस्तुति...नमन आप को पंकज जी को और राकेश जी को...
नीरज
RAJ SINH said…
HIND-YUGM NE NET KE MADHYAM SE JO SASHAKT AUR KALATMAK UNCHAYEE LALIT KALAON KE HAR ROOP KO DEE HAI VAH BEJOD HAI.MAIN DAVE SE KAH SAKTA HOON HIND-YUGM KE YE PRAYAS USE ASEEMIT UNCHAYEE TAK LE JAYENGE JO NET KE MADHYAM SE HINDI KO MILNEE CHAHIYE.HIND-YUGM KO AUR USKEE SEVAON KO SHAT SHAT NAMAN.

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