कौन हूँ मैं, ये मैं भी नहीं जानता, आईने का कोई अक्स बतलायेगा असलियत क्या मेरी, मैं नहीं मानता..."
अपने ब्लॉग गीत कलश पर ये परिचय लिखने वाले राकेश खंडेलवाल जी ख़ुद को जाने या न जाने पर समस्त ब्लॉग्गिंग जगत उन्हें उनकी उत्कृष्ट कविताओं के माध्यम से जानता भी है और पहचानता भी है. आज उनकी प्रतीक्षित पुस्तक "अँधेरी रात का सूरज" का लोकार्पण है. चूँकि राकेश जी का प्रवास अमेरिका में है तो औपचारिक विमोचन आज राजधानी मंदिर औडीटोरियम में, वर्जीनिया और वाशिंगटन हिन्दी समिति द्वारा शाम ६.३० बजे डा० सत्यपाल आनंद (उर्दू,हिन्दी,पंजाबी और अंग्रेजी के विश्व प्रसिद्ध लेखक व कवि ), कनाडा से समीर लाल, न्यू जर्सी से अनूप एवं रजनी भार्गव, राले (नार्थ केरोलाइना) से डा० सुधा ढींगरा, न्यू जर्सी से ही सुरेन्द्र तिवारी, फिलाडेल्फिया से घनश्याम गुप्ता की उपस्थिति में होना है, जहाँ स्थानीय कवि एवं साहित्यकारों में श्री गुलशन मधुर ( भारत में विविध भारती के उद्घोषक रहे हैं ) मधु माहेश्वरी, डा० विशाखा ठाकर, बीना टोडी, रेखा मैत्र, डा० सुमन वरदान, डा० नरेन्द्र टंडन भी उपस्तिथ रहेंगे ऐसी सम्भावना है.
उधर सीहोर में पुस्तक के प्रकाशक, शिवना प्रकाशन ने जो आयोजन रखा है उसमें अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों की जानी मानी कवियित्री मोनिका हठीला के हाथों विमोचन होगा । वहीं हिंदी की मनीषी विद्वान तथा प्रोफेसर डॉ श्रीमती पुष्पा दुबे "अंधेरी रात का सूरज" पर अपनी विशेष टिप्पणी करेंगीं । इस आयोजन में शहर के सभी कवि साहित्यकार तथा पत्रकार उपस्थित रहेंगें.
अब अगर आप वॉशिंगटन नही जा सकते और सीहोर पहुँचाना भी आपके लिए मुश्किल हो तो क्या करें ? घबराईये नही, हिंद युग्म आवाज़ आज अपने इस अनूठे प्रयास के माध्यम से न सिर्फ़ आपको इस आयोजन से जोड़े रखेगा बल्कि आज आप इस पुस्तक की पहली झलक पाने वाले पहले पाठक/श्रोता होंगे. हमारा मानना है कि आवाज़ पर पधारने वाला हर अतिथि हमारे लिए विशेष है, इसीलिए हम चाहेंगे कि यह पुस्तक जो कि पाठकों के लिए बनी है, ख़ुद पाठकों के हाथों से इसका विमोचन हो.
तो दोस्तों बस एक क्लिक से करें राकेश जी के काव्य संग्रह का विमोचन -
Rakesh Bhai, Pankaj ji, Sajeev Bhai, Sanjay Bhai, Hathilaji, Monikaji sabhi anekon badhai ke hakdaar hain. Adbhut aayojan.
Ab main Washington me hun aur shaam kaa intezaar hai, jab ki is pustak kaa vimochan hona hai evan usi uplakshya me el virat kavi sammelan kaa aayojan hai.
वाह, वाह ! बहुत खूब लोकार्पण, हम जैसे प्रवासियों के लिये वरदान ! कुंवर बैचन जी की प्रस्तावना पढ के मन मयूर नाच उठा ! संजय पटेल जी की आवाज में राकेश जी के गीत, जैसे सोने पे सुहागा! अब बस यही प्रश्न: सी डी कब बनवा रहें हैं ? पुस्तक तो गुरुजी के हस्ताक्षर सहित हम प्राप्त कर ही लेंगे!
किसका है याद नहीं, पर एक शेर याद आया: "उनके दामन को छू के आयें हैं, हमको फूलों में तोलिये साहिब "
सभी लोगों को मेरा नमस्कार, मेरी बधाई उन सभी को है जो इससे जुड़े हुए है, प्रतक्ष्य रूप से हो या अप्रतक्ष्य रूप से. उन सब को भी जिन्होंने यहाँ आके टिपण्णी दी, क्योंकि आख़िर में बधाई साहित्य को है और जीत भी साहित्य की है, जिसके हम सभी एक अंग है.
adhbhut ...rakesh ji ko badhaayii ..saath hi sajeev v sanjay bhayi ka bahut aabhaar...
अनूप भार्गव said…
आज ही शाम को राकेश जी की पुस्तक के विमोचन समारोह में जाने की तैयारी के बीच इस प्रस्तुति को पढ़ने और सुनने का अवसर मिला | बहुत ही सुंदर प्रयास है | क्यों की राकेश जी को अच्छी तरह से जानता हूँ इसलिए यह कहने का भी अधिकार रखता हूँ की आप ने कुछ गीतों की प्रस्तुति राकेश जी से भी बेहतर की है | :-)
कुछ ही घंटो में शुरू होने वाले कार्यक्रम की उत्सुकता से प्रतीक्षा में ......
आप सभी को अनेक बधाईयाँ। ये बड़े गौरव की बात है कि आप सब इसमें कुछ न कुछ योगदान कर पा रहे है। ये हमारा सौभाग्य है कि हम भी राकेश भाईसाहब के गीतों को अलग-अलग मधुर स्वरों में सुन पा रहे हैं। सजीव जी हम आपके आभारी है आपके अथक प्रयास ने राकेश जी के गीतों को मधुर रस में डूबो कर इतने सुन्दर सजीले ढँग से प्रस्तुत किया...आपने सचमुच गीतों को जिवन्तता प्रदान की है। सुबीर भाई आपने भी सचमुच कमाल कर दिया। ऎसा अद्भुत विमोचन हमने पहली बार देखा और सुना है।
अनुपम प्रस्तुति के लिए राकेश जी को ढ़ेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं। सजीव जी,संजय पटेल जी, मोनिका हठीला जी एवं रमेश हठीला जी, पंकज सुबीर जी सभी बधाई के हकदार हैं।
‘अंधेरी रात का सूरज’ का सूरज हिंदी साहित्याकाश में सदैव देदीप्तमान होता रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ मैं राकेश जी की सृजनात्मकता को पुन: स्वागत-नमन करती हूं।
हिन्द-युग्म ने जिस सुन्दर ढ़ंग से इसे प्रस्तुत किया है उसके लिए हिन्द-युग्म की पूरी टीम को बधाई एवं शुभकामनाएं।
"my hearty congratulations to Rakesh ji for his book "Andheri Raat Ka Suraj". Its really nice to hear the energetic voice of Monica ji along with the superb geet of Rakesh ji that took me to a different world of pleasure & emotions. "
हिन्दी रचनात्मक किताबों के विमोचन में यह तरीका मील का पत्थर है। हम प्रशेन के ग्रॉफिक्स के सहारे, संजय पटेल, मोनिका हठीला, रमेश हठीला और पंकज सुबीर की आवाज़ों के सहारे, विजेन्द्र विज की पेंटिंग के माध्यम से तथा कुँवर बैचेन की भूमिका-शब्दों के माध्यम से राकेश खंडेलवाल के गीतों से पूरी तरह जुड़ जाते हैं। राकेश जी की पुस्तक तो बहुत पहले आ जानी चाहिए थी।
हमारे कविराज, श्रीयुत राकेश जी हिन्दी साहित्य के काव्याकाश के जगमगाते सूर्य आखिर उदित हो ही गये और मुखरित भी हो गये! सँजय भाई, हठीला जी, मोनिकाजी , सजीव जी व पँकज भाई के साथ ने इस समारोह को जो अपनत्व दिया है वह बेजोड है ~~ हिन्दी साहित्य की इस पारिवारिक प्रथा पर नाज़ है और श्री राकेशजी के लिये ढेरोँ बधाई व शुभकामनाएँ सादर, स -स्नेह, -लावण्या
ब्लॉग पर ऐसा प्रयोग पहली बार देखा. जोरदार प्रयास हुआ है. मेहनत का काम था. सबको बधाई.
खंडेलवालजी को पुस्तक विमोचन पर विशेष बधाई.
Anonymous said…
सर्वप्रथम तो राकेश जी और हिन्द युग्म को इस अनूठे प्रयोग के लिये बधाई| अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार का विमोचन आने वाली पीढी के लिये एक अति शुभ संकेत है|काव्य लेखन के लिये मंच मिलना अब इन्टरनेट पर एक सामान्य बात है, पर विमोचन के लिये ये एक सम्पूर्ण आधार है और इसके लिये सजीव जी को मै विशेष रूप से बधाई देना चाहूँगा क्योंकि साहित्य की वो जिस तरह उपासना कर रहे हैं वो हर किसी के बस की नहीं है, ऐसे सच्चे साधक को मेरा नमन|पंकज जी, मोनिका जी और रमेश जी की आवाज़ ने वातावरण को और भी सुरीला बना दिया है| राकेश जी की एक एक रचना का स्तर मुझे बहुत अच्छा लगा| पुनः हिन्द युग्म की समस्त टीम को मेरी बधाई| dushyant chaturvedi
सर्वप्रथम तो राकेश जी और हिन्द युग्म को इस अनूठे प्रयोग के लिये बधाई| अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार का विमोचन आने वाली पीढी के लिये एक अति शुभ संकेत है|काव्य लेखन के लिये मंच मिलना अब इन्टरनेट पर एक सामान्य बात है, पर विमोचन के लिये ये एक सम्पूर्ण आधार है और इसके लिये सजीव जी को मै विशेष रूप से बधाई देना चाहूँगा क्योंकि साहित्य की वो जिस तरह उपासना कर रहे हैं वो हर किसी के बस की नहीं है, ऐसे सच्चे साधक को मेरा नमन|पंकज जी, मोनिका जी और रमेश जी की आवाज़ ने वातावरण को और भी सुरीला बना दिया है| राकेश जी की एक एक रचना का स्तर मुझे बहुत अच्छा लगा| पुनः हिन्द युग्म की समस्त टीम को मेरी बधाई|
namaskaar! sarv pratham is project se jure sabhi logon ko meri hardik badhai!rakesh khandelwaal ji ka vishesh abhar ki unhone hindi sahity ko apni is pustak ke vimochan se aur bhi samridh kiya.
khandelwaal ji ki rachnayen pasand ayin,asha hai "awaz" par unki kavitayen sun'ne ko milti rahengi.
kavya-path ka pankaj ji aur sanjay ji ka karya hriday-sparshi hai,bahut-bahut dhanyawaad!haan,kshma karen,kintu kuchh jaghon par pankaj ji ka uchcharan khatka,yatha- "vidyapati" ko "vidhyapati" kahna(विद्यापति /विध्यापति,"anusharan" ko "anushran" kahna wa "कैनवास" ko " कैनवस" kahna.lekin pankaj ji ki kavy-path ki shaily bari achhi lagi.asha hai unhen yun hi hum "awaz' par age bhi sunte rahenge.
monika hatheela ji ki awaz nahi sun paya,"embeded code is invalid" show kar raha hai blog par.
pustak ke cover par bani विजेंद्र विज ji ki painting behad pasand ayi,yah cover-design is pustak ko behad jachta hai.halanki,cover par bayin taraf likha huwa text(upper half me kavi ka wa lower half me pustak ka) agar 180 degree par rotate kar diya jaye to jyada uchit lagega,aisa mera vyaktigat mat hai.shayad yah sundar cover, graphics ke traditional grammar ke hisab se bhi adhik jachega agar text bayin taraf se seedha hone ki bajay dayin taraf se seedha ho.lekin yah design bhi bara achha hai aur iske liye विजेंद्र विज ji ko badhai!
hind yugm dwara pustak-vimochan ke kshetr me utarna ek bara mahatwaporn kadam hai,samast yugm-pariwar ko meri hardik badhai!asha hai aisa kary age bhi jari rahega!
ek bar punah,is pustak avam is post se jure sabhi logon ko badhai,avam hindi pathkon ko is pustak ki badhai!
HIND-YUGM NE NET KE MADHYAM SE JO SASHAKT AUR KALATMAK UNCHAYEE LALIT KALAON KE HAR ROOP KO DEE HAI VAH BEJOD HAI.MAIN DAVE SE KAH SAKTA HOON HIND-YUGM KE YE PRAYAS USE ASEEMIT UNCHAYEE TAK LE JAYENGE JO NET KE MADHYAM SE HINDI KO MILNEE CHAHIYE.HIND-YUGM KO AUR USKEE SEVAON KO SHAT SHAT NAMAN.
स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’ और बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...
स्वरगोष्ठी – 216 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 3 : खमाज थाट ‘कोयलिया कूक सुनावे...’ और ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय मे...
स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...
Comments
एक जीवंत अहसाह, एक प्रामाणिक कायाप्रवेश !!!
सभी बधाई के हकदार !!!
राकेश जी को बहुत-बहुत बधाई.
Ab main Washington me hun aur shaam kaa intezaar hai, jab ki is pustak kaa vimochan hona hai evan usi uplakshya me el virat kavi sammelan kaa aayojan hai.
कुंवर बैचन जी की प्रस्तावना पढ के मन मयूर नाच उठा !
संजय पटेल जी की आवाज में राकेश जी के गीत, जैसे सोने पे सुहागा!
अब बस यही प्रश्न: सी डी कब बनवा रहें हैं ?
पुस्तक तो गुरुजी के हस्ताक्षर सहित हम प्राप्त कर ही लेंगे!
किसका है याद नहीं, पर एक शेर याद आया:
"उनके दामन को छू के आयें हैं,
हमको फूलों में तोलिये साहिब "
असंख्य धन्यवाद !
मेरी बधाई उन सभी को है जो इससे जुड़े हुए है, प्रतक्ष्य रूप से हो या अप्रतक्ष्य रूप से. उन सब को भी जिन्होंने यहाँ आके टिपण्णी दी, क्योंकि आख़िर में बधाई साहित्य को है और जीत भी साहित्य की है, जिसके हम सभी एक अंग है.
- अंकित "सफ़र"
कुछ ही घंटो में शुरू होने वाले कार्यक्रम की उत्सुकता से प्रतीक्षा में ......
सुबीर भाई आपने भी सचमुच कमाल कर दिया। ऎसा अद्भुत विमोचन हमने पहली बार देखा और सुना है।
सजीव जी,संजय पटेल जी, मोनिका हठीला जी एवं रमेश हठीला जी, पंकज सुबीर जी सभी बधाई के हकदार हैं।
‘अंधेरी रात का सूरज’ का सूरज हिंदी साहित्याकाश में सदैव देदीप्तमान होता रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ मैं राकेश जी की सृजनात्मकता को पुन: स्वागत-नमन करती हूं।
हिन्द-युग्म ने जिस सुन्दर ढ़ंग से इसे प्रस्तुत किया है उसके लिए हिन्द-युग्म की पूरी टीम को बधाई एवं शुभकामनाएं।
डा. रमा द्विवेदी
दूजे उत्तर जटिल बहुत था
तीजे रुंधे कंठ की वाणी
इसीलिये मैं मौन रह गया
.बहुत-बहुत बधाई.
बहुत-बहुत बधाई।
सँजय भाई, हठीला जी, मोनिकाजी , सजीव जी व पँकज भाई के साथ ने इस समारोह को जो अपनत्व दिया है वह बेजोड है ~~
हिन्दी साहित्य की इस पारिवारिक प्रथा पर नाज़ है और श्री राकेशजी के लिये ढेरोँ बधाई व शुभकामनाएँ
सादर,
स -स्नेह,
-लावण्या
बधाई
खंडेलवालजी को पुस्तक विमोचन पर विशेष बधाई.
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार का विमोचन आने वाली पीढी के लिये एक
अति शुभ संकेत है|काव्य लेखन के लिये मंच मिलना अब इन्टरनेट पर एक
सामान्य बात है, पर विमोचन के लिये ये एक सम्पूर्ण आधार है और इसके
लिये सजीव जी को मै विशेष रूप से बधाई देना चाहूँगा क्योंकि साहित्य की
वो जिस तरह उपासना कर रहे हैं वो हर किसी के बस की नहीं है, ऐसे सच्चे
साधक को मेरा नमन|पंकज जी, मोनिका जी और रमेश जी की आवाज़ ने
वातावरण को और भी सुरीला बना दिया है| राकेश जी की एक एक रचना का
स्तर मुझे बहुत अच्छा लगा| पुनः हिन्द युग्म की समस्त टीम को मेरी बधाई|
dushyant chaturvedi
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार का विमोचन आने वाली पीढी के लिये एक
अति शुभ संकेत है|काव्य लेखन के लिये मंच मिलना अब इन्टरनेट पर एक
सामान्य बात है, पर विमोचन के लिये ये एक सम्पूर्ण आधार है और इसके
लिये सजीव जी को मै विशेष रूप से बधाई देना चाहूँगा क्योंकि साहित्य की
वो जिस तरह उपासना कर रहे हैं वो हर किसी के बस की नहीं है, ऐसे सच्चे
साधक को मेरा नमन|पंकज जी, मोनिका जी और रमेश जी की आवाज़ ने
वातावरण को और भी सुरीला बना दिया है| राकेश जी की एक एक रचना का
स्तर मुझे बहुत अच्छा लगा| पुनः हिन्द युग्म की समस्त टीम को मेरी बधाई|
sarv pratham is project se jure sabhi logon ko meri hardik badhai!rakesh khandelwaal ji ka vishesh abhar ki unhone hindi sahity ko apni is pustak ke vimochan se aur bhi samridh kiya.
khandelwaal ji ki rachnayen pasand ayin,asha hai "awaz" par unki kavitayen sun'ne ko milti rahengi.
kavya-path ka pankaj ji aur sanjay ji ka karya hriday-sparshi hai,bahut-bahut dhanyawaad!haan,kshma karen,kintu kuchh jaghon par pankaj ji ka uchcharan khatka,yatha- "vidyapati" ko "vidhyapati" kahna(विद्यापति /विध्यापति,"anusharan" ko "anushran" kahna wa "कैनवास" ko " कैनवस" kahna.lekin pankaj ji ki kavy-path ki shaily bari achhi lagi.asha hai unhen yun hi hum "awaz' par age bhi sunte rahenge.
monika hatheela ji ki awaz nahi sun paya,"embeded code is invalid" show kar raha hai blog par.
pustak ke cover par bani विजेंद्र विज ji ki painting behad pasand ayi,yah cover-design is pustak ko behad jachta hai.halanki,cover par bayin taraf likha huwa text(upper half me kavi ka wa lower half me pustak ka) agar 180 degree par rotate kar diya jaye to jyada uchit lagega,aisa mera vyaktigat mat hai.shayad yah sundar cover, graphics ke traditional grammar ke hisab se bhi adhik jachega agar text bayin taraf se seedha hone ki bajay dayin taraf se seedha ho.lekin yah design bhi bara achha hai aur iske liye विजेंद्र विज ji ko badhai!
hind yugm dwara pustak-vimochan ke kshetr me utarna ek bara mahatwaporn kadam hai,samast yugm-pariwar ko meri hardik badhai!asha hai aisa kary age bhi jari rahega!
ek bar punah,is pustak avam is post se jure sabhi logon ko badhai,avam hindi pathkon ko is pustak ki badhai!
dhanyawaad!
-Janmejay
नीरज