एहतराम - अजीम शायरों को सलाम ( अंक ०४ )
शिशिर परखी के स्वरों में जारी है सफर एहतराम का, आज के उस्ताद शायर हैं अमीर मीनाई.
निदा फाजिल साहब के शब्दों में अगर ग़ज़ल को समझें तो -
"गजल केवल एक काव्य विधा नहीं है, यह उस संस्कृति या कल्चर को परिभाषित करती है जो गतिशील है और जो पल-पल बदलता रहता है।विश्व-साहित्य में यह एकमात्र अकेली विधा है जो महात्मा बुद्घ की मूर्ति की तरह जहाँ भी आती है अपने रूप-रंग, नैन-नक्श से वहीं की बन जाती है। "
ग़ज़ल की इससे बेहतर परिभाषा क्या होगी.
हजरत अमीर मीनाई (1828 –1901) लखनऊ में जन्में और रामपुर के सूफी संत अमीर शाह के शिष्य बने. अगर मीर और ग़ालिब ज़िंदगी पर एतबार के शायर थे तो दाग़ और अमीर बाज़ार के कारोबारी थे...उनके शेर हम आमो-खास की जुबां पर चढ़ जाते थे. देखिये ये बानगी -
सुनी एक भी बात तुमने न मेरी
सुनी हमने सारे ज़माने की बातें
अंगूर में थी ये शै पानी की चार बूँदें
जिस दिन से खिंच गई है तलवार हो गई है
और
खंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
या फ़िर ये -
किसी अमीर की महफ़िल का ज़िक्र क्या है अमीर
खुदा के घर भी न जाऊँगा बिन बुलाए हुए
पेश है ऐसे ही तेवर लिए हुए हजरत अमीर कि ये दिलकश ग़ज़ल, शिशिर जी ने एक बार यहाँ फ़िर वैसा ही रंग जमाया है,
इस गुरूवार को हम लेकर हाज़िर होंगे शिशिर पारखी जी एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू आवाज़ पर. तब तक एहतराम का सफर हम जारी रखेंगे.
Ghazal - Ada kii aad men...
Artist - Shishir Parkhie
Album - Ahetram
शिशिर परखी के स्वरों में जारी है सफर एहतराम का, आज के उस्ताद शायर हैं अमीर मीनाई.
निदा फाजिल साहब के शब्दों में अगर ग़ज़ल को समझें तो -
"गजल केवल एक काव्य विधा नहीं है, यह उस संस्कृति या कल्चर को परिभाषित करती है जो गतिशील है और जो पल-पल बदलता रहता है।विश्व-साहित्य में यह एकमात्र अकेली विधा है जो महात्मा बुद्घ की मूर्ति की तरह जहाँ भी आती है अपने रूप-रंग, नैन-नक्श से वहीं की बन जाती है। "
ग़ज़ल की इससे बेहतर परिभाषा क्या होगी.
हजरत अमीर मीनाई (1828 –1901) लखनऊ में जन्में और रामपुर के सूफी संत अमीर शाह के शिष्य बने. अगर मीर और ग़ालिब ज़िंदगी पर एतबार के शायर थे तो दाग़ और अमीर बाज़ार के कारोबारी थे...उनके शेर हम आमो-खास की जुबां पर चढ़ जाते थे. देखिये ये बानगी -
सुनी एक भी बात तुमने न मेरी
सुनी हमने सारे ज़माने की बातें
अंगूर में थी ये शै पानी की चार बूँदें
जिस दिन से खिंच गई है तलवार हो गई है
और
खंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
या फ़िर ये -
किसी अमीर की महफ़िल का ज़िक्र क्या है अमीर
खुदा के घर भी न जाऊँगा बिन बुलाए हुए
पेश है ऐसे ही तेवर लिए हुए हजरत अमीर कि ये दिलकश ग़ज़ल, शिशिर जी ने एक बार यहाँ फ़िर वैसा ही रंग जमाया है,
इस गुरूवार को हम लेकर हाज़िर होंगे शिशिर पारखी जी एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू आवाज़ पर. तब तक एहतराम का सफर हम जारी रखेंगे.
Ghazal - Ada kii aad men...
Artist - Shishir Parkhie
Album - Ahetram
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