Skip to main content

तेरा दीवाना हूँ...मेरा ऐतबार कर...

दूसरे सत्र के सत्रहवें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज -

अपनी पहली ग़ज़ल "सच बोलता है..." गाकर रफ़ीक शेख ने ग़ज़ल गायन में अपनी पकड़ साबित की थी. आज वो लेकर आए हैं एक ताज़ी नज़्म -"आखिरी बार बस...". यह नज़्म रफ़ीक साहब की आवाज़ का एक नया अंदाज़ लिए हुए है, उनकी अब तक की तमाम ग़ज़लों से अलग इस नज़्म की नज़ाकत को उन्होंने बहुत बखूबी से निभाया है.रफ़ीक साहब की एक और खासियत ये है कि वो हमेशा नए शायरों की रचनाओं को अपनी आवाज़ में सजाते हैं. इस तरह वो हमारे मिशन में मददगार ही साबित हो रहे हैं. उनकी पिछली ग़ज़ल के शायर अज़ीम नवाज़ राही भी किसी ऐसे स्थान पर रहते हैं जहाँ इन्टरनेट आदि की सुविधा उपलब्ध नहीं है, यही कारण है कि हमें अब तक उनकी तस्वीर और अन्य जानकारियाँ उपलब्ध नहीं हो पायी हैं. लेकिन इस बार के रचनाकार मोइन नज़र के विषय में हमारे बहुत से श्रोता पहले से ही परिचित होंगे। मोइन नज़र वही शायर हैं जिनका कलाम 'इतना टूटा हूँ कि छूने से बिखर जाऊँगा, अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाऊँगा' गाकर ग़ज़ल गायक गुलाम अली ने दुनिया में अपना परचम फहराया। मोइन नज़र साहब रेलवे में चाकरी करते हैं और फिलहाल मुम्बईवासी हैं। कहते हैं फनकार का काम बोलता है, तो आप भी सुनिए मोईन साहब ने क्या खूब बोल लिखे हैं यहाँ. अपने विचार देकर रफ़ीक शेख और नये शायर मोईन नज़र की हौसलाफजाई अवश्य करें.

नज़्म को सुनने के लिए प्लेयर पर क्लिक करें-



Here comes song no.17 for the season 2. "Akhiri baar bas..." is composed and rendered by Rafique Sheikh, and penned by a new writer Moin Nazar. This sad romantic nazm will surely touch your heart, so hear it and share your thoughts about it. Your valuable comments will help us to improvise.

To listen,please click on the player below -



बोल - Lyrics

आखिरी बार बस, तेरा दीदार कर,
मैं चला जाऊँगा, छोड़कर ये शहर,

अपनी चिलमन से बाहर निकल के ज़रा,
दुनिया वालों से छुप के संभल के ज़रा,
दो कदम आ मेरी सिम्त चल के ज़रा,
बैठ पहलु में मेरे, तू मचल के ज़रा,
तेरा दीवाना हूँ, तेरा दीवाना हूँ,
मेरा ऐतबार कर .....

तेरे जलवे चुरा लूँ, इन निगाहों में आ,
मैं तेरे हुस्न को, भर लूँ बाहों में आ,
साए में ताज के, चांदनी रात में,
दुधिया जिस्म को ले पनाहों में आ,
देख लूँ मैं तुझे, देख लूँ मैं तुझे,
आज भर के नज़र....

फ़िर उसके बाद मुलाकात न होगी शायद,
धड़कते दो दिलों में बात न होगी शायद,
जमीन प्यार की बंज़र मेरे हो जायेगी,
बरसों इन आँखों से बरसात न होगी शायद,
साथ मेरे तू चल, साथ मेरे तू चल,
ये सनम बाम पर...

SONG # 17, SEASON # 02, "AKHIRI BAAR BAS..." OPENED ON 24/10/2008 ON AWAAZ, HIND YUGM.
Music @ Hind Yugm, Where music is a passion

Comments

Avanish Gautam said…
रफ़ीक शेख और मोईन नज़र मेरी तरफ से बहुत बहुत बधाईयाँ स्वीकारें! बहुत दिन बाद आवाज़ पर आया तो बहुत प्यारी नज़्म से वाबस्ता हुआ.
बधाई पूरी टीम को. गायकी बहुत उम्दा है और नज़्म भी. सजीव जी को साधुवाद!
बहुत बढ़िया लगा यह ..बधाई पूरी टीम को
nesh said…
bhaut khuboo,nice voice and lyrics.
Anonymous said…
With much obligation I am saying that, am greatfull to you for providing me with such a fine Nazm really Heart touching and soul pleasing.. again so much thanks to you sir..

manish kumar
अब के तमाम गीतों में मुझे इस नज़्म के बोलों ने सबसे अधिक प्रभावित किया, मोईन नज़र साहब ने बहुत सुंदर शब्द चुनें हैं और खूब लिखा है.....रफीक जी आपने साबित कर दिया है कि आप हरफनमौला हैं, ग़ज़ल गायकी आपकी मजबूत अवश्य है पर आप ख़ुद को बिल्कुल भी सीमाओं में बाँध कर मत रखियेगा. आप के रूप में युग्म को एक गजब का गायक मिला है....जिसकी आवाज़ भी इतनी सुरीली है कि क्या कहें ...

शुभकामनायें इस बह्तीरीन प्रस्तुति के लिए
RAFIQUE SHAIKH said…
moin nazar wo shayar hain,jinki gazal
ITNA TOOTA HOON KE CHOONESE BIKHAR JAOONGA
AB AGAR AUR DUA DOGE TO MAR JAOONGA
bahut hi mashhoor hai,jisko ghulam ali sahab ne gaya hai.moin nazar saab railway mein service karte hain,aur filhal mumbai mein rehate hain.
This post has been removed by the author.
रफीक शेख जी तथा मोईन नज़र जी बधाई स्वीकार करे....
संगीत सुंदर और कर्णप्रिय है.."इतना टुटा हु कि छूने से बिखर जाऊंगा "ये ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद है.जानकर खुशी हुई की मोईन जी ने ही इसे लिखा है..
आगे भी आपके नज़मो का इंतजार रहेगा....
आप तो इस मंच के सितारा हैं। जब से आये हैं, चार-चांद लग गया है। इतने नामी शायर को भी आवाज़ से जोड़ने का शुक्रिया।
Shishir Parkhie said…
Wah Rafique bhai bohot khoob!Moin Nazar ji ki nazam to umda hai hi par aapki awaazz aur composition ne isme jan dal di.
Shishir Parkhie
Janmejay said…
namaskaar!

badhai is sundar geet ke liye.
bol saral avam prabhavi hain,dhun bari surili hai aur gayki behad umda hai.
rafeeq sahab ki awaz me ye rachna sun kar sukun sa mehsoos hota hai,shayar ke ehsason ko unhone apni gayki me bakhubi nibhaya hai!

badhai puri team ko.

dhanyawaad!

-Janmejay
shivani said…
ये वो नज़्म है जिसकी शायद मुझे तलाश थी !मैं तहे दिल से मोईन साहिब जी का और रफीक शेख जी का धन्यवाद करती हूँ !मोईन जी ने क्या खूब लिखा है ,एक एक लफ्ज़ लाजवाब है और उस पर शेख साहिब जी की गायकी ने तो और भी निखार ला दिया है !हर लफ्ज़ बहुत प्यार के साथ ,बहुत स्पष्ट और बहुत ही अहसास के साथ गाया है !मेरे पास शब्दों की कमी लग रही है अपने विचार व्यक्त करने के लिए !आप दोनों को एक बार फिर बहुत बहुत धन्यवाद और बहुत बहुत शुभकामनायें !
Anonymous said…
नज्म सुनकर अच्छा लगा
इस प्यारी सी नज्म के लिए मोईन साहिब जी का और रफीक शेख जी और आवाज की टीम का धन्यवाद
मोईन जी आपकी लिखी गज़ल 'इतना टूटा हूँ कि छूने से बिखर जाऊँगा, अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाऊँगा' मैने एक बार रेडियो पर सुनी थी बहुत अच्छी लगी

सुमित भारद्वाज

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...