Skip to main content

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का दूसरा अंक

पॉडकास्ट के माध्यम से काव्य-पाठों का युग्मन


मृदुल कीर्ति
लीजिए हम एक बार पुनः हाज़िर हैं पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का नया अंक लेकर। पॉडकास्ट कवि सम्मेलन भौगौलिक दूरियाँ कम करने का माध्यम है। पिछले महीने शुरू हुए इस आयोजन को मिली कामयाबी ने हमें दूसरी बार करने का दमखम दिया। पिछली बार के संचालन से हमारी एक श्रोता मृदुल कीर्ति बिल्कुल संतुष्ट नहीं थीं, उन्होंने हमसे संचालन करने का अवसर माँगा, हमने खुशी-खुशी उन्हें यह कार्य सौंपा और जो उत्पाद निकलकर आया, वो आपके सामने हैं। इस बार के पॉडकास्ट कवि सम्मेलन ने ग़ाज़ियाबाद से कमलप्रीत सिंह, धनवाद से पारूल, फ़रीदाबाद से शोभा महेन्द्रू, पिट्सबर्ग से अनुराग शर्मा, म॰प्र॰ से प्रदीप मानोरिया, पुणे से पीयूष के मिश्रा तथा अमेरिका से ही मृदुल कीर्ति को युग्मित किया है। इनके अतिरिक्त शिवानी सिंह और नीरा राजपाल की भी रिकॉर्डिंग प्राप्त हुई लेकिन एम्पलीफिकेशन के बावज़ूद स्वर बहुत धीमा रहा, इसलिए हम इन्हें शामिल न कर सके, जिसका हमें दुःख है।

नीचे के प्लेयरों से सुनें।

(ब्रॉडबैंड वाले यह प्लेयर चलायें)


(डायल-अप वाले यह प्लेयर चलायें)


यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)




VBR MP364Kbps MP3Ogg Vorbis


हम सभी कवियों से यह गुज़ारिश करते हैं कि अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे।

# Podcast Kavi Sammelan. Part 2. Month: Aug 2008.

Comments

शोभा said…
मृदुल कीर्ति जी,
बहुत सुन्दर रूप में कवि सम्मेलन प्रस्तुत किया है आपने। आपकी प्रस्तुति बहुत प्रभावी है।
वाह राजीव जी,
पारूल जी की कविता जितनी सुन्दर है उनकी आवाज़ उससे भी अधिक मधुर। आनन्द आगया।
पीयूष जी,
वाह बहुत बढ़िया । जो आनन्द प्राप्त हुआ है उसे शब्दों में बाँध पाना शायद सम्भव नहीं । बहुत खूब
कीर्ति जी मेरा नाम रितु बंसल नहीं शोभा महेन्द्रू है। आपने शायद ठीक से देखा नहीं।
अनुराग जी,
बहुत सुन्दर कविता पढ़ी है आपने। आभार
कमल प्रीत जी
आपकी कविता विचार तंद्रा बहुत अच्छी लगी। प्रस्तुति भी प्रभावी रही।
प्रदीप जी,
आपकी गज़ल बहुत अच्छी लगी ।
हिन्द युग्म को इस कवि सम्मेलन के लिए बधाई । अगली बार कुछ और कविताओं और नए कवियों की प्रतीक्षा रहेगी। सस्नेह
शोभा said…
युग्म के नियंत्रक से निवेदन है कि कवि सम्मेलन प्रकाशित करने से पहले कृपया सुन लिया करें और कवि का नाम सही बताएँ ।
Anonymous said…
वाह मृदुल जी ने इस प्रयास में जान डाल दी है, पारुल जी की मधुर आवाज़ में कमाल की ग़ज़ल सुनने को मिली, कवितायें सभी अच्छी लगी, पर संचालन सबसे बढ़िया लगा, उम्मीद करता हूँ कि आने वाले एपिसोड्स में कवियों कि संख्या बढेगी...और हम और बेहतर कर पाएंगे
अति सुंदर! सभी कवियों का काव्य पाठ सुनकर मज़ा आया. विश्व के अलग-अलग कोने में बैठे कवियों को एक साथ प्रस्तुत करने का यह अनूठा प्रयास सचमुच सराहनीय है. कवियों, संचालक और हिंद-युग्म को हार्दिक धन्यवाद!
rajesh said…
Mridul G ,
Namskar !!!!!

Kavita ka sa swar kanth pathh achha laga
Appki prastuti dil ko chhu gaya.
प्रस्तुति पसंद आई। पारूल जी ने अपनी कविता जिस तरह से पढ़ी है, उसने तो मन को बाँध लिया, मैंने पारूल जी का काव्य-पाठ कई बार सुना। सभी कवियों ने अपनी-अपनी कविताओं में जान फूँकी। इतना पड़ा पाठक वर्ग होने के बावज़ूद, इतनी कम कविताओं का आना सोचने पर विवश करता है। जल्द ही रिकॉर्ड करने के आसान तरीके के बारे में लिखूँगा।
sabhi mitron ko sun naa bahut munbhaayaa...niyantrak mahoday se ek vinti...mai dhanbaad se nahi balki bokaro se huun...kripya isey sahi kar den..aabhaar
Parthiv said…
यह एक अत्यंत सुन्दर और सराहनीय प्रयास है; आप सभी को हार्दिक बधाई और धन्यवाद......
अनुराग शर्मा पारुल जी ऋतू किंतु वास्तव में शोभा महेन्द्रू जी सभी कवि और कवित्रियों की रचनाये अच्छी लगी . हिन्दयुग्म और सभी को बधाई
सचमुच सराहनीय है

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट