आवाज़ पर हम आज से शुरू कर रहे हैं, लोक संगीत पर एक श्रृंखला, हिंद के अनमोल लोक संगीत के खजाने से कुछ अनमोल मोती चुन कर लायेंगे आपके लिए, ये वो संगीत है जिसमें मिटटी की महक है, ये वो संगीत है जो हमारी आत्मा में स्वाभाविक रूप से बसा हुआ सा है, तभी तो हम इन्हे जब भी सुनते हैं लगता है जैसे हमारे ही मन के स्वर हैं. जितनी विवधता हमारे देश के हर प्रान्त के लोक संगीत में है, उतनी शायद पूरी दुनिया के संगीत को मिलाकर भी नही होगी.
चलिए शुरुवात करते हैं, वहां से, जहाँ से निकलता है सूरज, पूर्वोत्तर राज्यों के हर छोटे छोटे प्रान्तों में लोक संगीत के इतने प्रकार प्रचार में हैं कि इनकी गिनती सम्भव नही है. आवाज़ के एक रसिया सत्यजित बारोह ने हमें ये रिकॉर्डिंग उपलब्ध करायी है. यह एक आधुनिक वर्जन है जिसे जुबेन ( वही जिन्होंने "गेंगस्टर" फ़िल्म का मशहूर 'या अली...' गीत गाया है ) ने गाया है. इन्हे भोर गीत कहा जाता है, जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि यह गीत सुबह यानी भोर के समय गाये जाते हैं, और इसमे सुबह के सुंदर दृश्य का वर्णन होता है, अधिकतर भोरगीत वैष्णव धरम के स्तम्भ माने जाने वाले श्रीमोंता शंकोरदेव और मधावोदेव द्वारा रचे गए हैं. वैष्णव धरम में समस्त विश्व के लिए एक ईश्वर की धारणा अपनाई गयी थी, इसी विश्व ईश्वर की स्तुति में गाये जाने वाले इन गीतों में "खोल" का इस्तेमाल किया जाता है, ताल देने के लिए. खोल देखने में ढोलक जैसा प्रतीत होता है मगर इसकी ध्वनि बहुत अलग तरह की होती है ढोलक से.
तो सुनते हैं ये भोरगीत, और महक लेते हैं आसाम की वादियों में महकती स्वर सरिता का.
जानकारी साभार - सत्यजित बरोह
चलिए शुरुवात करते हैं, वहां से, जहाँ से निकलता है सूरज, पूर्वोत्तर राज्यों के हर छोटे छोटे प्रान्तों में लोक संगीत के इतने प्रकार प्रचार में हैं कि इनकी गिनती सम्भव नही है. आवाज़ के एक रसिया सत्यजित बारोह ने हमें ये रिकॉर्डिंग उपलब्ध करायी है. यह एक आधुनिक वर्जन है जिसे जुबेन ( वही जिन्होंने "गेंगस्टर" फ़िल्म का मशहूर 'या अली...' गीत गाया है ) ने गाया है. इन्हे भोर गीत कहा जाता है, जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि यह गीत सुबह यानी भोर के समय गाये जाते हैं, और इसमे सुबह के सुंदर दृश्य का वर्णन होता है, अधिकतर भोरगीत वैष्णव धरम के स्तम्भ माने जाने वाले श्रीमोंता शंकोरदेव और मधावोदेव द्वारा रचे गए हैं. वैष्णव धरम में समस्त विश्व के लिए एक ईश्वर की धारणा अपनाई गयी थी, इसी विश्व ईश्वर की स्तुति में गाये जाने वाले इन गीतों में "खोल" का इस्तेमाल किया जाता है, ताल देने के लिए. खोल देखने में ढोलक जैसा प्रतीत होता है मगर इसकी ध्वनि बहुत अलग तरह की होती है ढोलक से.
तो सुनते हैं ये भोरगीत, और महक लेते हैं आसाम की वादियों में महकती स्वर सरिता का.
जानकारी साभार - सत्यजित बरोह
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