Skip to main content

लौट चलो पाँव पड़ूँ तोरे श्याम-रफ़ी साहब का एक नायाब ग़ैर फ़िल्मी गीत

विविध भारती द्वारा प्रसारित किया जाने वाला ग़ैर-फ़िल्मी यानी सुगम संगीत रचनाओं का कार्यक्रम रंग-तरंग सुगम संगीत की रचनाओं को प्रचारित करने में मील का पत्थर कहा जाना चाहिये. इस कार्यक्रम के ज़रिये कई ऐसी रचनाएं संगीतप्रेमियों को सुनने को मिलीं हैं जिनके कैसेट अस्सी के दशक में बड़ी मुश्किल से बाज़ार में उपलब्ध हो पाते थे. ख़ासकर फ़िल्म जगत की कुछ नायाब आवाज़ों मो.रफ़ी, लता मंगेशकर, आशा भोसले, गीता दत्त, सुमन कल्याणपुरकर, मन्ना डे, महेन्द्र कपूर, उषा मंगेशकर, मनहर, मुबारक बेगम आदि के स्वर में निबध्द कई रचनाएं रंग-तरंग कार्यक्रम के ज़रिये देश भर में पहुँचीं.

संगीतकार ख़ैयाम साहब ने फ़िल्मों में कम काम किया है लेकिन जितना भी किया है वह बेमिसाल है. उन्होंने हमेशा क्वॉलिटी को तवज्जो दी है. ख़ैयाम साहब ने बेगम अख़्तर, मीना कुमारी और मोहम्मद रफ़ी साहब को लेकर जो बेशक़ीमती रचनाएं संगीत जगत को दीं हैं उनमें ग़ज़लें और गीत दोनो हैं. सुगम संगीत एक बड़ी विलक्षण विधा है और हमारे देश का दुर्भाग्य है कि फ़िल्म संगीत के आलोक में सुगम संगीत की रचनाओं को एक अपेक्षित फ़लक़ नहीं मिल पाया है.

संगीतकार ख़ैयाम
ख़ैयाम साहब की संगीतबध्द और रफ़ी साहब के स्वर में रचा ये गीत (क्षमा करें! मैं इसे भजन नहीं कह सकता) गोपी भाव की पराकाष्ठा को व्यक्त कर रहा है. राजस्थानी जी ने कृष्ण के विरह को जो शब्द दिये हैं वह मन को छू जाते हैं, और कम्पोज़िशन देखिये , सारे स्वर ऐसे चुने हैं ख़ैयाम नें कि अपने आप ही कविता की सार्थकता समृध्द हो गई है. रफ़ी साहब शब्द को अपने कंठ से ख़ुद की आत्मा में उतार लेते हैं...गोया स्वयं गोपी बन गए हों और ब्रज की गलियों में अपने कान्ह कदंब के नीचे बैठ भीगी आँखों से टेर लगा रहे हों....पत्ती-पत्ती,फूल-फूल और कूल-कूल (ठंडा ठंडा नहीं, जमुना का किनारा) में कृष्ण को देखते रफ़ी ब्रज के कण कण से प्रार्थित हैं..... लौट चलो...पाँव पडूँ तोरे श्याम.

Comments

MEET said…
सर जी ... बच्चे की जान ही ले लोगे क्या ?? आह संजय भाई, ये तो जादू है .. बहुत बहुत बहुत दिनों के बाद फुर्सत से सुना ये गीत. कुछ कहने को नहीं है ....
मैं ८ वर्ष की उम्र से २३ साल की उम्र तक विविधभारती का नियमित श्रोता रहा हूँ। सभी कार्यक्रमों को मिस करता हूँ। क्या करूँ दिल्ली में विविधभारती नहीं आता। अब एक ही रास्ता बचा है, वो है DTH का। यह दुर्लभ गीत सुनकर तो मज़ा ही आ गया। बहुत-बहुत धन्यवाद।
मधुरतम गीत....रफी साहेब ने भी देखिये जैसे मिसरी घोल दी हो अपनी आवाज़ में, एक गायक गीत के भाव को किस तरह से जीवंत कर देता है उसका उत्कृष्ट उदहारण है ये गीत
Manish Kumar said…
bahut pyara geet sunwaya sanjay bhai, bahut bahut shukriya.
Anonymous said…
wah kya gana hai...
Anonymous said…
What is going on?

Popular posts from this blog

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

खमाज थाट के राग : SWARGOSHTHI – 216 : KHAMAJ THAAT

स्वरगोष्ठी – 216 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 3 : खमाज थाट   ‘कोयलिया कूक सुनावे...’ और ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय मे...