शब्दों में संसार - एपिसोड 03 - बचपन
हमारी उम्र बढ गई, हम बड़े हो गए और इस तरह हमने अपने-आप को उन ख्यालों, सपनों और कोशिशों तक हीं सीमित कर लिया जहाँ हक़ीक़त का मुहर लगना अनिवार्य होता है। हम हरेक बात को संभव और असंभव के पलड़े पर तोलने लगे और जब भी कुछ असंभव की तरफ बढता दिखा तो हमने उससे कन्नी काट ली। हमने बस उसे हीं सच और सही कहा, जो हमारी नज़रों के सामने था या फिर जिसके होने से हमारे मस्तिष्क को बल मिला। बाकी बातों, घटनाओं एवं कल्पनाओं को हमने बचकानी घोषित कर दिया। ऐसा करके हमें लगा कि हमने कोई तीर मार दिया है, लेकिन सही मायने में हमने उसी दिन अपनी मासूमियत खो दी। हम बड़े तो हो गए लेकिन हमारी सोच का आकाश निम्न से निम्नतर होता चला गया। हमारी हार हो गई और हमें हराने वाला कोई और नहीं बल्कि हमारा बचपन हीं था। काश हम बड़े हीं न हुए होते।
यह ख्याल, यह द्वंद्व शायद हर किसी के हृदय में उठता होगा। इसलिए हमने निश्चय किया कि अपने हृदय से हार की पीड़ा हटाकर उन अमूल्य दिनों की सैर की जाए, जिसे बालपन या बचपन कहते हैं ताकि कुछ हीं समय के लिए हीं सही लेकिन हमें भी जीत की अनुभूति हो। (आज के एपिसोड की स्क्रिप्ट से)
आज के एपिसोड में हमने बाल कवि 'बैरागी', सोहन लाल द्विवेदी, भवानी प्रसाद मिश्र, सुभद्रा कुमारी चौहान, माखन लाल चतुर्वेदी, दिनकर, रामेश्वर दयाल दूब, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, शेरचंद गर्ग, हरिवंश राय बच्चन, अयोध्या सिंह उपाध्याय ’हरिऔध’, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, श्याम सुंदर अग्रवाल, निरंकार देव सेवक, और दीन दयाल शर्मा की कुल १५ कविताओं को समेटा है अपने नन्हें मुन्ने श्रोताओं के लिए, जिन्हें खुद हमारे कुछ छोटे छोटे शैतानों ने अपनी आवाज़ से सुरीला बना दिया है. स्क्रिप्ट है विश्व दीपक की, तथा संचालन है अनुराग शर्मा और संज्ञा टंडन का. इस एपिसोड का निर्माण किया है आपके लिए सजीव सारथी ने.
आप इस पूरे पोडकास्ट को यहाँ से डाउनलोड भी कर सकते हैं
आज की कड़ी में प्रस्तुत कवितायें और उनसे जुडी जानकारियाँ इस प्रकार हैं -
कविता ०१ - अगर मगर : कवि - निरंकार देव सेवक : स्वर -स्टीवन सजीव
कविता ०२ - सूक्तियाँ : कवि - बालकवि बैरागी : स्वर - रूपल रस्तोगी
कविता ०३ - पेड : कवि - दीन दयाल शर्मा : स्वर - निखिल मनोज
कविता ०४ : हिमालय : कवि -सोहन लाल द्रिवेदी : स्वर -स्टीवन सजीव
कविता ०५ : अक्ल की बात : कवि - भवानी प्रसाद मिश्र : स्वर -पूजा यादव
कविता ०६ : कदम्ब का पेड : कवि -सुभद्रा कुमारी चौहान : स्वर -अनुप्रिया वार्ष्णेय
कविता ०७ : लड्डू : कवि -माखन लाल चतुर्वेदी : स्वर -अदिति अमित तिवारी
कविता ०८ : इब्नबतूता : कवि -सर्वेश्वर दयाल सक्सेना : स्वर -अभिषेक कारकर
कविता ०९ : चंदा मामा : कवि - श्याम सुन्दर अग्रवाल : स्वर -गार्गी खरडखेडकर
कविता १० : चाँद का कुर्ता : कवि - रामधारी सिंह दिनकर : स्वर -दीपाली तिवारी दिशा
कविता ११ : चंदा मामा आ जाना : कवि - द्वारका प्रसाद महेश्वरी : स्वर -केदार आचरे
कविता १२ : उठो लाल : कवि - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔंध ' : स्वर -आकांक्षा खारकर
कविता १३: चिड़िया : कवि - हरिवंश राय बच्चन : स्वर -माही तिवारी
कविता १४ : खोटी अठन्नी : कवि - रामेश्वर दयाल दूब : स्वर -क्रिस्टिन सजीव
कविता १५ : गाँधी के तीन बन्दर : कवि - शेरचंद गर्ग : स्वर - कुहू राजीव रंजन प्रसाद
कोंसेप्ट और स्क्रिप्ट - विश्व दीपक
कविता-चयन - विश्व दीपक
स्वर - अनुराग शर्मा और संज्ञा टंडन
शीर्षक गीत - सजीव सारथी
स्वर - अनुराग यश, कृष्ण राजकुमार
संगीत - कृष्ण राजकुमार
चित्र साभार - धंधापानी फोटोग्राफी
निर्माण सहयोग - अनुराग शर्मा, रश्मि प्रभा, सुनीता यादव, संज्ञा टंडन, राजीव रंजन प्रसाद, अमित तिवारी, अर्चना चाव्जी
संयोजन एवं प्रस्तुति - सजीव सारथी
दोस्तों, शब्दों में संसार को आपका ढेर सारा प्यार मिल रहा है, यकीन मानिये इसके हर एपिसोड को तैयार करने में एक बड़ी टीम को जमकर मेहनत जोतनी पड़ती है, पर इसे अपलोड करने के बाद हम में हर किसी को एक गजब की आत्म संतुष्टी का अनुभव भी अवश्य होता है, और आपके स्नेह का प्रोत्साहन पाकर ये खुशी दुगनी हो जाती है. दो दिन पहले हमने 'बाल दिवस' मनाया था तो इस माह का ये विशेष एपिसोड बच्चों के नाम करना लाजमी ही था.
हमारी उम्र बढ गई, हम बड़े हो गए और इस तरह हमने अपने-आप को उन ख्यालों, सपनों और कोशिशों तक हीं सीमित कर लिया जहाँ हक़ीक़त का मुहर लगना अनिवार्य होता है। हम हरेक बात को संभव और असंभव के पलड़े पर तोलने लगे और जब भी कुछ असंभव की तरफ बढता दिखा तो हमने उससे कन्नी काट ली। हमने बस उसे हीं सच और सही कहा, जो हमारी नज़रों के सामने था या फिर जिसके होने से हमारे मस्तिष्क को बल मिला। बाकी बातों, घटनाओं एवं कल्पनाओं को हमने बचकानी घोषित कर दिया। ऐसा करके हमें लगा कि हमने कोई तीर मार दिया है, लेकिन सही मायने में हमने उसी दिन अपनी मासूमियत खो दी। हम बड़े तो हो गए लेकिन हमारी सोच का आकाश निम्न से निम्नतर होता चला गया। हमारी हार हो गई और हमें हराने वाला कोई और नहीं बल्कि हमारा बचपन हीं था। काश हम बड़े हीं न हुए होते।
यह ख्याल, यह द्वंद्व शायद हर किसी के हृदय में उठता होगा। इसलिए हमने निश्चय किया कि अपने हृदय से हार की पीड़ा हटाकर उन अमूल्य दिनों की सैर की जाए, जिसे बालपन या बचपन कहते हैं ताकि कुछ हीं समय के लिए हीं सही लेकिन हमें भी जीत की अनुभूति हो। (आज के एपिसोड की स्क्रिप्ट से)
आज के एपिसोड में हमने बाल कवि 'बैरागी', सोहन लाल द्विवेदी, भवानी प्रसाद मिश्र, सुभद्रा कुमारी चौहान, माखन लाल चतुर्वेदी, दिनकर, रामेश्वर दयाल दूब, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, शेरचंद गर्ग, हरिवंश राय बच्चन, अयोध्या सिंह उपाध्याय ’हरिऔध’, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, श्याम सुंदर अग्रवाल, निरंकार देव सेवक, और दीन दयाल शर्मा की कुल १५ कविताओं को समेटा है अपने नन्हें मुन्ने श्रोताओं के लिए, जिन्हें खुद हमारे कुछ छोटे छोटे शैतानों ने अपनी आवाज़ से सुरीला बना दिया है. स्क्रिप्ट है विश्व दीपक की, तथा संचालन है अनुराग शर्मा और संज्ञा टंडन का. इस एपिसोड का निर्माण किया है आपके लिए सजीव सारथी ने.
लीजिए सुनिए रेडियो प्लेबैक का ये अनूठा पोडकास्ट -
आप इस पूरे पोडकास्ट को यहाँ से डाउनलोड भी कर सकते हैं
आज की कड़ी में प्रस्तुत कवितायें और उनसे जुडी जानकारियाँ इस प्रकार हैं -
कविता ०१ - अगर मगर : कवि - निरंकार देव सेवक : स्वर -स्टीवन सजीव
कविता ०२ - सूक्तियाँ : कवि - बालकवि बैरागी : स्वर - रूपल रस्तोगी
कविता ०३ - पेड : कवि - दीन दयाल शर्मा : स्वर - निखिल मनोज
कविता ०४ : हिमालय : कवि -सोहन लाल द्रिवेदी : स्वर -स्टीवन सजीव
कविता ०५ : अक्ल की बात : कवि - भवानी प्रसाद मिश्र : स्वर -पूजा यादव
कविता ०६ : कदम्ब का पेड : कवि -सुभद्रा कुमारी चौहान : स्वर -अनुप्रिया वार्ष्णेय
कविता ०७ : लड्डू : कवि -माखन लाल चतुर्वेदी : स्वर -अदिति अमित तिवारी
कविता ०८ : इब्नबतूता : कवि -सर्वेश्वर दयाल सक्सेना : स्वर -अभिषेक कारकर
कविता ०९ : चंदा मामा : कवि - श्याम सुन्दर अग्रवाल : स्वर -गार्गी खरडखेडकर
कविता १० : चाँद का कुर्ता : कवि - रामधारी सिंह दिनकर : स्वर -दीपाली तिवारी दिशा
कविता ११ : चंदा मामा आ जाना : कवि - द्वारका प्रसाद महेश्वरी : स्वर -केदार आचरे
कविता १२ : उठो लाल : कवि - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔंध ' : स्वर -आकांक्षा खारकर
कविता १३: चिड़िया : कवि - हरिवंश राय बच्चन : स्वर -माही तिवारी
कविता १४ : खोटी अठन्नी : कवि - रामेश्वर दयाल दूब : स्वर -क्रिस्टिन सजीव
कविता १५ : गाँधी के तीन बन्दर : कवि - शेरचंद गर्ग : स्वर - कुहू राजीव रंजन प्रसाद
कोंसेप्ट और स्क्रिप्ट - विश्व दीपक
कविता-चयन - विश्व दीपक
स्वर - अनुराग शर्मा और संज्ञा टंडन
शीर्षक गीत - सजीव सारथी
स्वर - अनुराग यश, कृष्ण राजकुमार
संगीत - कृष्ण राजकुमार
चित्र साभार - धंधापानी फोटोग्राफी
निर्माण सहयोग - अनुराग शर्मा, रश्मि प्रभा, सुनीता यादव, संज्ञा टंडन, राजीव रंजन प्रसाद, अमित तिवारी, अर्चना चाव्जी
संयोजन एवं प्रस्तुति - सजीव सारथी
हिंदी साहित्य के इन अनमोल रत्नों को इस सरलीकृत रूप में आपके सामने लाने का ये हमारा प्रयास आपको कैसा लगा, हमें अपनी राय के माध्यम से अवश्य अवगत करवाएं. यदि आप भी आगामी एपिसोडों में कविताओं को अपनी आवाज़ से सजाना चाहें तो हमसे संपर्क करें.
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