'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में आचार्य चतुरसेन की कहानी अब्बाजान का प्रसारण सुना था।
आज हम लेकर आये हैं "विष्णु बैरागी" की कहानी "यह उजास चाहिए मुझे", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 12 मिनट 39 सेकंड।
इस कथा का मूल आलेख विष्णु जी के ब्लॉग एकोऽहम् पर पढ़ा जा सकता है|
यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें।
नीचे के प्लेयर से सुनें.
(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)
यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें
#38th Story, Yeh ujas chahiye mujhe: Vishu Bairagi/Hindi Audio Book/2012/38. Voice: Anurag Sharma
आज हम लेकर आये हैं "विष्णु बैरागी" की कहानी "यह उजास चाहिए मुझे", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 12 मिनट 39 सेकंड।
इस कथा का मूल आलेख विष्णु जी के ब्लॉग एकोऽहम् पर पढ़ा जा सकता है|
यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें।
भ्रष्टाचार का लालच मनुष्य की आत्मा को मार देता है। ~ विष्णु बैरागी हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी “चारों के चारों, मेरे इस नकार को, घुमा-फिराकर मेरी कंजूसी साबित करना चाह रहे हैं। मुझे हँसी आती है किन्तु हँस नहीं पाता। डरता हूँ कि ये सब बुरा न मान जाएँ।” (विष्णु बैरागी की "यह उजास चाहिए मुझे" से एक अंश) |
नीचे के प्लेयर से सुनें.
(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)
यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें
VBR MP3 |
#38th Story, Yeh ujas chahiye mujhe: Vishu Bairagi/Hindi Audio Book/2012/38. Voice: Anurag Sharma
Comments
Dhanyawaad!!!
दीपावली पर घर आए बच्चों को सुबह साढे पॉंच बजे, स्टेशन पर छोड कर आने के बाद सो गया। बहुत देर से उठा और सबसे पहले मेल बॉक्स खोला - पूरे दो दिनों से नहीं खोला था।
अपनी कहानीवाली सूचना देखकर पहले तो चौंका फिर उत्सुक हुआ। मेरे तकनीकी ज्ञान की सीमाऍं आप भली प्रकार जानते हैं। थोडी उठापटक के बाद कहानी सुनने में सफल हो गया। सुनते-सुनते रोमांच हो आया और समाप्त होते-होते, ऑंखों से ऑंसू झरने लगे। यह टिप्पणी उसी दशा में लिख रहा हूँ - बहुत ही कठिनाई से। अक्षर सूझ नहीं रहे, फिर भी लिख रहा हूँ।
यह सब मेरे लिए कल्पनातीत है। समझ नहीं पा रहा हूँ, तय नहीं कर पा रहा हूँ कि क्या कहूँ। 'निहाल होना' शायद ऐसा ही कुछ होता होगा।
विगलित हूँ। अपने मन से मेरे मन को समझने का श्रमसाध्य उपकार कर लीजिएगा।
बस।
विष्णु
महेंद्र जी, पंकज जी, आप दोनों का धन्यवाद और पर्व की शुभकामनायें!