स्वरगोष्ठी – ९७ में आज
मान-मनुहार की ठुमरी : ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’
मान-मनुहार की ठुमरी : ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’
‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों हम कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियों पर चर्चा
कर रहे हैं, जिन्हें पूरा मान-सम्मान देते हुए फिल्मों में शामिल किया गया
और इन ठुमरियों को भरपूर लोकप्रियता भी मिली। ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती
पारम्परिक ठुमरी’ श्रृंखला के अन्तर्गत अब तक आपने जो भी पारम्परिक
ठुमरियाँ और उनके फिल्मों सहित अन्य अनुप्रयोगों का रसास्वादन किया है,
उनमें रागों की समानता थी, अर्थात, मूल ठुमरी जिस राग में थी, अन्य
अनुप्रयोग भी उसी राग में बँधे हुए थे। परन्तु आज के अंक में हमने जिस
ठुमरी का चयन किया है, वह मूल पारम्परिक ठुमरी तो राग भैरवी में निबद्ध है,
किन्तु उसी ठुमरी के परवर्ती प्रयोग के राग भिन्न-भिन्न हैं। यहाँ तक कि
उसी ठुमरी के फिल्मी प्रयोग में भी राग बदला हुआ है। हमारी आज की ठुमरी है-
‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ साँवरिया...’। इस ठुमरी को सुप्रसिद्ध गायिका
रसूलन बाई ने भैरवी में गाया है। मान-मनुहार की इस श्रृंगारप्रधान ठुमरी को
सुनने से पहले पूरब अंग की ठुमरियों की कुछ विशेषताओं के बारे में हम आपसे चर्चा करना चाहते हैं।
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ठुमरी भैरवी : ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’ : विदुषी रसूलन बाई
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ठुमरी खमाज : ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’ : रोशन आरा बेगम
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फिल्म सौतेला भाई : ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’ : लता मंगेशकर
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
पर आज की संगीत पहेली में एक बार फिर हम आपको एक बेहद लोकप्रिय ठुमरी का
अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली
के सौवें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला
का विजेता घोषित किया जाएगा।
१ - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह ठुमरी किस राग में निबद्ध है?
२ – इस पारम्परिक ठुमरी को सातवें दशक की एक फिल्म में भी शामिल किया गया था। फिल्म में शामिल यह ठुमरी किस राग पर आधारित है?
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments
में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
९९वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच
बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ
के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
के ९५वें अंक में हमने आपको सुप्रसिद्ध गायक पण्डित भीमसेन जोशी की आवाज़
में चर्चित ठुमरी ‘बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय...’ का एक अंश सुनवा कर आपसे
दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग भैरवी और दूसरे
प्रश्न का सही उत्तर है- नवाब वाजिद अली शाह। दोनों प्रश्नो के सही उत्तर
लखनऊ के प्रकाश गोविन्द, जबलपुर की क्षिति तिवारी और जौनपुर के डॉ. पी.के.
त्रिपाठी ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की
ओर से बधाई।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ के
आगामी अंक में हम लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक
ठुमरी’ के अन्तर्गत पुनः एक ऐसी ठुमरी का परिचय देंगे, जिसके विभिन्न
प्रयोगों में अलग-अलग रागों का इस्तेमाल हुआ है। हमारे एक पाठक (अपना नाम
उन्होने नहीं लिखा) ने इस श्रृंखला के लिए छः पारम्परिक ठुमरियों के एक
सूची भेजी है, जिनका प्रयोग फिल्मों में किया गया है। आज के अंक में हमने
जो ठुमरी प्रस्तुत की है, वह उसी सूची से ली गई है। अगले अंक में रविवार को
प्रातः ९-३० बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सब संगीत-रसिकों की हम
प्रतीक्षा करेंगे।
कृष्णमोहन मिश्र
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