"दुर्गा की अराधना" और "नदी हूँ, फिर भी प्यासी"
पर्वतों से निकली
या धरा से फूटी
कभी गंगा बन
शिव जटा से छूटी
मैं जल की धारा ले के
बह निकली
निस्वार्थ निशचल
निर्विकार निर्मल
कभी मौन कभी चंचल
कहीं बंजर सींचे
कहीं पाप धोये
सीने पे अपने
जाने कितने बांध ढोये
दोस्तों, आज की कड़ी में हमारे दो विषय हैं - "दुर्गा की अराधना" और "नदी हूँ, फिर भी प्यासी" है। जीवन के इन दो अलग-अलग पहलुओं की कहानियाँ पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर शेफाली गुप्ता ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ...
(नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)
या फिर यहाँ से डाउनलोड करें (राईट क्लिक करके 'सेव ऐज़ चुनें')
"शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम -
1. इस साप्ताहिक कार्यक्रम में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी के फेसबुक ग्रुप में यहाँ जुड़ सकते है.
4. अधिक जानकारी के लिए आप हमारे संचालक विश्व दीपक जी से इस पते पर संपर्क कर सकते हैं- vdeepaksingh@gmail.com
पर्वतों से निकली
या धरा से फूटी
कभी गंगा बन
शिव जटा से छूटी
मैं जल की धारा ले के
बह निकली
निस्वार्थ निशचल
निर्विकार निर्मल
कभी मौन कभी चंचल
कहीं बंजर सींचे
कहीं पाप धोये
सीने पे अपने
जाने कितने बांध ढोये
दोस्तों, आज की कड़ी में हमारे दो विषय हैं - "दुर्गा की अराधना" और "नदी हूँ, फिर भी प्यासी" है। जीवन के इन दो अलग-अलग पहलुओं की कहानियाँ पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर शेफाली गुप्ता ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ...
(नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)
या फिर यहाँ से डाउनलोड करें (राईट क्लिक करके 'सेव ऐज़ चुनें')
"शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम -
कवियों के साथ - शब्दों के चाक पर 19 |
2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के प्रमुख पिट्सबर्ग से अनुराग शर्मा जी अपने साथी पोडकास्टरों के साथ इन कविताओं में आवाज़ भरेंगें और अपने दिलचस्प अंदाज़ में इसे पेश करेगें.
3. हमारी टीम अपने विवेक से सभी प्रतिभागी कवियों में से किसी एक कवि को उनकी किसी खास कविता के लिए सरताज कवि चुनेगी. आपने अपनी टिप्पणियों के माध्यम से यह बताना है कि क्या आपको हमारा निर्णय सटीक लगा, अगर नहीं तो वो कौन सी कविता जिसके कवि को आप सरताज कवि चुनते.
4. अधिक जानकारी के लिए आप हमारे संचालक विश्व दीपक जी से इस पते पर संपर्क कर सकते हैं- vdeepaksingh@gmail.com
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