स्वरगोष्ठी – ९५ में आज
श्रृंगार रस से अभिसिंचित ठुमरी- ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’
श्रृंगार रस से अभिसिंचित ठुमरी- ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’
‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक
ठुमरी’ की कड़ियों में आप सुन रहे हैं, कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियाँ, जिन्हें
फिल्मों में पूरे आन, बान और शान के साथ शामिल किया गया। इस श्रृंखला में
आप कुछ ऐसी ही पारम्परिक ठुमरियाँ उनके फिल्मी रूप के साथ सुन रहे हैं। आज
के अंक में हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं, भैरवी की एक बेहद लोकप्रिय ठुमरी-
‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’। आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन
करते हुए, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आरम्भ करता हूँ, ‘फिल्मों के आँगन में
ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ श्रृंखला का नया अंक।
ठुमरी
भारतीय संगीत की वह रसपूर्ण शैली है, जिसमें स्वर और साहित्य का समान
महत्त्व होता है। यह भावप्रधान और चपल चाल वाला गीत है। मुख्यतः यह
श्रृंगार प्रधान गीत होता है; जिसमें लौकिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार का
श्रृंगार उपस्थित होता है। इसीलिए ठुमरी में लोकगीत जैसी कोमल शब्दावली और
अपेक्षाकृत हलके रागों का ही प्रयोग होता है। अधिकतर ठुमरियों के बोल अवधी,
भोजपुरी अथवा ब्रजभाषा में होते हैं। कथक नृत्य में प्रयोग की जाने वाली
अधिकतर ठुमरियाँ कृष्णलीला प्रधान होती हैं। शान्त, गम्भीर अथवा वैराग्य
भावों की सृष्टि करने वाले रागों के बजाय चंचल रागों; जैसे पीलू, काफी,
जोगिया, खमाज, भैरवी, तिलक कामोद, गारा, पहाड़ी, तिलंग आदि में ठुमरी गीतों
को निबद्ध किया जाता है। ठुमरी गायन में त्रिताल, चाँचर, दीपचन्दी, जत,
दादरा, कहरवा आदि तालों का प्रयोग होता है।
आज प्रस्तुत की जाने वाली भैरवी की श्रृंगार रस प्रधान ठुमरी है- ‘साँवरिया ने जादू डारा, बाजूबन्द खुल खुल जाय...’। इस ठुमरी के बोल लोक साहित्य से प्रेरित है। अन्तरे की पंक्तियाँ हैं- ‘जादू की पुड़िया भर भर मारे, का करेगा वैद्य बेचारा...’। इस ठुमरी को अनेक गायक-गायिकाओं ने अपने स्वरों से सँवारा है। आज के अंक में हम आपको सबसे पहले यह ठुमरी उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ की आवाज़ में सुनवाएँगे। पटियाला कसूर घराने के सिरमौर, उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ पिछली शताब्दी के बेमिसाल गायक थे। अपनी बुलन्द गायकी के बल पर संगीत के मंचों पर लगभग आधी शताब्दी तक उन्होने अपनी बादशाहत को कायम रखा। पंजाब अंग की ठुमरियों के वे अप्रतिम गायक थे। लीजिए सुनिए, उनके स्वरों में प्रस्तुत श्रृंगार रस में डूबी यह ठुमरी।
आज प्रस्तुत की जाने वाली भैरवी की श्रृंगार रस प्रधान ठुमरी है- ‘साँवरिया ने जादू डारा, बाजूबन्द खुल खुल जाय...’। इस ठुमरी के बोल लोक साहित्य से प्रेरित है। अन्तरे की पंक्तियाँ हैं- ‘जादू की पुड़िया भर भर मारे, का करेगा वैद्य बेचारा...’। इस ठुमरी को अनेक गायक-गायिकाओं ने अपने स्वरों से सँवारा है। आज के अंक में हम आपको सबसे पहले यह ठुमरी उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ की आवाज़ में सुनवाएँगे। पटियाला कसूर घराने के सिरमौर, उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ पिछली शताब्दी के बेमिसाल गायक थे। अपनी बुलन्द गायकी के बल पर संगीत के मंचों पर लगभग आधी शताब्दी तक उन्होने अपनी बादशाहत को कायम रखा। पंजाब अंग की ठुमरियों के वे अप्रतिम गायक थे। लीजिए सुनिए, उनके स्वरों में प्रस्तुत श्रृंगार रस में डूबी यह ठुमरी।
ठुमरी भैरवी : ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ : उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ
इस
ठुमरी में लोकतत्व प्रमुख रूप से उभरता है। नायिका पर साँवरिया का ऐसा
जादू सवार है कि वह सुध-बुध खो बैठी है। हर समय नायक की चिन्ता में डूबी
रहने वाली नायिका इतनी दुबली हो गई है कि बाजूबन्द बार-बार स्वतः गिर पड़ता
है। ठुमरी के इस भाव को एक नये ढंग से परिभाषित किया है, पण्डित भीमसेन
जोशी ने। भारतीय संगीत की विविध विधाओं ध्रुवपद, खयाल, ख़याल, तराना, भजन,
अभंग आदि शैलियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को
अपने स्वर के सम्मोहन में बाँधे रखा। पण्डित जी की खरज भरी आवाज का
वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह
अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कण्ठ में नचाते
रहे। उन्हें खयाल गायन के साथ-साथ ठुमरी, भजन और अभंग गायन में भी महारथ
हासिल थी। आइए उनके कण्ठ-स्वर में सुनते हैं यही ठुमरी।
ठुमरी भैरवी : ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ : पण्डित भीमसेन जोशी
आज
हम जिस गायन शैली को ठुमरी गीत के रूप में जानते हैं, उसे एक शैली के रूप
में पहचान मिली, अवध के नवाबी दरबार में। उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध
में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में ठुमरी को नई पहचान तो मिली
किन्तु इसका विकास बनारस के समृद्ध सांगीतिक परिवेश में हुआ। ठुमरी के इस
प्रमुख केन्द्र के वर्तमान गायक-गायिकाओं में विदुषी गिरिजा देवी का नाम
शीर्षस्थ है। गिरिजा देवी आधुनिक और स्वतन्त्रता से पूर्व काल की पूरब अंग
की बोल बनाव ठुमरियों की विशेषज्ञ और संवाहिका हैं। आधुनिक उपशास्त्रीय
संगीत के भण्डार को उन्होंने समृद्ध किया है। अब हम आपको भैरवी की यही
ठुमरी विदुषी गिरिजा देवी के स्वरों में सुनवाते हैं। इस प्रस्तुति में
सुप्रसिद्ध सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खाँ ने गायन के साथ जुगलबन्दी की है।
गिरिजा देवी की अनूठी गायकी और सरोद के गमकयुक्त योगदान से ठुमरी का एक
अलग रंग किस प्रकार निखरता है, इसका रसास्वादन आप स्वयं करें।
ठुमरी भैरवी : ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ : गायन और सरोद जुगलबन्दी : विदुषी गिरिजा देवी और उस्ताद अमजद अली खाँ
‘फिल्मों
के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ शीर्षक से जारी इस लघु श्रृंखला में
आप पारम्परिक ठुमरियों के साथ उनके फिल्मी प्रयोग का भी रसास्वादन कर रहे
हैं। आज की ठुमरी ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ का उपयोग १९५४ में ‘बाजूबन्द’
नाम से ही प्रदर्शित फिल्म में किया गया था। इस फिल्म के संगीतकार मोहम्मद
शफ़ी थे। फिल्म के एक नृत्य प्रसंग में इस ठुमरी का प्रयोग किया गया था।
रामानन्द सागर निर्देशित फिल्म ‘बाजूबन्द’ में मोहम्मद शफ़ी ने भैरवी की इस
ठुमरी को लता मंगेशकर से गवाया था। आप लता मंगेशकर के मधुर स्वरों में यह
ठुमरी सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
ठुमरी भैरवी : ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ : फिल्म बाजूबन्द : लता मंगेशकर
आज की पहेली
१ - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह ठुमरी किस राग में निबद्ध है?
२ – इस पारम्परिक ठुमरी के रचनाकार का नाम बताइए।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments
में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
९७वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच
बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ
के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
के ९३वें अंक में हमने आपको सुप्रसिद्ध गायिका विदुषी डॉ. प्रभा अत्रे के
स्वरों में गायी राग मिश्र खमाज की ठुमरी का एक अंश सुनवा कर आपसे दो
प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग खमाज अथवा मिश्र खमाज और
दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका परवीन सुलताना। दोनों प्रश्नो के
सही उत्तर लखनऊ के प्रकाश गोविन्द और जबलपुर की क्षिति तिवारी ने दिया है।
अहमदाबाद, गुजरात के डॉ. कश्यप दवे ने पहले प्रश्न का तो सही उत्तर दिया
है, किन्तु दूसरे प्रश्न को समझने में भूल की। दरअसल हमने सुनवाए गए ठुमरी
अंश की गायिका (डॉ. प्रभा अत्रे) का नहीं बल्कि इस ठुमरी के फिल्मी प्रयोग
(पाकीज़ा) की गायिका (परवीन सुलताना) का नाम पूछा था। डॉ. कश्यप दवे सहित
अन्य सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि वे प्रश्न को खूब ध्यान से पढ़ कर ही
उत्तर दें। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से
बधाई।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ के आगामी
अंक में हम लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ को
एक सप्ताह के लिए विराम दे रहे हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ का अगला अंक एक विशेष अंक
होगा। इस अंक में हम शास्त्रीय संगीत के कुछ नवोदित बाल, किशोर और युवा
प्रतिभाओं से आपका परिचय कराएँगे। इन दिनों ‘संगीत मिलन’ नामक संस्था
सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश से संगीत प्रतिभाओ का चयन कर रही है। तीनों वर्गों
में अन्तिम रूप चुनी गई प्रतिभाओं का हम आपसे परिचय भी कराएँगे और साथ ही
उनकी प्रस्तुतियों को भी सुनवाएँगे। उत्तर प्रदेश की इन नवोदित प्रतिभाओं
को जानने और सुनने के लिए ‘स्वरगोष्ठी’ के आगामी अंक में अवश्य पधारिएगा।
अगले रविवार को प्रातः ९-३० पर आयोजित अपनी इस गोष्ठी में आप अवश्य पधारिए।
हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
कृष्णमोहन मिश्र
“मैंने देखी पहली फिल्म” : आपके लिए एक रोचक प्रतियोगिता
दोस्तों, भारतीय सिनेमा अपने उदगम के 100 वर्ष पूरा करने जा रहा है।
फ़िल्में हमारे जीवन में बेहद खास महत्त्व रखती हैं, शायद ही हम में से कोई
अपनी पहली देखी हुई फिल्म को भूल सकता है। वो पहली बार थियेटर जाना, वो
संगी-साथी, वो सुरीले लम्हें। आपकी इन्हीं सब यादों को हम समेटेगें एक
प्रतियोगिता के माध्यम से। 100 से 500 शब्दों में लिख भेजिए अपनी पहली देखी
फिल्म का अनुभव radioplaybackindia@live.com
पर। मेल के शीर्षक में लिखियेगा ‘मैंने देखी पहली फिल्म’। सर्वश्रेष्ठ तीन
आलेखों को 500 रूपए मूल्य की पुस्तकें पुरस्कारस्वरुप प्रदान की जायेगीं।
तो देर किस बात की, यादों की खिड़कियों को खोलिए, कीबोर्ड पर उँगलियाँ जमाइए
और लिख डालिए अपनी देखी हुई पहली फिल्म का दिलचस्प अनुभव। प्रतियोगिता में
आलेख भेजने की अन्तिम तिथि 30 नवम्बर, 2012 है।
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