Skip to main content

स्मृतियों के झरोखे से : अमित तिवारी की देखी पहली फिल्म 'बालिका वधु'


मैंने देखी पहली फ़िल्म : अमित तिवारी


भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान में प्रत्येक गुरुवार को हम आपके लिए सिनेमा के इतिहास पर विविध सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं। माह के दूसरे और चौथे गुरुवार को आपके संस्मरणों पर आधारित ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ स्तम्भ का प्रकाशन करते हैं। आज माह का चौथा गुरुवार है, इसलिए आज बारी है आपकी देखी पहली फिल्म के रोचक संस्मरण की। आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं, एक गैर-प्रतियोगी संस्मरण। आज का यह संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं, रेडियो प्लेबैक इण्डिया के संचालक-मण्डल के सदस्य अमित तिवारी। 


सचमुच बहुत अच्छा लगता है, 'बालिका वधू' का गीत ‘बड़े अच्छे लगते हैं...’


मुझसे जब पुछा गया कि मेरी देखी पहली फिल्म कौन सी है तो मुझे दिमाग पर ज्यादा जोर डालने की जरूरत नहीं पड़ी। मेरी याद में जो मेरी देखी पहली फिल्म है , वो थी शशि कपूर, प्राण और सुलक्षणा पण्डित के अभिनय से सजी 1978 में प्रदर्शित हुई फिल्म 'फाँसी'। उस समय मैं करीब पाँच साल का था। मुझे इस फिल्म का केवल एक दृश्य याद है, जिसमे ट्रेन धड़धड़ाती दौड़ी जा रही है। परदे पर ट्रेन तिरछी दिखाई जाती है और डाकू उसमे चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। शायद डाकुओं के जीवन पर आधारित फिल्म थी जिसमें मार-पीट, ढिशुम-ढिशुम की भरमार थी।

बस इस फिल्म का यही एक दृश्य याद है। बाकी कहानी क्या थी, पता नहीं। करीब बीस वर्षों के बाद इस फिल्म को दूरदर्शन पर देखने का मौका मिला, पर आज भी मानस -पटल पर यही एक दृश्य अंकित है और बाकी कहानी भूल चूका हूँ। अब चूँकि आज इसके बारे में लिख रहा हूँ तो कोशिश करूँगा कि इसे दुबारा देख सकूँ। बचपन में फ़िल्में देखना एक सपना हुआ करता था। फ़िल्में देखना अच्छा नहीं माना जाता था और मैं भी और बच्चों की तरह सोचा करता था कि जब बड़ा हो जाऊँगा तो रोजाना ढेर सारी फिल्में देखा करूँगा। और हाँ, मेरी वह सोच सच साबित भी हुई। वैसे भी मैं एक छोटे से कस्बे का रहने वाला था, जहाँ सिनेमा हॉल नहीं था। जब कभी हम ननिहाल छुट्टियों में जाते थे तो सिनेमा हॉल के दर्शन हो जाया करते थे। टेलीविजन भी उस समय शुरु नहीं हुआ था।

1983 में दो और फिल्मे देखने का मौका मिला, और वो थीं- अमोल पालेकर और टीना मुनीम अभिनीत 'बातों बातों में' और अभिताभ के अभिनय से सजी 'अन्धा क़ानून'। नियमित रूप से फिल्मे देखने का मौका मिला 1985 में, जब दूरदर्शन पर रविवार की शाम फिल्म 'बालिका वधू' देखी। एक बेहतरीन फिल्म थी, जिसे अब तक 3-4 बार मैं देख चुका हूँ। तब से अब तक तो अनगिनत फिल्मे देख चुका हूँ, लेकिन मेरी पहली फिल्म तो 'फाँसी' ही रहेगी।

अमित जी को फाँसी फिल्म का कोई भी गाना याद नहीं रहा परन्तु हम आपके साथ अमित जी को भी फिल्म 'फाँसी' का एक लोकप्रिय गीत सुनवाते हैं। इसके साथ ही अमित जी का एक और प्रिय गीत, जो फिल्म 'बालिका बधू' से है, उसे भी हम प्रस्तुत कर रहे हैं।

फिल्म फाँसी : ‘जब आती होगी याद मेरी...’ : मोहम्मद रफी और सुलक्षणा पण्डित


फिल्म बालिका बधू : ‘बड़े अच्छे लगते हैं...’ : अमित कुमार



आपको अमित जी की देखी पहली फिल्म का संस्मरण कैसा लगा? हमें अवश्य लिखिएगा। आप अपनी प्रतिक्रिया radioplaybackindia@live.com पर भेज सकते हैं। रेडियो प्लेबैक इण्डिया के सभी पाठकों-श्रोताओं को हम यह शुभ समाचार देना चाहते हैं कि 1 दिसम्बर को रेडियो प्लेबैक इण्डिया का स्थापना दिवस है। आपके सुझावों के अनुसार दिसम्बर से हम ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ स्तम्भ के स्वरूप में परिवर्तन कर रहे है। दिसम्बर से प्रत्येक दूसरे और चौथे गुरुवार को हम ‘मन्थन’ शीर्षक से एक नया स्तम्भ आरम्भ करेंगे। ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ स्तम्भ को हम आज के इस अंक से विराम दे रहे हैं। अगले गुरुवार को हम ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ प्रतियोगिता का परिणाम घोषित करेंगे। ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ प्रतियोगिता के विजेताओं का नाम जानने के लिए अगले गुरुवार को इस मंच पर आप सादर आमंत्रित हैं।

प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...