Skip to main content

स्मृतियों के झरोखे से : मिकी गोथवाल की पहली देखी फिल्म ‘गजब’ का संस्मरण


मैंने देखी पहली फिल्म 

भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का दूसरा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पिछले अंक में आपने श्रीमती अंजू पंकज के संस्मरण के साझीदार रहे। आज के अंक में हम प्रस्तुत कर रहे हैं, पेशे से एक मॉडल तथा फिल्म लेखक और निर्देशक बनने के लिए संघर्षरत मिकी गोथवाल की पहली देखी फिल्म ‘गजब’ का संस्मरण। यह प्रतियोगी वर्ग की प्रविष्टि है।


धर्मेन्द्र जी का शारीरिक गठन देख कर मैंने कसरत करनी शुरू की : मिकी गोथवाल

मेरा नाम मिकी गोथवाल है। मैं मूलत: हरियाणा का रहने वाला हूँ। पेशे से एक मॉडल हूँ और इन दिनों मुम्बई फिल्म-जगत में कुछ अलग हटकर कर गुजरने के लिए प्रयासरत हूँ। यूँ तो आमतौर पर हर मॉडल अभिनेता बनना चाहता है, पर मेरा शौक है फ़िल्में लिखना और फ़िल्में निर्देशित करना। मैंने दो फ़िल्में लिखी भी है, और उन्हें निर्देशित भी करना चाहता हूँ। बस अपने इस सपने को हक़ीक़त में बदलने के लिए संघर्षरत हूँ। मैं हरियाणा के जिस जगह से ताल्लुक रखता हूँ उस जगह का नाम है मोहिन्दरगढ़। मेरे पिताजी एक किसान हैं। वहाँ पर रहते मुझे अंग्रेज़ी बोलना नहीं आता था। मैंने वहीं से बी.ए. पास किया है। दो साल पहले मुम्बई आकर सिनेमा विषय में ही एम.एससी. किया और अंग्रेज़ी भी सीखा। अब मुझे अपने आप पर भरोसा हो गया है कि मैं भी अपनी जिन्दगी में एक ऊँचे मुकाम तक पहुँच सकता हूँ।

मेरी देखी पहली फ़िल्म? वही धर्मेन्द्र वाली ‘गज़ब’ थी, जिसमें वो मर कर आत्मा बन जाते हैं। यह उस समय की बात है जब मैं केवल 14 साल का था। हम दोस्त लोग मिलकर पैसा इकट्ठा करके वी.सी.आर. भाड़े पर ले आए और एक एकान्त जगह पर वह फ़िल्म देखी थी हम दोस्तों ने। बहुत मज़ा आया था। अब मैं 25 साल का हूँ, यानी कि मैंने वह फ़िल्म 1993-94 में देखी थी। आप यह सोच रहे होंगे कि 'ग़ज़ब' फ़िल्म तो 80 के दशक की फ़िल्म थी, तो इतने सालों बाद आख़िर यह फ़िल्म ही क्यों और कैसे देखी? दरअसल ग्रामीण इलाके में रहने की वजह से नई फ़िल्में देर से ही आती थीं। पुरानी फ़िल्मों के विडियो कैसेट्स ज़रूर मिल जाया करते। यही कारण था 'ग़ज़ब' फ़िल्म के देखने का। मस्त एक्स्पीरीयन्स था, लगता था कि मैं भी शायद एक दिन ऐसा ही करूँगा। हीरो हमारे लिए भगवान के समान होते थे उस समय। इस फ़िल्म में नायक थे धर्मेन्द्र, और आगे चलकर धर्मेन्द्र ही मेरे फ़ेवरीट नायक बने। वो मेरे प्रेरणास्रोत रहे हैं। वो ही बॉलीवूड के पहले माचो हीरो सिद्ध हुए। उन्हीं के शारीरिक गठन को देख कर मैंने कसरत करनी शुरू की जिसका नतीजा यह हुआ कि मैं एक सफल मॉडल बन गया। धर्मेन्द्र अभिनीत फ़िल्म 'शोले' (गजब के बाद) मेरी सबसे पसंदीदा फ़िल्म रही है।

फिर 90 के दशक के आख़िर में हमारे घर टी.वी. लगा। जब भी दूरदर्शन पर कोई फ़िल्म आती थी, हम वही देखते थे, अगर लाइट होती थी तो, वरना पूरी रात लाइट का इन्तज़ार ही करते रहते। कई बार तो ऐसा भी होता था कि सिगनल वीक होने की वजह से, जब मेरी माँ सीरीयल या और कुछ देखती थीं तो मैं ऐन्टिना पकड़ कर छत पर बैठा रहता। ये सब बातें आज एक याद बन कर रह गई है। मुम्बई की चमक-दमक वाली ज़िन्दगी, मॉडलिंग का ग्लैमरस संसार, यह सब बाहर से बहुत अच्छा लगता है, पर सच पूछिये तो वह ज़माना ही बेहतर था जब दोस्त लोग मिल कर वी.सी.आर. भाड़े पर लाकर फ़िल्में देखते थे या दूरदर्शन पर शनिवार शाम को आने वाली फ़िल्म का बेसब्री से इन्तज़ार करते थे। आज यही गुनगुनाने का मन करता है- ‘कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन...’।

अपनी पहली देखी फ़िल्म 'ग़ज़ब' से अमित कुमार का गाया "जान-ए-मन जान-ए-जिगर जान-ए-तमन्ना जान ले..." गीत सुनना चाहूँगा।


लीजिए मिकी जी, आप अपनी पसन्द का, फिल्म ‘गजब’ का यह गीत अमित कुमार के स्वर में सुनिए। 1982 में प्रदर्शित इस फिल्म के संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल थे और यह गीत आपके हीरो और प्रेरणास्रोत अभिनेता धर्मेन्द्र पर ही फिल्माया गया था। 

फिल्म गजब : "जान-ए-मन जान-ए-जिगर जान-ए-तमन्ना जान ले..." : अमित कुमार
 

आपको मिकी गोथवाल जी का यह संस्मरण कैसा लगा, हमें अवश्य लिखिएगा। आप अपनी प्रतिक्रिया radioplaybackindia@live.com पर भेज सकते हैं। आप भी हमारे इस आयोजन- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ में भाग ले सकते हैं। आपका संस्मरण हम रेडियो प्लेबैक इण्डिया के इस स्तम्भ में प्रकाशित तो करेंगे ही, यदि हमारे निर्णायकों को पसन्द आया तो हम आपको पुरस्कृत भी करेंगे। आज ही अपना आलेख और एक चित्र हमे radioplaybackindia@live.com पर मेल करें। जिन्होने आलेख पहले भेजा है, उन प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपना एक चित्र भी भेज दें। 


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र


“मैंने देखी पहली फिल्म” : आपके लिए एक रोचक प्रतियोगिता
दोस्तों, भारतीय सिनेमा अपने उदगम के 100 वर्ष पूरा करने जा रहा है। फ़िल्में हमारे जीवन में बेहद खास महत्त्व रखती हैं, शायद ही हम में से कोई अपनी पहली देखी हुई फिल्म को भूल सकता है। वो पहली बार थियेटर जाना, वो संगी-साथी, वो सुरीले लम्हें। आपकी इन्हीं सब यादों को हम समेटेगें एक प्रतियोगिता के माध्यम से। 100 से 500 शब्दों में लिख भेजिए अपनी पहली देखी फिल्म का अनुभव radioplaybackindia@live.com पर। मेल के शीर्षक में लिखियेगा ‘मैंने देखी पहली फिल्म’। सर्वश्रेष्ठ तीन आलेखों को 500 रूपए मूल्य की पुस्तकें पुरस्कारस्वरुप प्रदान की जायेगीं। तो देर किस बात की, यादों की खिड़कियों को खोलिए, कीबोर्ड पर उँगलियाँ जमाइए और लिख डालिए अपनी देखी हुई पहली फिल्म का दिलचस्प अनुभव। प्रतियोगिता में आलेख भेजने की अन्तिम तिथि 30 नवम्बर, 2012 है।








Comments

Sajeev said…
bahut badhiya miki, aapki har baat se main achhe se relate kar sakta hoon, aapki tasveeren dekhkar lagta hai ki aapmne bahut potential hai, lage rahiye, meri shubhkaamnayen aapke saath hain

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट